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Friday, 29 March, 2024
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हरियाणा: धान की खेती रोकने के लिए किसानों को लुभाने में जुटी भाजपा सरकार, किसान नाखुश

हरियाणा के 9 जिले डार्क ज़ोन में हैं और इन जिलों में पानी की स्तर बिलकुल नीचे जा चुका है. यमुनानगर, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और सोनीपत धान बाहुल्य क्षेत्रों में धान की बजाय अलग विकल्प खोजे जा रहे हैं.

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नई दिल्ली: हरियाणा में धान की खेती करने वाले गांवों पर मंडरा रहे पानी के संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार ने एक योजना बनाई है. किसान धान की खेती ना करें इसके लिए सरकार 2000 रुपए प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता करेगी. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा के प्रीमियम की किस्त भी सरकार द्वारा वहन की जाएगी. इतना ही नहीं इसके साथ-साथ बीज देने जैसे अन्य फायदे भी किसानों तक पहुंचाए जाने की योजना है.

गौरतलब है कि पिछले महीने की 21 तारीख को मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया था, ‘हरियाणा में गिरते भू जल स्तर को लेकर सरकार चिंतित है.

साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ‘हरियाणा में जो धान की खेती का जो क्रेज बना हुआ है हम उसे डिस्करेज करना चाहते हैं ताकि पानी के स्तर को और गिरने से बचाया जा सके. हरियाणा सरकार पानी के लिए काम कर रही है. इसमें लोगों और किसानों की मदद की भी उम्मीद है.’

बता दें कि हरियाणा के 9 जिले डार्क ज़ोन में हैं और इन जिलों में पानी की स्तर बिलकुल नीचे जा चुका है. यमुनानगर, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और सोनीपत धान बाहुल्य क्षेत्रों में धान की बजाय अलग विकल्प खोजे जा रहे हैं. 1 लाख 95 हजार 357 हेक्टेयर के एरिया के इन सातों ब्लॉक में धान की खेती की जाती है. इन इलाकों में 27 मई, 2019 से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.

किसानों का मत है अलग

कंडेला गांव के किसान नेता रामफल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम बावले लोग थोड़े हैं. हम भी पानी को लेकर चिंतित हैं. लेकिन सरकार ये बताए कि अभी तक हम किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य बताया है क्या? सरकार कह रही है कि दो हज़ार रुपए देगी लेकिन बीज के पैसे भी इसी से काटेगी. जिन फसलों को बोने की सरकार बात कर रही है उनके बीजों का मार्केट का दाम ही 2800 के करीब है. हमने अरहर की फसल उगा कर देख ली है. हरियाणा में कामयाब ही नहीं है ये फसलें.’

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उन्होंने आगे कहा, ‘हमने सरकार से कहा कि आप 2000 देने की बजाय प्रति तीन एकड़ एक पंप सेट दीजिए. पानी की बचत उससे होगी और खेती भी होगी. लेकिन उसपर तो सरकार नहीं मानी. किसान को दो-चार रुपए का ही तो फायदा होता है.’

‘सरकार कह देती है कि हम किसान के खेत का एक-एक दाना उठाएंगे लेकिन सरसों और बाजरे की खरीद के समय प्रत्येक एकड़ के हिसाब से कुछेक क्विंटल ही खरीदी गई. अभी तक इस खरीद के दौरान हुए घोटाले बाहर निकल रहे हैं.

जींद के किसान संदीप का कहना है, ‘हम एक एकड़ में धान उगाते हैं तो बिना प्राकृतिक आपदा के 70-75 हजार की फसल हो जाती है. बाजरा या अरहर में सिर्फ 15-20 हजार तक ही फसल होती है. ऐसे में सरकार के दो हजार क्यों ले किसान. जो किसान 60 हजार प्रति एकड़ किराए पर जमीन लेकर खेती कर रहा है उसका क्या?’

वो आगे जोड़ते हैं, ‘पानी की चिंता हमें भी है लेकिन भूखे मरके कोई खेती कैसे करेगा? सरकार को दूसरी फसलों के दाम बढ़ाने चाहिए ताकि धान की बजाय किसान वो कम पानी में पकने वाली फसले उगाए. सरकार को जागरुक करने के लिए अभियान चलाने चाहिए. लालच देना पड़े तो लालच दें लेकिन 2 हजार के लिए किसान धान की खेती नहीं छोड़ेगा.’

गौरतलब है कि एक महीने बाद धान की रोपाई होनी है लेकिन इन जिलों के किसान सरकार की इस योजना से कोई सरोकार नहीं रखते हैं. पानी की कमी पर ज्यादातर किसानों का कहना है कि या तो प्यासे मरेंगे या फिर भूखे.

क्या कहते हैं भूजल को लेकर सरकारी आंकड़ें 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अगले 20 से 25 साल में भूजल स्तर खत्म होने की संभावना है. केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों की मानें तो पंजाब के 82 फीसदी और हरियाणा के 76 फीसदी हिस्से में तेजी से भूजल स्तर गिरा है. हाल ही में बोर्ड की आई एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में बताया गया है कि हरियाणा, पंजाब व राजस्थान में भूजल स्तर 300 मीटर तक पहुंचने के आसार हैं.

डाउन टू अर्थ के मुताबिक इस योजना के तहत शामिल किए गए 7 जिलों में 1,95,357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है. इसमें से 45 प्रतिशत ज़मीन पर गैर बासमती धान होता है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य इसी क्षेत्र में धान की फसल को कम करना है.

न्यूज 18 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में लगभग हर रोज़ करीब 2111.47 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) पानी की जरूरत है. इसमें शहरी इलाकों में 1081.68 एमएलडी और ग्रामीण इलाकों में 1030.90 एमएलडी पानी की डिमांड है. पीने के पानी पर मंडरा रहे खतरे के चलते राज्य के 6804 गांवों में से 4189 गांवों में पानी की भारी किल्लत है.

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