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Friday, 15 November, 2024
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ईंट भट्टे में बने गड्ढे में डूबकर दो मासूमों की मौत, मज़दूरों के मना करने पर भी मालिक ने नहीं रोकी थी खुदाई

बादली थाने के सब इंस्पेक्टर राजबीर ने ऐसी कोई सूचना होने से इनकार किया है. राजबीर ने कहा, 'हमें अस्पताल से घटना की जानकारी मिली.

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झज्जर: बीतें मंगलवार को हरियाणा के झज्जर ज़िले में मौजूद उजाला नाम के ईंट भट्ठे में दो मासूमों की पानी से भरे गड्ढे में डूबकर मौत हो गई. बरसात के पानी की निकासी के लिए भट्ठा मालिक ने जेसीबी से एक 8-10 फ़ीट का गड्ढा खुदवाया था. मरने वालों में एक बच्चा ढाई साल का और एक चार साल का था. दोनों ही बच्चे भट्टे में काम करने वाले मजदूरों के थे. पीड़ित परिवारों भट्ठा ने मालिक पर लापरवाही का आरोप लगाया है. दिप्रिंट ने घटनास्थल पर पहुंचकर भट्ठा मालिक और मजदूरों से बात की.

मृतक बच्चों के परिवारों का कहना है कि ईंट भट्ठे के मालिक ने 8 से 10 फीट का गड्ढा खोदा ताकि बारिश का पानी निकल सके. पीड़ित परिवारों ने बताया कि उन्होंने भट्ठा मालिक से गड्ढा न खोदने का अनुरोध किया लेकिन उसने उनकी बात नहीं सुनी. वहीं भट्ठा मालिक दीपक गुलिया और आनंद गुलिया का कहना है कि गड्ढे की खुदाई रुटीन काम के तहत की गई थी.

घटनास्थल पर मौजूद गड्ढा/ फोटो नूतन-दिप्रिंट

हालांकि पीड़ित परिवारों ने दिप्रिंट को बताया कि बारिश के दौरान भट्ठे के आस-पास पानी भर गया था, जिसकी निकासी के लिए भट्ठा मालिक ने जेसीबी से गड्ढे की खुदाई कराई थी.जब खुदाई चल रही थी तो उन्होंने भट्ठा मालिक से ऐसा न करने की अपील की थी, लेकिन वह नहीं माना.

मजदूर परिवारों ने दिप्रिंट को बताया कि ईंट भट्ठा मालिक ने गड्ढा तो खोद दिया लेकिन उसके आस-पास न तो तार खींचे और न ही उसके चारों ओर कोई चेतावनी बोर्ड लगाया.जब दिप्रिंट मौके पर पहुंचा तो घटना के बाद भी गड्ढे के आसपास कोई तार या चेतावनी के संकेत नहीं थे.


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कैसे हुआ हादसा

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक ढाई साल का गुंजन, चाल साल के सनी के साथ बाहर खेलने के लिए गया था. इसी दौरान दोनों के पैर फिसल गए और वे गड्ढे में गिर गए. गड्ढे के आस-पास की जगह भी पानी भरा था. जब उनके मां-बाप उन्हें देखने के लिए बाहर निकलने तो पता चला वे गड्ढे में गिर गए हैं. उन्हें बड़ी मशक्कत से बाहर निकाला गया, जिसके बाद मौके पर ही उनकी मौत हो गई.

उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

इस मामले की जानकारी लेने के लिए दिप्रिंट की टीम झज्जर के जिला अस्पताल पहुंची लेकिन एक कमरे से दूसरे घूमने के बाद भी डॉक्टरों ने इस मामले पर कोई जवाब नहीं दिया.

आठ महीने पहले बिहार के जमुई जिले के सरबंद गांव के रहने वाले शकलदेव (गुंजन के पिता) और माधो (सनी के पिता) अपने परिवार के साथ काम के सिलसिले में ईंट भट्ठे में शिफ्ट हो गए थे.

सकलदेव अपने घर जा रहे हैं. जब उन्होंने दिप्रिंट से बात की तो वह ट्रेन में थे. वह कहते हैं, ‘बच्चों की मांओं का हाल बेहाल है, वे अपने बच्चों को खोने का गम नहीं सह पा रही हैं.’

दिप्रिंट ने पीड़ित परिवारों से फोन पर बात की, जिस दौरान मृतक बच्चे गुंजन के पिता सकलदेव ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि अब क्या करना है. मेरा परिवार बर्बाद हो गया है. मेरी बेटी 7 साल की है, और मेरा बेटा चला गया है. मेरी पत्नी कुछ नहीं खा रही है. वह बेहोश हो रही है और रो रही है.’

मजदूर परिवार ईट भट्ठे के मालिक पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं.

वहीं भट्ठा मालिक दीपक गुलिया और उनके भाई आनंद गुलिया की इस पूरे मामले पर अलग ही राय है. आनंद गुलिया ने कहा, ‘गड्ढा खोदने का काम रूटीन के काम में आता है. गड्ढा केवल डेढ़ से दो फीट गहरा था.’

इसके विपरीत मौके पर मौजूद अन्य मजदूरों का कहना है कि गड्ढा इतना गहरा था कि एक आदमी उसमें डूब जाएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा. उन्होंने बताया कि हादसे के बाद मालिक ने उसमें मिट्टी भर दी.

उजाला नाम के ईंट भट्ठे/ फोटो नूतन- दिप्रिंट

मामले की जांच कर रहे सब इंस्पेक्टर राजबीर ने बताया कि गड्ढा करीब चार फुट गहरा था.

भट्ठे पर एक महिला मजदूर ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘अगर गड्ढा नहीं खोदा गया होता, तो बच्चों की जान बच जाती.’

फोटो नूतन- दिप्रिंट

सनी की मां ने दिप्रिंट को बताया, ‘बच्चों की मौत के बाद भी ईंट भट्ठा मालिक दीपक ने हमें धमकाया और गालियां दीं.’

दीपक गुलिया ने इन सभी आरोपों का खंडन किया. उनका कहना है कि भट्ठे में काम के लिए ऐसे कई गड्ढे खोदे जाते हैं और वह अपने मजदूरों के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं.

बादली थाने के सब इंस्पेक्टर राजबीर ने ऐसी कोई सूचना होने से इनकार किया है. राजबीर ने कहा, ‘हमें अस्पताल से घटना की जानकारी मिली. हमने अपनी जांच की और मामले से पता चलता है कि यह एक दुर्घटना थी. किसी भी कर्मचारी ने भट्ठा मालिक के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है.’

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक भट्ठे में कुल 120-130 कर्मचारी काम करते हैं. भट्टे के मुंशी पप्पू ने बताया कि यहां काम करने वाले ज्यादातर मजदूर बिहार और बंगाल के हैं. इन सभी परिवारों में बच्चे हैं. जब माता-पिता भट्ठे में काम करते हैं तो ये बच्चे या तो अकेले खेल रहे होते हैं या उनकी मदद कर रहे होते हैं. इस दौरान उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. वे न तो स्कूल जाते हैं और न ही आंगनबाड़ी में जाते हैं.यहां काम करने वाली महिलाओं के लिए नहाने की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. महिलाएं और पुरुष सभी खुले में नहाने को मजबूर हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में लगभग एक करोड़ मजदूर कम मजदूरी वाले ईंट भट्टों में काम करते हैं. ये मजदूर कम वेतन और मामूली सुविधाओं के साथ काम करते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स बताती है कि ईट भट्ठों में काम करने वाले मजदूर 124 डिग्री तक के तापमान में काम करते हैं.

जिस भट्ठे में ये मजदूर परिवार रहते हैं, उसके पास कई अस्थाई घर बनाए गए हैं. 60 वर्षीय मजदूर सुनील का कहना है कि एक ईंट बनाने के उन्हें 70 पैसे मिलते हैं. वह कहते हैं, ‘मेरी पत्नी और बेटा भी यही काम करते हैं. अगर हम एक हजार ईंटें बनाते हैं, तो हमें 7 सौ रुपये मिलते हैं.’

श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने पीड़ितों के परिवारों के लिए 10 लाख रुपये मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग की है. इसके अलावा संगठनों ने ईंट भट्ठा मालिक दीपक गुलिया के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम 1989 और अंतर्राज्यीय प्रवास कार्य अधिनियम 1979 के तहत कानूनी कार्रवाई की मांग की है.

एसआई राजबीर ने इसे हादसा बताते हुए किसी भी तरह की एफआईआर दर्ज होने से इनकार किया है.


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