नई दिल्ली: 105 साल की रामबाई का खेलों की दुनिया से सामना पिछले साल हुआ. वह हरियाणा के चरखी -दादरी के निकट बसे कादमा गांव में मौजूद अपने खेतों में टहला करती थीं और अपने पोते-पोतियों के पालन-पोषण में मदद करती थीं. लेकिन जब उनकी नातिन शर्मिला ने उन्हें खेतों में इतनी तेजी के साथ टहलते देखा तो हैरान रह गईं. रामबाई की उम्र के लोग बिस्तर से उठकर नहाने भी मुश्किल से जा पाते हैं लेकिन वह तेजी से सैर कर रही थीं. इसके बाद शर्मिला ने रामबाई को जूते पहनाए और दौड़ने के लिए मना लिया.
आज चरखी दादरी जिले में रामबाई को उड़नपरी और उड़ने वाली दादी के नाम से जानते हैं. इस साल जून में उन्होंने 100 मीटर की रेस दौड़ी जिसे उन्होंने सिर्फ 45.4 सेकेंड में पूरा कर लिया. लेकिन इस उम्र में जाकर अपने मन का करने वाली रामबाई अकेली नहीं है. दिल्ली के नजफगढ़ की रहने वाली 94 साल की भगवानी देवी ने भी अपने लिए एक अलग मुकाम बना लिया है.
भगवानी देवी ने 100 मीटर रेस सिर्फ 24.42 सेकेंड में पूरी की है.
दोनों दादियों को दौड़ने से खुशी मिलती है. फिनलैंड से जर्मनी, जर्मनी से वाराणसी दुनिया उनके लिए एक रेसिंग ट्रैक जैसी बन गई है. उनके रास्ते में कुछ नहीं आ सकता है- न ही हार्ट सर्जरी और न ही दूसरी चोटें.
रामबाई और भगवानी देवी अपने इलाके की मशहूर हस्तियों में शुमार हो गई हैं. सब लोग उनके साथ सेल्फी लेते हैं. वो जहां जाती हैं लोग फोन लेकर पहुंच जाते हैं और तस्वीरे खिंचवाते हैं. भगवानी देवी इंस्टाग्राम पर मौजूद हैं. उनके पोते विकास डागर ने उनका अकाउंट बनाया है. उन्हें ये तो नहीं पता कि इंटरनेट क्या होता है लेकिन अपनी वीडियो देखकर वह खूब खुश होती हैं.
रामबाई ने हाल में अपना पासपोर्ट बनवाया है ताकि वह अगले साल होने वाले एशियन गेम्स में हिस्सा ले सकें.
‘नानी दौड़ती नहीं, उड़ती हैं’ रामबाई की 40 साल की नातिन शर्मिला सांगवान कहती हैं.
देश-दुनिया घूमते हुए
एक साल में जब से रामबाई ने दौड़ना शुरू किया, उन्होंने वडोदरा, वाराणसी, बदलापुर, बेंगलुरु और नेपाल में एथलेटिक मीट में भाग लिया, इन सभी में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता. रामबाई को भारत की सबसे उम्रदराज एथिलीट होने का खिताब प्राप्त है.
इनकी शुरुआत शर्मिला ने की. उन्होंने एक वीडियो देखा जिसमें उन्हें पता चला की 103 साल की मान कौर से भागने में नेशनल रिकॉर्ड बनाया है. तो उन्हें लगा कि उनकी नानी भी ऐसा कर सकती है. रामबाई द्वारा जीते गए सभी मेडल अब उनके घर की बैठक की दीवारों पर लगे हैं. उनके सर्टिफिकेट और ट्रॉफियों से उनकी हरे रंग की दीवारें सजी हुई हैं.
रामबाई ने इस साल जून में वडोदरा में आयोजित नेशनल ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप के पहले संस्करण को जीतकर भारत की सबसे उम्रदराज एथलीट का खिताब अर्जित किया. उन्होंने मान कौर को पीछे छोड़ते हुए अपने 45.4 सेकंड के स्प्रिंट के साथ सौ साल से अधिक पुरानी श्रेणी में एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया. कौर ने 101 साल की उम्र में 74 सेकेंड में रेस पूरी की थी. 2021 में 105 साल की उम्र में उनका निधन हो गया, उनके नाम कई रिकॉर्ड हैं. अब रामबाई ने मोर्चा संभाल लिया है.
कदमा गांव में, खेतों में घर फैले हुए हैं, लेकिन सभी जानते हैं कि ‘उड़ने वाली दादी’ कहां रहती है.
19 साल का इशाक कहता है, ‘दादी गांव की पहचान तो बन गई हैं, लेकिन उन्हें वो सम्मान और पहचान नहीं मिल रही, जिसकी वो हकदार हैं.’ रामबाई जब वडोदरा से नया राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित कर लौटीं तो स्थानीय मीडिया की मौजूदगी में ग्रामीणों ने उनका अभिनंदन किया. लेकिन कोई नेता या सरपंच उनसे मिलने नहीं आया.
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चोटों से लड़ते हुए हैं बिल्कुल फिट
रामबाई के पैर में फिलहाल चोट लगी है और इसलिए वह अभी अपने पैर की देखभाल कर रही हैं, उनके 70 साल के बेटे महेंद्र उनके दौड़ने पर थोड़ा नाराज होते हैं. वो कहते हैं- ‘हम उसे भागने देने से डरते हैं, लेकिन वह अडिग है. वह कहती है, ‘अगर पैर ठीक हो गया तो फिर दौड़ूंगी.’
रामबाई का अगला पड़ाव 2022 एशियाई खेल और विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप है.
भगवानी देवी डागर ने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों के लिए विदेश यात्राएं की हैं और कई राजनेताओं द्वारा उनका सम्मान किया गया है.
जून में, जब वह फिनलैंड में विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप से भारत लौटी, तो दिल्ली हवाई अड्डे पर यात्रियों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. ट्रैकसूट पहने भगवानी देवी और पदकों पहने ढोल पर नाच रही थी. उनके प्रशंसकों ने उन्हें ‘चक दे इंडिया’ के विजयी नारों के साथ बधाई दी, जबकि उन्होंने उनके साथ सेल्फी के लिए जबरदस्त पोज़ दिए.
भगवानी देवी फिनलैंड से एक गोल्ड और दो कांस्य पदक जीतकर आई थीं.
भगवानी देवी के पोते विकास डागर कहते हैं- ‘जब हम फिनलैंड से भारत वापस आए, तो राहुल गांधी से लेकर मनसुख मंडाविया तक कई बड़े राजनेताओं ने दादी के लिए ट्वीट किया. (दिल्ली) सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी उन्हें बधाई दी. हमारे विधायक कैलाश गहलोत दादी से मिलने हमारे घर आए थे.
भगवानी देवी को फिनलैंड घूमने में बहुत मजा आया. इतना ही नहीं उन्हें इन सब में बिल्कुल डर नहीं लगा.
वह कहती हैं, ‘डर क्यों लगना चाहिए? कोई मुझ पर गोली थोड़े ही चला रहा था.’
अब स्मार्टफोन का जमाना है और भगवानी देवी समय के साथ चल रही हैं उनका एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी है. देवी एक शहर से दूसरे शहर में जाती हैं. उन्हें अगस्त में कोलकाता में एक कार्यक्रम के लिए सनमार्ग अपराजिता समूह द्वारा आमंत्रित किया गया था. पिछले हफ्ते उन्हें दिल्ली में ब्रह्मा कुमारियों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मानित किया गया था.
विकास कहते हैं, ‘दादी जहां भी जाती हैं, लोग फोटो लेने लगते हैं. दादी को बहुत मज़ा आता है.’
भगवानी देवी कहती हैं, ‘जब लोग तस्वीरें लेते हैं और मेरे पैर छूते हैं, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. लेकिन जब कोई मुझसे हंसने के लिए कहता है तो मैं हिचकिचाती हूं. मेरे दांत न हीं हैं, इसलिए यह थोड़ा अजीब लगता है.’
विकास ने उनका इंस्टाग्राम अकाउंट बनाया है जिसमें उसके नाचने और दौड़ने की रीलों से भरा है, लेकिन वह शायद ही कभी मुस्कुराती है. देवी नहीं जानती कि इंटरनेट क्या है, लेकिन वह रीलों को देखने का आनंद लेती है. विकास ने बताया, ‘जब भी उनके दोस्त आते हैं, तो वह मुझसे वीडियो दिखाने के लिए कहती है.’
देवी और रामबाई दोनों से अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि उनकी फिटनेस का ‘रहस्य’ क्या है। हर कोई जानना चाहता है कि वह क्या खाती हैं.
रामबाई कहती हैं कि उनकी सेहत का राज ‘शुद्ध घर का बना खाना’ है. वह रोजाना एक लीटर दूध पीती हैं और 250 ग्राम घी चपाती के साथ लेती हैं. वह अपने खेत में उगाई गई सब्जियां खाती हैं, और चूरमा और बाजरे की रोटी पसंद करती हैं.
भगवानी देवी छाछ पसंद करती हैं और एक दिन में सब्जी के साथ तीन रोटी खाती हैं. कभी-कभी वह पिज्जा और फ्रेंच फ्राइज भी खाती हैं. वो कहती हैं, मुझे ज्यादा पसंद नहीं है लेकिन बच्चे जिद्द करते हैं तो कभी-कभी खा लेती हूं. फिनलैंड मे शाकाहारी भोजन कम था तो उन्होंने फ्राइज खाए थे.
आगे क्या?
भगवानी देवी और रामबाई दोनों ने कभी भी किसी तरह के दर्द की शिकायत नहीं की है. 2007 में देवी को बाईपास सर्जरी करानी पड़ी, लेकिन इसने उन्हें 2021 में दौड़ने से नहीं रोका.
भगवानी देवी कहती हैं, ‘उन्होंने मेरी छाती को दो हिस्सों में खोल दिया था. मैं रोजाना बहुत सारी दवाईयां खाती हूं, लेकिन मुझे परवाह नहीं है. मैंने अपना जीवन जी लिया है और इस समय अगर मैं अपने और अपने देश के लिए कुछ कर सकती हूं, तो ऐसा करके मैं खुश होती हूं.’
रामबाई और भगवानी देवी पैसे के लिए नहीं दौड़ती हैं, हालांकि उन्होंने दौड़कर नाम कमाया है लेकिन उनके लिए कोई पैसे से जुड़ा कोई ईनाम नहीं मिला है. इन कॉम्पिटिशन में भाग लेने के लिए उन्हें अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं.
विकास कहते हैं, ‘हम अब तक 6 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं. फिनलैंड की फ्लाइंट के लिए भी हमने ही पैसे दिए थे.’
शर्मिला रामबाई को सभी प्रतियोगिताओं में ले जाती हैं. वह कहती हैं, ‘मैंने अपनी दादी को वडोदरा, वाराणसी आदि ले जाने में पैसा खर्च किया है। हमें किसी से कोई पैसा नहीं मिला. मैं कुछ प्रायोजन की तलाश में हूं. अगर मैं इसे प्राप्त कर पाती, तो इससे मुझे अपनी दादी को प्रशिक्षित करने में मदद मिलेगी.’
रामबाई ने अपने परिवार की पांच पीढ़ियों को फलते-फूलते देखा है. उनके घर की महिलाएं और बच्चे उनसे प्रेरणा लेते हैं.
भगवानी देवी भी अपने आस-पास के लोगों को प्रेरणा दे रही हैं. जब भी वह अपनी दैनिक सैर के लिए बाहर निकलती है, तो पड़ोसी उसके आस-पास इकट्ठा हो जाते हैं.
भगवानी देवी के लिए अगला पड़ाव अब पोलैंड है.
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