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Friday, 22 November, 2024
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मोदी सरकार में IAS की नियुक्ति पर घट रहा फोकस, ‘रेलवे, रेवेन्यू, अकाउंट्स’ के अधिकारियों को मिल रही तरजीह

मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में, संयुक्त सचिवों के स्तर पर गैर-आईएएस अधिकारियों का काफी संख्या है. लेकिन डोमेन विशेषज्ञता की कमी चिंता का विषय बनी हुई है.

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नई दिल्ली: छह साल पहले, जब केंद्र ने सरकारी पदों पर भर्ती के लिए अपनी महत्वाकांक्षी लेटरल एंट्री योजना की घोषणा की थी, तो देश में “सामान्यज्ञ” बनाम “डोमेन एक्सपर्ट” पर तीखी बहस छिड़ गई थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक तीखे शब्दों वाले पत्र में, भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) एसोसिएशन ने कहा कि गैर-आईएएस सिविल सेवाओं के अधिकारी भी डोमेन विशेषज्ञ थे, लेकिन “सरकार में उच्च स्तर पर अधिकारियों के पैनल में शामिल किए जाने और चयन की मनमानी और भेदभावपूर्ण प्रणाली” के कारण उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया – जो कि आईएएस के पक्ष में थी. एसोसिएशन ने कहा कि सरकार को केवल निजी क्षेत्र की नहीं, बल्कि अपने पास पहले से मौजूद इन-हाउस डोमेन विशेषज्ञता का उपयोग करना चाहिए.

मोदी सरकार के दस साल पूरे होने पर, गैर-आईएएस अधिकारी संयुक्त सचिव के स्तर पर काफी बड़ी संख्या में हैं, जिसे अक्सर केंद्र सरकार में सबसे महत्वपूर्ण पद माना जाता है. सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, केंद्र में सेवारत 236 संयुक्त सचिवों में से 156 अधिकारी – 66 प्रतिशत से अधिक – गैर-आईएएस हैं.

Graphic: Wasif Khan | ThePrint
ग्राफ़िक: वासिफ़ खान | दिप्रिंट

अपेक्षाकृत कम महत्त्व की समझी जाने वाली रेलवे सर्विसेज़ को आईएएस अधिकारियों के घटते प्रभुत्व से सबसे अधिक लाभ हुआ. वर्तमान में केंद्र सरकार में सेवारत संयुक्त सचिवों में से बत्तीस रेलवे सर्विसेज़ की विभिन्न धाराओं से हैं. भारतीय रेलवे सेवा यांत्रिक इंजीनियरिंग (IRSME), भारतीय रेलवे सिग्नल इंजीनियर्स सेवा (IRSSE), और भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) इन सेवाओं में से हैं.

रेलवे सेवाओं के ठीक बाद भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) का स्थान आता है, जिसके 23 आअधिकारी संयुक्त सचिव स्तर पर हैं. इनमें सात अधिकारी सीमा शुल्क और अप्रत्यक्ष कर के और 16  आईआरएस अधिकारी आयकर विभाग के हैं.

बहुत कम आकर्षक केंद्रीय सचिवालय सेवा (सीएसएस) – जिसे अक्सर स्थायी नौकरशाही के रूप में जाना जाता है, क्योंकि अन्य सिविल सेवकों के विपरीत, सीएसएस के अधिकारी नई दिल्ली में केंद्र सरकार में रहते हैं – तीसरे स्थान पर है. वर्तमान में इक्कीस सीएसएस अधिकारी संयुक्त सचिव के रूप में काम कर रहे हैं. इस बीच, भारतीय वन सेवा (आईएफओएस), भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा (आईएएंडएएस), और भारतीय डाक सेवा (आईपीओएस) के अधिकारियों की संख्या संयुक्त सचिव के स्तर पर क्रमशः 16, 12 और 8 है.

ये आंकड़े भारतीय नौकरशाही के सबसे महत्वपूर्ण पदों में से एक पर पूरी तरह से बदलाव को दिखाते हैं, जबकि पांच या छह साल पहले आईएएस अधिकारी इन पदों पर हावी थे.

बेशक, यह बदलाव गैर-आईएएस अधिकारियों के लिए जश्न मनाने का कारण है, जिन्हें दशकों से अपने आईएएस समकक्षों से कमतर समझा जाता रहा है. सरकारी पदों से लेकर सेवानिवृत्ति के बाद की भूमिकाओं तक, आईएएस अधिकारियों ने लंबे समय तक सबसे महत्वपूर्ण नौकरियों पर अपना दबदबा बनाए रखा है.

लेकिन, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में, जिन्होंने संसद के पटल से सरकार के हर विभाग और मंत्रालय को चलाने वाले “सामान्यज्ञ” आईएएस अधिकारियों की आलोचना की है, अब ऐसा नहीं है.

हालांकि, केंद्र सरकार के रैंकों में गैर-आईएएस अधिकारियों को शामिल करने से सरकार के भीतर डोमेन विशेषज्ञता को बढ़ावा नहीं मिला. आरटीआई के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, लेखा और लेखा परीक्षा, रेलवे, वन, राजस्व आदि जैसी विशेष सेवाओं के अधिकारियों को ऐसे मंत्रालयों में नियुक्त किया जाता है जिनका उनके डोमेन से कोई लेना-देना नहीं होता.

जबकि गैर-आईएएस अधिकारियों को लगता है कि बदलाव आने में काफी समय लग गया है, आईएएस अधिकारी, जो राज्यों और केंद्र के बीच चक्कर लगाते रहते हैं, उन्हें लगता है कि उनकी सेवाओं को जानबूझकर दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है, जिससे वे राजनीतिक रूप से एक व्यवस्था के प्रति कम प्रतिबद्ध हो रहे हैं.

जैसा कि एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने बताया, आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के विपरीत, केंद्रीय सिविल सेवा के अधिकारी, जिसमें अन्य सरकारी सेवाएं शामिल हैं, पूरी तरह से “केंद्र के अधिकारी” हैं, जिससे वे केंद्रीय व्यवस्था के प्रति अधिक “प्रतिबद्ध” हो जाते हैं.

रेलवे और राजस्व सरकार के नए पसंदीदा क्षेत्र हैं

कई अधिकारियों का कहना है कि गैर-आईएएस अधिकारियों के फलने-फूलने का कारण यह है कि मोदी सरकार सेवा के बजाय योग्यता को महत्व देती है.

एक केंद्रीय मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत एक रेलवे अधिकारी ने कहा: “मेरे वरिष्ठों के लिए, ऐसे मंत्रालयों में प्रतिनियुक्ति पर जाना, जिनका रेलवे से कोई लेना-देना नहीं है – जहां आप वास्तव में राष्ट्रीय नीतियां बनाने के लिए ज़िम्मेदार हैं, कल्पना से परे है. रेलवे अधिकारियों ने इसकी कभी उम्मीद भी नहीं की थी क्योंकि हर कोई जानता था कि राजनीतिक व्यवस्था और आईएएस लॉबी दोनों ही इसे किसी भी कीमत पर होने नहीं देंगे.”

एक आईआरएस अधिकारी ने कहा, “सच्चाई यह है कि केंद्रीय सिविल सेवा अधिकारी मंत्रालयों में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन करते हैं क्योंकि वे जरूरत पड़ने पर उतना समय और प्रयास लगाने के लिए तैयार रहते हैं.”

उन्होंने कहा, “मोदी सरकार में काफी कम हो चुके भत्तों के बिना भी वे कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार रहते हैं.”

जबकि रेलवे और राजस्व सेवा के अधिकारी सरकार में कुल संयुक्त सचिवों का क्रमशः केवल 13.5 प्रतिशत और 10 प्रतिशत हैं, ये संख्या पहले की कल्पना से कहीं अधिक है.

रेलवे के एक अधिकारी ने कहा, “रेलवे का काडर बहुत बड़ा है, और इसलिए सरकार के पास चुनने के लिए अधिकारियों का एक बड़ा समूह है. हमारे पास रेलवे के भीतर आठ (विशेष सेवा) काडर थे; यह लगभग 10,000 अधिकारियों (कुल मिलाकर) का काडर है…इसलिए, भले ही सरकार हर साल प्रत्येक सेवा से एक अधिकारी का चयन करे, हमारी संख्या बढ़ जाएगी.”

इसके अलावा, रेलवे अधिकारी कभी भी काम से पीछे नहीं हटते हैं, जो कि केंद्र सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण है. “रेलवे एक 24×7 काम करने वाला संगठन है, इसलिए एक रेलवे अधिकारी को शनिवार को काम पर आने और बहुत देर तक कार्यालय में रहने में कोई परेशानी महसूस नहीं होती है…जब कोशिश करने की बात आती है तो वे किसी से भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं.”

ऊपर जिन आईआरएस अधिकारी का ज़िक्र किया गया है उन्होंने कहा कि इस बदलाव का श्रेय मोदी सरकार को मिलना चाहिए. उन्होंने कहा, “जब सरकार सुशील चंद्रा (पूर्व आईआरएस अधिकारी) को मुख्य चुनाव आयुक्त, के.वी. चौधरी को मुख्य सतर्कता आयुक्त या एस.के. मिश्रा को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक के रूप में चुनती है, तो संदेश स्पष्ट होता है- उसे सिर्फ़ आईएएस का टैग नहीं, बल्कि बेहतर परफॉर्म करने वाले लोग चाहिए.”

यह पूछे जाने पर कि सरकार द्वारा प्रमुख भूमिकाओं में विशेष रूप से आईआरएस अधिकारियों को क्यों प्राथमिकता दी जाती है, अधिकारी ने कहा, “आईआरएस अधिकारियों के रूप में, हमारे पास अपने करियर के पहले दिन से ही फाइलिंग, नोटिंग, सबमिशन, पत्राचार, विश्लेषण आदि का बहुत बड़ा अनुभव होता है. मंत्रालयों में, यह अनुभव बहुत काम आता है- जिलों को चलाने से कहीं ज़्यादा.”

उन्होंने कहा, “जब भी केंद्रीय सिविल सेवा के अधिकारियों को केंद्रीय मंत्रालयों में भेजा जाता है, तो वे वास्तव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं.”

लेकिन, अब केवल रेलवे या राजस्व अधिकारियों की ही मांग नहीं है.

भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा (IA&AS) और भारतीय रक्षा लेखा सेवा (IDAS) जैसी बहुत कम चर्चित और प्रतिष्ठित सेवाओं के अधिकारी वर्तमान में रक्षा, गृह, कानून और न्याय, जल संसाधन जैसे मंत्रालयों में प्रमुख पदों पर आसीन हैं.

संयोग से, इस साल जून में लोकसभा चुनाव के बाद की अवधि के लिए मोदी सरकार के 100-दिवसीय एजेंडे में की गई सिफारिशों में से एक यह थी कि सरकार में दक्षता बढ़ाने और ज़रूरत से ज्यादा संख्या को कम करने के लिए उपर्युक्त छोटी सेवाओं का विलय किया जाए.

डोमेन विशेषज्ञता पर ज़ोर नहीं

मोदी सरकार द्वारा लेटरल एंट्री योजना की घोषणा के छह साल बाद, अब केवल तीन लेटरल भर्ती अधिकारी संयुक्त सचिव के रूप में काम कर रहे हैं. जबकि लेटरल एंट्री के पहले बैच का कार्यकाल समाप्त हो गया, सरकार को हाल ही में लेटरल एंट्री के लिए अपने हालिया विज्ञापन को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा – जिसमें दस संयुक्त सचिव स्तर के पद शामिल थे. हालांकि, डोमेन विशेषज्ञता की अनुपस्थिति केवल लेटरल एंट्री के कारण नहीं है.

गैर-आईएएस अधिकारियों की निरंतर स्थिति यह रही है कि वे डोमेन विशेषज्ञ हैं, और आईएएस अधिकारी सामान्यज्ञ हैं, और इसलिए, उन्हें अपने संबंधित डोमेन में नीति बनाने वाले व्यक्ति होने चाहिए. इस तर्क के अनुसार, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को गृह मंत्रालय, भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) के अधिकारियों को पर्यावरण मंत्रालय और आईआरएस अधिकारियों तथा लेखा परीक्षा और लेखा जैसी सेवाओं के अधिकारियों को वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालना चाहिए.

हालांकि, केंद्रीय मंत्रालय में गैर-आईएएस अधिकारियों के बढ़ते प्रतिनिधित्व के बावजूद, डोमेन विशेषज्ञता और नियुक्तियों के मिलान का कोई स्पष्ट प्रयास नहीं दिख रहा है. इस पर विचार करें: संयुक्त सचिव के रूप में तैनात एकमात्र आईपीएस अधिकारी आयुष मंत्रालय में है.

आईएफओएस अधिकारी स्वास्थ्य से लेकर सड़क, परिवहन और राजमार्ग जैसे मंत्रालयों में हैं. सूचना सेवा के अधिकारी श्रम और रोजगार तथा उच्च शिक्षा जैसे मंत्रालयों में हैं. वहीं, रेलवे के अधिकारी खाद्य और सार्वजनिक वितरण से लेकर ग्रामीण विकास और संस्कृति जैसे मंत्रालयों में हैं.

एक आईएएस अधिकारी ने बताया, “नियुक्त किए गए इन अधिकारियों में कोई डोमेन विशेषज्ञता नहीं है. उन्हें लाना आईएएस अधिकारियों का मनोबल तोड़ने का एक तरीका है, जिनके प्रति सरकार को शुरू से ही संदेह रहा है.”

उन्होंने कहा, “आईएएस अधिकारियों में एक खास तरह की गतिशीलता देखी जाती है. लेकिन यह देखते हुए कि संयुक्त सचिव का पद वास्तविक निर्णय लेने का पद नहीं रह गया है और यह एक बहुत ही केंद्रीकृत प्रणाली में लिए गए निर्णयों को क्रियान्वित करने का पद बन गया है, इस पद पर कोई गतिशीलता की आवश्यकता नहीं है.”

इसके अलावा, ऐसी भी चर्चा है कि केंद्रीय सिविल सेवा (सीसीएस) का प्रतिनिधित्व इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि वे आईएएस अधिकारियों की तुलना में अधिक “लचीले” हैं.

एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा, “आईएएस अधिकारियों में राजनीतिक लचीलापन ज्यादा होता है, जबकि रेलवे, राजस्व और अन्य सेवाओं के अधिकारी अपने करियर की शुरुआत से लेकर अंत तक केंद्र को रिपोर्ट करते हैं…केंद्रीय सेवा के अधिकारी पूरी तरह से केंद्र के अधीन होते हैं, इसलिए सरकार के लिए उनसे अपने हिसाब से काम करवाना आसान होता है.”

बदली हुई संस्कृति

अधिकारियों का कहना है कि मोदी सरकार ने न केवल भारतीय नौकरशाही में आमूलचूल परिवर्तन किया है, बल्कि इसकी संस्कृति को भी पूरी तरह बदल दिया है.

आईआरएस अधिकारी ने कहा, “वे दिन चले गए जब आईएएस अधिकारी सरकार में बहुत ताकतवर होते थे और फिर भी शाम 5 बजे गोल्फ खेलने चले जाते थे.” उन्होंने कहा, “केंद्र अब अपने अधिकारियों को काम पर लगा देता है – उन्हें रात 9.30 बजे तक लॉग इन करना होता है और शाम को देर से घर जाना होता है… नतीजतन, आईएएस अधिकारी केंद्र में नहीं आना चाहते क्योंकि राज्यों में बहुत अधिक सुविधा और बेहतर पद मिलता है.”

अधिकारी ने कहा कि अगर निदेशक स्तर पर गैर-आईएएस अधिकारियों की संख्या पर गौर किया जाए तो संख्या और भी अधिक आश्चर्यजनक होगी.

रेलवे अधिकारी ने भी यही भावना दोहराई. अधिकारी ने कहा, “संयुक्त सचिव की स्थिति अब वैसी नहीं रही जैसी यूपीए के समय हुआ करती थी. इस वक्त की केंद्र सरकार में बहुत अधिक निगरानी है, बहुत अधिक काम है और बोलने की क्षमता कम है. गैर-आईएएस अधिकारी जो बिना पावर के भी काम करने में खुश हैं, वह पावर जो कि जिले के डीएम होने के साथ ही आ जाती है, वे चुपचाप मेहनत से काम करते हैं.”

जारी असमानता

वर्ष 2015 में, 7वें केंद्रीय वेतन आयोग ने आईएएस अधिकारियों को झटका देते हुए उनकी आलोचना की. भारतीय नौकरशाही में हमेशा से चली आ रही बहस पर टिप्पणी करते हुए, इसने तर्क दिया, “सेवाओं में असंतोष का मुख्य कारण यह है कि समय के साथ, आईएएस अधिकारियों ने शासन की सारी शक्ति अपने पास केंद्रित कर ली और अन्य सभी सेवाओं को गौण स्थान पर पहुंचा दिया है… अब समय आ गया है कि सरकार यह निर्णय ले कि पदों पर नियुक्ति के लिए विषय क्षेत्र ही मानदंड होना चाहिए न कि सामान्यज्ञ.”

गैर-आईएएस अधिकारियों की सबसे बड़ी शिकायतों में से एक पैनल के कथित भेदभावपूर्ण नियम हैं जो आईएएस के पक्ष में हैं. आईएएस अधिकारियों को आम तौर पर अन्य सेवाओं के अधिकारियों की तुलना में दो साल पहले पदोन्नत किया जाता है, दो अधिक वेतन वृद्धि मिलती है, और उनके गैर-आईएएस समकक्षों की तुलना में उनके करियर में बहुत पहले केंद्रीय मंत्रालयों में पदों के लिए पैनल में शामिल किया जाता है.

सेवाओं में संयुक्त सचिव के रूप में सेवारत अधिकारियों के पिछले बैचों की तुलना करने पर भी अंतर स्पष्ट हो जाता है. आईएएस के लिए, यह 2008 बैच है. भारतीय सूचना सेवा, आईएफओएस, सीएसएस और आईसीएएस के लिए, यह क्रमशः 1998, 2003, 1999 और 2000 बैच है.

इस असमानता के बारे में बात करते हुए, पहले जिनका जिक्र किया गया है उन आईआरएस अधिकारी ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कैसे आईएएस लॉबी द्वारा वर्षों से कैसे सिस्टम को तोड़ा-मरोड़ा गया और कैसे नियंत्रित किया गया है, इस तरह से कि उन्होंने सफलतापूर्वक सुनिश्चित किया है कि कोई अन्य सेवा फल-फूल न सके.”

अधिकारी ने कहा, “अब भी, वे डीओपीटी, पीएमओ, कैबिनेट सचिवालय आदि जैसे मंत्रालयों को पूरी तरह से नियंत्रित करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये परिवर्तन संस्थागत न हों.”

हालांकि, पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम ने कहा कि सरकार में आईएएस अधिकारियों की घटती संख्या लंबे समय में शासन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है. मायाराम ने बताया कि केंद्र और राज्यों के बीच उनके आने-जाने से राष्ट्रव्यापी एकरूपता आती है और राज्य स्तर पर केंद्र सरकार की नीतियों दिखती हैं.

मायाराम ने कहा, “विविधता को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि नीतियों में ज़मीनी हकीकत दिखाई दे. यही कारण है कि आईएएस अधिकारियों को हर पांच साल की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के बाद भारत सरकार में लौटने से पहले कुछ साल राज्यों में जाना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “केंद्रीय सेवा के अधिकारी उस अनुभव को साथ नहीं लाते हैं. यह उनकी योग्यता का प्रतिबिंब नहीं है. यह उनका कार्य अनुभव है जो दूरबीन जैसा और विशिष्ट प्रकृति का है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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