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Thursday, 26 December, 2024
होमदेशछावला बलात्कार मामले पर पूर्व CJI यूयू ललित ने कहा - 'सरकमस्टेंशियल एविडेंस काफी नहीं'

छावला बलात्कार मामले पर पूर्व CJI यूयू ललित ने कहा – ‘सरकमस्टेंशियल एविडेंस काफी नहीं’

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के छावला सामूहिक बलात्कार मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे तीन लोगों को बरी कर दिया था. 

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नई दिल्ली: भारत के पूर्व चीफ जस्टिस यूयू ललित ने रविवार को छावला बलात्कार मामले पर बात करते हुए कहा कि जब तक अपराध स्थापित नहीं हो जाता है तब तक परिस्थितिजन्य साक्ष्य (सरकमस्टेंशियल एविडेंस) आधारित सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.

यूयू ललित ने कहा, ‘सरकमस्टेंशियल एविडेंस के आधार पर इन तीनों व्यक्तियों को मृत्युदंड मिला. इस मामले में तथ्य  इतने स्पष्ट नहीं दिखाई दिए. अगर सबूत पुख्ता नहीं है तो सिर्फ इसलिए मौत की सजा देना क्योंकि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने ऐसा किया है तो फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में क्यों आए?’

उन्होंने कहा, ‘कानून स्पष्ट है – तथ्यों को केवल उस व्यक्ति के अपराध की दिशा में इंगित करना चाहिए, जब तक कि अपराध पूरी तरह से स्थापित नहीं हो जाता, परिस्थितिजन्य साक्ष्य-आधारित केस सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.’

छावला बलात्कार मामले में अपने फैसले पर जन आक्रोश पर जस्टिस ललित ने कहा ‘कानून यह है कि चैन पूरी होनी चाहिए, संदेह का लाभ उसी दिशा में प्रवाहित होना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट ने 2012 के छावला सामूहिक बलात्कार मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे तीन लोगों को बरी कर दिया था.

कॉलेजियम के मुद्दे पर जवाब देते हुए, जस्टिस ललित ने कहा कि कॉलेजियम प्रक्रिया अच्छी तरह से स्थापित और स्वीकृत है.

उन्होंने कहा कि पूर्व सीजेआई एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाले अंतिम कॉलेजियम में, वे 250 न्यायाधीशों की सिफारिश कर सकते थे जो आखिरकार नियुक्त हुए.

जस्टिस ललित ने कहा कि जब उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की बात आती है, तो हाई कोर्ट में कॉलेजियम 1+2 की सिफारिश करता है, जिसे बाद में राज्य सरकारों को भेज दिया जाता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘सरकारों से इनपुट को भी रिकॉर्ड में लाया जाता है जिसके बाद मामला केंद्र सरकार तक पहुंचता है.’

उन्होंने कहा कि केंद्र, संबंधित व्यक्ति के प्रोफाइल के बारे में खुफिया ब्यूरो से राय मांगता है. जस्टिस ललित ने कहा ‘फिर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचता है, जहां हम परामर्श न्यायाधीशों की राय लेते हैं. उसके बाद, कॉलेजियम सिफारिशें करना शुरू करता है. यह हाई कोर्ट सिफारिशों के अलावा अन्य नामों की सिफारिश नहीं कर सकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इस तरह की कार्यप्रणाली के माध्यम से, पूर्व सीजेआई एनवी रमन्ना के तहत पिछले कॉलेजियम में, हम 250 ऐसी सिफारिशें कर सकते थे, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया. इसलिए, यह प्रक्रिया अच्छी तरह से स्थापित और स्वीकृत है.’


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