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Friday, 29 March, 2024
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विश्वभर में महिलाओं की माहवारी जरूरतों को लेकर गंभीर हो रहीं सरकारें

‘मेंस्ट्रुअल कप’ और टैम्पोन को लेकर महिलाओं को ज्यादातर जानकारी सोशल मीडिया या उनके दोस्तों से मिलती है. स्वर्णा कहती हैं, 'मेरे बाद अब मेरी बहन ने भी ‘मेंस्ट्रुअल कप’ का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.'

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नई दिल्ली: सामाजिक वर्जनाओं के नीचे दबे माहवारी जैसे मुद्दे पर अब न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य के मद्देनजर गंभीरता के साथ ध्यान केंद्रित किया जाने लगा है, बल्कि विश्व में विभिन्न देशों की सरकारें माहवारी में इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड, टैम्पोन और मेंस्ट्रुअल कप जैसे उत्पाद भी निशुल्क उपलब्ध करवाने लगी हैं.

भारत सरकार ने 2018 में एक लंबे अभियान के बाद माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों पर लगने वाला 12 प्रतिशत कर हटाया था. हालांकि, भारत में प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के तहत देशभर के केंद्रों पर सैनिटरी पैड एक रुपये में उपलब्ध कराए जाते हैं. कई सरकारी व गैर-सरकारी संगठन भी महिलाओं को समय-समय पर मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया करवाते हैं.

‘मेंस्ट्रुअल हाईजीन अलायंस ऑफ इंडिया’ (एमएचएआई) का अनुमान है कि भारत में मासिक धर्म वाली 33.60 करोड़ से अधिक लड़कियां और महिलाएं हैं तथा देश में हर साल लगभग 12.3 अरब सैनिटरी पैड इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनके निस्तारण में तकरीबन 800 साल से अधिक समय लग सकता है.

‘पीटीआई-भाषा’ के यह पूछने पर कि क्या सरकार को हर केंद्र पर सैनिटरी पैड निशुल्क उपलब्ध कराने चाहिए, दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा सुमन (24) ने कहा, ‘सरकार सैनिटरी पैड मुफ्त देने के बजाय उसकी कीमत घटा सकती है. उसे महिलाओं को ‘मेंस्ट्रुअल कप’ या टैम्पोन भी देने चाहिए. इससे संक्रमण का जोखिम घटेगा, कचरा कम पैदा होगा और पर्यावरण को नुकसान भी कम पहुंचेगा.’

दुनियाभर की सरकारें आधी आबादी से जुड़ी इस स्वास्थ्य समस्या को लेकर कितनी गंभीर हो गई हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कॉटलैंड नवंबर 2020 में सामुदायिक केंद्रों, युवा क्लब और दवा की दुकानों में टैम्पोन और सैनिटरी पैड मुफ्त में उपलब्ध कराने वाला पहला देश बना था.

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यही नहीं, न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने फरवरी 2021 में उस साल के जून महीने से स्कूलों में माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पाद निशुल्क देने की घोषणा की थी. इसी तरह, ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 2018 में सभी स्कूलों में सैनिटरी पैड और टैम्पोन मुफ्त में उपलब्ध कराने का ऐलान किया था. विक्टोरिया 2020 में इस योजना को लागू करने वाला पहला ऑस्ट्रेलियाई प्रांत बना था.

अमेरिका के इलिनॉइस, वाशिंगटन, न्यूयॉर्क, न्यू हैम्पशायर और वर्जीनिया में भी ऐसी ही पहल की गई है. न्यूयॉर्क ने पहली बार 2016 में सरकारी स्कूलों में मुफ्त टैम्पोन और सैनिटरी पैड प्रदान करने के लिए कानून पारित किया.

फ्रांस के आइल-डी-फ्रांस क्षेत्र ने सितंबर 2020 में स्कूलों में निशुल्क ऑर्गेनिक पीरियड उत्पाद देने शुरू किए थे. वहीं, ‘टैम्पोन टैक्स’ को खत्म करने वाला दुनिया का पहला देश बनने के बाद केन्या ने अप्रैल 2018 में स्कूलों में मुफ्त सैनिटरी पैड वितरित करना शुरू किया था.

इसी तरह, दक्षिण अफ्रीका ने अक्टूबर 2018 में टैम्पोन पर लगाए जाने वाले कर को समाप्त कर दिया और स्कूलों में मुफ्त उत्पाद उपलब्ध करवाए. बोत्सवाना में अगस्त 2017 से स्कूलों में निशुल्क सैनिटरी पैड मिलने लगे. ब्रिटेन (2019), दक्षिण कोरिया (2018), युगांडा (2016) और जाम्बिया (2017) की सरकारों ने भी स्कूलों में निशुल्क सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का वादा किया.

भारत में चलाए जा रहे विभिन्न तरह के जागरूकता अभियानों के बावजूद माहवारी के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों को लेकर वर्जनाएं बरकरार हैं. इसे लेकर बनारस में महिलाओं से जुड़ा गैर-सरकारी संगठन चलाने वाली स्वाति कहती हैं, ‘हम संगठन की महिलाओं को स्थानीय तौर पर तैयार किए गए सैनिटरी पैड मुहैया करवाते हैं. हालांकि, उन्हें इनके इस्तेमाल के महत्व के बारे में समझाना बड़ी चुनौती है.’

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच (एनएफएचएस-5) के मुताबिक, भारत में 15 से 24 आयुवर्ग की 64 प्रतिशत महिलाएं माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड, 50 प्रतिशत कपड़ा, 1.7 प्रतिशत टैम्पोन और 0.3 प्रतिशत ‘मेंस्ट्रुअल कप’ का उपयोग करती हैं.

यूनिसेफ के अनुसार, 2016 में एफएसजी द्वारा किए गए एक विश्लेषण से पता चला था कि उच्च और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 75 प्रतिशत महिलाएं व लड़कियां व्यावसायिक रूप से तैयार उत्पाद इस्तेमाल करती हैं.

दक्षिणी दिल्ली में रहने वाली स्वर्णा (23) और नोएडा निवासी सृष्टि (24) ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘वे माहवारी के दौरान घर में सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन बाहर जाते समय उनकी पहली पंसद ‘मेंस्ट्रुअल कप’ है. दोनों का मानना था कि अन्य उत्पादों के मुकाबले इसका उपयोग ज्यादा सुविधाजनक है.’

सरकार द्वारा विज्ञापनों के माध्यम से मुख्यत: केवल सैनिटरी पैड का प्रचार-प्रसार किया जाता है. अन्य उत्पादों के बारे में उतनी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती. हालांकि, 2022-23 के आम बजट में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को माहवारी को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कुल 25,172 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो कि वर्ष 2021-22 के मुकाबले तीन प्रतिशत अधिक है.

सरकार द्वारा स्कूलों और कस्बों में महिलाओं के लिए माहवारी के समय स्वच्छ विधि का उपयोग सिखाने के लिए कई जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं. यही नहीं, 2019 में केरल देश का पहला ऐसा राज्य बना था, जहां नगर निकायों ने महिलाओं को पांच हजार ‘मेंस्ट्रुअल कप’ वितरित किए.

‘मेंस्ट्रुअल कप’ और टैम्पोन को लेकर महिलाओं को ज्यादातर जानकारी सोशल मीडिया या उनके दोस्तों से मिलती है. स्वर्णा कहती हैं, ‘मेरे बाद अब मेरी बहन ने भी ‘मेंस्ट्रुअल कप’ का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.’

उत्तर प्रदेश के मेरठ में स्थित शुभार्थी मेडिकल अस्पताल की एक चिकित्सक शालु कथूरिया कहती हैं, ‘मेंस्ट्रुअल कप को योनि में बार-बार डालना या निकालना पीड़ादायक होता है. वहीं, सैनिटरी पैड में इस्तेमाल किए जाने वाले तरह-तरह के रसायन नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. ऐसे में टैम्पौन का इस्तेमाल सबसे बेहतर और सुरक्षित है.’

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्यम आय वाले देशों में टैम्पोन का इस्तेमाल न के बराबर किया जाता है.

भारत सरकार ने कुछ समय पहले लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि राज्यों को महिलाओं को माहवारी के दौरान विभिन्न सुविधाएं प्रदान करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उनमें खरीद प्रक्रिया/निविदा में देरी, सीमित धन के कारण अधिकांश किशोरियों को योजना में शामिल करने में असमर्थता, सभी हितग्राहियों को समय पर एवं निर्बाध वितरण, आशा कार्यकर्ताओं/शिक्षकों और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का पर्याप्त क्षमता निर्माण व सुरक्षित निपटान तंत्र न मौजूद होना शामिल है.

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.


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