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Thursday, 21 November, 2024
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‘अपमानजनक गानों’ से लेकर लाठीचार्ज और हत्या तक — यूपी के बहराइच में कैसे भड़की सांप्रदायिक हिंसा

जुलूस के दौरान ‘अपमानजनक गानों’ को लेकर हुए विवाद में राम गोपाल मिश्रा की हत्या कर दी गई, जिसके बाद बहराइच में हिंसा भड़क उठी जो 24 घंटे से ज़्यादा समय तक जारी रही.

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बहराइच: उस दिन शाम 4 बजे के आसपास उन गांवों में तनावपूर्ण फोन कॉल्स का शोर था, जहां ब्राह्मणों की संख्या काफी है. ये फोन जुलूस में शामिल लोगों की ओर से थे, जिसका समापन हिंदू देवी दुर्गा की लगभग 15 मूर्तियों के विसर्जन के साथ होने वाला था. उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के महसी ब्लॉक में लगभग तीन दशकों से यह एक वार्षिक आयोजन है.

तनाव में फोन करने वालों ने दावा किया कि जुलूस बीच में ही रुक गया, क्योंकि एक “समृद्ध” स्थानीय मुस्लिम व्यक्ति के बेटे के साथ टकराव हो गया था, जिसने जुलूस के अपने पड़ोस से गुज़रने के दौरान लाउडस्पीकर पर बज रहे “आपत्तिजनक” गीतों पर आपत्ति जताई थी.

बहस के तौर पर शुरू हुआ यह मामला कुछ ही समय में बढ़ गया और इसका नतीजा राम गोपाल मिश्रा की हत्या के रूप में सामने आया, जिसके बाद महसी ब्लॉक के गांवों में 24 घंटे तक हिंसा जारी रही.

हिंसा और आगज़नी को रोकने के लिए दो वरिष्ठ पुलिस प्रशासकों, एडीजी (सचिव, गृह) संजीव गुप्ता और एडीजी (कानून और व्यवस्था) अमिताभ यश को तुरंत मौके पर भेजा गया.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने माना कि अगर “तीन-तरफा विफलता” न होती तो सांप्रदायिक हिंसा नहीं भड़कती. पहला, मिश्रा को मुस्लिम व्यक्ति के घर की छत पर चढ़ने देना, दूसरा, अगले दिन घात लगाकर हमला करना और तीसरा, भीड़ को मिश्रा का शव ले जाने देना.

इस पृष्ठभूमि में, दिप्रिंट 13 अक्टूबर की घटनाओं के अनुक्रम को जोड़ते हुए जिसके कारण महराजगंज और अन्य गांवों में सांप्रदायिक हिंसा हुई और उन कारकों पर गौर किया है जिन्होंने ऐसे तूफान के लिए मंच तैयार किया जो बहराइच ने दशकों से नहीं देखा था.


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‘लाठीचार्ज के बाद बिगड़ा माहौल’

हर साल इसी समय के आसपास, महसी ब्लॉक के ग्रामीण, जिनमें रेहुया मंसूर गांव के लोग भी शामिल हैं, जहां राम गोपाल मिश्रा रहते हैं, हिंदू देवी दुर्गा की मूर्तियों को सरयू नदी में विसर्जित करने के लिए यात्रा निकालते हैं.

गोरिया घाट तक उनके मार्ग में मुख्य आरोपी अब्दुल हमीद के घर से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित एक तिराहा शामिल है, जहां 13 अक्टूबर को जुलूस रुका था. मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि हमीद के एक बेटे सरफराज ने घर से बाहर निकलकर म्यूजिक सिस्टम बंद कर दिया और “आपत्तिजनक” गाने बजाए जाने पर आपत्ति जताई.

अधिकारियों ने कहा कि इसके बाद दोनों पक्षों में बहस हुई जो बाद में बढ़ गई.

अब्दुल हमीद का घर | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
अब्दुल हमीद का घर | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

55-वर्षीय अखिलेश बाजपेयी ने बताया कि बेटे अमरेंद्र ने उन्हें बताया कि हमीद के घर के सामने हिंसा हो रही है. अखिलेश शाम करीब 4 बजे मौके पर पहुंचे और पाया कि वहां स्थिति तनावपूर्ण थी. अमरेंद्र ने कहा, “पत्थरबाजी हुई थी. लोग पत्थरबाजी, गाली-गलौज कर रहे थे और गाने बजाने के लिए इस्तेमाल की गई पेन ड्राइव छीनने को लेकर शोर मचा रहे थे.”

अखिलेश ने याद किया, “हिंदू परेशान थे, उनका कहना था कि पत्थरबाजी की गई है और भगवा ध्वज का अपमान किया गया है. उस समय तक पुलिस हमीद और उसके बेटों को रोकने के बजाय हिंदुओं को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही थी.”

अखिलेश बाजपेयी अपने घर पर | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
अखिलेश बाजपेयी अपने घर पर | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

लेकिन कुछ लोग हमीद के घर के सामने पुलिस की टुकड़ी में घुसने में कामयाब हो गए और वहां खड़े दोपहिया और चार पहिया वाहनों में तोड़फोड़ की. अखिलेश ने बताया कि उन्होंने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन इससे पहले कि वे ऐसा कर पाते, स्थानीय थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) ने जुलूस पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया.

अखिलेश ने कहा, “उस लाठीचार्ज के बाद सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया; वहां पूरी तरह अराजकता फैल गई और कोई भी नियंत्रण में नहीं था. मैंने लोगों से कुछ न करने की अपील करने की कोशिश की, लेकिन वे हमीद और पुलिस को गाली देने लगे.”

उन्होंने बताया कि भीड़ ने हमीद के घर पर निशाना साधा और राम गोपाल मिश्रा पाइप की मदद से छत पर चढ़ गए. करीब 15-20 मिनट बाद बगल की बिल्डिंग से एक आवाज़ आई कि किसी की मौत हो गई है.

छत जहां राम गोपाल मिश्रा की हत्या हुई थी | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
छत जहां राम गोपाल मिश्रा की हत्या हुई थी | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

अखिलेश ने दावा किया कि “पुलिस मूकदर्शक बनी रही. मैंने सर्कल ऑफिसर (सीओ) से विनती की कि कम से कम शव को तो उठा लें.”

उन्होंने आगे कहा कि सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट ने आने पर एसएचओ और सीओ से शव को उठाने के लिए कहा.

जैसे ही राम गोपाल मिश्रा की मौत की खबर फैली, भीड़ ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया और जो भी उनके रास्ते में आया, उस पर हमला किया.

जब विनोद को पता चला कि उनका छोटा भाई, जो दिव्यांग है, वहां फंसा है, तो वे मौके पर पहुंचे, लेकिन वहां उन पर “कुल्हाड़ी से हमला किया गया”.

उन्होंने दावा किया कि उन्होंने जब हमीद से बेटे के व्यवहार के बारे में पूछा तो उन्हें कहा गया कि “आपत्तिजनक गाने” इसके लिए जिम्मेदार हैं.

विनोद (बीच में) अपने परिवार के सदस्यों के साथ | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट
विनोद (बीच में) अपने परिवार के सदस्यों के साथ | फोटो: मयंक कुमार/दिप्रिंट

13 अक्टूबर की शाम तक जब सड़कों पर हिंसा कम हो गई, तो ध्यान जिला अस्पताल पर चला गया, जहां मिश्रा के शव को ले जाया गया था.

भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि वे अस्पताल पहुंचे और देखा कि भीड़ मिश्रा के शव को शवगृह में ले जाने की कोशिश कर रहे अधिकारियों को रोक रही थी.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट की थी कि भाजपा की युवा शाखा के जिला अध्यक्ष भी कथित तौर पर भीड़ का हिस्सा थे और सिंह द्वारा पुलिस शिकायत में आरोपी लोगों में से एक हैं. विधायक ने आरोप लगाया है कि उनके और जिला अधिकारियों के काफिले पर हमला किया गया और अस्पताल के बाहर गोली भी चलाई गई.

14 अक्टूबर की सुबह तक, मूर्तियों के विसर्जन के बाद हिंसा फिर से सड़कों पर लौट आई, क्योंकि जुलूस को पिछले दिन रोक दिया गया था.

मिश्रा के शव को शवगृह से उनके गांव तक ले जाने की देखरेख के लिए छह एसएचओ और एक प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) कंपनी के साथ दूसरे पुलिस सर्कल से एक डीएसपी रैंक के अधिकारी को लगाया गया था, लेकिन, जानकारी मिली है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि लाठी, कुल्हाड़ी और ज्वलनशील पदार्थ से लैस लोग उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह एक खुफिया विफलता थी और स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) उन अधिकारियों के संज्ञान में सभा लाने में विफल रही, जो शव को वापस घर ले जा रहे थे.”

सीओ, एसएचओ ने नहीं संभाला कार्यभार : बहराइच एसपी

हिंसा के सिलसिले में दर्ज 15 एफआईआर में से कम से कम तीन चांदपारा गांव की मुस्लिम महिलाओं ने दर्ज कराई हैं, जिन्होंने आरोप लगाया है कि 13 अक्टूबर की रात को अज्ञात लोगों ने उन पर हमला किया और उनकी संपत्ति में तोड़फोड़ की. 14 अक्टूबर की सुबह भड़की हिंसा के सिलसिले में कुल नौ एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें से एक हरदी थाने में तैनात एसआई द्वारा दर्ज कराई गई. अपनी शिकायत में एसआई ने आरोप लगाया कि 14 अक्टूबर की दोपहर को 100-200 लोगों की भीड़ ने मुसलमानों के घरों पर हमला किया.

एक अन्य एसआई की शिकायत पर दर्ज इसी तरह के एक मामले में पुलिस ने दंगा और तोड़फोड़ के आरोप में करीब 200 अज्ञात आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

14 अक्टूबर को बहराइच में एक दुकान में आग लगा दी गई | फोटो: एएनआई
14 अक्टूबर को बहराइच में एक दुकान में आग लगा दी गई | फोटो: एएनआई

बहराइच की पुलिस अधीक्षक (एसपी) वृंदा शुक्ला ने दिप्रिंट को बताया कि दोषियों की पहचान के लिए वीडियो और सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट से बातचीत में माना कि 13 अक्टूबर को मौके पर मौजूद अधिकारी इस बढ़ते तनाव को रोकने के लिए पर्याप्त सक्रिय नहीं थे.

विभाग के सूत्रों ने कहा कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि जुलूस पर नज़र रखने के लिए तैनात सब-इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी की नज़र मुस्तैद नहीं थी. सीओ की ओर से “निर्णायक कदम” न उठाए जाने के कारण स्थिति और भी ज़्यादा बिगड़ गई, जो उस समय सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे जब राम गोपाल मिश्रा हमीद की छत पर चढ़े थे.

बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस मिश्रा के शव को छत से नहीं उठा पाई. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिला प्रशासन वाहन की व्यवस्था नहीं कर सका और शव को आखिरकार मोटरसाइकिल पर जिला अस्पताल ले जाया गया.

बुधवार को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) (ग्रामीण) पवित्र मोहन त्रिपाठी को लखनऊ में डीजीपी मुख्यालय से संबद्ध कर दिया गया और 16 अक्टूबर को, एसपी शुक्ला की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) रूपेंद्र कुमार गौर को सीओ (महसी) के पद से मुक्त कर दिया गया. दो अन्य अधिकारियों, एसएचओ (हरदी) एस.के. वर्मा और महसी पुलिस चौकी प्रभारी शिव कुमार सरोज को 13 अक्टूबर को हुई हिंसा के कुछ घंटों बाद निलंबित कर दिया गया.

एसपी शुक्ला ने दिप्रिंट को बताया, “मौके पर सीओ और एसएचओ के नेतृत्व की कमी ने मामले को और भी बदतर बना दिया. भीड़ को काबू में नहीं किया जा सकता था, लेकिन चूंकि सीओ और एसएचओ ने स्थिति को संभाला नहीं और अपने अधीनस्थों को निर्देश नहीं दिए, इसलिए पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.”

15 अक्टूबर को बहराइच में सांप्रदायिक हिंसा के बाद | फोटो: एएनआई
15 अक्टूबर को बहराइच में सांप्रदायिक हिंसा के बाद | फोटो: एएनआई

हालांकि, उन्होंने इस दावे का खंडन किया कि जुलूस के दौरान किसी भी अप्रिय घटना के लिए पुलिस तैयार नहीं थी. उन्होंने कहा कि पीएसी की एक कंपनी और दो प्लाटून पहले से ही वहां मौजूद थीं.

उन्होंने कहा, “महसी, महराजगंज में सभी अतिरिक्त बलों को तैनात नहीं किया था, लेकिन ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यहां पहले कभी इस तरह की कोई घटना नहीं हुई थी.”

उन्होंने आगे कहा कि “जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बलों को वितरित किया गया था, जहां जुलूस की योजना बनाई गई थी.”

14 अक्टूबर को हुई हिंसा के बारे में एसपी शुक्ला ने कहा, “ऐसे वीडियो हैं जो स्पष्ट रूप से दिखा रहे हैं कि, जबकि अधिकांश लोगों ने दायां मोड़ लिया जो महसी सर्कल कार्यालय की ओर जाता है जहां वे शव के साथ विरोध प्रदर्शन करना चाहते थे, कुछ अन्य लोगों ने शव के स्थान से दूर बायां मोड़ लिया और हिंसा की योजना बनाई.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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