scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशअगले साल हो सकती है नमक की कमी, भारी बारिश और लॉकडाउन से गुजरात में उत्पादन प्रभावित

अगले साल हो सकती है नमक की कमी, भारी बारिश और लॉकडाउन से गुजरात में उत्पादन प्रभावित

नमक उत्पादन में लगभग 35 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है, चूंकि 2019 और 2020 में अधिक बारिश और लॉकडाउन ने उत्पादन के महीने कम कर दिए हैं. इसका असर अक्टूबर 2021 में देखने को मिल सकता है.

Text Size:

मालिया/जामनगर: 2021 के आने के साथ ही भारतीय बाज़ारों में नमक की कमी होने की संभावना है, जिसका असर देश के हर व्यक्ति पर पड़ेगा. ऐसा इसलिए है कि पिछले दो साल में अत्यधिक वर्षा और कोविड लॉकडाउन ने मिलकर, गुजरात में नमक उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है, जो भारत में सबसे बड़ा और विश्व के कुछ सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है.

2018-19 में भारत ने 300 लाख टन नमक का उत्पादन किया था, जिसे नमक किसान और उससे जुड़े श्रमिक, ‘बंपर उत्पादन’ बताते हैं. इंडियन सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, बीसी रावल के अनुसार अकेले गुजरात में, 260 लाख टन नमक का उत्पादन हुआ.

लेकिन नवंबर 2019 तक हुई भारी बारिश के चलते, नमक का उत्पादन जो आमतौर से बारिश ख़त्म होने के बाद, सितंबर में शुरू होकर अगले जून-जुलाई में मॉनसून तक चलता है, सिर्फ दिसंबर-जनवरी तक शुरू हो सका. उसके बाद मार्च के अंत में देशभर में लगे लॉकडाउन ने इसका उत्पादन पहले ही रोक दिया, जिसका मतलब है कि पिछले वर्ष के मुकाबले, इस साल का उत्पादन 35 प्रतिशत कम है.

कम उत्पादन का मतलब ये भी है कि रिज़र्व में, ज़्यादा नमक नहीं रखा गया है- इसी रिज़र्व नमक को उत्पादन मौसम के पहले या बाद में, जून-जुलाई और सितंबर के बीच बाज़ार में बेचा जाता है. इसलिए उपभोक्ताओं के लिए सितंबर-अक्टूबर 2021 के आसपास नमक की कमी हो जाएगी.


यह भी पढ़ें: टेक्सटाइल हब सूरत अब डिज़ाइनर कपड़ों की जगह ‘डिज़ाइनर’ मास्क के निर्माण में जुटा है


भारत और गुजरात में नमक का उत्पादन

भारत दुनिया में नमक का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. भारत में नमक उत्पादन वाले पांच सबसे बड़े सूबे हैं- गुजरात, तमिलनाडु, राजस्थान, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश हैं.

भारत के कुल नमक उत्पादन का 76 प्रतिशत अकेले गुजरात में होता है, चूंकि वहां की जलवायु शुष्क है और ज़मीन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. ये कारोबार खरघोड़ा (सुरेंद्रनगर ज़िला), भावनगर, पोरबंदर और कच्छ के रण में केंद्रित है.

रावल जैसे इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने दिप्रिंट को बताया कि हर साल भारत को अपने देसी उपभोग के लिए 90 लाख टन नमक चाहिए होता है, और इतनी ही मात्रा औद्योगिक इस्तेमाल के लिए चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों के तहत, भारत हर साल 50 लाख टन नमक निर्यात करता है, और इसके अतिरिक्त 34-40 लाख टन, मांग होने पर निर्यात करता है.

गुजरात में, सितंबर में मॉनसून थमने के साथ ही, खारे पानी को जमा करने के लिए तटबंध बना दिए जाते हैं. अक्टूबर से नुकीले दांतों वाली खुदाई मशीनें उस खारे पानी को छानने लगती हैं (लवण जल जिसमें 26 प्रतिशत तक नमक होता है) जिससे वो भाप बनने लगता है. दो महीने में पानी सूख जाता है, और नमक की एक मोटी परत बन जाती है, जिसे परत दर परत खुरच लिया जाता है. ऊपरी परत सबसे ज़्यादा साफ होती है, जिसका उपभोग किया जाता है. बाक़ी को साफ करके अगला मॉनसून आने से पहले, कैमिकल इंडस्ट्रीज़ को भेज दिया जाता है.

भारी बारिश और लॉकडाउन का असर

पिछले मॉनसून में भारत के रिकॉर्ड में, दूसरी सबसे अधिक बारिशें दर्ज की गईं, और इस साल तीसरी सबसे अधिक बारिशें हुईं. मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात के कुछ हिस्सों में इस साल, औसत से दोगुना बारिशें हुई हैं. कच्छ क्षेत्र में लंबी अवधि के औसत से, 272 प्रतिशत अधिक बारिशें हुईं, जबकि सौराष्ट्र के पोरबंदर और जामनगर में, बारिशें औसत का 222 प्रतिशत थीं. मोरबी के लिए ये आंकड़ा 204 प्रतिशत था.

रावल ने कहा, ‘इस साल उत्पादन का सीज़न सिर्फ चार महीने रहा, जबकि हर साल ये 9 महीने रहता है. इस साल इस इलाक़े में औसत से दोगुना बारिशें हुईं हैं, जिसकी वजह से नमक घुल गया है. इसके घुलने का असर अगले साइकिल पर भी पड़ेगा. हम अपेक्षा कर रहे हैं कि 2020-21 के लिए उत्पादन, इस साल सितंबर की जगह दिसंबर में शुरू हो पाएगा. इस तरह का नुक़सान हमने एक दशक में नहीं देखा है’.

पवनभाई, जो मोरबी ज़िले के मालिया में एक निजी नमक कंपनी चलाते हैं, ने दिप्रिंट से कहा, ‘बारिशें नवंबर 2019 तक चलीं…वो नमक जो हमें नवंबर-दिसंबर में निकाल लेना चाहिए था, आगे बढ़कर जनवरी-फरवरी 2020 तक पहुंच गया. भारी बारिशों की वजह से हमने उत्पादन, तीन महीना देरी से शुरू किया और लॉकडाउन की वजह से इस साल हमारा उत्पादन सीज़न सिर्फ चार महीना चल पाया. उसके बाद मॉनसून सामान्य से पहले जून में आ गया, और हमारा काम फिर बंद हो गया’.

ये समझाते हुए कि सरकारी आश्वासनों के बावजूद, लॉकडाउन ने नमक जैसी ज़रूरी चीज़ के उत्पादन को क्यों प्रभावित किया, पवनभाई ने कहा, ‘हमारे बहुत से श्रमिक होली के लिए अपने गांवों को चले गए थे, इसलिए लॉकडाउन के चलते उनमें से बहुत से लोग मालिया नहीं लौट सके. पीक सीज़न में हम 50 प्रतिशत क्षमता कर काम कर रहे थे. अकेली मालिया बेल्ट में इस साल, 100 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है’.

रावल ने ये भी कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान पूरे एक महीने तक, हमने कारखानों को सामान्य रूप से चलाने की कोशिश की, लेकिन अपने श्रमिकों को रुके रहने के लिए राज़ी नहीं कर पाए. नमक एक आवश्यक वस्तु है, इसलिए हम अपना काम चालू रखना चाहते थे. सड़कें बंद हो जाने और ट्रेनें रुकने की वजह से, हमारा उत्पाद पैन्स में पड़ा रहा. उसके बाद जून-जुलाई की बारिशों ने, हमारा 30-40 प्रतिशत तैयार माल नष्ट कर दिया’.

भैरव सिंह खेड़ा, जो फैन्स से उद्योगों तक नमक ढुलाई के लिए ट्रक चलाते हैं, ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके पास कोई काम नहीं था. उन्होंने शिकायत की, ‘बहुत से उद्योग, जो कास्टिक सोडा इंडस्ट्री के लिए नमक बनाते हैं, श्रमिकों की कमी के चलते उत्पादन नहीं कर सके. एक चक्कर से मैं क़रीब 500 रुपए कमा लेता हूं लेकिन कर्फ्यू की वजह से मैं अपने ट्रक में कोई और चीज़ भी नहीं ले जा सका’.

भरतभाई बाबू, जो जामनगर के बेदी पोर्ट पर एक नमक प्लांट चलाते हैं, ने कहा कि उत्पादन इकाइयां बुरी तरह प्रभावित हुई हैं, और अगले साल भी उन पर असर पड़ सकता है.

बाबू ने कहा, ‘कास्टिक सोडा इंडस्ट्री के लिए तैयार माल बनाने के लिए, हमने अपना संचालन फिर से शुरू कर दिया है. हर साल हम क़रीब दो लाख टन नमक बनाते हैं, लेकिन इस साल हम केवल 1.25 टन ही बना पाए. लवण जल पहले ही घुल चुका है; अगर फिर बारिश हो गई, तो दिसंबर की बजाय अगले साल के लिए नमक उत्पादन जनवरी में शुरू हो पाएगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: COVID के बीच राजकोट सिविल अस्पताल की अलग समस्या- रोगी पर ‘हमला’ और शव की अस्पताल वापसी


 

share & View comments