देहरादून, 28 जनवरी (भाषा) उत्तराखंड में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दिए जाने के बाद यह साफ हो गया है कि पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत इस बार के चुनावी दंगल में दांव आजमाते दिखाई नहीं देंगे।
प्रदेश के उत्तराखंड के दो दशक के चुनावी सफर में ऐसा पहली बार होगा जब चुनावी राजनीति के महारथी माने जाने वाले हरक सिंह चुनाव नहीं लड़ रहे होंगे।
कथित रूप से अपने अलावा अपनी पुत्रवधू के लिए भी टिकट की मांग पर अड़ने और इसके लिए अन्यत्र संभावनाएं टटोलने के कारण हाल में भाजपा से निष्कासित होने के बाद कोटद्वार के विधायक हरक सिंह किसी तरह कांग्रेस में दोबारा वापसी करने में तो सफल रहे लेकिन अपने लिए टिकट हासिल नहीं कर सके।
उत्तराखंड के चार बार के विधायक हालांकि अपनी पुत्रवधू और फेमिना मिस इंडिया की पूर्व प्रतिभागी रहीं अनुकृति गुसाईं को लैंसडौन से कांग्रेस का टिकट दिलवाने में कामयाब रहे।
कांग्रेस में शामिल होने के बाद से रावत कह रहे थे कि वह चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक नहीं हैं लेकिन अगर पार्टी उनसे कहेगी तो वह चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि, ये अटकलें भी जोरों पर चलीं कि कांग्रेस उन्हें भाजपा के दिग्गज नेता और मौजूदा विधायक सतपाल महाराज के खिलाफ चौबट्टाखाल से मैदान में उतार सकती है। लेकिन, बाद में समय के साथ ये चर्चाएं दम तोड़ गयीं।
नवंबर, 2000 में बने उत्तराखंड राज्य में हुए सभी चारों विधानसभा चुनावों में विजयश्री का वरण करने वाले हरक सिंह ने 2002 और 2007 का चुनाव लैंसडौन से जीता जबकि 2012 में वह रुद्रप्रयाग और पिछला चुनाव कोटद्वार से जीते थे।
चुनावी दंगल से दूर रहने के बावजूद हरक सिंह के अपना पूरा प्रभाव और जोर अपनी पुत्रवधू को लैंसडौन से जिताने में लगाने की संभावना है।
प्रदेश के एक और प्रमुख नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इस बार चुनावी समर में नहीं दिखाई नहीं देंगे। टिकट वितरण की प्रक्रिया शुरू होने से ऐन पहले उन्होंने पार्टी के सामने चुनाव न लड़ने की इच्छा व्यक्त की।
पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को लिखे पत्र में त्रिवेंद्र सिंह ने कहा कि वह भाजपा की सरकार दोबारा बनाने के लिए अपने प्रयास लगाना चाहते हैं और इसलिए उन्हें टिकट न दिया जाए।
वर्ष 2017 में 70 में से 57 सीट जीतकर ऐतिहासिक जनादेश के साथ सत्ता में आई भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बनाए गए त्रिवेंद्र सिंह को पिछले साल मार्च में अपने कार्यकाल के चार साल पूरे होने से महज कुछ दिन पूर्व पद से हटा दिया गया था।
भाषा आलोक दीप्ति
दीप्ति नेत्रपाल
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