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बुधवार, 11 जून, 2025
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मांगें पूरी नहीं हुईं तो सरकार को मुश्किल का सामना करना होगा: ‘किसान गर्जना’ रैली में बोले किसान

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(तस्वीरों के साथ)

नयी दिल्ली, 19 दिसंबर (भाषा) हजारों किसानों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध किसान संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) के बैनर तले सोमवार को यहां रामलीला मैदान में ‘किसान गर्जना’ रैली की और कृषि उत्पादों पर से जीएसटी वापस लेने की मांग की।

प्रदर्शनकारी किसानों ने मांगें नहीं मांगे जाने पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी।

आयोजकों ने कहा कि राहत उपायों की मांग को लेकर भारतीय किसान संघ (बीकेएस) द्वारा यहां रामलीला मैदान में आयोजित ‘किसान गर्जना’ रैली में भाग लेने के लिए पंजाब, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के हजारों किसान अत्यधिक ठंड के बावजूद ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और निजी बसों से दिल्ली पहुंचे।

आयोजकों ने कहा कि प्रदर्शनकारी कृषि गतिविधियों पर जीएसटी को वापस लेने और ‘पीएम-किसान’ योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता में वृद्धि, आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति को रद्द करने और उनकी उपज के लिए लागत आधार पर लाभकारी मूल्य की मांग कर रहे थे।

दिसंबर 2018 में शुरू की गई प्रधानमंत्री-किसान योजना के तहत सभी जोत भूमि वाले किसान परिवारों को तीन समान किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये की सहायता प्रदान की जाती है।

बीकेएस द्वारा जारी एक बयान कहा गया है, ‘‘यदि समय पर किसानों की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया तो राज्य और केंद्र सरकारों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा।’’

बीकेएस के राष्ट्रीय महासचिव मोहिनी मोहन ने कहा, ‘‘किसानों के अधिकारों को लेकर प्रधानमंत्री द्वारा किए गए वादे खोखले साबित हुए हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। किसान भिखारी नहीं हैं, उन्हें अपनी फसल के लिए लाभकारी मूल्य पाने का अधिकार है।’

मोहन ने कहा कि अगर सरकार समय पर नहीं जागी तो दुनिया का सबसे बड़ा किसान संगठन ‘‘और मुखर होगा।’’

मध्य प्रदेश के इंदौर से आए नरेंद्र पाटीदार ने कहा कि खेती से जुड़ी मशीनरी और कीटनाशकों पर से जीएसटी हटाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘बढ़ती लागत और मुद्रास्फीति के बीच, हमें कोई लाभ नहीं होता हैं। सरकार को हमारी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। डेयरी उद्योग पर भी जीएसटी नहीं लगाया जाना चाहिए। मौजूदा स्थिति में कोई 6,000 रुपये या 12,000 रुपये में परिवार कैसे चला सकता है?’’

कई किसानों ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि अगर सरकार ने तीन महीने के भीतर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया तो वे विरोध तेज करेंगे।

मध्य प्रदेश के एक अन्य किसान दिलीप कुमार ने कहा, ‘‘कृषि मशीनरी, कीटनाशकों और उर्वरकों पर से जीएसटी हटाया जाना चाहिए। उन्होंने ‘डेयरी फार्मिंग’ पर भी पांच प्रतिशत कर लगाया है। किसान सम्मान निधि के तहत 6,000 रुपये और कुछ नहीं, बल्कि किसानों का अपमान है। यह कम से कम 15,000 रुपये होना चाहिए।’’

महाराष्ट्र के रायगढ़ के प्रमोद ने सरकार पर किसानों पर जीएसटी थोपने और कंपनियों को सब्सिडी देने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ‘‘वे बीज पर भी जीएसटी लगाते हैं। कम से कम इसके (जीएसटी) बारे में कुछ न कुछ किया जाना चाहिए। जो पेंशन वे प्रदान करते हैं, वह एक मजाक है। केवल 6,000 रुपये से कोई अपने परिवार का पालन कैसे कर सकता है? (केंद्रीय कृषि मंत्री) नरेंद्र तोमर ने कहा है इसे बढ़ाकर 12,000 रुपये किया जाएगा, लेकिन यह भी काफी नहीं है।’’

इस बीच, पंजाब के फिरोजपुर के सुरेंद्र सिंह ने दावा किया कि सरकार ने पीएम-किसान योजना के तहत पिछली दो किस्त नहीं दी। उन्होंने कहा, ‘‘किसान भी कुशल मजदूर हैं, कम से कम हमें इतना सम्मान दिया जाना चाहिए।’’

प्रदर्शनकारियों ने अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा कि जीएम बीज लोगों और आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘हानिकारक’ है और किसान तब तक उनका उपयोग नहीं करेंगे, जब तक कि सरकार उन्हें विश्वसनीय अनुसंधान डेटा प्रदान नहीं करती।

अक्टूबर में, सरकार ने सरसों की आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) किस्म को ‘पर्यावरणीय मंजूरी’ को मंजूरी दे दी थी। किसानों द्वारा फसल के व्यावसायिक उत्पादन से पहले बीज उत्पादन और क्षेत्र परीक्षण को शामिल करते हुए ‘पर्यावरण मंजूरी’ अंतिम चरण है।

नागपुर से आये अजय बोंद्रे ने कहा, ‘‘जब तक हमें अनुसंधान विवरण प्रदान नहीं किया जाता है, जब तक कि हमें कोई प्रमाण नहीं मिल जाता है कि यह विश्वसनीय है, हम जीएम बीजों का उपयोग करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं। किसान बहुत लंबे समय से जीएम फसलों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार हम पर ध्यान नहीं देती है।’’

पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर की कंचन रॉय ने कहा कि कई लोगों ने खेती छोड़ दी है, क्योंकि वे लागत वहन नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, ‘‘वे पश्चिम बंगाल से दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पलायन कर रहे हैं। क्या सरकार को इस बात का एहसास है कि देश भर में महंगाई कैसे बढ़ रही है और वह अब भी चाहती है कि हम सिर्फ 6,000-12,000 रुपये से गुजारा करें।’’

गुजरात के अरावली के किशोर पटेल ने कहा कि कुछ मांगें मान ली गई हैं, ‘‘लेकिन राज्य चुनावों से पहले आश्वासन के बावजूद प्राथमिक मांगों पर विचार नहीं किया गया है।’’

बीकेएस ने कहा कि उसने दिल्ली आने से पहले चार महीने तक देश भर के 560 जिलों के 60,000 से अधिक गांवों में जन जागरूकता कार्यक्रम चलाया। उसने कहा कि अकेले तेलंगाना और मध्य प्रदेश में लगभग 20,000 पदयात्राएं, 13,000 साइकिल यात्राएं और 18,000 बैठकें आयोजित की गईं।

भाषा अमित दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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