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Sunday, 22 December, 2024
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कैसे गुजरात लिख रहा है भारत में सबसे बड़ी सौर ऊर्जा क्रांति की कहानी, दूसरे राज्य ले सकते हैं सबक

नीतियों को सहज रूप से लागू करना, अच्छी डिस्कॉम प्रणाली और लोगों से बिजली की खरीदारी कुछ ऐसे कारक हैं जो 'रूफटॉप सोलर पैनल पालिसी' को सफल बनाते हैं.

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अहमदाबाद/वडोदरा/सूरत: गुजरात के एक टैक्सी ड्राइवर को दो महीने पहले किसी अज्ञात नंबर से एक व्हाट्सएप मैसेज मिला, जिसमें उसे ‘जीरो बिजली बिल’ का एक अकल्पनीय सा लगने वाला वादा किया गया था.

इसके लिए बीखाभाई सनभिया तड़वी नाम के इस शख्श को वडोदरा के बाहर वरमाडी गांव में स्थित अपने घर की छत पर सिर्फ एक सौर पैनल लगाना था. इसके बाद वह भारत के उस सबसे बड़े आवासीय रूफटॉप सोलर ब्रेकथ्रू (छतों पर सोलर पैनल लगाने के अभियान में मिली सफलता) का हिस्सा बन जाएंगे, जो उनके गृह राज्य गुजरात में जारी है.

अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से आने वाले ड्राइवर तड़वी इस पर थोड़ी सोच में पड़ गए. घर की छत पर सोलर पैनल लगाने में 1.35 लाख रुपये खर्च होंगे और उनका बैंक उन्हें लोन नहीं देगा. उनके पास पहले से ही एक घर और एक कार के लोन का भुगतान बकाया था.

सफेद रंग की शर्ट और शेड्स पहने हुए तड़वी ने, अपने दो मंजिला घर के बाहर खड़े रहते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने कुछ समय के लिए इसके बारे में सोचा और फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ ही साल में इतने पैसा जोड़ लूंगा, इसलिए यह निवेश के लायक था.’

तड़वी इस गांव के उन चार परिवारों में से एक हैं जो सोलर पैनल लगाने की योजना बना रहे हैं, लेकिन उनके अन्य पड़ोसियों का भी कहना था कि उन्हें बाद में ऐसा करने की उम्मीद है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, वरमाडी की आबादी लगभग 1,200 है और इसकी साक्षरता दर गुजरात के औसत-78.03 प्रतिशत से थोड़ी कम है.

वड़ोदरा के वरमाडी गांव में अपने घर के ऊपर बिजली का बिल लिए फोटो खिंचवाते बिखाभाई सनभिया तड़वी. उनके पीछे सोलर पैनल लगाने का काम चल रहा है. | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

बड़े शहरों से दूर गुजरात की सोलर रूफटॉप नीति का कार्यान्वयन धीरे-धीरे गांवों में भी फैल रहा है. हालांकि, यह अभी राज्य के शहरी केंद्रों की तरह उतनी तेज़ी से नहीं हो पाया है. गुजरात आवासीय स्थलों पर छतों पर सौर पैनल लगाने के मामले में सबसे आगे है और यह एक ऐसा सेगमेंट (भाग) है जो सौर ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के मामले में पूरे भारत की सफलता के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर अभी जोर नहीं पकड़ पाया है.

अब से सात साल पहले, जब भारत ने साल 2022 तक अपनी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता को 100 गीगावाट तक बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई थी, तो इसमें 40 गीगावाट आवासीय छत वाले सेगमेंट से और 60 गीगावाट ज़मीन पर लगने वाली (ग्राउंड-माउंटेड) वाणिज्यिक और औद्योगिक परियोजनाओं से आने वाले थे.

हालांकि, बाद वाले क्षेत्र ने अपने लक्ष्य का लगभग 85 प्रतिशत हासिल कर लिया है, पर आवासीय सौर ऊर्जा वाले सेगमेंट की कहानी कुछ अलग है. जुलाई 2022 तक के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, रूफटॉप सोलर के लिए निर्धारित 40 गीगावाट के लक्ष्य के 20 प्रतिशत से भी कम हिस्से – केवल 7.9 गीगावाट – को प्राप्त किया जा सका.

हालांकि, गुजरात ने इस प्रवृत्ति से अलग हट कर काम किया है और सभी रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन में इसकी हिस्सेदारी लगभग 63 फीसदी है.

दिप्रिंट ने राज्य सरकार के अधिकारियों, विक्रेताओं, निवासियों और विशेषज्ञों के साथ दर्जनों साक्षात्कार किए, जिन्होंने कहा कि यह राज्य के नीतिगत हस्तक्षेपों, लोगों की ‘उद्यमी भावना’ और नीति के सुचारू रूप से कार्यान्वयन के संयोजन के माध्यम से हासिल किया गया था.


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नेट-मीटरिंग, डिजिटल मीडिया, बिना किस झंझट के कार्यान्वयन

छतों पर लगे सोलर पैनल दिन में सूरज की रोशनी से बिजली पैदा करते हैं. मगर रात में सूर्यास्त के समय, ग्रिड के माध्यम से घरों में पारंपरिक रूप से बिजली की आपूर्ति की जाती है.

साल 2016 के बाद से, गुजरात सरकार ने कुल 3,91,830 आवासीय रूफटॉप सौर पैनल लगाए हैं. गुजरात विद्युत विकास प्राधिकरण (गुजरात इलेक्ट्रिसिटी डेवलपमेंट अथॉरिटी), वह निकाय जिसने ‘सूर्य गुजरात योजना’ के नाम से प्रसिद्ध वर्तमान नीति को आकार दिया है, उसकी निदेशक शिवानी गोयल ने कहा कि इनमें से अधिकांश पिछले तीन वर्षों में स्थापित किए गए हैं.

उन्होंने बताया, ‘गुजरात सरकार ने कई वर्षों से रूफटॉप सौर योजनाओं को लागू किया हुआ है. साल 2018 के बाद, एक सामान्य वेब पोर्टल, जिसने रूफटॉप सौर कार्यान्वयन से जुड़ी सभी सूचनाओं और हितधारकों को एक साथ लाने का काम किया, उसकी शुरुआत के साथ इनके इंस्टॉलेशन में काफी वृद्धि हुई है.’

उनके अनुसार, ‘नेट मीटरिंग’ की उपलब्धता ने भी (लोगों की) रुचि पैदा करने में मदद की. यह एक ऐसा बिलिंग मैकेनिज्म है जो ऊर्जा उत्पादित करने वाले को अपनी अधिशेष ऊर्जा (बची हुई अतिरिक्त बिजली) को वापस ग्रिड में निर्यात करने की अनुमति देता है.

वे कहतीं हैं, ‘जब लोगों को एहसास हुआ कि वे अपने बिजली के बिलों में बचत कर सकते हैं, तो यह बहुत लोकप्रिय हो गया.’

‘सूर्य गुजरात योजना’ के अनुसार, गुजरात की विद्युत वितरण कंपनियां पहले पांच वर्षों के लिए 2.25 रुपये प्रति यूनिट की दर से अतिरिक्त बिजली खरीदती हैं.

अंतराष्ट्रीय थिंक-टैंक ‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ (आईईईएफए) और कंसल्टेंसी फर्म जेएम्के रिसर्च द्वारा भारत की रूफटॉप सौर क्षमता पर अक्टूबर 2022 में किये गए एक अध्ययन में भी यह पाया गया कि राज्य का ‘डिजिटलीकरण’ पर ध्यान केंद्रित करना – सरलीकृत और प्रासंगिक जानकारी को पहुंचाने के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग करना प्रक्रिया के बारे में – रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन के साथ जुड़ी इसकी सफलता में भागीदार था.

साल 2019 के बाद से इस योजना के कार्यान्वयन को संभालने वाली नोडल एजेंसी गुजरात ऊर्जा विकास निगम के प्रबंध निदेशक जयप्रकाश शिवहरे ने कहा, ‘मूल रूप से, हमारी भूमिका प्रक्रिया को सुचारू बनाने की है. हम बिना किसी मानवीय संचालन के, सब कुछ एक पोर्टल पर रखते हैं. ग्राहक हमारे विक्रेताओं, जिनकी संख्या लगभग 600 हैं, की सूची तक पहुंच सकते हैं और हम बस नियमित रूप से प्रक्रिया की निगरानी करते हैं.’

गुजरात के वरमाडी गांव के रास्ते में सूर्य और छत पर लगे सौर पैनलों का एक एक नज़ारा | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

यह नीति 3 किलोवाट तक की सौर ऊर्जा प्रणालियों के लिए पूंजीगत लागत पर 40 प्रतिशत की और 3 से 10 किलोवाट के बीच की प्रणालियों पर 20 प्रतिशत की सब्सिडी प्रदान करती है और इसमें इस बात की कोई सीमा नहीं है कि कोई कितनी क्षमता का संयंत्र स्थापित कर सकता है.

ये संयंत्र शहरवासियों के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय रहे हैं, क्योंकि उनके बिजली के बिल आमतौर पर शहर के बाहरी इलाकों में बने छोटे घरों की तुलना में बहुत अधिक आते हैं. पांच सदस्यों वाले अपने परिवार के साथ गांधीनगर में रहने वाले ईएनटी सर्जन निसर्ग देसाई ने कहा कि उनके लिए छत पर सोलर पैनल लगाना ज्यादा सोच-विचार वाली बात नहीं थी.

निसर्ग देसाई, अपनी पत्नी और मां के साथ गांधीनगर, गुजरात स्थित उनके घर पर | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘हर साल, हम बिजली के बिल पर कम से कम 30,000 रुपये का भुगतान करते हैं. यह हमारा अपना घर है, हम यहां कम से कम 10 साल तक रहने की योजना बना रहे हैं. हम अतिरिक्त बिजली उत्पादन से तीन-चार वर्षों में निवेश की लागत को पूरा कर लेंगे.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि उनके परिवार को समझाने में इस बात से काफी मदद मिली कि सिस्टम के बारे में सारी जानकारी आसानी से उपलब्ध थी.

इस वर्ष, राज्य सरकार ने ग्रामीण बाजारों में भी विक्रेताओं के लिए लक्ष्य निर्धारित करने का निर्णय लिया है.

वरमाडी के रमेशभाई राठौड़ के लिए, एक सौर पैनल का मालिक होना धनी होने का प्रतीक है. उन्होंने अपनी तिरपाल की छत के नीचे बैठे हुए कहा, ‘जब हमारे पास पर्याप्त पैसा जमा हो जाएगा, तो हम भी एक (सोलर पैनल) लगवा लेंगे. मुझे नहीं पता कि यह कैसे काम करता है, लेकिन अगर यह बिजली के बिलों का कम भुगतान करना है, तो क्यों नहीं लगवाएं?’


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दूसरे राज्यों के लिए सबक

विशेषज्ञों का कहना है कि अपने कानों को ज़मीन पर लगाए रखने के अलावा, अपनी रूफटॉप पॉलिसी के साथ गुजरात की सफलता का श्रेय इसकी विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को भी जाता है, जिन्हें अपने अच्छे वित्तीय स्वास्थ्य के साथ-साथ ग्रिड की मजबूती के मामले में निरंतर रूप से पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है.

आईईईएफए के दक्षिण एशिया निदेशक और भारत की रूफटॉप सौर क्षमता पर अध्ययन के सह-लेखक विभूति गर्ग ने बताया, ‘अपनी लागत वसूल करने के लिए बड़े उपभोक्ताओं पर भरोसा करने वाले डिस्कॉम द्वारा छतों से प्राप्त सौर ऊर्जा के लिए नेट-मीटरिंग जैसी योजनाओं की पेशकश करने का विरोध होगा, क्योंकि यह उन्हें राजस्व प्रवाह से दूर ले जाता है.‘

सूरत की एक आवासीय सोसाइटी ईशवास्य में लगे सौर पैनल | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

आईईईएफए और जेएमके के अनुसंधान अध्ययन के अनुसार, महाराष्ट्र और हरियाणा भी बिजली लागत की बचत, नेट मीटरिंग प्रावधानों, सब्सीडी उपलब्धता और वितरण के साथ-साथ डिस्कॉम रेटिंग के आधार पर रूफटॉप सोलर के लिए आकर्षक स्थल हैं. सबसे कम आकर्षक राज्य तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पंजाब हैं.

दिल्ली की एक बिना लाभ वाले थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के सीनियर प्रोग्राम लीड, नीरज कुलदीप ने कहा कि गुजरात सरकार भारी सब्सीडी वाली बिजली की पेशकश नहीं करता है, जो इसके निवासियों को सौर ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करता है.

उन्होंने कहा, ‘गुजरात ने जो किया है वह विभिन्न योजनाओं के माध्यम से रूफटॉप सोलर की मांग पैदा करता है और उस मांग को पूरा करने के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का भी निर्माण करता है.’ उन्होंने कहा कि, ‘अन्य राज्य निश्चित रूप से इनमें से कुछ बातों को अपने यहां दोहरा सकते हैं, जैसे बुनियादी जागरूकता फैलाना और एक निर्धारित प्रक्रिया बनाना तथा उसे लागू करना.’

राज्य सरकार के अपने नवीकरणीय खरीद दायित्व (रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन -आरपीओ) के तहत कम से कम 8 प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा क्षेत्र से खरीदने का दायित्व निर्धारित किया गया है, जिसे अगले साल बढ़कर 9.5 प्रतिशत और उसके बाद 11.25 प्रतिशत कर दिया जाएगा.

हालांकि, ये आरपीओ राज्यों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, मगर अक्षय ऊर्जा के राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं. इस साल की शुरुआत में, भारत ने साल 2030 तक ऊर्जा की स्थापित क्षमता का 50 प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से हासिल करने का संकल्प लिया था. विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि गुजरात का आरपीओ देश में सबसे ज्यादा है, इसलिए इसके द्वारा अपने लक्ष्यों को पूरा किया जाना जरूरी है.

रूफटॉप सोलर के अलावा, राज्य सरकार कच्छ में 30 गीगावाट की स्थापित क्षमता के साथ देश का सबसे बड़ा सोलर पार्क भी स्थापित कर रही है.

इस बीच, सूरत की नगर आयुक्त शालिनी अग्रवाल ने कहा कि उनके शहर के नगर निगम ने सरकारी भवनों और अन्य सुविधाओं के सौर्यींकरण (सोलराइज़) का काम अपने हाथ में लिया है. इसकी 28 प्रतिशत खपत नवीकरणीय स्रोतों द्वारा पूरी की जाती है.

सूरत की नगर आयुक्त, आईएएस अधिकारी शालिनी अग्रवाल | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, ‘पूरे गुजरात के अंदर सूरत में रूफटॉप सौर प्रतिष्ठानों की संख्या सबसे अधिक है. नगर निगम भी अगले दो वर्षों में नवीकरणीय स्रोतों से बिजली की आपूर्ति को 32 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए अपनी ओर से प्रयास कर रहा है. हम इस तरह से अपने बिजली के बिलों में सालाना 50 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बचाते हैं.’

उन्होंने कहा कि अन्य नगर निगम भी इससे सीख ले सकते हैं. वे कहतीं हैं, ‘यह एक ऐसी पहल है जो हमने खुद की है, और एक अन्य नगर पालिकाएं भी कर सकती है. सिर्फ गुजरात में ही नहीं, बल्कि अन्य जगहों पर भी.


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जब सूरज नहीं चमकता

चूंकि गुजरात सोलर रूफटॉप इंस्टालेशन के मामले में सबसे आगे है, इसलिए यह उन चुनौतियों और ट्रेड-ऑफ्स (नफा-नुकसान) का भी सामना कर रहा है जो इसके साथ जुड़ी होती हैं, विशेष रूप से कम आय वाले उन घरों में जो रूफटॉप सोलर के लिए ‘तकनीकी रूप से अक्षम’ साबित होते हैं.

भारत के पहले ‘पूर्ण सौर ऊर्जा संचालित गांव, महेसाणा जिले के मोढेरा, की कहानी इस बात पर जोर देती है कि यह सारी सफलता कुछ सीमाओं के साथ आती है और इसका लाभ सभी के लिए सुलभ नहीं हो सकता है. पिछले अक्टूबर में, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मध्यकालीन सूर्य मंदिर के बगल में स्थित मोढेरा गांव की यात्रा पर गए थे. अधिकारियों के अनुसार, मोढेरा के अधिकांश घरों 1,700 में से लगभग 1,300 में सौर ऊर्जा संयंत्र वाली छतें हैं.

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने इस गांव की समृद्धि के अग्रदूत के रूप में और ‘मानव जाति और इस ग्रह के बीच सामंजस्य’ के प्रतीक के रूप में इस गांव के बारे प्रशंसा की थी.

चंदुवन गौसामी के लिए, उनका रूफटॉप सोलर प्लांट वास्तव में एक वरदान जैसा रहा है. उनके पास एक फ्रिज, दो पंखे और एक एलईडी टीवी के अलावा कुछ लाइट बल्ब भी हैं, जिसके लिए उन्हें अब कोई बिल नहीं देना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘इसका मतलब यह है कि हमारे पास अपने दैनिक खर्चों के लिए अधिक पैसा होता है, और यह राहत की बात है.’

महेसाणा के मोढेरा गांव में अपने रूफटॉप सोलर पैनल के बगल में खड़े होकर फोटो खिंचवाते चंदुवन गौसामी | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

मोढेरा मॉडल इस बात का एक खाका प्रस्तुत करता है कि रूफटॉप और अन्य प्रकार के सौर संयंत्रों के जरिए पूरी तरह सौलराइज होने का मतलब आखिर होता क्या है.

राज्य की वर्तमान रूफटॉप योजना के विपरीत, मोढेरा के घर ग्रिड वाली बिजली पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं हैं.

छतों पर स्थापित सौर पैनल मोढेरा की दिन भर की बिजली संबंधी जरूरतों को पूरा करते हैं, लेकिन रात में, एक 15 मेगावाट प्रति घंटे वाला विशाल बैटरी स्टोरेज सिस्टम, जो बगल के गांव में जमीन पर लगे 6 मेगावाट सौर संयंत्र द्वारा से जुड़ा है, काम करने लगता है.

जीपीसीएल के वरिष्ठ अधिकारी राजेंद्र मिस्त्री ने कहा कि पूरा तंत्र राज्य सरकार के गुजरात पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (जीपीसीएल) द्वारा ग्रामीणों के लिए मुफ्त और प्रायोगिक आधार पर स्थापित किया गया है.

सौर ऊर्जा के लिए बैटरी स्टोरेज को मुहैया कराया जाना उस तापीय ऊर्जा (थर्मल पावर) पर निर्भरता को कम करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो ग्रिड को आपूर्ति की जाने वाली बिजली का प्राथमिक स्रोत और भारत में कार्बन उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है. बाद में उपयोग के लिए सौर ऊर्जा का भंडारण ग्रिड से होने वाले आपूर्ति को कम परिवर्तनीय बनाने में मदद कर सकता है और इस प्रकार कोयले पर निर्भरता कम हो सकती है.

मोढेरा भारत का पहला गांव है जो इस तरह की प्रणाली पर निर्भर करता है, जिसे ग्रिड स्केल बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीईएसएस) कहा जाता है और जिसे वास्तव में नवीकरणीय सौर ऊर्जा का भविष्य माना जाता है.

हालांकि, बैटरी स्टोरज सिस्टम के लिए जगह और पैसों की आवश्यकता होती है. इस पूरे सिस्टम पर गुजरात सरकार को लगभग 81 करोड़ रुपये का खर्च आया, जिसमें से लगभग 30 करोड़ सिर्फ बैटरी की लागत थी.

सौर पैनलों की कई कतारों द्वारा संचालित, बैटरी पास के गांव सुजानपुरा से अधिग्रहित कई एकड़ जमीन को घेर लेती है.

महेसाणा जिले के सुजानपुरा में स्थित सौर ऊर्जा संयंत्र | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

एक छोटे से गांव सुजानपुरा के घरों में भी जहां तक संभव हो छतों पर सौर पैनल लगाए गए हैं, लेकिन उनकी रात की जरूरतें बैटरी स्टोरेज सिस्टम से पूरी नहीं होती हैं और इसके बजाय बाकी गुजरात की तरह इसके लिए जरुरी बिजली ग्रिड से ही ली जाती हैं.

गांव के सरपंच रमेशसिंह सोलंकी ने कहा, ‘हमारे बिजली के बिलों को कम होते देखना और घरेलू लागतों में बचत करना वास्तव में बहुत अच्छा है, लेकिन वह जमीन हम अपने मवेशियों को चराने के लिए इस्तेमाल करते थे. अब वह हमारे पास से चला गया है, हमारे पास चराने के लिए जगह कम है. इस गांव में रहने वाले ज्यादातर लोग किसान या चरवाहे हैं.’

सोलंकी ने बताया कि सरकार ने सुजानपुरा के निवासियों के उपयोग के लिए दो अन्य गांवों में चरागाह ज़मीन आवंटित की है, लेकिन यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे स्वीकार किए जाने की संभावना नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हम अपने मवेशियों को दूसरों की ज़मीन पर नहीं चरा सकते. तब क्या होगा अगर वे हमारे द्वारा मवेशियों को वहां चराने का मुद्दा उठाएंगे? यह झगड़े का कारण हो सकता है. हम जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.’

कई अध्ययनों से पता चलता है कि सौर ऊर्जा के व्यापक प्रसार की राह में जमीन की कमी सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है. विशेष रूप से बड़े पैमाने पर ग्राउंड-माउंटेड सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कुछ मामलों में, यह समुदायों के विस्थापन का कारण बन सकते हैं. साथ ही, इसके पारिस्थितिक परिणामों का अभी भी अध्ययन किया जा रहा है. रूफटॉप सोलर जमीन की इस किल्लत का आंशिक समाधान प्रदान करते हैं.

हालांकि, 24 वर्षीय मोढेरा निवासी धर्मिष्ठा राठौड़ के लिए एक और चुनौती है.

सौर पैनलों से जुड़े दो घरों के बीच स्थित उसके अपने एक बेडरूम वाले घर की छत एस्बेस्टस की दो चादरों के अलावा कुछ भी नहीं है. वह, उसके माता-पिता और उसका विकलांग भाई एक लाइट बल्ब, एक पंखा और एक टीवी साझा करते हैं.

धर्मिष्ठा राठौड़ मोढेरा में अपने घर पर | फोटोः प्रवीण जैन/दिप्रिंट

वे बताती हैं, ‘जब वे यहां सर्वेक्षण करने आए, तो उन्होंने कहा कि कच्ची छत के कारण वे पैनल नहीं लगा सकते.’

अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले भूमिहीन मजदूरों के रूप में, धर्मिष्ठा के माता-पिता के पास सौर पैनल को समायोजित करने के लिए उनकी छत को नए सिरे से बनाने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं है. वह कहती हैं, ‘इसमें बहुत अधिक पैसा खर्च होगा.’

उसकी स्थिति उन समस्याओं को प्रदर्शित करती है जो रिमोट बैटरी-संचालित सिस्टम द्वारा समर्थित नहीं होने पर रूफटॉप सोलर द्वारा पैदा की जाती है. इससे भी अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में, घरों में एक सोलर पैनल लगाने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत छतें नहीं भी हो सकती हैं

इस तरह की समस्याओं के बावजूद, गुजरात सरकार के कई अधिकारियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर की सफलता पर भरोसा जताया.

जीसीपीएल के मिस्त्री ने कहा कि ऐसे घरों के लिए, या फिर उनके लिए जो छाया में पड़ते हैं, एक समाधान ‘वर्चुअल नेट मीटरिंग’ क रूप में उपलब्ध है.

उन्होंने कहा, ‘वर्चुअल नेट मीटरिंग हमें ऐसे घरों की ऊर्जा आपूर्ति के लिए एक अलग स्थान पर एक छोटे पैमाने वाला ग्राउंड-माउंटेड सौर संयंत्र स्थापित करने की अनुमति देती है. जिन घरों में रूफटॉप सोलर के लिए तकनीकी व्यवहार्यता नहीं होती है, उनके लिए हमने सरकार को इस प्रणाली का प्रस्ताव दिया है.’

उन्होंने कहा कि मौजूदा ग्राउंड-माउंटेड सिस्टम पारंपरिक ग्रिड से जुड़ा नहीं होता है क्योंकि वर्तमान नीति इसकी अनुमति नहीं देती है, लेकिन जहां बैटरी स्टोरेज संभव नहीं है वहां सरकार इसी मॉडल की ओर बढ़ने पर विचार कर रही है.

(अनुवादः रामलाल खन्ना | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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