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Sunday, 12 May, 2024
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केरल में एक्टिविस्टों, कुत्तों को मारने वालों के बीच पहला आमना-सामना, एक लड़ाई जो रुकती नजर नहीं आती

नोएडा में 7 महीने के बच्चे को एक आवारा कुत्ते ने नोच कर मार डाला. अब गुस्साए शहरवासी 'केरल मॉडल' की बात कर रहे हैं.

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कोच्चि: नोएडा के एक अपार्टमेंट में गली के आवारा कुत्ते ने 7 महीने के बच्चे को बुरी तरह से नोच-नोच कर मार डाला. बच्चे की मौत ने एक बार फिर इस सवाल को सामने ला खड़ा किया कि आवारा कुत्तों की समस्या से कैसे निपटा जाए.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में आवारा कुत्तों को मारने की केरल सरकार की याचिका को खारिज कर दिया. राज्य सरकार ने एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि राज्य में अकेले इस साल कुत्तों के काटने की लगभग दो लाख घटनाएं हुई हैं. रैबीज के कारण 21 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से तीन बच्चे थे.

एनिमल राइट एक्टिविस्ट, इंसान और जानवरों के बीच एक ‘टूटे हुए बॉन्ड’ की बात करते हैं. उनके मुताबिक अगर समस्या से निपटना है तो उस बॉन्ड को कदम दर कदम फिर से बनाना होगा. केरल के पशु कल्याण अधिवक्ता सैली वर्मा के अनुसार, इन तरीकों में शिक्षा और जागरूकता को बढ़ाना, जिम्मेदारी के साथ पालतू जानवरों की देखरेख, उनके प्रजनन पर नज़र रखना, उचित वेस्ट मैनेजमेंट और प्रभावी एनिमल बर्थ कंट्रोल और टीकाकरण कार्यक्रम चलाना शामिल हैं.

लेकिन केरल में लोग अब आवारा कुत्तों को मारने की बात लेकर आगे आ रहे हैं.

नोएडा की ताजा घटना पर विचार करते हुए, शहर के रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों ने इसी तरह की प्रतिक्रिया को आगे बढ़ाया है. अन्य जगहों पर पहले ही आवारा कुत्तों के खिलाफ युद्ध का आगाज किया जा चुका है.

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आवारा कुत्तों के लिए बेहतर जीवन

जोस मावेली ने कई सालों तक आवारा कुत्तों को मारने के लिए एक लड़ाई लड़ी थी और एक ‘स्ट्रीट डॉग्स इरेडिकेशन ग्रुप’ चलाया था. लेकिन अब वह उनके लिए एक बेहतर जीवन की वकालत करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था.

2017 में मावेली और उनके ग्रुप को आवारा कुत्तों को मारने के खिलाफ अदालत के आदेश को न मानने के लिए अवमानना कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा था. मावेली ने बिना शर्त माफी मांगी और कहा कि उनका ग्रुप अब ऐसा करना बंद कर देगा.

तब से मावेली कुत्तों के ‘पुनर्वास’ के उद्देश्य को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम आवारा कुत्तों को स्थानांतरित करने की सलाह नहीं देते हैं, जब तक कि जानवर बीमार या घायल न हो.

मावेली कहते हैं, ‘मुझे आवारा कुत्तों से कोई दिक्कत नहीं है. ‘मुझे समस्या तब होती है जब वे लोगों को चोट पहुंचाना शुरू करते हैं.’

जोस मवेली ने एक गैर सरकारी संगठन जनसेवा शिशुभवन चलाया है, जो सड़क पर रहने वाले बच्चों को आश्रय प्रदान करता है | फोटो: वंदना मेनन | दिप्रिंट

मावेली सड़क पर रहने वाले बच्चों को आश्रय देने वाला एक गैर सरकारी संगठन जनसेवा शिशुभवन चलाते हैं. गली के कुत्तों के खिलाफ उनके पुरानी लड़ाई ने बच्चों के लिए सुरक्षा का काम किया है. आवारा कुत्ते झुंड में घूमते हैं, अक्सर झगड़े में पड़ जाते हैं, एक-दूसरे को घायल कर देते हैं और आक्रामक हो जाते हैं. मावेली ने कहा कि इससे सिर्फ आवारा कुत्तों के प्रति दुश्मनी बढ़ती है.

उन्होंने कहा, ‘केरल में ज्यादातर लोग समस्या को पहचानते हैं और इसके बारे में कुछ करना चाहते हैं.’ लेकिन मेनका गांधी जैसे कार्यकर्ता ‘आवारा कुत्तों के दोस्त और जनता के दुश्मन हैं.’

अलुवा में कुदुम्बश्री कार्यकर्ता मल्लिगा कहती हैं कि उन्हें कुत्तों के काटने से डर लगता है. उन्होंने कहा, ‘मेरे घर के रास्ते में पड़ने वाली मीट की दुकान से मांस खरीदना मुश्किल है क्योंकि जाहिर तौर वहां मौजूद कुत्तों का एक झुंड मेरे पीछे पड़ जाएगा, जिनसे बचना मेरे लिए मुश्किल है.’

मावेली ने कहा, ‘यह सिर्फ केरल की समस्या नहीं है. पूरे देश में लोग इस परेशानी से दो-चार हो रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘कुत्तों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है और वे आक्रामक हो जाते हैं. यही असली खतरा है.’


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कुत्ते के काटने का कड़वा सच

देवानंद ढाई साल का था जब एक आवारा कुत्ता दीवार फांदकर उसके बरामदे में घुस गया और उसके चेहरे को काट लिया. उनकी एक आंख की रोशनी चली गई, तीन सर्जरी हुई और उनके होंठ हमेशा के लिए कट गए.

वह अब छह साल का है और अभी भी सोते हुए अपनी आंखें पूरी तरह से बंद नहीं कर पाता है.

देवानंद के पिता रवि कोच्चि के पास कोठामंगलम में एक दुकान चलाते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें उसे नियमित रूप से दवा देनी होती है ताकि उसकी आंख ठीक हो जाए. अपने बच्चे को बिना किसी गलती के इस दर्दनाक हादसे से गुजरते हुए देखना वास्तव में तकलीफ देता है. जाहिर सी बात है कि अब मेरा बच्चा कुत्तों से जिंदगी भर डरेगा.’

विशेषज्ञों के अनुसार, आक्रामक कुत्तों का समाधान उन्हें स्टरलाइज करना है. स्टरलाइज़ कर आवारा कुत्तों को नपुंसक बनाया जाता है और उन्हें टीका लगाया जाता है. जिसका सीधा सा मतलब है कि वे अब अपने इलाके या खाने के लिए नहीं लड़ेंगे.

पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) की अभियान प्रबंधक राधिका सूर्यवंशी ने समझाते हुए कहा, ‘कुत्तों के बीच लड़ाई तभी होती है जब वे ‘एक साथी’ को पाने के लिए दूसरे कुत्तों से मुकाबला करते हैं या अपने पिल्लों की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हों. और अक्सर तभी कोई इंसान उनके बीच में फंस जाता है.’ वह आगे कहती हैं, ‘एक प्रभावी नसबंदी कार्यक्रम इसे रोकने में मदद कर सकता है क्योंकि आवारा कुत्तों को सर्जरी कर न्यूटर्ड किया जाता है और फिर उन्हें उनके इलाके में छोड़ दिया जाता है.’

सूर्यवंशी के अनुसार, समय के साथ, जैसे-जैसे कुत्तों की प्राकृतिक मृत्यु होती जाएगी, उनकी संख्या घटती चली जाएगी. कुल मिलाकर कुत्तों की आबादी स्थिर, गैर-प्रजनन, गैर-आक्रामक और रैबीज-मुक्त हो जाएगी.

वर्मा कहती हैं कि नसबंदी कार्यक्रम केवल एबीसी नियमों के अनुसार किए जाने चाहिए. इसमें गैर सरकारी संगठनों, पशु कल्याण समूहों और सामुदायिक फीडरों को भी शामिल किया जाना चाहिए अन्यथा ‘कुत्तों के कल्याण की अनदेखी की जाएगी’. वह आगे कहती हैं, ‘गैर-पेशेवर तरीके से कुत्तों को संभालने से उनकी आक्रामकता और काटने के मामलों में वृद्धि हो सकती है और वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे.’

मावेली इस बात से सहमत हैं कि प्रोफेशनल तरीके से इस मसले को सुलझाने की जरूरत है. उन्होंने अब यह काम करना बंद कर दिया है. उनके पास कभी खुद का एक कुत्ता हुआ करता था, लेकिन उन्होंने उसे किसी को दे दिया.

और उस कुत्ते का क्या हुआ जिसने देवानंद को काटा था? रवि ने बताया, ‘एक दिन वह एक कार की चपेट में आ गया और मर गया.’

मावेली अजीब तरह से कंधे उचकाते हुए कहते हैं, ‘एक कार ने मार डाला. कितना ‘एक्सीडेंटल लगता है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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