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Monday, 23 December, 2024
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स्किन-टू-स्किन टच और यौन इरादे के बिना किसी बच्चे को छूना POCSO के तहत नहीं आता- बॉम्बे HC

जस्टिस गनेदीवाला के अनुसार, यौन इरादे के साथ किए गए ऐसे किसी कृत्य को नाबालिग पर यौन हमला माना जाएगा, जिसमें पेनेट्रेशन के बिना फिजिकल कॉन्टैक्ट शामिल हो.

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नई दिल्ली: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक मामले में अपने फैसले में कहा है कि यौन इरादे और स्किन-टू-स्किन कांटैक्ट के बिना किसी बच्चे के ब्रेस्ट को जबरन छूना यौन अपराधों से बच्चों को बचाने के लिए बने विशेष कानून प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पोक्सो) एक्ट के तहत यौन हमला नहीं है.

जस्टिस पुष्पा वी. गनेदीवाला की एकल पीठ ने कहा कि टॉप को हटाए बिना किसी नाबालिग लड़की का ब्रेस्ट छूना यौन हमले की श्रेणी में नहीं आएगा, लेकिन इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत किसी महिला का शीलभंग करने का अपराध माना जाएगा.

यह फैसला कथित तौर पर 12 वर्षीय बच्ची पर यौन हमला करने और उसकी सलवार उतारने की कोशिश करने के आरोप में पोक्सो और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति की तरफ से की गई अपील पर आया है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘12 साल की बच्ची के ब्रेस्ट को छूना, जबकि यह स्पष्ट नहीं है कि उसका कुर्ता हटा दिया गया था या फिर हाथ कपड़ों के अंदर डालकर ब्रेस्ट को छुआ गया था, यौन हमले की श्रेणी में नहीं आएगा. यह निश्चित तौर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (शीलभंग करना) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.’

जस्टिस गनेदीवाला ने कहा कि पोक्सो अधिनियम की धारा 7 के अनुसार, यौन इरादे के साथ किए गए ऐसे किसी कृत्य को नाबालिग पर यौन हमला माना जाएगा, जिसमें पेनेट्रेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल हो.

इस धारा के तहत यदि कोई भी यौन इरादे से बच्चे के योनि, लिंग, एनस या स्तन को छूता है या बच्चे से खुद या किसी अन्य व्यक्ति के योनि, लिंग, एनस या स्तन को स्पर्श कराता है या फिर यौन इरादे से कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें पेनेट्रेशन के बिना शारीरिक संपर्क शामिल हो, तो उसे यौन हमला कहा जाता है.

इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को पोक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत अधिकतम पांच साल की जेल और न्यूनतम तीन साल की सजा हो सकती है.


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नाबालिग से छेड़छाड़ करने के आरोपी को सिर्फ शीलभंग का दोषी ठहराया

हाई कोर्ट की तरफ से कानून की यह व्याख्या तब सामने आई जब इसने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उसे पोक्सो के तहत यौन हमले के साथ-साथ महिला के शीलभंग, अपहरण और गलत इरादे से बंधक बनाने के आरोप में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था.

दोषी व्यक्ति को यौन उत्पीड़न और शील भंग करने के आरोप में तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई थी, जबकि अपहरण के लिए दो साल और गलत इरादे से बंधक बनाने के लिए छह महीने कारावास की सजा दी गई थी. सभी सजाएं एक साथ चलाने के लिए निर्देश दिया गया था.

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में दोषी को पोक्सो के तहत आरोपों से बरी कर दिया और केवल एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाते हुए शील भंग के अपराध के तहत दोषी ठहराया.

जस्टिस गनेदीवाला ने अभियोजन पक्ष के वकील के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि ब्रेस्ट को छूना पोक्सो की धारा 7 के तहत अपराध की श्रेणी में आता है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘निश्चित तौर पर अभियोजन का मामला यह नहीं है कि अपीलकर्ता ने उसका कुर्ता हटा दिया था और उसका ब्रेस्ट छुआ था. ऐसे में कोई सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ, जो कि पेनेट्रेशन के बिना यौन इरादे के साथ स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट होता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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