अहमदाबाद, 23 अगस्त (भाषा) गुजरात उच्च न्यायालय ने 1989 में कांग्रेस विधायक की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाने वाले टाडा अपराधी की रिहाई को रद्द कर दिया है। अदालत ने इस राहत को ‘‘अवैध और बिना किसी कानूनी अधिकार के’’ बताया तथा उसे दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति हसमुख सुथार की पीठ ने अनिरुद्धसिंह जडेजा को यह निर्देश दिया। गोंडल सीट से तत्कालीन कांग्रेस विधायक पोपट सोरठिया की हत्या के मामले में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और आतंकवादी एवं विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत भी दोषी ठहराया गया था। उसे 2018 में सजा में छूट देकर रिहा कर दिया गया था।
शुक्रवार को दिए गए अपने फैसले में अदालत ने कहा कि तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कारागार सुधार एवं प्रशासन) टी एस बिष्ट ने बिना किसी अधिकार के जडेजा को माफी का लाभ दिया और उनका आदेश ‘‘त्रुटिपूर्ण व कानून के विपरीत’’ होने के साथ-साथ ‘‘अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र की कमी’’ से भरा था।
इसने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह आत्मसमर्पण की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित मापदंडों और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) द्वारा जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का पालन करते हुए छूट का लाभ देने के लिए उसके मामले पर विचार करे।
मामले के विवरण के अनुसार, 1989 में जडेजा ने सोरठिया की तब गोली मारकर हत्या कर दी थी जब वह स्वतंत्रता दिवस पर एक स्कूल में राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी और टाडा के तहत नियुक्त राजकोट के एक विशेष न्यायाधीश ने 45 गवाहों के मुकर जाने के बाद उसे बरी कर दिया था।
राज्य सरकार ने टाडा की धारा 19 के तहत उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की, जिसे 10 जुलाई 1997 के एक फैसले द्वारा आंशिक रूप से अनुमति दी गई। जडेजा को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या के दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
उसे टाडा के तहत भी दोषी ठहराया गया और तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि, वह फरार हो गया और लगभग तीन साल बाद उसे हिरासत में ले लिया गया।
वर्ष 2017 में उसने विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रैलियों का आयोजन करने और उनमें भाग लेने के लिए चिकित्सा उपचार के बहाने का इस्तेमाल किया। यह मुद्दा उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका में उठाया गया था, जिसमें इस बात की जांच की मांग की गई थी कि टाडा के एक दोषी ने राजनीतिक रैलियों को कैसे संबोधित किया।
उच्च न्यायालय ने कार्यवाही बंद कर दी तथा याचिकाकर्ता को आवश्यकता पड़ने पर उचित उपाय अपनाने की अनुमति दे दी, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
राज्य सरकार ने 25 जनवरी 2017 को कुछ दोषियों को माफी देने का प्रस्ताव जारी किया, जिनमें 12 वर्ष (जेल में) पूरे कर चुके आजीवन कारावास की सजा काट रहे लोग भी शामिल थे।
प्रस्ताव में छूट देने की शर्तें शामिल थीं। उस समय जडेजा के मामले पर विचार नहीं किया गया और उसे छूट का लाभ नहीं दिया गया।
जडेजा के बेटे ने 29 जनवरी, 2018 को तत्कालीन एडीजीपी (जेल और प्रशासनिक सुधार) को एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिन्होंने उसी दिन जूनागढ़ जिला जेल के अधीक्षक को 18 साल की सजा पूरी करने का कारण बताते हुए निर्देश दिया कि वह उसे छूट दें।
उसकी ‘‘अवैध रिहाई’’ को दो याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई, जिनमें से एक को अभियोजन के अभाव में खारिज कर दिया गया और दूसरी को वापस ले लिया गया।
वर्ष 2018 में उसकी रिहाई के बाद से जडेजा के खिलाफ तीन प्राथमिकी दर्ज की गईं और यहां तक कि 2024 में उच्चतम न्यायालय में उसकी समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका भी इस अदालत के समक्ष नयी याचिका दायर करने की स्वतंत्रता के साथ वापस ले ली गई।
भाषा
शुभम नेत्रपाल
नेत्रपाल
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