नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) हिन्दुओं के अंतिम संस्कार में चिता की तैयारी करवाने वाले दलित समुदाय की उप जाति डोम को बनारस में ‘अछूत’ माना जाता है। ‘फायर ऑन गैंजेस : लाइफ अमंग द डेड इन बनारस’ शीर्षक नयी पुस्तक में इस समुदाय के संघर्ष और अस्तित्व, हानि और महत्वाकांक्षा, धोखा और प्रेम की कहानियों को उकेरा गया है। साथ ही इसमें उस संघर्ष को रेखांकित किया गया जो यह समुदाय प्राचीन हिन्दू परंपरागत पहचान से बाहर निकलकर अपना अस्तित्व तलाशने के लिए कर रहा है।
पत्रकार राधिका अय्यंगर की इस किताब को हार्पर कॉलिंस इंडिया के फोर्थ एस्टेट ने प्रकाशित किया है। यह पुस्तक बनारस के इतिहास में उतरकर डोम समुदाय के रोजमर्रा की वास्तविकता से दुनिया को वाकिफ कराने का प्रयास है।
अय्यंगर ने एक बयान में कहा, ‘‘यद्यपि मेरी शुरुआती रिपोर्टिंग डोम समुदाय के विरोधाभास की जांच के माध्यम से हुई थी जो सवर्ण हिंदुओं की चिंता जलाने की व्यवस्था संभालते हैं किंतु हिंदू इन्हें अस्पृश्य मानते हैं। मेरा इस समुदाय के पास बार-बार लौटना हुआ जो जन चेतना में रखी जाने वाली एकांगी पहचान से कहीं अधिक (पहचान रखती) है।’’
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि हिन्दू समुदाय में अंतिम संस्कार के दौरान चिता पर डोम का स्वामित्व होता है और अग्नि संस्कार के बिना आत्मा को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति नहीं मिल सकती। है।
हार्पर कालिंस के कार्यकारी प्रकाशक उदयन मित्र ने कहा, ‘‘हम डोम समुदाय के बारे में बहुत कम जानते हैं, जो शव का अंतिम संस्कार करने में बहुत महत्वपूर्ण सेवा देते हैं, डोम समाज के हाशिये पर जीवन बसर करते हैं, उनका जीवन गुमनामी में घिरा रहता है। राधिका अयंगार की पुस्तक बनारस के डोम समुदाय के सदस्यों के कभी न भुलाये जाने वाले तौर-तरीको को हमारे सामने लाती है। बनारस को प्राचीन एवं पवित्र नगरी माना जाता है और यहां हिंदुओं की मृत्यु होना शुभ माना जाता है।’’
यह पुस्तक सितंबर में बाजार में आएगी।
भाषा अर्पणा माधव
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