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Saturday, 21 December, 2024
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गैंग्स ऑफ बेंगलुरु : ‘साइलेंट’ सुनील, अजित ‘मलयाली’ और देश की आईटी राजधानी के सुनसान-अंधेरे कोने

अकेले 2021 में बेंगलुरु में ‘राउडी-शीटर्स’ से जुड़ी 10 हत्याएं हो चुकी हैं. यह आंकड़ा चिंताजनक लग सकता है, लेकिन बेंगलुरु पुलिस का कहना है कि ट्रेंड पिछले वर्षों से कुछ खास अलग नहीं है.

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बेंगलुरु: 11 अक्टूबर को बेंगलुरु पुलिस ने हत्या के एक मामले में 2,189 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की.

जितना इस चार्जशीट का भारी-भरकम होना एक सामान्य बात नहीं है, उतना ही यह मामला भी असामान्य है—यह घटना बेंगलुरु के एक कुख्यात ‘राउडी-शीटर’ जोसेफ बबली की दिनदहाड़े बेहद निर्ममता से हुई हत्या से जुड़ी है. बबली की इस साल 19 जुलाई को खुले आम एक बैंक के अंदर हत्या कर दी गई थी, और उसकी पत्नी और पांच साल का बच्चा इस भयावह नजारे को देखते रह गए थे. हत्या के 75 दिनों के भीतर, बेंगलुरु पुलिस ने 12 आरोपियों और 113 गवाहों को नामजद करते हुए चार्जशीट दायर की.

पुलिस का दावा है कि बबली बेंगलुरु के अधिकांश गुंडों की तरह खुद को एक ‘सुधरा’ हुआ व्यक्ति मानता था, लेकिन पुरानी दुश्मनी उसके लिए जानलेवा साबित हुई. बेंगलुरु शहर के पुलिस आयुक्त कमल पंत ने दिप्रिंट से कहा, ‘कोई गुंडा कभी रिटायर नहीं होता.’

बबली की हत्या के कुछ ही हफ्तों बाद एक और राउडी-शीटर अरविंद उर्फ ली को उसके दुश्मन गैंग के लोगों ने एक फुटबॉल स्टेडियम के अंदर मार डाला, वह भी एकदम खुलेआम. 12 सितंबर की यह हत्या कथित तौर पर अकेले इस साल बेंगलुरु में गुंडागर्दी की घटनाओं से जुड़ी 10वीं घटना है, जिसमें 24 जून को बीबीएमपी की पूर्व पार्षद रेखा कादिरेश की हत्या भी शामिल है.

यह आंकड़ा चिंताजनक लग सकता है, लेकिन बेंगलुरु पुलिस का कहना है कि यह ट्रेंड पिछले कुछ वर्षों से बहुत अलग नहीं है.


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बेंगलुरु के आज के गुंडे

बेंगलुरु में आज के ‘राउडीज’ के मामले में स्थितियां 1980 और 1990 के दशक के कुख्यात अंडरवर्ल्ड और 2000 के दशक के बड़े गैंग और इन गैंग द्वारा किए जाने वाले अपराधों से बहुत अलग हैं. अब ये छोटे-छोटे और स्थानीय गैंग के तौर पर काम करते हैं.

1960 और 1980 के दशक के बीच गुंड़ों की कमाई वेश्यावृत्ति, अवैध और नकली शराब, मारिजुआना और फर्नेस ऑयल आदि के जरिये होती थी. फिर, 1980 से 2000 के दशक में तरीका बदल गया और इनके स्रोत बने रियल एस्टेट सौदे, जबरन वसूली, डांस बार, जुआ और ‘माफिया’—जो पर्यटन, ऑटोरिक्शा, अर्क/नकली शराब आदि का श्रृंखलाबद्ध तरीके से इस्तेमाल करते हुए आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता है.

अब, वे फिर बदल गए हैं और उस समय संपत्ति विवादों, मुकदमेबाजी और पैसा उधार देने के नाम पर कमीशन उगाहते हैं, जब उन्हें किसी अपराध को अंजाम देने के लिए कोई सुपारी नहीं मिलती या फिर वैध तरीके के अपने कारोबारों के जरिये धन नहीं जुटा पा रहे होते हैं.

पुलिस सूत्रों का कहना है कि बेंगलुरू में आज जो गुंडे मौजूद हैं, वे अपने लिए जबरन उगाही करने के लिए आवारा किस्म के लोगों का समूह बनाते हैं ‘प्रति सौदे’ के हिसाब से पैसे लेते हैं. किसी गिरोह के प्रति वफादारी जैसी कोई अवधारणा नहीं होती है.

अबू धाबी में भारतीय दूतावास के पूर्व मीडिया अधिकारी डेनियल जॉर्ज—जिन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन मुथप्पा राय को यूएई से वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी—कहते हैं, ‘डॉन बनने के लिए डॉन को मारना ही पड़ता है. इस तरह के आंकड़े अब मौजूद नहीं हैं.’

बेंगलुरु के संयुक्त आयुक्त (अपराध) संदीप पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक मोटे अनुमान के मुताबिक बेंगलुरु में राउडी-शीटर्स की संख्या करीब 3,000 है.’ उनके मुताबिक शहर में गुंडों के सक्रिय गैंग की संख्या 25 के आसपास हैं.

हर पुलिस स्टेशन पर समय-समय पर होने वाली ‘राउडी रोल काल’—जिसके तहत अपराध शाखा के अधिकारी राउडी-शीटर्स की परेड कराते हैं—के दौरान उभरकर आने वाले कुछ प्रमुख ‘साइलेंट’ सुनील, ‘ऊंट’ रोहित, अजित ‘मलयाली’, इश्तियाक अहमद ‘पहलवान’ आदि हैं. 2019 में ऐसी ही एक ‘राउडी परेड’ के दौरान तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) आलोक कुमार और साइलेंट सुनील के आमने-सामने होने का वीडियो वायरल हुआ था.

बेंगलुरु में क्राइम-ट्रैकिंग से जुड़े वरिष्ठ लोगों को कहना है कि ये गुंडे अंग्रेजी बोलने वाले, अच्छा जीवनस्तर जीने और ‘पब्लिसिटी के भूखे’ हैं.

उदाहरण के तौर पर शिवाजीनगर की पूर्व पार्षद फरीदा अहमद का पति इश्तियाक ‘पहलवान’ अपने सोशल मीडिया पेज पर दिखाने के लिए अपनी हर गतिविधि को कैद करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करता है. वह करोड़ों रुपये के आईएमए घोटाले में आरोपी है, जिसकी जांच इस समय सीबीआई कर रही है.

‘साइलेंट’ सुनील—जो अपने कृत्यों को पूरी गोपनीयता के साथ अंजाम देने के लिए कुख्यात है—ने 2017 में अपने खुद के जीवन पर एक फिल्म का एक ट्रेलर भी जारी किया था, जिसमें मुख्य भूमिका में उसे ही दिखाया गया था.

शहर की अपराध शाखा में अपनी सेवाएं देने वाले एक अधिकारी ने कहा, ‘क्राइम ब्रांच ने ‘साइलेंट’ सुनील के सफाये की पूरी तैयारी कर ली थी. उसके खिलाफ हत्या, शस्त्र अधिनियम, हमला करने जैसे कई मामले थे, और यहां तक वह जेल की सजा भी काट चुका है. उसके परिवार की तरफ से उसे बेंगलुरु से दूर रखने का वादा किए जाने के बाद ही इस ऑपरेशन को रोका गया था. लेकिन जिस दिन अपराध शाखा के वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला किया गया, उसी दिन वह अपनी फिल्म की एक बड़ी घोषणा के साथ शहर लौट आया.’

साइलेंट सुनील नाम की फिल्म को तो बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. लेकिन हाल ही में आई कन्नड़ फिल्म सालगा की मुख्य भूमिका उसी पर केंद्रित है. सुनील कबूतर पालने के लिए भी ख्यात है.

रोहित का उपनाम ऊंट उसकी लंबाई के कारण मिला है—सारी परेड में एक वही सबसे ज्यादा लंबा व्यक्ति होता है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अजित केरल का रहने वाला है और इसलिए उसका उपनाम ‘मलयाली’ है.

अन्य गुंडे भी इसी तरह अपने नाम के साथ कुछ न कुछ उपनाम जोड़ लेते हैं, इसके लिए आम तौर पर वे अपने इलाके, वहां की किसी खासियत या फिर अपने किसी कारोबार आदि का इस्तेमाल करते हैं.

ये करते क्या हैं?

तमाम कुख्यात राउडी-शीटर्स विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं—कोई महत्वाकांक्षी फिल्म कलाकार या राजनेता है, कोई कारोबारी है और यही नहीं कई बीबीएमपी (ब्रुहाट बेंगलुरु महानगर पालिके) में ठेकेदार के तौर पर दबदबा बना चुके हैं.

पूर्व एसीपी और 1990 के दशक में बेंगलुरु की चर्चित एंटी-राउडी स्क्वाएड के एक सम्मानित सदस्य बी.के. शिवराम का कहना है, ‘नकली शराब, गांजा बेचने और अन्य तरह के अवैध कारोबार चलाने वाले ज्यादातर राउडी आज या तो मंत्री, विधायक, पार्षद, ठेकेदार या व्यवसायी हैं.’

शिवराम ने बताया, ‘1980 के दशक में बेंगलुरु में अवैध शराब, वेश्यावृत्ति, क्लब, जुआ, तेल, ‘हफ्ता’ आदि का एक बड़ा काला बाजार था. अवैध कारोबार चलाने वाले सुरक्षा चाहते थे और इस तरह तमाम गैंग अस्तित्व में आए.’

उन्होंने आगे कहा, अंतर यही था कि उपद्रवी सिर्फ दबंगई के बल पर अपना व्यवसाय नहीं चला सकते थे, और उन्हें कानूनी ढांचे की जरूरत पड़ी.

कमिश्नर पंत ने कहा, ‘1990 के दशक में राउडी शीटर्स का ऑटो पर एकाधिकार था—इन्हें चलवाना, किराये पर देना और प्रतिबंधित सामानों की आवाजाही आदि. लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता गया और पुलिस ने आपराधिक गतिविधियों पर नकेल कसी, इनका एकाधिकार खत्म हो गया.’

एसीपी-रैंक के एक सेवारत अधिकारी ने दिप्रिंट को इनके व्यवसाय के कानूनी ढांचे के बारे में भी बताया.

अधिकारी ने कहा, ‘साइलेंट सुनील ने बीबीएमपी से कचरा प्रबंधन का टेंडर ले लिया. ऊंट ने भी बीबीएमपी के साथ एक कांट्रैक्ट कर लिया. यह इनका वैध कारोबार है. उन्हें बीबीएमपी से टेंडर लेने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि ऐसा कोई नियम नहीं जो राउडी-शीटर्स को कोई काम लेने से रोकता हो. गुंडे अक्सर किसी पार्टनर से हाथ मिला लेते हैं और निजी वित्तीय संस्थान चलाने और पैसा उधार देने और क्लबों आदि में निवेश का काम करने लगते हैं.’

बड़ी मछली, छोटी मछली

कई पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मुंबई, जहां अधिकारी असामाजिक तत्व अचल संपत्ति पर पनपते हैं, के उलट बेंगलुरु में गुंडों को ऐसा कोई मौका नहीं मिलता है.

एक वरिष्ठ पुलिस सूत्र ने बताया, ‘बेंगलुरु में भूमि और अचल संपत्ति का स्वामित्व सफेदपोश अपराधियों के पास है. स्थानीय गुंडे छोटी मछलियां हैं जो इन बड़ी मछलियों—सफेदपोश भू-माफिया—का गैरकानूनी कामों को अंजाम देते हैं.’

एक अन्य सूत्र ने कहा कि उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा छोटे-मोटे मुकदमों से आता है. इस सूत्र ने कहा, ‘वे पिछली तारीखों से कागजात बनवाने में माहिर हैं. संपत्ति संबंधी पारिवारिक विवादों को अदालत के बाहर सुलझाने के काम भी करते हैं जिसके लिए धमकियां देने और डराने-धमकाने जैसी तिकड़मों का सहारा लिया जाता है और इस सबमें पुलिस, वकीलों और यहां तक कि मीडिया की भी पूरी मिलीभगत रहती है.’

पुलिस विभाग के अधिकारियों ने कहा कि गुंडों की दिनदहाड़े हत्या की हालिया घटनाएं व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण हुई हैं, न कि किसी गैंगवार के कारण. भले ही शहर पुलिस यह कह रही हो कि आंकड़े राउडी गिरोहों और उनकी गतिविधियों में कोई असामान्य ट्रेंड नहीं दिखाते हैं, लेकिन कई मौजूदा और सेवानिवृत्त अधिकारियों ने इस पर चिंता जाहिर की है.

पूर्व में अपराध शाखा में रह चुके एक सेवारत अधिकारी ने कहा, ‘जब कोई राउडी मारा जाता है तो यह घटना अन्य हत्याओं की तरह नहीं होती है. यह हत्या किसी अन्य राउडी गैंग द्वारा दी जाती है. इसके लिए पूरी साजिश रची जाती है, उसकी गतिविधियों और दिनचर्या की पूरी रेकी की जाती है, हमलावरों को जुटाया जाता है, हथियारों की व्यवस्था की जाती है और फिर बिना किसी डर के अपराध को अंजाम देने की प्रतीक्षा की जाती है.’

अधिकारी ने कहा, ‘यह सब तब भी होता है जब पुलिस निशाना बनने वाले राउडी के साथ-साथ ऐसे अपराधों को अंजाम देने वालों पर भी कड़ी नजर रख रही होती है. ऐसे में जब किसी राउडी की हत्या हो जाती है तो यह खुफिया नाकामी का दर्शाने वाली एक घटना भी होती है.’

बेंगलुरु में सेवारत आईजी-रैंक के एक अधिकारी ने कहा, ‘अपराध भी अलग-अलग श्रेणियों में बंटा होता है. स्थानीय गुंडे छोटे-मोटे अपराध, हमले, जबरन वसूली, भूमि पर छोटे-छोटे कब्जे करते हैं और कारोबार शुरू करने के लिए बेनामी संपत्ति का इस्तेमाल करते हैं जबकि विदेशी अपराधी नशीले पदार्थों के धंधे में लिप्त होते हैं. स्थानीय गुंडों ने अब तक नशीले पदार्थों के धंधे में हाथ नहीं आजमाया है.’

अपराध का इतिहास

पूर्व पुलिस अधिकारी शिवराम ने बताया कि 1980 और 2000 के दशक के बीच बेंगलुरु ने कोतवाल रामचंद्र, एमपी जयराज, मुथप्पा राय जैसे कुछ बहुत ही नामी अंडरवर्ल्ड डॉन देखे हैं. लेकिन अब, स्थानीय स्तर पर संगठित अपराध छोटे गैंग में बदल गया है.

उन्होंने बताया, ‘उत्तरी और दक्षिणी बेंगलुरु के इलाकों पर कोतवाल का राज चलता था, जबकि जयराज मध्य बेंगलुरु में सक्रिय था. उनका ‘काला धंधा’ खूब फल-फूल रहा था. 1980 और 1990 के दशक में इनके बीच गैंगवार, वर्चस्व की लड़ाई रोज की बात थी.’

शिवराम ने बताया कि कैसे मुथप्पा राय ने जयराज की हत्या के साथ बेंगलुरु में अपराध की दुनिया में बंदूक संस्कृति की शुरुआत की और कोली फैयाज और तनवीर मुस्लिम अंडरवर्ल्ड के प्रमुख नाम बने थे जिन्होंने शिवाजीनगर, टेनरी रोड, तिलक नगर और शहर के अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों में अपना नियंत्रण बनाया.

शिवराम ने आगे कहा कि मारीमुथु, रानी और पुष्पा जैसी महिला राउडी भी प्रतिबंधित सामानों के कारोबार और वेश्यावृत्ति में बड़ा नाम बन गई थीं.

2000 के दशक तक मुथप्पा राय और अग्नि श्रीधर ने अपराध की दुनिया छोड़ने का दावा किया और खुद को ‘सुधरा’ हुआ बताया. लेकिन उनके गिरोह के कई सदस्यों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में अपने खुद के गैंग बना लिए. मारीमुथु जैसे कुछ अन्य अपराधी कॉरपोरेटर बन गए.

जेसीपी (अपराध) पाटिल ने कहा, ‘इसके बाद विदेश में रहकर काम कर रहे रवि पुजारी जैसे नामों का इस्तेमाल कर जबरन वसूली के प्रयास किए गए, लेकिन उसकी गिरफ्तारी के साथ ही यह सब खत्म हो गया.’

कमिश्नर पंत ने कहा, ‘आईटी बूम की वजह से बेंगलुरु के तेजी से हुए विकास ने सूरत बदलकर रख दी. इसने किसी अपराधी के लिए पूरे शहर की तो बात ही छोड़ दीजिए, शहर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से को नियंत्रित करना असंभव बना दिया. आज यहां जो भी सक्रिय हैं, वो स्थानीय गैंग हैं जो अपने सीमित इलाके में काम करते रहते हैं, कुछ छोटे-छोटे ठग हैं जो जबरन वसूली, अवैध भूमि अतिक्रमण और जमीन कब्जाने, बार या पब या जुएं का अड्डे आदि चलाने में लिप्त हैं.’


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छोटे गिरोह अब भी एक बड़ी चिंता

पुलिस अधिकारियों के बार-बार तबादले से गुंडागर्दी की समस्या पर पूरी तरह काबू पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा है.

2012 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने कर्नाटक पुलिस अधिनियम में संशोधन के लिए एक अध्यादेश पारित किया था. संशोधन के तहत पुलिस स्टेशन, सर्किल और सब-डिवीजन के प्रभारी सभी पुलिस अधिकारियों के लिए न्यूनतम एक वर्ष का कार्यकाल अनिवार्य है. सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2013 में इस अध्यादेश की जगह एक विधेयक पारित किया था.

पुलिस अधिकारियों का आरोप है कि इस अधिनियम, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कम से कम एक वर्ष से पहले अधिकारियों का तबादला न हो जाए, का दुरुपयोग एक वर्ष के तुरंत बाद अधिकारियों को ट्रांसफर करने के लिए किया जा रहा है.

शिवराम ने आरोप लगाया, ‘सुप्रीम कोर्ट ने यह अवधि कम से कम दो साल करने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने इसे घटाकर एक साल कर दिया. चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में क्यों न हो, राजनेता पुलिस थाने की पोस्टिंग का कार्यकाल आपस में बांट लेते हैं. कुछ पुलिस थानों में पोस्टिंग कराने के लिए रिश्वत के रूप में 50 लाख रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक की मोटी रकम ली जाती है. आप कल्पना कर सकते हैं कि हर साल इन लगातार तबादलों से कितना पैसा कमाया जा रहा है.’

ऊपर उद्धृत एसीपी-रैंक के अधिकारी ने कहा कि लगातार तबादले अराजकता बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘गुंडों पर काबू पाने के लिए पुलिस वालों को लेकर डर की भावना बहुत अहम होती है. तबादलों से न केवल किसी मामले में जारी जांच में बाधा आती है, बल्कि उसे लेकर भय भी खत्म हो जाता है.’

आईजी-रैंक के अधिकारी ने कहा, ‘एक अधिकारी के पास पूरी जानकारी होती है. अपने अधिकार क्षेत्र की चुनौतियों को समझने, अपने स्टेशन की सीमा में असामाजिक तत्वों का अध्ययन करने, खबरी तैयार करने और व्यक्तिगत तौर पर जमीनी स्तर की खुफिया जानकारी हासिल करने में समय लगता है. जब एक वर्ष के भीतर ही अधिकारी का तबादला हो जाता है, तो उसके बाद आने वाले अधिकारी को फिर एक नए सिरे से काम करना पड़ता है और जब तक वह सब चीजों को अपने नियंत्रण में ला पाता है, तब तक उसके तबादले का समय आ जाता है. गुंडे अब डरते नहीं हैं क्योंकि वह जानते हैं कि एक साल के भीतर ही स्थानीय निरीक्षक का तबादला कर दिया जाएगा.’

पुलिस क्या कर रही है

बेंगलुरु में डिप्टी कमिश्नर और उससे ऊपर के रैंक वाले पुलिस अधिकारियों के पास कार्यकारी मजिस्ट्रेट शक्तियां होती हैं और कमिश्नर पंत ने कहा, बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल केवल असामाजिक तत्वों को नियंत्रित करने के लिए ही किया गया है.

जेसीपी पाटिल ने आगे कहा, ‘परंपरागत पुलिसिंग चौकसी के लिए पहली जरूरत है. हमने पिछले एक साल में गुंडा एक्ट के तहत गुंडों के खिलाफ 30 से अधिक मामले दर्ज किए हैं. पिछले अक्टूबर से शस्त्र अधिनियम के तहत 120 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं.’

यद्यपि बेंगलुरु में गुंडे हमलों के लिए अधिकतर कुल्हाड़ियों और तलवारों का ही इस्तेमाल करते हैं. लेकिन उनके पास देशी पिस्तौलें भी पाई गई हैं. पाटिल ने बताया, ‘वे इन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश से मंगाते हैं.’

पाटिल ने जोर देकर कहा कि उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए उनकी राउडी-शीट खोली जा रही हैं.

हालांकि, पूर्व आयुक्त एम.एन. रेड्डी जैसे सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने निगरानी और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया.

उन्होंने कहा, ‘किसी चेन-स्नैचर, जेबकतरे जैसे छोटे-मोटे अपराधियों को पकड़ने के बाद पुलिस ‘जाने-दो’ वाली मानसिकता के साथ अमूमन उन्हें यूं ही छोड़ देती है. लेकिन यही वे लोग हैं जो हौसला बढ़ने पर गिरोहों में शामिल हो जाते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘अपराध दर कम दिखाने की होड़ में पुलिस छोटे-छोटे मामले दर्ज नहीं करने का रास्ता अपनाती है और गिरोह के संभावित सदस्य हमारे रडार से बाहर हो जाते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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