गुवाहाटी: मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई आबादी और कुकी-ज़ोमी आदिवासियों के बीच लगातार चल रहे जातीय संघर्ष ने और भी गहरा रूप ले लिया है. सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इसने जातीय आधार पर विभाजित सशस्त्र विद्रोही समूहों के बीच संगठित झड़पों की बाढ़ ला दी है.
दक्षिण एशियाई आतंकवाद पोर्टल (SATP) पर प्रकाशित दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) के आंकड़ों के मुताबिक, उग्रवाद के कारण होने वाली मौतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं.
17 सितंबर तक, पोर्टल ने मणिपुर में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं में 134 मौतों को सूचीबद्ध किया, जिनमें 66 नागरिक, 53 विद्रोही, 14 सशस्त्र कर्मी और एक अनजान हताहत शामिल थे.
इसे परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए पिछले वर्ष केवल सात उग्रवाद संबंधी मौतें दर्ज की गईं. 2018-2022 के लिए टोल 73 था, जिसमें 32 विद्रोही और 16 सुरक्षाकर्मी शामिल थे.
हालांकि, इस साल अधिकांश हमलों की जिम्मेदारी मान्यता प्राप्त विद्रोही समूहों द्वारा नहीं ली गई है और सरकारी एजेंसियां जातीय संघर्ष में गोलीबारी की घटनाओं के लिए “सशस्त्र या अज्ञात उपद्रवियों” को ज़िम्मेदार ठहरा रही हैं.
फिर भी, कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि सभी संकेत विद्रोही समूहों की गतिविधियों में पुनरुद्धार की ओर इशारा करते हैं.
एक सुरक्षा विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “केवल प्रशिक्षित विद्रोही ही ऐसी लड़ाई लड़ सकते हैं, स्थानीय आबादी नहीं. इंफाल घाटी बहुत पहले ही आगे बढ़ चुकी थी जबकि विद्रोहियों ने एक या दो हमलों के साथ प्रमुखता हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन जातीय संघर्ष के साथ, वो वापस आ गए हैं और आबादी ने उन्हें कुछ हद तक स्वीकार कर लिया है.”
मणिपुर के 80 प्रतिशत से अधिक विद्रोही हमले और मौतें 2010 से पहले दर्ज की गईं, जिनमें पिछले पांच वर्षों में इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, सेनापति और उखरुल सहित सात जिलों में कोई मृत्यु नहीं हुई.
लेकिन अब, स्थिति अलग है. मणिपुर पुलिस ने पिछले बुधवार को कहा था कि 3 मई को घाटी में मुख्य रूप से स्थित मैतेई और पहाड़ी जिलों में कुकी जनजातियों के बीच जारी जातीय हिंसा के बाद से राज्य भर में 175 लोग मारे गए हैं और 1,100 से अधिक घायल हुए हैं. अनौपचारिक रूप से, आंकड़े अधिक हो सकते हैं.
इस अस्थिर परिदृश्य ने राज्य में उग्रवाद के संबंध में चिंताओं को फिर से जगा दिया है, जिससे खासकर घाटी स्थित विद्रोही समूहों (वीबीआईजी) के साथ शांति समझौते की अपील की जा रही है.
इसके अलावा, हिंसा में वृद्धि ने घाटी क्षेत्रों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (एएफएसपीए) के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्ज़ा वापस लेने को लेकर बहस फिर से शुरू कर दी है. यह देखते हुए कि AFSPA एक विवादास्पद विषय बना हुआ है, गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में इसकी बहाली की मांग ने नागरिक समाज संगठनों के बीच आरोपों और प्रतिवादों को जन्म दिया है.
जिला-वार एसएटीपी डेटा से पता चलता है कि इस साल सशस्त्र हमलों से संबंधित सबसे अधिक मौतें घाटी के बिष्णुपुर जिले में हुई हैं, जिसमें 51 मौतें हुई हैं, जिनमें 28 ‘विद्रोही’, 20 नागरिक और तीन सुरक्षाकर्मी शामिल हैं. इसके बाद चूड़ाचांदपुर, पहाड़ी जिला है, जिसमें 14 मौतें दर्ज की गईं, जिनमें 5 ‘विद्रोही’, 7 नागरिक और दो सुरक्षाकर्मी शामिल हैं. एसएटीपी का उल्लेख है कि डेटा समाचार रिपोर्टों से संकलित किया गया है.
बिष्णुपुर घाटी के उन क्षेत्रों में से है जहां से AFSPA के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्ज़ा वापस ले लिया गया है, जबकि संघर्ष का केंद्र आदिवासी बहुल चूड़ाचांदपुर, AFSPA के अधिकार क्षेत्र में बना हुआ है.
जैसा कि कुकी और मैतेई समूह हत्याओं और हिंसा के आरोपों का आदान-प्रदान कर रहे हैं, मणिपुर को उग्रवाद और जबरन वसूली के दिनों में लौटने से रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर भी बहस उठ रही है.
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विद्रोही पहाड़ी-घाटी दोनों जगह सक्रिय
दिप्रिंट से बात करने वाले पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों के स्थानीय निवासियों के अनुसार, विद्रोही समूह मणिपुर के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय हैं, जो अशांत क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित और गैर-अधिसूचित दोनों स्थानों पर सक्रिय हैं.
गौरतलब है कि ये समूह राज्य के भीतर चल रहे जातीय संघर्ष में भागीदार बन गए हैं.
कुकी की ओर से विभिन्न गुटों के विद्रोहियों ने कथित तौर पर ग्राम रक्षा बलों के साथ हाथ मिलाया है जो लड़ाकू समूहों में संगठित हो गए हैं.
इस बीच, मैतेई की ओर से खबरों से संकेत मिलता है कि विद्रोही म्यांमार से लौट आए हैं और कथित तौर पर कुछ नागरिक समूहों के समर्थन से ‘अलग प्रशासन’ की कुकी-ज़ोमी की मांग का सक्रिय रूप से विरोध कर रहे हैं.
हालांकि, मणिपुर के पूर्व पुलिस प्रमुख और पूर्व डिप्टी सीएम युमनाम जॉयकुमार सिंह ने संकेत दिया कि ऐसी खबरों की अभी पुष्टि नहीं हुई है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “कौन उग्रवादी है और कौन नहीं, इसके बीच एक पतली लाइन है. राज्य और केंद्रीय सुरक्षा बलों को कानून के अनुसार और मणिपुर में सभी सशस्त्र आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने दें.”
उनके अनुसार, AFSPA की “संघर्ष में कोई प्रासंगिकता नहीं है” क्योंकि इसकी आवश्यकता केवल विद्रोहियों को निशाना बनाने के लिए है.
उन्होंने कहा, “इंफाल नगर पालिका क्षेत्र (जहां से अशांत क्षेत्र का दर्जा वापस ले लिया गया है) के भीतर गोलीबारी नहीं हुई है.”
लेकिन सुरक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वीबीआईजी के समूह, कोऑर्डिनेशन कमेटी (कोरकॉम) के तहत प्रतिबंधित संगठनों के मैतेई विद्रोही राज्य में लौट आए हैं.
कोरकॉम में कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी), कांगलेई यावोल कन्ना लुप (केवाईकेएल), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेइपाक (पीआरईपीएके), रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) – पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की राजनीतिक शाखा और यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) शामिल हैं.
विशेष रूप से 11 सितंबर की पीटीआई की एक खबर में सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया था कि “यूएनएलएफ, पीएलए, केवाईकेएल और पीआरईपीएके” जैसे प्रतिबंधित समूहों के विद्रोही टेंग्नौपाल जिले में उस भीड़ का हिस्सा थे, जहां से 8 सितंबर को गोलियां चलाई गईं, जिससे सेना के एक अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गया.
24 जून को सेना को 12 केवाईकेएल कैडरों को रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिन्हें मीरा पैबिस (मैतेई महिला सतर्कता) के साथ गतिरोध के बाद इंफाल में हिरासत में लिया गया था.
इनमें से एक व्यक्ति केवाईकेएल नेता मोइरांगथेम तांबा था, जिसे उत्तम के नाम से भी जाना जाता है, जिसने 2015 में 6 डोगरा रेजिमेंट पर घात लगाकर किए गए हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके परिणामस्वरूप 18 सैनिकों की मौत हो गई थी.
6 सितंबर को मोरेह में असम राइफल्स की एक टीम ने सैन्य खुफिया इकाई के इनपुट पर कार्रवाई करते हुए भारत-म्यांमार सीमा पर प्रतिबंधित पीएलए के एक “सक्रिय कैडर” को पकड़ लिया, जब वो “सीमा पार करने का प्रयास” कर रहा था. उसे मणिपुर पुलिस को सौंप दिया गया.
बाद में उस व्यक्ति की पहचान इंफाल पूर्व के स्वयंभू “लेफ्टिनेंट” शांति युमनाम के रूप में की गई, जो म्यांमार में पीएलए के मुख्यालय में तैनात नेतृत्व समूह का हिस्सा था.
#AssamRifles in #Manipur apprehend an active PLA cadre, along the Indo-Myanmar border near #Moreh, attempting to cross the border. The individual has been handed over to @manipur_police.@SpokespersonMoD @DiprManipur @official_dgar @PIBImphal pic.twitter.com/N6WHH3SW3U
— PRO, Kohima & Imphal, Ministry of Defence (@prodefkohima) September 7, 2023
इंफाल में अनुभवी पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता यमबेम लाबा ने कहा, “विद्रोहियों को पता है कि अगर वो अब लोगों की नहीं सुनते हैं तो वो कभी भी अपने वतन नहीं लौट सकते. “सरकार को सभी मैतेई सशस्त्र समूहों को बातचीत कर मुद्दे का सम्मानजनक समाधान ढूंढना चाहिए. एक उपयुक्त वातावरण और विश्वास होना चाहिए.”
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‘वाइल्ड वेस्ट स्थिति’
पहाड़ी और घाटी दोनों क्षेत्रों के नागरिक स्रोतों ने बताया है कि तलहटी के पास विभिन्न स्थानों पर “विद्रोही सक्रिय हैं”.
जबकि कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (केएनओ) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (यूपीएफ) से जुड़े 25 सशस्त्र कुकी समूहों ने 2008 में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, चिंताएं हैं कि वे अब निष्क्रिय नहीं हैं.
मई में हुई झड़पों के बाद कुकी सशस्त्र गुटों की भागीदारी और एसओओ समझौते के पालन के साथ-साथ घाटी और पहाड़ी क्षेत्रों में राज्य के शस्त्रागारों से बड़े पैमाने पर हथियारों की लूट के बारे में सवाल उठे हैं.
मणिपुर पुलिस ने अपने बुधवार के बयान में कहा कि संघर्ष शुरू होने के बाद से पुलिस शस्त्रागारों से 5,668 हथियार, 6.6 लाख राउंड गोला बारूद और 14,825 बम लूटे गए हैं.
अब तक सुरक्षा बलों ने चल रहे अभियानों में 1,329 हथियार, 15,050 राउंड गोला-बारूद और 400 बम सफलतापूर्वक बरामद किए हैं.
लाबा ने कहा, “बंदूकें कई वर्षों तक इधर-उधर घूम सकती हैं. अगर उन्हें बरामद नहीं किया गया तो ‘वाइल्ड वेस्ट’ जैसी स्थिति पैदा हो सकती है.”
रंगदारी बढ़ रही है?
मणिपुर में हिंसा के कारण कथित तौर पर घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में विद्रोही समूहों और उनके भूमिगत गुर्गों द्वारा जबरन वसूली की मांग में वृद्धि हुई है.
उदाहरण के लिए इंफाल के सूत्रों ने कहा कि प्रतिबंधित संगठनों पीआरईपीएके, यूएनएलएफ, केसीपी, पीएलए और अन्य आतंकवादी समूहों द्वारा दुकानदारों को फिरौती के नोटिस दिए गए थे, जो अपने-अपने क्षेत्रों में जबरन वसूली के माध्यम से हथियार देते हैं.
खुफिया सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पहाड़ियों में यूनाइटेड कुकी लिबरेशन फ्रंट (यूकेएलएफ), कुकी नेशनल आर्मी (केएनए), ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) और छोटे संगठन कथित तौर पर गैर-स्थानीय लोगों से पैसे की मांग कर रहे हैं.
खुफिया सूत्रों ने बताया कि पहाड़ियों और घाटी के सभी विद्रोही शिविरों में भर्ती में भी वृद्धि हुई है.
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‘अधिसूचित क्षेत्रों में स्थिति नाजुक’
एक सुरक्षा सूत्र के अनुसार, “गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था की स्थिति नाजुक है”.
पिछले छह महीनों में गिरफ्तार किए गए 367 व्यक्तियों में से एक महत्वपूर्ण बहुमत — 277 लोग — घाटी के भीतर गैर-अधिसूचित क्षेत्रों से पकड़े गए थे.
सूत्र ने बताया कि एक अप्रैल से 10 सितंबर तक राज्य भर में सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए संयुक्त अभियानों में कुल 16 विद्रोहियों, सात तस्करों और 254 सशस्त्र प्रदर्शनकारियों को गैर-अधिसूचित क्षेत्रों से पकड़ा गया.
सूत्र ने आगे दावा किया कि पिछले साल घाटी के गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में 28 कम तीव्रता वाले विस्फोट हुए, जिनमें से ज्यादातर जबरन वसूली के मामलों से जुड़े थे.
सूत्र ने दावा किया कि इसकी तुलना में अप्रैल-सितंबर की अवधि के दौरान, पहाड़ी इलाकों में जहां AFSPA लागू है, वहां 90 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था और इनमें से किसी भी मामले में विद्रोही शामिल नहीं थे.
जबकि अधिसूचित और गैर-अधिसूचित दोनों क्षेत्रों में आगजनी और हत्या की घटनाओं के लिए एफआईआर की विशिष्ट संख्या की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी है, 3 मई को हिंसा फैलने के बाद से राज्य में 9,300 से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं.
‘विद्रोहियों’ पर AFSPA की मांग
कुकी और मैतेई समुदायों के नागरिक समाज संगठनों ने एएफएसपीए के कार्यान्वयन पर विरोधी रुख अपनाया है.
एक प्रमुख आदिवासी संगठन कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (सीओटीयू) सदर हिल्स ने विशेष रूप से 12 सितंबर की शुरुआत में कांगपोकपी जिले में तीन कुकी-ज़ो गांव के स्वयंसेवकों की हत्या के बाद, घाटी क्षेत्रों में एएफएसपीए को फिर से लागू करने का आह्वान किया है.
हालांकि, घाटी स्थित नागरिक समाज संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाली मणिपुर इंटीग्रिटी (COCOMI) पर समन्वय समिति ने पिछले बुधवार को एक बयान जारी किया, जिसमें कुकी सीएसओ की मांग को “अतार्किक” बताया गया.
उनके बयान में दावा किया गया कि फिरौती की मांग और हत्याएं मुख्य रूप से “कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों” में हो रही हैं. इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि कानून और व्यवस्था के सबसे अधिक उल्लंघन वाले क्षेत्र कुकी विद्रोहियों के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) शिविरों के स्थानों के साथ मेल खाते हैं.
लेकिन आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए गए हैं.
13 सितंबर 13 को मान्यता प्राप्त कुकी-ज़ोमी जनजातियों के गठबंधन, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने बिष्णुपुर और लम्का (चूड़ाचांदपुर) के बीच एक बफर जोन में तैनात मणिपुर पुलिस उप-निरीक्षक ओन्खोमांग हाओकिप की हत्या की कड़ी निंदा की. आईटीएलएफ की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “घाटी-आधारित विद्रोही समूह से जुड़े एक स्नाइपर” ने सब-इंस्पेक्टर को गोली मार दी, जो कुकी-ज़ो समुदाय से था.
विज्ञप्ति में कहा गया है, “मणिपुर में कुकी-ज़ो आदिवासियों की हाल की सभी हत्याओं के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित मैतेई अलगाववादियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इसलिए, हम केंद्र सरकार और केंद्रीय सुरक्षा बलों से वीबीआईजी के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं.”
इस बीच चूड़ाचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों के बीच तलहटी गांवों के कुछ निवासियों ने दिप्रिंट को बताया कि वे क्षेत्र में वीबीआईजी के सदस्यों को आसानी से पहचान सकते हैं.
एक तलहटी गांव के निवासी मांग ने कहा, “वे 20 साल से अधिक समय से आदिवासी बहुल इलाकों में काम कर रहे हैं, इसलिए उन्हें पहचानना मुश्किल नहीं है. गोली चलाने के लिए प्रशिक्षित लोगों को अप्रशिक्षित लोगों से अलग किया जा सकता है.”
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परस्पर विरोधी विचार
AFSPA को केवल ‘अशांत क्षेत्र’ के रूप में नामित क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है, जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से लिया गया फैसला है.
9 सितंबर को मणिपुर कैबिनेट ने कथित तौर पर इंफाल के नगरपालिका क्षेत्रों और 19 थानों के अधिकार क्षेत्र के क्षेत्रों को छोड़कर, अगले छह महीने के लिए AFSPA के तहत “अशांत क्षेत्र” पदनाम के विस्तार को मंजूरी दे दी.
हालांकि, इस फैसले की पुष्टि करने वाली कोई आधिकारिक अधिसूचना नहीं आई है.
अप्रैल 2022 में घाटी के छह जिलों के 15 थाना क्षेत्रों से अशांत क्षेत्र का दर्ज़ा हटा दिया गया था. मार्च 2023 में पूर्वोत्तर में “बेहतर सुरक्षा स्थिति” के केंद्र सरकार के आकलन के आधार पर चार थानों को सूची में जोड़ा गया था. इन नए परिवर्धन में इंफाल पश्चिम जिले में वांगोई थाने, कांगपोकपी में लीमाखोंग और बिष्णुपुर में नंबोल और मोइरंग थाना शामिल हैं.
24 मार्च की अपनी अधिसूचना में राज्य के गृह विभाग ने मणिपुर के राज्यपाल की राय का हवाला दिया कि “विद्रोही समूहों की हिंसक गतिविधियों के लिए 19 पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों को छोड़कर पूरे राज्य में नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों के उपयोग की आवश्यकता है.”
ये बाहर किए गए थाने इंफाल, थौबल, बिष्णुपुर, मोइरांग और काकचिंग में स्थित हैं, जहां महत्वपूर्ण अशांति देखी गई है, खासकर घाटी और पहाड़ी जिलों के बीच परिधीय गांवों में.
राज्य के बाकी हिस्सों में AFSPA सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने, सशस्त्र संघर्ष में शामिल होने या आसन्न खतरा पैदा करने के संदेह वाले लोगों के खिलाफ “बल का उपयोग करने, यहां तक कि मौत का कारण बनने तक” का अधिकार देता है.
कुछ कुकी-ज़ो नेताओं का तर्क है कि घाटी क्षेत्रों से AFSPA की वापसी और सैन्य समर्थन की अनुपस्थिति ने संघर्ष को और खराब कर दिया है, लेकिन मैतेई समुदाय के अन्य लोगों का तर्क है कि घाटी में AFSPA लागू रहने से और अधिक खून-खराबा हो सकता था.
दिप्रिंट से बात करते हुए लेखक और इतिहासकार मालेम निंगथौजा ने कहा कि AFSPA कोई समाधान नहीं है.
निंगथौजा ने कहा, “दंगा तो दंगा ही होता है, चाहे अफस्पा के साथ हो या उसके बिना. हिंसा का वर्तमान दौर और विद्रोही गतिविधियों में वृद्धि राजनीतिक दोष रेखाओं के कारण है. इसे राजनीतिक रूप से देखा जाना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “जब हिंसा भड़की तो केंद्रीय बलों को तैनात किया गया. क्या इससे हिंसा रोकने में मदद मिल सकती है? क्या सेना सभी को मार गिराने की स्थिति में होगी? सेना और पुलिस उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करते हैं.”
राज्य सरकार द्वारा सुरक्षा स्थिति का आकलन करने के साथ, AFSPA को नियमित रूप से हर छह महीने में बढ़ाया जाता रहा है.
लेकिन निंगथौजा ने तर्क दिया कि यह मणिपुर में उग्रवाद को दबाने में विफल रहा है और उत्पीड़न और अधिकारों के दुरुपयोग का प्रतीक बन गया है.
निंगथौजा ने कहा, “AFSPA एक ऐसे समय में उग्रवाद से निपटने के लिए राजनीतिक रूप से डिज़ाइन किया गया संयम तंत्र है जब राज्य पुलिस को इसे संभालने के लिए पर्याप्त रूप से परिष्कृत नहीं माना जाता था, लेकिन AFSPA ने मणिपुर में उग्रवाद को कहीं नहीं रोका है. एएफएसपीए के बाद, मणिपुर में विद्रोही समूहों में वृद्धि देखी गई है.”
उन्होंने कहा, “भारतीय थिंक टैंक और आधिकारिक सिफारिशों ने एएफएसपीए को निरस्त करने की मांग की थी और यही कारण है कि कुछ स्थानों से अशांत क्षेत्र टैग हटा दिए गए हैं. सरकार को ऐसा माहौल बनाने के लिए प्रगतिशील तंत्र की तलाश करनी चाहिए जहां उग्रवाद निरर्थक हो जाए.”
रक्षा सूत्रों ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि विशेष क्षेत्रों से AFSPA हटाने का मतलब है कि प्रशासनिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए इन स्थानों से गुज़रने वाले सशस्त्र बल अभी भी सुरक्षा के लिए सुरक्षा का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन उग्रवाद विरोधी अभियान शुरू नहीं कर सकते हैं.
इसके बजाय ऐसे सभी ऑपरेशन राज्य पुलिस द्वारा किए जाएंगे और सेना “केवल तभी संचालन करेगी जब नागरिक प्रशासन द्वारा अनुरोध या अपेक्षित होगा”.
सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया था, हालांकि, खुफिया जानकारी एकत्र करना और साझा करना गैर-अधिसूचित क्षेत्रों के लिए भी जारी रहेगा.
नागरिकों और सेना के बीच विश्वास नहीं
वर्षों से भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस कमांडो के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ हत्याओं के आरोप लगाए गए हैं, 2000 और 2012 के बीच राज्य में कथित तौर पर 1,528 से अधिक ऐसे मामले हुए हैं.
मणिपुर में सेनाओं और स्थानीय आबादी के बीच विश्वास कायम करना एक चुनौती बनी हुई है. पिछले दशक में हुई कुछ प्रगति के बावजूद, वर्तमान संघर्ष ने तेजी से गलतियां उजागर कर दी हैं.
असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस कमांडो के बीच कथित मतभेदों से स्थिति और खराब हो गई है, जिनमें मुख्य रूप से मैतेई शामिल हैं. तलहटी में तैनात दोनों सेनाओं के बीच कुछ मौकों पर तीखी बहस हुई है.
छीने गए हथियारों और गोला-बारूद को बरामद करने के लिए गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में मजिस्ट्रेटों की मौजूदगी में तलाशी अभियान के दौरान मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को लेकर भी मतभेद सामने आए. दोनों समुदायों के स्थानीय लोगों का आरोप है कि दोनों सेनाएं जातीय संघर्ष में शायद ही कभी तटस्थ भूमिका निभाती रही हैं.
जून में COCOMI ने “घाटी क्षेत्रों में सुरक्षा बलों द्वारा सैन्य अभियानों की अनुमति नहीं देने” के अपने संकल्प की घोषणा की.
2022 के मणिपुर विधानसभा चुनावों के दौरान गठित एक राजनीतिक दल कुकी पीपुल्स एलायंस के महासचिव लालम हैंगशिंग ने कहा, “जो लोग कानून और व्यवस्था बहाल करना चाहते हैं, वे चाहेंगे कि घाटी के इलाकों में एएफएसपीए वापस लाया जाए, क्योंकि यहां पुलिस लगभग नॉन ऑपरेशनल है.”
उन्होंने कहा, “घाटी में उपद्रवियों को कोई डर नहीं है क्योंकि कोई उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगा, या उचित जांच भी नहीं करेगा.”
विशेष रूप से इस तरह की आलोचना के बीच 18 सितंबर को मणिपुर पुलिस ने एक्स (ट्विटर) पर “जबरन वसूली की धमकियों, पुलिस वर्दी के दुरुपयोग और सशस्त्र बदमाशों द्वारा प्रतिरूपण” के मद्देनजर “असामाजिक तत्वों” के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई पर प्रकाश डाला.
Strict Legal Action Taken up against Anti-Social Elements by Manipur Police:
There have been protests today as well against the arrests of 05 (five) persons at Porompat PS on 16.09.2023. It may be recalled that in view of extortion threats, misuse of police uniform and…
— Manipur Police (@manipur_police) September 18, 2023
पुलिस ने कहा कि छद्मवेशी कपड़े पहने और अत्याधुनिक हथियार लेकर आए पांच लोगों को शनिवार को गिरफ्तार किया गया और बाद में हिरासत में भेज दिया गया. गिरफ्तारियों से जनता में आक्रोश फैल गया और प्रदर्शनकारियों ने पोरोम्पैट थाने पर धावा बोल दिया. स्थानीय समूहों ने पांच लोगों की बिना शर्त रिहाई की मांग करते हुए मंगलवार से इंफाल घाटी में 48 घंटे के बंद का आह्वान किया है.
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अफस्पा क्यों?
मानवाधिकार कार्यकर्ता बब्लू लोइटोंगबाम का तर्क है कि यदि सेना AFSPA लागू करना ज़रूरी समझती है, तो इसे मानवाधिकारों पर विशेष ध्यान देते हुए किया जाना चाहिए.
जबकि लोइटोंगबाम ने पूरे राज्य से AFSPA को हटाने की वकालत की है, उन्होंने कहा, “अगर हमारे कुकी भाई अपने क्षेत्र में एएफएसपीए का समर्थन करते हैं, तो ऐसा ही होगा”.
उन्होंने स्पष्ट किया, “नागरिक प्रशासन की पूरी तरह से सहायता के लिए है कि AFSPA लगाया गया है. इंफाल घाटी क्षेत्रों से अशांत क्षेत्र का दर्जा़ वापस लेने के साथ, पुलिस कार्य कर सकती है और कार्यभार संभाल सकती है. पहाड़ियों में मणिपुर पुलिस की बहुत कम उपस्थिति है, पुलिस बल में जातीय संरचना भी एक कारक है.”
उनके अनुसार, भले ही पहाड़ी जिलों में AFSPA लगाया गया हो, लेकिन केंद्रीय बल संघर्ष की स्थिति के दौरान अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग नहीं कर रहे हैं.
उन्होंने पूछा, “एएफएसपीए के बिना भी, सीआरपीसी की धारा 133 के तहत, केंद्रीय सशस्त्र बल फ्लैग मार्च संचालित और संचालित कर सकते हैं. क्या उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसा किया है?”
इस बीच, निंगथौजा ने कहा कि एएफएसपीए के बिना सैन्य तैनाती और आतंकवाद विरोधी अभियान हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, “मणिपुर पुलिस द्वारा उग्रवाद विरोधी अभियानों में घाटी में अनगिनत लोग मारे गए हैं. यह राज्य बल है जिसका AFSPA से कोई लेना-देना नहीं है जिसने अधिकतम हत्याएं और गिरफ्तारियां कीं हैं.”
दूसरी ओर, केपीए महासचिव हैंगशिंग ने दावा किया कि AFSPA लगाने से कुकी समुदाय पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि कुकी सशस्त्र समूह “अलगाववादी नहीं” थे.
उन्होंने दावा किया, “90 के दशक की शुरुआत से सेना कुकी सशस्त्र समूहों के साथ संघर्ष में नहीं आई है, जो नागा विद्रोहियों से समुदाय की रक्षा के लिए उसी समय गठित किए गए थे. नागा विद्रोहियों को रोकने के लिए पहाड़ियों में AFSPA आवश्यक था.”
1990 के दशक की शुरुआत में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम-इसाक मुइवा (एनएससीएन-आईएम) ने कथित तौर पर मणिपुर में कुकी के खिलाफ जातीय सफाई अभियानों की एक श्रृंखला चलाई. इसके परिणामस्वरूप प्रतिशोध में कई कुकी सशस्त्र संगठनों का गठन हुआ.
नागाओं और कुकियों के अतिव्यापी क्षेत्रीय दावे दशकों से तनाव और संघर्ष का स्रोत रहे हैं, लेकिन 13 सितंबर को “सहनित नी” (कुकी काला दिवस) मनाने से पहले केपीए ने मणिपुर में नागा समुदाय से “अखिल-मणिपुर आदिवासी एकता” के लिए एक साथ आने की अपील की. कांगपोकपी में कुकी प्रमुखों और नागरिक समाजों ने भी इस अवसर पर काले झंडे नहीं प्रदर्शित करने का फैसला लिया. केपीए ने इसे “भविष्य की शांति और विकास” के लिए “अतीत को दफनाने” का एक संकेत करार दिया.
इन प्रस्तावों के बावजूद, एनएससीएन-आईएम के एक डिप्टी किलोंसर (कैबिनेट मंत्री) ने कहा कि नागा और कुकी केवल ईसाई धर्म की छत्रछाया में एक साथ आ सकते हैं, किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा या विचारधारा के तहत नहीं. उन्होंने कहा, “आदिवासियों के एक साथ आने का कोई मौका नहीं है क्योंकि हम इतिहास नहीं बदल सकते, हम सांस्कृतिक रूप से अलग हैं और वैचारिक रूप से अलग हैं.”
‘हम मणिपुर को वापस नहीं जाने दे सकते…’
पूर्व पुलिस प्रमुख वाई जॉयकुमार ने कहा कि “अगर गोलीबारी जारी रही तो कोई समाधान नहीं हो सकता.”
उन्होंने कहा, “सेना और असम राइफल्स को अपनी भूमिका में तटस्थ रहना चाहिए और कुकी और घाटी-आधारित सशस्त्र समूहों दोनों के खिलाफ समान रूप से कार्य करना चाहिए. राज्य पुलिस ने अतीत में मैतेई उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई की है.”
जॉयकुमार ने मणिपुर को उग्रवाद के दिनों में लौटने से रोकने के महत्व को भी रेखांकित किया.
उन्होंने कहा, “हम मणिपुर को उग्रवाद के पुराने दिनों में वापस नहीं जाने दे सकते. सभी मैतेई उग्रवादी गुटों को बातचीत की मेज पर लाना और बातचीत करना, युद्धविराम या संचालन को निलंबित करने के रूप में कुछ समाधान निकालना महत्वपूर्ण है. आपको उन्हें मनाना होगा.”
मणिपुर के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक म्यांमार से सीमा पार घुसपैठ का खतरा है, जहां कई विद्रोही समूहों को सुरक्षित ठिकाना मिल गया है.
कथित तौर पर विद्रोही शिविर घने जंगलों वाली सीमा के दक्षिणी किनारे पर और आगे उत्तर में मोरेह और तमू के पास स्थित हैं.
पिछले कुछ वर्षों में सशस्त्र बलों ने पूरे राज्य में कई आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए हैं, लेकिन मौजूदा जातीय संघर्ष के बीच, इनसे मिलने वाला लाभ भी कुछ जोखिम में प्रतीत होता है.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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