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बुधवार, 4 जून, 2025
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गुरुग्राम: बेटे द्वारा ठुकराए गए बुजुर्ग दंपति को अब भी मदद का इंतजार

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गुरुग्राम, एक जून (भाषा) हरियाणा मानवाधिकार आयोग (एचएचआरसी) ने गुरुग्राम प्रशासन को रिजवुड एस्टेट कॉन्डोमिनियम में बेटे द्वारा ठुकराए गए बुजुर्ग दंपति के मामले को देखने का निर्देश दिया था, इसके बावजूद किसी अधिकारी ने अभी तक उनसे या सोसाइटी के पदाधिकारियों से संपर्क नहीं किया है। वहां के निवासियों ने रविवार को यह जानकारी दी।

बुजुर्ग दंपति को बेटे ने कथित तौर पर छोड़ दिया है और खुद विदेश में रहता है। बुजुर्ग पुरुष की उम्र 96 साल है जबकि उनकी पत्नी की उम्र 86 वर्ष है। कोंडोमिनियम सोसाइटी के निवासियों ने कहा कि दंपति अब भी बहुत खराब स्थिति में रह रहे हैं, कोई भी उनसे मिलने नहीं आता और अधिकारियों की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

एस्टेट के एक निवासी ने बताया कि उन्हें दिन-रात बुजुर्ग दंपत्ति के कराहने की तेज आवाजें सुनाई देती हैं। उसने कहा कि कोई भी उन्हें देखने नहीं पहुंचता और उनकी हालत ठीक नहीं है। उनके बेटे ने भी अब तक उनसे संपर्क नहीं किया है।

एक अन्य निवासी ने कहा, ‘‘मैंने उनके बेटे को कभी आते नहीं देखा। एक महिला आती थी, लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसने भी आना बंद कर दिया है। जिला प्रशासन को दंपति की सहायता के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।’’

रिजवुड एस्टेट कॉन्डोमिनियम एसोसिएशन के सचिव किट्टू माथुर ने कहा कि दंपति वर्ष 2001 से इस सोसाइटी में रह रहा है, लेकिन उनके नाम सहित कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

माथुर ने बताया कि वे कभी भी सोसाइटी के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए और बेटा फ्लैट के रखरखाव शुल्क का नियमित रूप से ऑनलाइन भुगतान करता है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन के पास उसके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है, सिवाय उसके फोन नंबर और ईमेल आईडी के, जो सोसाइटी के रिकॉर्ड में उपलब्ध है।

माथुर ने कहा, ‘‘हम एचएचआरसी के न्यायमूर्ति ललित बत्रा के आभारी हैं जिन्होंने दंपति द्वारा झेली जा रही लंबे समय से चली आ रही मानसिक और शारीरिक पीड़ा पर चिंता व्यक्त की, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।’’

सोसाइटी के निवासियों की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए एचएचआरसी ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य अधिकारियों को दंपति का तत्काल चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आकलन करने का निर्देश दिया था।

शिकायत में आरोप लगाया गया है कि वरिष्ठ नागरिकों को गंभीर उपेक्षा की स्थिति में छोड़ दिया गया है, उन्हें उचित चिकित्सा देखरेख के बिना केवल दो अप्रशिक्षित महिला परिचारिकाओं पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

न्यायमूर्ति बत्रा ने इस शिकायत पर संज्ञान लिया कि बुजुर्ग व्यक्ति को अक्सर दर्द से तड़पते और रोते हुए सुना जाता है, जिससे न केवल उसकी पत्नी को बल्कि आस-पास के अन्य वरिष्ठ नागरिकों को भी गंभीर भावनात्मक आघात पहुंचता है।

एचएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा ने दपंति द्वारा लम्बे समय से झेली जा रही मानसिक और शारीरिक पीड़ा पर गहरी चिंता व्यक्त की तथा इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार दिया।

न्यायमूर्ति बत्रा ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के प्रावधानों, विशेषकर धारा 20 को रेखांकित किया, जो राज्य को वरिष्ठ नागरिकों के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करता है, जिसमें आरक्षित अस्पताल के बिस्तर, अलग कतार और रियायती उपचार शामिल हैं।

आयोग ने कहा कि यदि यह साबित होता है कि दंपति को जानबूझकर छोड़ा गया है तो बेटे को अधिनियम की धारा 24 के तहत आपराधिक दायित्व का सामना करना पड़ सकता है।

आयोग ने गुरुग्राम के उपायुक्त को पुलिस आयुक्त, सब डिवीजन मजिस्ट्रेट, सिविल सर्जन और जिला समाज कल्याण अधिकारी सहित एक बहु-विषयक समिति गठित करने का निर्देश दिया, ताकि दंपति की स्थिति का आकलन किया जा सके और दीर्घकालिक देखभाल योजना तैयार की जा सके।

आयोग ने अगली सुनवाई तीन जुलाई, 2025 से पहले रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। बार-बार प्रयास करने के बावजूद गुरुग्राम के जिला उपायुक्त अजय कुमार से संपर्क नहीं हो सका।

भाषा धीरज संतोष

संतोष

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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