scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमदेश'अच्छी कमाई' लेकिन ‘जोखिम 'ज्यादा’- पंजाब के किसान इस सीजन में मूंग पर दांव क्यों लगा रहे हैं

‘अच्छी कमाई’ लेकिन ‘जोखिम ‘ज्यादा’- पंजाब के किसान इस सीजन में मूंग पर दांव क्यों लगा रहे हैं

पंजाब में मूंग की खेती पिछले सीजन की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई है, खासकर गेहूं की फसल की शुरुआती कटाई के कारण. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एमएसपी पर उपज खरीदने का वादा किया है, लेकिन इसके ऐलान में थोड़ी देर हो चुकी है.

Text Size:

लुधियाना : किसान अमरिंदर सिंह को उम्मीद है कि आगे सब ठीकठाक रहेगा. इस साल समय से पहले गेहूं की फसल की कटाई और जून मध्य में धान की बुआई शुरू होने के बीच गर्मी की एक फसल के जरिये अतिरिक्त आय की संभावना ने किसानों की उम्मीद बढ़ा दी हैं. अमरिंदर सिंह ने लुधियाना जिले के लखवाल गांव में दो एकड़ जमीन पर मूंग बोई है.

आमतौर पर मूंग का मतलब अच्छी आमदनी है लेकिन फसल के अपने जोखिम हैं. बारिश इस पर खासा प्रतिकूल असर डालती है, जिसका अर्थ है कि इसे बारिश के मौसम से पहले काटना होता है.

47 वर्षीय सिंह ने कहा, ‘यह एक बड़ा जुआ है. मेरे जैसे कई किसानों ने इस साल मूंग बोने का विकल्प चुना क्योंकि उन्हें बारिश का मौसम शुरू होने से पहले इसके लिए पर्याप्त समय नजर आ रहा है. इस साल ऐसा गेहूं की फसल की जल्द कटाई की वजह से संभव हो पाया है.’

सरकारी अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल पंजाब में गेहूं की फसल अप्रैल के शुरू में कटने लगी, जबकि पिछले कई सालों से महीने के अंत में कटाई का चलन था.

मूंग की फसल करीब 60 दिनों में पक जाती है, यही वजह है कि राज्य भर के किसानों को गेहूं की फसल और धान बुवाई के बीच अंतर भरने के लिए यह एक अच्छा विकल्प नजर आया है. नतीजतन इस साल पंजाब में मूंग की खेती में तेजी आई है.

सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, पंजाब में इस साल गर्मियों में मूंग की खेती 97,000 एकड़ तक पहुंच गई है, जो पिछले साल दर्ज की गई 50,000 एकड़ से लगभग दोगुनी है.

पंजाब में मनसा जिला 25,000 एकड़ के रिकॉर्ड क्षेत्र के साथ मूंग की बुवाई में सबसे आगे है. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, मोगा 12,750 एकड़ के साथ दूसरे स्थान पर है, इसके बाद लुधियाना (10,750 एकड़), बठिंडा (9,500 एकड़) और श्री मुक्तसर साहिब (8,750 एकड़) हैं.

इस महीने पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की तरफ से की गई इस घोषणा, कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सारी मूंग की खरीद करेगी, ने किसानों की उम्मीदें जगा दी हैं.

हालांकि, यह संदेश दिए जाने के समय को लेकर आलोचना की जा रही है. किसानों का कहना है कि अगर घोषणा पहले हो जाती तो और ज्यादा फसल उगा लेते. साथ ही उनका यह भी कहना है कि जिन किसानों ने घोषणा के बाद मूंग बुआई का कदम उठाया है, उन्होंने यह काफी जोखिम पर किया है क्योंकि इस फसल को उगाने में कई अलग तरह की चुनौतियां होती है.

सरकार ने आश्वस्त किया लेकिन थोड़ी देर से

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 6 मई को घोषित किया कि राज्य सरकार इस साल सारी मूंग की खरीद केंद्र की तरफ से निर्धारित 7,275 रुपये के एमएसपी पर करेगी. यह ऐसा कदम जो पिछले कई सालों में कभी नहीं उठाया गया, और किसानों को मूंग की ब्रिकी के लिए लगभग पूरी तरह से निजी प्लेयर्स पर निर्भर रहना पड़ता था.

उस समय पत्रकारों से बातचीत के दौरान मान ने कहा कि मूंग खरीद का निर्णय इससे भूजल संरक्षण और फसल विविधीकरण के जरिये मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के मद्देनजर लिया गया है.

मान की तरफ से यह घोषणा यह आगाह किए जाने के साथ की गई है कि किसानों को मूंग की फसल के बाद इसमें इस्तेमाल होने वाले खेतों में पीआर-126 या बासमती किस्मों का धान बोना होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये किस्में अधिक तेजी से पकती हैं और कम पानी की खपत करती हैं. यह गंभीर भूजल संकट का सामना कर रहे पंजाब के लिए एक बहुत बड़ा फैक्टर है.

सरकारी अधिकारियों और कृषि शोधकर्ताओं के मुताबिक, पंजाब एक हानिकारक धान-गेहूं कृषि चक्र में फंसा है जो मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित कर रहा है और पानी का भंडार भी घटा रहा है.

इसके अलावा, सरकारी अनुमानों के मुताबिक, राज्य कुल दालों का बमुश्किल 15 प्रतिशत उत्पादन करता है और बाकी अन्य राज्यों से खरीदता है. ऐसे में मूंग की खेती को बढ़ावा देना राज्य के लिए खासा महत्वपूर्ण हो जाता है.

हालांकि, कुछ किसानों ने बताया है कि मूंग की खेती जोखिम भरा व्यवसाय है और खरीद की घोषणा बारिश के मौसम के मद्देनजर थोड़ा और पहले की जानी चाहिए थी.

पंजाब में मोगा जिले के एक किसान लखवीर सिंह ने कहा, ‘सरकार की घोषणा बहुत पहले आ जानी चाहिए थी. जिन किसानों ने अप्रैल के शुरू में गेहूं की फसल की कटाई के बाद मूंग की खेती की, उनके लिए जोखिम कम है. लेकिन जिन किसानों ने सरकार की घोषणा के बाद मूंग की बुवाई का फैसला किया है, उन्हें बहुत ज्यादा जोखिम का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, मुझे नहीं लगता कि उनकी संख्या बहुत ज्यादा है.’

‘समय एक महत्वपूर्ण फैक्टर है’

मूंग की अच्छी पैदावार हासिल करना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

लुधियाना के मेहलो गांव के 40 वर्षीय किसान हरविंदर सिंह ने इस बात पर नाराजगी जताई कि कैसे पिछले कुछ दशकों में मौसम के मिजाज में भारी बदलाव आया है, जिसने पंजाब में सामान्य गेहूं की कटाई के समय को अप्रैल अंत तक खिसका दिया है. इससे गेहूं और धान की फसल के बीच किसी तीसरी फसल के लिए अक्सर पर्याप्त समय नहीं बचता है.

पंजाब के कई जिलों के किसानों ने दिप्रिंट को बताया कि कैसे वे आमतौर पर गर्मियों में मक्का और बाजरा की खेती करते हैं, लेकिन अक्सर ही उन्हें यह फसल समय से पहले काटनी पड़ जाती है और इसे जानवरों के चारे के तौर पर बेचना पड़ता है.

हरविंदर सिंह ने कहा, ‘मध्य अप्रैल से मध्य जून की अवधि आमतौर पर अधिकांश फसलों के लिए ऑफ सीजन होती है.

कुछ किसान गर्मियों में थोड़ी-बहुत मूंग की खेती करते हैं, लेकिन पैदावार को लेकर कोई ज्यादा उम्मीद पाले बिना, क्योंकि खेती पकते के अंतिम चरण साथ ही अक्सर बारिश शुरू हो जाती है. उन्होंने कहा कि ऐसे में मूंग की अधिकांश फसल हरी खाद में बदल जाती है, जो और कुछ तो नहीं लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता जरूर बढ़ा देती है.

मूंग की फसल मिट्टी में नाइट्रोजन को स्थिर कर देती है. यदि उपज कम भी होती है, तब भी मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण से इसका लाभ अगली फसल को मिलता है- जो कि पंजाब के अधिकांश किसानों के लिए धान है.

अमरिंदर सिंह और हरविंदर सिंह दोनों याद करते हैं कि पिछली बार मूंग की खेती और उपज की एक मंडी (कृषि उपज बाजार) में बिक्री 2014 में हुई थी. उस समय भी गेहूं की फसल की कटाई थोड़ा जल्दी हुई थी.

अमरिंदर सिंह ने कहा, ‘मूंग की अच्छी उपज होना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. यदि यह बच गई तो हमेशा अच्छी कमाई कराती है. समय यहां पर बेहद महत्वपूर्ण फैक्टर है.’


यह भी पढ़ें : पंजाब के परिवार ने धान-गेहूं की खेती छोड़ी, 1.5 एकड़ के ‘एसी फार्म’ में मशरूम उगाकर 50 लाख का मुनाफा कमाया


मूंग का अर्थशास्त्र

अपनी खुद की जमीन वाले किसानों के लिए एक एकड़ से अधिक मूंग की खेती की लागत 8,000-9,000 रुपये आती है. इन खर्चों में बीज, खाद, कीटनाशक और श्रम शामिल हैं. एक एकड़ में आमतौर पर पांच क्विंटल मूंग की पैदावार होती है.
मूंग उन 23 प्रमुख फसलों में से एक है जिसके लिए केंद्र सरकार कीमतों में किसी भी तेज गिरावट के नुकसान से किसानों को बचाने के लिए एमएसपी की घोषणा करती है.

हालांकि, यह एक नीतिगत उपाय है, और इसका यह मतलब कतई नहीं है कि उन सभी फसलों की पूरी उपज खरीदना सरकार का कोई कानूनी दायित्व है, जिसके लिए एमएसपी की घोषणा की गई है. मांग-आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए निर्धारित बाजार मूल्य के बजाये एमएसपी पर फसल खरीदना निजी खिलाड़ियों के लिए भी कोई कानूनी बाध्यता नहीं है.

मूंग एक ऐसी फसल है जिस पर सरकारी खरीद न्यूनतम है और किसानों का कहना है कि अपना उत्पादन बेचने के लिए वे ज्यादातर निजी खिलाड़ियों पर निर्भर हैं.

केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, यद्यपि मूंग पर एमएसपी 2018-19 में 6,975 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2021-22 में 7,275 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है, लेकिन पंजाब के कई किसानों ने दिप्रिंट को बताया कि अच्छी उपज के समय में भी वे मंडी में प्रति क्विंटल केवल 5,000 रुपये ही हासिल कर पाते हैं.

आय की बात करें तो 8,000-9,000 रुपये की लागत के मुकाबले एक एकड़ (पांच क्विंटल की उपज मानते हुए) पर करीब 25,000 रुपये की आय होती है.

इस साल, राज्य सरकार के एमएसपी पर पूरी खरीद के आश्वासन ने किसानों को अच्छी आय की उम्मीद जगा दी है—बशर्ते वे बारिश के मौसम से पहले मूंग को मंडी ले जाने में सफल हो पाएं. एमएसपी पर, प्रति एकड़ पांच क्विंटल उपज के बदले लगभग 36,375 रुपये की आय होगी.

इसमें शामिल जोखिमों को देखते हुए सरकार की घोषणा पर प्रतिक्रिया बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं रही है.

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े किसान संगठन किसान क्लब के सलाहकार मनप्रीत सिंह ग्रेवाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘पंजाब के लिए फसल विविधीकरण बेहद जरूरी है. अगर राज्य सरकार ने एक या दो महीने पहले घोषणा की होती, तो इस साल अधिक किसान मूंग की खेती के लिए आगे आते.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : ‘सिर्फ मजे के लिए था’- शेयर बाजार में गिरावट के लिए ‘काला जादू’ का इस्तेमाल करने से गुजरात के ब्रोकर का इंकार


 

share & View comments