चंडीगढ़: हरियाणा इस साल 1 अप्रैल तक अपनी सभी दीवानी और फौजदारी अदालतों के पूरी तरह हिंदी भाषा में काम करना शुरू कर देने का एक बड़ा लक्ष्य हासिल करने में जुटा है. इसके लिए जारी लंबी-चौड़ी कवायद में अदालत के सैकड़ों कर्मचारियों को फिर से ट्रेनिंग देना, वकीलों के लिए लैंग्वेज ओरिएंटेशन प्रोग्राम आयोजित करना और न्यायाधीशों को अंग्रेज़ी के बजाये हिंदी में फैसला देने को तैयार करना शामिल है.
इस बदलाव की वजह यह है कि हिंदी भाषी जनता के लिए अदालती कार्यवाही अधिक सुलभ हो. फिलहाल, राज्य का न्यायिक तंत्र काफी हद तक अंग्रेज़ी पर चलता है.
अदालतों में काम करने वाले सभी रीडर, स्टेनोग्राफर और डाटा एंट्री ऑपरेटर को अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ के आधार पर ही भर्ती किया गया था, लेकिन अब उन्हें अपना सारा सरकारी कामकाज़ हिंदी में करना होगा. इसी तरह, वकीलों को भी हिंदी में पैरवी और बहस करने के लिए ट्रेनिंग देनी होगी और न्यायाधीशों को भी इस बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत होगी कि वे अपनी टिप्पणियां और फैसले हिंदी में ही सुनाएं.
समयसीमा नज़दीक आने के साथ हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने इस बड़े लक्ष्य को हासिल करने की एक कार्ययोजना तैयार करने के क्रम में सोमवार को विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की.
कौशल ने फोन पर दिप्रिंट को बताया, ‘‘हमारी योजना सभी जिलों में मास्टर ट्रेनर रखने की है ताकि वे अदालती कर्मचारियों को ट्रेनिंग दे सकें. साथ ही विभिन्न विभागों से कहा गया है कि वे उनसे संबंधित अधिनियमों एवं नियमों का हिंदी अनुवाद वेबसाइट पर अपलोड करें ताकि आम जनता उनका मतलब समझ सके.’’
हिंदी में स्विच करने का यह कदम पिछले साल दिसंबर में तब शुरू हुआ जब राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने हरियाणा राजभाषा अधिनियम, 1969 में संशोधन के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
संशोधित कानून ‘‘पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के अधीनस्थ अदालतों और न्यायाधिकरणों’’ के लिए हिंदी को मानक भाषा बनाता है. इसके तहत राज्य सरकार के लिए ‘‘हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 के छह महीने के भीतर कर्मचारियों को आवश्यक बुनियादी ढांचा और प्रशिक्षण प्रदान करना’’ अनिवार्य है.
गौरतलब है कि 13 दिसंबर को राज्य सरकार की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया था कि कानून 1 अप्रैल 2023 से लागू होगा और यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि वादियों को उनकी अपनी भाषा में तुरंत न्याय मिल सके और ‘कार्यवाही के दौरान वे सिर्फ मुंह न ताकते रहें.’
बयान में पंजाब में 50 साल पहले लागू की गई इसी तरह की व्यवस्था को नज़ीर बताया गया. 1969 में पंजाब राजभाषा अधिनियम, 1967 में एक संशोधन करके राज्य में सिविल और आपराधिक अधीनस्थ अदालतों की सारी कार्यवाही पंजाबी भाषा में ही होना निर्धारित किया गया था.
बहरहाल, दिप्रिंट से बात करने वाले सरकारी अधिकारियों और न्यायाधीशों ने कहा कि हरियाणा में बदलाव की तैयारियां पूरे जोरशोर से चलने के बावजूद इस पर अमल उतना आसान नहीं है, जितना सोचा जा रहा है.
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प्रशिक्षण पाठ्यक्रम, नई शब्दावली
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, अभी हरियाणा में 21 जिला अदालतें हैं. कई अन्य अदालतें प्रत्येक जिला अदालत के अधिकार क्षेत्र में आती हैं, जिनमें आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली सत्र अदालतें, विभिन्न सिविल अदालतें, पारिवारिक अदालतें और कुछ न्यायाधिकरण शामिल हैं.
वकीलों, न्यायिक मजिस्ट्रेट और न्यायाधीशों की बात छोड़ दें तो भी प्रत्येक अदालत कर्मचारियों की एक छोटी-मोटी फौज के साथ ही काम करती है. हाईकोर्ट की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक, हरियाणा की जिला और अन्य निचली अदालतों में 283 न्यायाधीश हैं.
मुख्य सचिव कौशल की अध्यक्षता में सोमवार की बैठक में कई वरिष्ठ अधिकारियों ने इन सभी अदालतों और उनके कर्मचारियों के लिए हिंदी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य की तैयारियों की समीक्षा की.
बैठक में हरियाणा के महाधिवक्ता बलदेव राज महाजन, प्रमुख सचिव (सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं संस्कृति) अनुराग अग्रवाल, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव डॉ. अमित अग्रवाल, प्रमुख सचिव (उच्च शिक्षा) विजयेंद्र कुमार, आयुक्त और सचिव (युवा अधिकारिता और उद्यमिता) विजय सिंह दहिया, और हरियाणा उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. बी.के. कुठियाला, और अन्य वरिष्ठ अधिकारी के साथ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के प्रतिनिधि भी शामिल थे.
बैठक के बाद दिप्रिंट से बातचीत में प्रो कुठियाला ने बताया , यह तय किया गया है कि हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद अदालतों और कार्यालयों के कर्मचारियों को हिंदी में ट्रेंनिंग देंगी.
इसके लिए हम राज्य के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की मदद लेंगे. सबसे पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पानीपत में ट्रेनिंग शुरू की जाएगी. इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने वालों को प्रमाणपत्र दिया जाएगा. इसके अलावा, परिषद अंग्रेज़ी से हिंदी भाषा में अनुवाद में लघु अवधि के पाठ्यक्रमों पर भी विचार करेगी.
कौशल ने दिप्रिंट को बताया कि कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम और नियम-कानूनों के अनुवाद के अलावा विभाग के अधिकारियों को दीवानी और आपराधिक अदालतों में इस्तेमाल होने वाली अंग्रेज़ी शब्दावली के लिए हिंदी विकल्प तैयार करने को भी कहा गया है.
हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) की तरफ से अधीनस्थ अदालतों के लिए आयोजित की जाने वाली जज भर्ती परीक्षा में भी बदलाव किए जा रहे हैं.
कौशल ने कहा, ‘‘एचपीएससी से हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) परीक्षा के लिए अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी को भी एक माध्यम के तौर पर शामिल करने का आग्रह किया गया है.’’
हमने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से अपने अधिवक्ताओं और कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी आग्रह किया है.
हालांकि, हिंदी में कामकाज का नियम हाईकोर्ट पर तो लागू नहीं होगा, लेकिन वहां न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं को निचली अदालतों के फैसलों, दलीलों, एफआईआर आदि से वास्ता पड़ेगा जो जल्द ही हिंदी में होने लगेंगे. यानी हाईकोर्ट के जजों और वकीलों के लिए भी अपना हिंदी ज्ञान सुधारना जरूरी होगा.
मुख्य सचिव ने कहा कि हरियाणा में राजस्व अदालतें पहले से ही अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में हिंदी का उपयोग कर रही हैं.
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उर्दू की चुनौती, स्टेनो भी कम, अनुवाद एक समस्या
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि 1 अप्रैल से संशोधित कानून को लागू करना कोई साधारण काम नहीं है.
अधिकारी ने कहा, ‘‘सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती राजस्व अदालतों के कामकाज को लेकर है जहां उर्दू-फारसी शब्द बहुत ही ज्यादा उपयोग किए जाते हैं. अब सवाल यह है कि क्या इस शब्दावली को जारी रखा जाए या इसके स्थान पर देवनागरी शब्दों का प्रयोग किया जाए.’’
उन्होंने कहा कि अधिकांश आईएएस और हरियाणा सिविल सेवा (एचसीएस) अधिकारी मौजूदा शब्दावली को जारी रखने के पक्ष में हैं ‘‘क्योंकि वे पहले से ही इन शब्दों से परिचित हैं.’’
इस तरह के शब्दों में ‘आबादी देह’ शामिल है, जो एक गांव के बसे क्षेत्र को संदर्भित करता है, ‘मौजा’, जिसका अर्थ है गांव, और ‘शजरा’, कृषि क्षेत्रों की सीमाओं को दर्शाने वाला नक्शा.
2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की थी कि राज्य सरकार राजस्व रिकॉर्ड से उर्दू और फारसी शब्दों को बदल देगी. फतेहाबाद जिला अदालत में राजस्व मामलों के विशेषज्ञ एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि हालांकि यह काम अभी तक नहीं हो पाया है.
बैठक में उठे मामलों में एक यह भी था कि अदालती कार्यवाही के दस्तावेजीकरण के लिए हिंदी स्टेनोग्राफर की उपलब्धता कम है. हालांकि, यह बताया गया था कि औद्योगिक प्रशिक्षण विभाग 54 ट्रेंनिंग सेंटर्स में हिंदी स्टेनोग्राफर का एक वर्षीय पाठ्यक्रम चला रहा है और वर्तमान में 1,441 छात्र नामांकित हैं, लेकिन कहा गया कि कुछ समय के लिए स्टेनोग्राफर की कमी का सामना करना पड़ सकता है.
हरियाणा की एक अदालत में एक अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश ने कहा, ‘‘सबसे बड़ी चुनौती जो मुझे दिखाई देती है वह हिंदी स्टेनोग्राफर की उपलब्धता को लेकर है.’’
उन्होंने बताया, ‘‘हमारे पास पहले से ही अदालतों में स्टेनोग्राफर की भारी कमी है. सैकड़ों हिंदी स्टेनोग्राफर की अचानक मांग के साथ ये समस्या और बढ़ने के ही आसार हैं.’’
सरकारी अधिकारी ने कहा कि चल रहे मामलों के अदालती रिकॉर्ड का अनुवाद करना भी एक कठिन काम साबित हो रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमने कुछ ट्रांसलेशन ऐप्स की कोशिश की, लेकिन वे कभी-कभी वाक्य की भावना को लगभग पूरी तरह बदल देते हैं.’’
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फैसलों पर असमंजस
अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश ने कहा कि कुछ न्यायाधीशों के लिए हिंदी में स्विच करना कठिन होगा, लेकिन अन्य इस बदलाव का स्वागत कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास ऐसे अधिकारी हैं जो अंग्रेज़ी में निर्णय लिखने में असाधारण महारत रखते हैं लेकिन कुछ अन्य हैं जो क्वीन्स इंग्लिश में उतने पारंगत नहीं हैं और अगर विकल्प दिया जाए तो वे हिंदी में फैसले लिखना पसंद करेंगे.’’
हालांकि, उन्होंने बताया कि निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट और तमाम हाई कोर्ट के उद्धरणों को शामिल करना अब दुविधा की स्थिति उत्पन्न करेगा.
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सभी फैसले अंग्रेज़ी में लिखे गए हैं. ये मुकदमा लड़ने वाले वकीलों की तरफ से अपनी दलीलों को मजबूती से रखने के लिए उद्धरणों के तौर पर पेश किए जाते हैं क्योंकि ये निर्णय केस लॉ के रूप में कार्य करते हैं. जज भी अपने निर्णयों में ऐसे उद्धरणों को शामिल करते हैं. अब, जब जिला अदालतों के न्यायाधीश अपना निर्णय हिंदी में लिखेंगे, तो सवाल उठता है कि क्या वे उद्धरणों का पहले हिंदी में अनुवाद करेंगे.’’
उन्होंने कहा कि यह न केवल एक ‘कठिन’ काम होगा, बल्कि फैसले का अर्थ बदलने का जोखिम भी होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘हम कभी-कभी अपने अदालती आदेशों में भगवद गीता से संस्कृत श्लोकों या पंक्तियों को उद्धृत करते हैं, लेकिन ये बहुत छोटे वाक्यांश हैं. उद्धरण कभी-कभी काफी लंबे होते हैं.’’
गैर-हिंदीभाषियों का क्या होगा?
क्या भाषा बदलने से गैर-हिंदी बेल्ट वालों के लिए हरियाणा न्यायपालिका के दरवाजे बंद हो जाएंगे? दिप्रिंट ने जिन न्यायिक अधिकारियों से बात की उनके मुताबिक, हरियाणा में सारी व्यवस्था को पहले से ही हिंदी में प्रवीण होने की जरूरत है.
अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हालांकि, हरियाणा न्यायिक परीक्षा देशभर के कानून स्नातकों के लिए खुली है, हमें वर्तमान संशोधन से पहले भी गैर-हिंदी बेल्ट से शायद ही कोई अधिकारी मिला हो. ऐसा इसलिए क्योंकि एचसीएस (न्यायिक) में शामिल होने वालों के लिए हिंदी की परीक्षा पास करना अनिवार्य है.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘इसके अलावा, निचली अदालतों में अभी भी हिंदी में दलीलें दी जा सकती हैं. दरअसल, निचली अदालतों में दायर अधिकांश मामले हिंदी में होते हैं. फर्क सिर्फ इतना है कि अब अदालतों को फैसले भी हिंदी में सुनाने होंगे, जो पहले अंग्रेजी में लिखे जाते थे.’’
सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के रूप में काम कर रहे एक अन्य न्यायिक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि स्थिति पंजाब से अलग नहीं है, जहां निचली अदालतों में पंजाबी आधिकारिक भाषा है. न्यायिक सेवाओं के उम्मीदवारों को पंजाबी में भी एक पेपर क्लियर करना होता है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे कई युवाओं को दिल्ली, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में नौकरी मिली है. इसी तरह, पंजाब और दिल्ली के कई लोग हरियाणा में न्यायिक सेवाओं में आते हैं.’’
यह पूछे जाने पर कि क्या संशोधन से हरियाणा में न्यायाधीशों के प्रशिक्षण पर असर पड़ेगा, एक अन्य अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कहा कि हिंदी में प्रवीणता को पहले की तुलना में अधिक प्राथमिकता मिलेगी.
उन्होंने कहा, ‘‘न्यायिक सेवाओं के लिए चुने गए लोगों को अदालतों की अध्यक्षता से पहले चंडीगढ़ न्यायिक अकादमी में एक साल का प्रशिक्षण लेना पड़ता है. इस संशोधन से एकमात्र अंतर यह होगा कि न्यायिक अकादमी को ऐसे अधिकारियों को नियुक्त करने की आवश्यकता होगी जो हिंदी के अच्छे जानकार हों.’’
(अनुवाद : रावी द्विवेदी | संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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