नयी दिल्ली, 13 फरवरी (भाषा) काराकोरम क्षेत्र के ग्लेशियर स्थिर हैं, जबकि गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी का पोषण करने वाले ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने यह जानकारी दी है।
लोकसभा में लिखित प्रश्न के जवाब में मंत्रालय ने कहा कि हिंदूकुश हिमालयी ग्लेशियरों की औसत पीछे हटने की दर 14.9 से 15.1 मीटर प्रति वर्ष थी। पीछे हटने की यह दर सिंधु नदी के लिए 12.7 से 13.2 मीटर प्रति वर्ष, गंगा नदी के लिए 15.5 से 14.4 मीटर प्रति वर्ष और ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के लिए प्रति वर्ष 20.2 से 19.7 मीटर रही।
मंत्रालय से जुड़े विभिन्न संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययनों का हवाला देते हुए मंत्रालय ने कहा, ‘‘काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर तुलनात्मक रूप से मामूली लंबाई परिवर्तन दिखा रहे हैं, जो स्थिर स्थिति का सूचक है।’’
मंत्रालय अपने स्वायत्त संस्थान नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (एनसीपीओआर) के माध्यम से वर्ष 2013 से पश्चिमी हिमालय में चंद्रा बेसिन (2,437 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र) में छह ग्लेशियर की निगरानी कर रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) उत्तराखंड में कुछ ग्लेशियरों की निगरानी कर रहा था, जिससे पता चलता है कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी ग्लेशियर वर्ष 1995 से 15 से 20 मीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे हट रहा था, जबकि मंदाकिनी बेसिन में चोरबारी ग्लेशियर 2003-2017 के दौरान 9 से 11 मीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे हट रहा था। यह भी कहा गया कि ग्लेशियर का हिमालयी नदियों के जल संसाधनों पर काफी प्रभाव पड़ता है। मंत्रालय ने कहा कि ग्लेशियर के पिघलने से झीलों की संख्या और इनके आाकार में बढ़ोतरी होती है, जिससे खतरा बढ़ जाता है। ग्लेशियर झील के फटने से लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा इसका उच्च हिमालयी क्षेत्र की कृषि परंपराओं पर भी असर पड़ता है।
भाषा संतोष दिलीप
दिलीप
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