नई दिल्ली: झारखंड की राजधानी रांची से बमुश्किल 15 किलोमीटर दूरी पर बसे रातू गांव की एक 12 वर्षीय आदिवासी लड़की को एक खेल के रूप में तीरंदाजी के बारे में भले ही बहुत कम जानकारी थी लेकिन इसके प्रशिक्षण के साथ मिलने वाले मुफ्त भोजन, जो उसकी पोषण क्षमता को बढ़ाने वाली थी, के लालच से परे रहना उसके लिए मुश्किल सा था.
इसलिए उसने सरायकेला में स्थित एक तीरंदाजी अकादमी में दाखिला लिया, जहां उसने अकादमी के प्रशासन से अनुरोध किया कि उससे कोई आशा छोड़ने से पहले उसे अपना प्रदर्शन दिखाने के लिए कम-से-कम तीन महीने का समय दें. एक साल बाद ही उसे जमशेदपुर में स्थित और प्रतिष्ठित माने जाने वाली टाटा तीरंदाजी अकादमी द्वारा चुन लिया गया.
दीपिका कुमारी ने रविवार को पेरिस में आयोजित तीरंदाजी विश्व कप स्टेज 3 में महिला व्यक्तिगत, महिला टीम और मिश्रित टीम में स्वर्ण पदक की तिकड़ी (हैट्रिक) के लगाने के साथ ही विश्व की नंबर एक महिला तीरंदाज के रूप में अपना स्थान फिर से हासिल कर लिया है- यह एक ऐसी उपलब्धि है जो उन्होंने पहली बार 2012 में हासिल की थी.
27 वर्षीय दीपिका ने अपने साथी तीरंदाजों, अंकिता भक्त और कोमलिका बारी के साथ मिलकर मेक्सिको के खिलाफ फाइनल में मिली जीत के साथ इस स्पर्धा का अपना पहला स्वर्ण पदक हासिल किया. इसके थोड़े ही समय के बाद उन्होंने मिश्रित युगल वर्ग के फाइनल में अपने पति अतानु दास के साथ जोड़ी बनाते हुए नीदरलैंड के सजेफ वैन डेन बर्ग और गैब्रिएला श्लोसेर की जोड़ी को हराया. अंत में उन्होंने दुनिया की 17वें नंबर की रूसी तीरंदाज एलेना ओसिपोवा को हराकर अपनी तिकड़ी (गोल्डन हैट्रिक) पूरी की.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दीपिका को बधाई देते हुए ट्वीट किया.
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तीरंदाजी विश्व कप में एक ही दिन में 3 स्वर्ण पदक जीत कर देश का मान बढ़ाने वाली झारखण्ड की बेटी दीपिका कुमारी को पुनः अनेक-अनेक शुभकामनाएं और जोहार।
? https://t.co/R3Ph9JnQZv— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) June 27, 2021
दीपिका कुमारी के पिता शिव नारायण महतो ने कहा, ‘मैं उसे हार्दिक बधाई देना चाहता हूं, वह वास्तव में कड़ी मेहनत कर रही है. उसने जो हासिल किया है उससे हम सब बहुत खुश हैं. अतानु दास और दीपिका ने मिश्रित रिकर्व स्पर्धा में भी जीत हासिल की, इसलिए यह हमारे लिए बहुत गर्व का क्षण है.’
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कोई भी सपना बहुत बड़ा नहीं होता
जब दीपिका कुमारी सिर्फ 18 साल की थी तो दुनिया की नंबर 1 महिला तीरंदाज होने के अलावा उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक भी जीते थे और 2016 में उन्होंने विश्व रिकॉर्ड भी बनाया.
उन्होंने 2006 में खेलना शुरू किया और तब से अब तक वे विश्व कप में 11 स्वर्ण, 12 रजत और 7 कांस्य पदक जीत चुकी हैं. उन्होंने 2012 के लंदन और 2016 के रियो ओलंपिक में भी भाग लिया जहां उन्हें क्रमशः शुरुआती दौर और क्वार्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक और एशियाई तीरंदाजी चैंपियनशिप 2013 में एक स्वर्ण पदक भी जीता है.
उन्हें 2012 में अर्जुन पुरस्कार और 2016 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 30 जून 2020 को अपने साथी तीरंदाज अतानु दास से शादी की.
फिर भी, उनका यह सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. 13 जून 1994 को शिव नारायण महतो, एक ऑटोरिक्शा चालक और गीता महतो, एक नर्स के घर जन्मीं दीपिका कुमारी का निशाने लगाने का पहला अनुभव आम और पत्थरों के साथ था. लेकिन परिवार की खराब आर्थिक स्थिति उनके टाटा अकादमी में दाखिला होने तक उसके सपनों के आड़े आती रही थी.
शिव महतो कहते हैं, ‘किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि उसे अतीत के दिनों में किन स्थितियों का सामना करना पड़ा था. मेरे पास अभी भी वह ऑटो है और मैं अभी भी उसे चलाता हूं लेकिन मैं इसे काम के नज़रिए से देखता हूं. मैं जहां हूं, उससे बहुत खुश हूं, मेरी बेटियां मुझसे कहती हैं कि अब ऑटो मत चलाओ लेकिन मुझे यह करना पसंद है और यह सिर्फ मेरा पेशा है. अर्जुन मुंडा (तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष) ने पूरे समय हमारा समर्थन किया, हम हमेशा उनके आभारी रहेंगे.’
हालांकि दीपिका के पिता हमेशा से अपनी बेटी को खेलों में भाग लेने के पक्ष में रहे थे लेकिन उन्हें दीपिका के इतनी कम उम्र में घर से दूर रहने के कारण थोड़ी समस्या जरूर थी. लेकिन वह अपने रुख पर कायम रही. वे अपने पिता से दिन-रात कहती थीं, ‘कृपया मुझे जाने दीजिए. मैं यह करना चाहती हूं’ और यह सिलसिला तब तक चला जब तक कि उन्होंने आखिरकार हार नहीं मान ली.
दूसरी ओर, उसकी मां हमेशा किसी चट्टान की तरह उनके साथ रही है. दीपिका ने 2018 में दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘जब भी मैं किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक लेने मंच (पोडियम) पर जाती हूं और राष्ट्रगान बजता है तो मैं अक्सर उसके (अपनी मां के) बारे में सोचती हूं. जब मैं पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त कर रही थी और मेरी छाती गर्व से फूल रही थी, तब भी मैंने उसके बारे में सोचा था.’
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‘मैंने तीरंदाजी नहीं चुनी बल्कि इसने मुझे चुना’
दीपिका कुमारी का मानना है कि उनकी इस संघर्ष यात्रा ने उनके गांव की कई युवा लड़कियों के लिए, जो किसी खेल अकादमी में दाखिला लेना चाहती हैं, आगे का मार्ग प्रशस्त करने में मदद की है.
दीपिका कहती हैं, ‘मैंने तीरंदाजी नहीं चुनी बल्कि इसने मुझे चुना है. मुझे बस इतना याद है कि मैं एक ऐसे अकादमी में जा रही हूं जो आदिवासी खेल सिखाती है और अगली बात जो मुझे पता चली वह यह थी कि मुझे बांस से बना धनुष और तीर दिया जा रहा है.’
2016 के रियो ओलंपिक से ठीक पहले, पहली बार किसी फिल्म का निर्माण कर रहे उराज़ बहल द्वारा बनायी गयी नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री- लेडीज़ फर्स्ट– उनके प्रशिक्षण और असल कहानी का वर्णन करती है. दीपिका फिल्म के शीर्षक को बढ़ावा देते हुए पूछती हैं, ‘वे शिक्षा और खेल में ‘लेडीज़ फर्स्ट’ क्यों नहीं कहते?’
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‘भारत के महानतम खिलाड़ियों में से एक’
दीपिका की जीवन यात्रा और उनकी ऐतिहासिक जीत भारतीय खेलों के इतिहास में एक सराहनीय मील का पत्थर है.
ओलंपिक से पहले और बाद में चाहे कुछ भी हो, वह निस्संदेह भारत की महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं. पूर्व क्रिकेटर स्नेहल प्रधान ने दिप्रिंट को बताया, ‘दुर्भाग्य से, हमारी खेल से जुडी दृष्टि वास्तव में सिर्फ ओलंपिक पर हीं केंद्रित है. इतनी सारी सफलताओं के विपरीत लोग हमेशा उनके नाम को ओलंपिक की दो असफलताओं से जोड़ेंगे.’
एक ऐसी प्रणाली (सिस्टम) जो ग्रामीण प्रतिभाओं को पहचानने में मदद करती है की अनुपस्थिति को रेखांकित करते हुए और उनके पहचान की प्रक्रिया की आवश्यकता जताते हुए, वे आगे कहती हैं, ‘दीपिका ने मौजूदा सिस्टम के बावजूद उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, न की इसके कारण. हमारे कुछ बेहतरीन खिलाड़ी इस व्यवस्था के बावजूद उभर कर आये हैं और उनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से हैं. खेलों के मामले में गैर-शहरी प्रतिभाओं की संख्या चौंका देने वाली है.’
जैसे-जैसे 2021 टोक्यो ओलंपिक नजदीक आ रहा है, दीपिका की मां को उससे काफी उम्मीदें हैं. वे कहती हैं, ‘मुझे उम्मीद है कि वे दोनों (कुमारी और दास) टोक्यो ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करेंगे, मुझे विश्वास है कि वे पदक के साथ वापस आएंगे.’
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