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Monday, 4 November, 2024
होमदेश‘कुछ नौकरियां, न अच्छा वेतन, तो यहां क्यों रुकें?’ पंजाब के युवाओं में IELTS के लिए जुनून और पलायन की क्या है वजह

‘कुछ नौकरियां, न अच्छा वेतन, तो यहां क्यों रुकें?’ पंजाब के युवाओं में IELTS के लिए जुनून और पलायन की क्या है वजह

पिछले पांच सालों में तकरीबन हर 33 में से एक पंजाबी ने भारत छोड़ दिया, जिसमें लाखों छात्र शामिल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सिस्टम का हिस्सा बन चुकी समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जाएगा, राज्य में पलायन का संकट लगातार बढ़ता रहेगा.

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पटियाला/जालंधर: हायर सेकेंडरी तक शिक्षा पूरी कर लेने का मतलब आमतौर पर तो यही होता है कि कोई छात्र कॉलेज जाएगा या कोई वोकेशनल कोर्स शुरू करेगा, लेकिन पंजाब के तमाम युवाओं के लिए इसका मतलब होता है अंग्रेजी सीखने के लिए कोचिंग क्लासेज शुरू करना.

जालंधर से करीब 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित एक छोटे से शहर करतारपुर में हाल में स्कूली पढ़ाई पूरी करके निकले छात्रों की एक भीड़ नजर आती है जिन्होंने इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम (आईईएलटीएस) की परीक्षा की तैयारी संबंधी कोर्स कराने वाले संस्थानों में अपनी सीटें सुरक्षित कराई हैं. यह टेस्ट विदेश में पढ़ने या काम करने के इच्छुक लोगों के लिए पास करना आवश्यक होता है और करतारपुर में लगभग हर दूसरा युवा इसी की तैयारी में लगा है.

जालंधर के साथ यह शहर भी पंजाब के दोआबा क्षेत्र में आता है, जिसे एनआरआई बेल्ट भी कहा जाता है और यहां के लोगों का सबसे बड़ा सपना भारत से बाहर जाना ही होता है.

इन शहरों में आईईएलटीएस कोचिंग चलाने वाले संस्थानों या कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के झंडों के साथ चमचमाती इमारतों वाले विज्ञापनों के होर्डिंग्स से बचना मुश्किल है.

विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन की तरफ से लोकसभा में दिए गए जवाब के मुताबिक, 2016 से फरवरी 2021 के बीच लगभग 9.84 लाख लोग पंजाब और चंडीगढ़ (3.79 लाख छात्रों और छह लाख से अधिक श्रमिक) से दूसरे देशों में चले गए.

इस आंकड़े की यदि पंजाब और चंडीगढ़ की 2020 की अनुमानित जनसंख्या के साथ तुलना की जाए तो पता चलता है कि पिछले पांच सालों में तीन फीसदी यानी हर 33 में से एक पंजाबी विदेश चला गया.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

हालांकि, केरल की आबादी का भी एक बड़ा प्रतिशत— करीब 6 फीसदी— भी इसी अवधि के दौरान विदेश चला गया, लेकिन जो बात पंजाब को इस मामले में अलग करती है वो है छात्रों का अनुपात, जो शिक्षा हासिल करने और अपनी जड़ें जमाने के लिए यहां से पलायन करते हैं.

पंजाब से बाहर जाने वालों में करीब 38 प्रतिशत स्टूडेंट वीजा पर गए, जबकि केरल में यह श्रेणी राज्य के आप्रवासियों का सिर्फ 5 प्रतिशत थी.

एक और अंतर भी है.

केरल का अधिकांश प्रवास मध्य पूर्व या खाड़ी देशों की तरफ होता है, जो स्थायी निवास या नागरिकता नहीं देते हैं. इसलिए, कई मामलों में यह प्रवास अस्थायी होता है और परिवार घर में ही रहते हैं.

हालांकि, रिपोर्टों के मुताबिक पंजाब में पूरे गांव के गांव खाली हो रहे हैं और लोग अपनी जमीनें बेच तक दे रहे हैं, यह दर्शाता है कि जाने वाले लोगों का वापस लौटने का कोई इरादा नहीं है.

पंजाब में नौकरी के अवसरों की कमी के अलावा राज्य के छात्र अच्छी शिक्षा व्यवस्था के अभाव के भी शिकार हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक पंजाब में सिस्टम का हिस्सा बन चुकी समस्याओं का समाधान नहीं निकाला जाता है, तब तक पलायन राज्य के लिए एक बड़ा संकट बना रहेगा.


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यह सब इंग्लिश-विंग्लिश पर टिका है

करतारपुर स्थित मैट्स इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिश लैंग्वेज में दिप्रिंट ने जितने छात्रों से बात की, वह सब कनाडा में बसना चाहते थे. यहां आसपास के गांवों के रहने वाले तमाम छात्रों के लिए अंग्रेजी लिखना-बोलना एक कठिन काम है लेकिन विदेशों में अपने लिए अच्छे अवसरों को लेकर वे काफी उत्साहित और आशान्वित दिखते हैं.

18 साल की तरनजीत कौर ने हाल ही में कॉमर्स स्ट्रीम में स्कूल की पढ़ाई पूरी की है और एक बार बाहर निकलने के बाद वह एक ‘सफल उद्यमी’ बनने की इच्छा रखती है. वह कहती है, ‘पंजाब में कोई अच्छा अवसर मिलना मुश्किल है. जो हैं भी उनमें भुगतान अच्छा नहीं है.’

करतारपुर स्थित आईईएलटीएस कोचिंग क्लास | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

18 वर्ष के सम्मोहित की योजना भी एकदम स्पष्ट है: ‘पढ़ो, नौकरी पाओ, और पीआर (स्थायी निवास) ले लो.’ वह जानता है कि विदेश में पढ़ाई करने के दौरान उसे अपने खर्च उठाने के लिए कोई पार्टटाइम जॉब करने की जरूरत पड़ सकती है. लेकिन वह इसके लिए पूरी तरह तैयार है.’

उसने कहा, ‘पंजाब में अभी अवसरों की बहुत कमी है. मुझे खाना पकाने का शौक है, इसलिए मैं एक पार्टटाइम कुक के तौर पर काम कर सकता हूं और पढ़ाई के दौरान अच्छी कमाई कर सकता हूं…ये कुछ ऐसा है जो यहां असंभव है.’ साथ ही बताया कि भारत में इस तरह की नौकरी से हर माह केवल 10,000 से 12,000 रुपये की ही कमाई हो सकती है.

जब दिप्रिंट ने संस्थान के युवाओं से जानना चाहा कि ऐसा क्या है जो उन्हें भारत में ही बने रहने के लिए तैयार कर सकता है तो अधिकांश का यही जवाब था, ‘हमें अवसर मुहैया कराएं और अच्छा वेतन सुनिश्चित करें.’

हालांकि, बुनियादी स्तर पर अंग्रेजी कमजोर होने के कारण इनमें से कई छात्र विदेश में पढ़ाई के लिए तैयार नहीं हैं.

कोचिंग संस्थान की प्रशासनिक निदेशक मोनिता ढींगरा के मुताबिक, अधिकांश छात्रों का बुनियादी अंग्रेजी ज्ञान बहुत ही कमजोर होता है.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

धींगरा ने कहा, ‘सामान्य परिवारों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आईईएलटीएस कोचिंग सेंटर्स में अंग्रेजी की मूल बातें सीख रहे हैं. स्कूल में उनकी नींव उतनी मजबूत नहीं होती है जिससे उनके लिए वांछनीय आईईएलटीएस स्कोर हासिल करना मुश्किल हो जाता है.’ साथ ही जोड़ा पिछले एक दशक में आईईएलटीएस बिजनेस ‘करीब 10 गुना’ बढ़ गया है.

दरअसल, आईईएलटीएस की तरफ से पहली भाषा की पृष्ठभूमि के आधार पर छात्रों के औसत स्कोर के आंकड़े सार्वजनिक किए गए हैं, जिससे पता चलता है कि भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं में पंजाबी बोलने वालों का स्कोर सबसे कम रहा है. टेस्ट में शामिल किसी पंजाबी परीक्षार्थी (एकेडमिक कैटेगरी के तहत) का कुल औसत बैंड स्कोर 5.8 था. इसी संदर्भ में बात करें तो मराठी और कन्नड़ बोलने वालों में यह स्कोर 6.7, तमिलभाषियों के लिए 6.6, हिंदी में 6.4, तेलुगु और बंगाली बोलने वालों में 6.2 और गुजराती भाषियों के लिए 6.0 था. विदेशों में अधिकांश यूनिवर्सिटी के लिए 6.0 के न्यूनतम बैंड स्कोर की आवश्यकता होती है (अधिकतम बैंड स्कोर 9.0 होता है).

पिछले साल नवंबर में प्रकाशित एक पीआरएस रिपोर्ट का डेटा बताता है कि 2021-22 में पंजाब ने अपने बजट का 12 फीसदी हिस्सा शिक्षा के लिए आवंटित किया था जो इसे 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 26वें स्थान पर रखता है.

इसके भी स्पष्ट संकेत हैं कि राज्य के सरकारी स्कूल बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान नहीं करते. उदाहरणस्वरूप, 2018 के आंकड़ों के आधार पर शिक्षा संबंधी वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) बताती है कि सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 के बच्चों में से केवल 58 प्रतिशत ही अक्षरों को पढ़ सकते हैं और 67 प्रतिशत संख्या पहचान सकते हैं. इसके विपरीत, निजी स्कूलों में कक्षा 1 के छात्रों के मामले में ये आंकड़े क्रमशः 83 प्रतिशत और 94 प्रतिशत थे.

नीति आयोग के सतत विकास सूचकांक के मुताबिक भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मानकों के मामले में पंजाब का प्रदर्शन खराब रहा है. 2019 में इसकी रैंक 2018 की तुलना में 14 से बढ़कर 7 हो गई थी लेकिन 2020 में यह 60 के स्कोर के साथ फिसलकर 11वें स्थान पर पहुंच गई. जो कि तीन वर्षों के मूल्यांकन में सबसे कम थी.


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‘अच्छी नौकरी के लिए परिवार से दूर रहने की मजबूरी’

पंजाब की अर्थव्यवस्था, जिसे कभी भारत में सबसे धनी राज्य माना जाता था, पिछले कई सालों से कृषि, औद्योगिक और सेवाओं आदि सभी क्षेत्रों में स्थिर होकर रह गई है.

बहुत अधिक नौकरियां नहीं हैं और यहां तक कि पंजाब सरकार भी नई भर्तियों के मामलों में बहुत सीमित भुगतान करती है, उन्हें तीन साल तक चलने वाले प्रोबेशन पीरियड के दौरान केवल मूल वेतन— मतलब आवास भत्ता या अन्य कोई लाभ नहीं— का ही भुगतान किया जा रहा है. इस तरह के कदमों का कोई बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला है.

पटियाला स्थित पंजाबी यूनिवर्सिटी के खालसा कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर रहे लखविंदर सिंह गिल कहते हैं, ‘इस सबसे भुगतान की एक सीमा तय हो जाती है. जब सरकार ही कम वेतन की पेशकश करती है, तो निजी क्षेत्र भी उसके नक्शेकदम पर चलकर कम भुगतान ही करेगा. इसकी वजह से शुरुआती वेतन कम रहता है…नतीजा यह होता है कि पढ़े-लिखे कुशल श्रमिक ऐसी नौकरियों की तलाश करते हैं जहां उन्हें अधिक भुगतान किया जाता है.’

करतारपुर स्थित कोचिंग क्लासेज के लगे बिलबोर्ड्स | फोटो: रीति अग्रवाल/दिप्रिंट

यहां तक कि जो छात्र पंजाब में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं, उन्हें भी इस बात का भरोसा नहीं है कि आगे राज्य में उन्हें अच्छे अवसर मिल पाएंगे.

पटियाला स्थित पंजाबी यूनिवर्सिटी के लॉन में बैठे छात्र अपनी कक्षाओं और दोस्तों के बारे में तो खूब बातें करते हैं लेकिन उनसे उनके भविष्य के बारे में पूछते ही उनका मूड बिगड़ जाता है.

मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रहे 23 साल के हरजिंदर सिंह का मानना है कि बड़े पैमाने पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण राज्य को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की गंभीर आवश्यकता है लेकिन अब वह कहीं और रोजगार तलाशने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि ‘वेतन बहुत कम है.’

हरजिंदर के दोस्त लवप्रीत सिंह भी कुछ समय बाद इस ग्रुप में शामिल हो गया. लवप्रीत ने पटियाला के पास राजपुर स्थित निजी यूनिवर्सिटी चितकारा में पढ़ाई की है लेकिन इस समय मुंबई में डिजाइन और एनिमेशन संबंधी काम करता है.

लवप्रीत के मुताबिक, ‘मुझे याद है कि मेरे 80-90 फीसदी दोस्तों को नोएडा या बेंगलुरू या मुंबई जाना पड़ा था. पंजाब के पास हमारे लिए कोई नौकरी नहीं थी. अभी कुछ नौकरियां तो हैं लेकिन वेतन बहुत कम मिलता है. मुझे एक सम्मानजनक नौकरी हासिल करने के लिए अपने परिवार से दूर रहना पड़ा है’,

मनोविज्ञान में एमए की पढ़ाई कर रही मनप्रीत कौर बताती हैं कि पंजाब में महिलाओं के लिए यह और भी कठिन हो जाता है क्योंकि उन्हें देश के ही अन्य हिस्सों में जाने की आजादी नहीं मिल पाती है.’

वह कहती हैं, ‘कुछ परिवारों की छात्राओं को पढ़ाई के लिए बाहर निकलने से पहले दो बार सोचना पड़ता है…अक्सर, उनकी शादी हो जाती है और उनका अपना कोई करियर नहीं रह जाता है. मेरे माता-पिता तो इसके लिए तैयार हैं लेकिन सभी माता-पिता ऐसा नहीं करते हैं.’

छात्रों की चिंताएं सेंटर फॉर स्टडिंग डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) की तरफ से पिछले साल किए गए एक सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुरूप ही हैं, जिसमें पाया गया था कि पंजाब में 78 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि राज्य में नौकरियों की स्थिति 41 फीसदी के राष्ट्रीय औसत की तुलना में ‘खराब’ है.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

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समस्या जिस पर ज्यादातर राजनेता ध्यान नहीं देते

पंजाब से युवाओं का पलायन चुनावों के दौरान राज्य में राजनीतिक विमर्श का मुद्दा बना हुआ है, लेकिन अचरज की बात यह है कि युवा खून को राज्य में रोके रखने की राजनीतिक इच्छाशक्ति का बेहद अभाव है. इसके बजाये, अधिकांश राजनीतिक दल ऐसे वादों की पेशकश कर रहे हैं जो छात्रों के बाहर जाने में मददगार होंगे.

उदाहरण के तौर पर, शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने पिछले साल वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई है, तो वह न केवल कॉलेज फीस बल्कि आईईएलटीएस कोचिंग के लिए 10 लाख रुपये तक के ब्याज मुक्त ऋण के साथ ‘छात्र शिक्षा कार्ड’ जारी करेगी.

पिछले महीने, पंजाब की कांग्रेस सरकार ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस इंडिया के साथ एक समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत राज्य सरकार के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) और पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले करीब 40,000 युवाओं को आईईएलटीएस कोचिंग प्रदान की जा सकती है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस एमओयू पर हस्ताक्षर के लिए आयोजित समारोह के दौरान राज्य के तकनीकी शिक्षा मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने पंजाबी प्रवासियों की ‘कड़ी मेहनत और उद्यमिता’ की प्रशंसा की और कहा कि राज्य सरकार ने जिला रोजगार और उद्यम ब्यूरो (डीबीईई) की एक मजबूत प्रणाली के माध्यम से वैध तरीके से विदेशों में ‘युवाओं के प्रवास को सुविधाजनक बनाने के लिए’ एक फॉरेन स्टडी एंड प्लेसमेंट सेल की स्थापना की है.

हालांकि, आम आदमी पार्टी ने अलग ही रुख अपनाया है. पंजाब में आप अध्यक्ष भगवंत मान ने पिछले महीने कहा था कि राज्य में रोजगार के अवसर पैदा करके ‘पैसे और प्रतिभा का पलायन रोकना’ उनकी पार्टी के एजेंडे में शामिल है.

पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ में पॉलिटिकल इकोनॉमी पढ़ाने वाले परमजीत सिंह के मुताबिक, राज्य से बड़े पैमाने पर पलायन पंजाब के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकता है और अमीर और गरीब के बीच की खाई और चौड़ी कर सकता है.

वे कहते हैं, ‘विदेश जाने के लिए पैसे लगते हैं, इसलिए जिनके पास संसाधन हैं वही ऐसा करने में सक्षम हैं. अमूमन उच्च मध्यम वर्ग इसे वहन कर पाता है. उनमें से कुछ अपनी जमीनें बेच रहे हैं, जो जाहिर है कि सिर्फ अमीर लोग ही खरीदेंगे. लंबे समय में इसका नतीजा यही होगा कि पंजाब में मध्यम वर्ग खत्म हो जाएगा और अमीरों और गरीबों के बीच की खाई और चौड़ी हो जाएगी.’

एनआरआई जब पंजाब में छुट्टियां मनाने लौटते हैं तो उन्हें देखकर यहां रह गए लोगों में उनके नक्शेकदम पर चलने की आकांक्षा और ज्यादा प्रबल हो जाती है. जालंधर निवासी एक सेवानिवृत्त भारतीय विदेश सेवा अधिकारी रमेश चंदर कहते हैं, ‘जब एनआरआई अपने गांवों में आते हैं तो भव्य पार्टियां करते हैं और अपने रुतबे का बढ़ चढ़कर प्रदर्शन करते हैं, जो यहां रहने वालों में झूठी उम्मीदें जगा देता है.’

बहरहाल, चंदर को भरोसा है कि अंतत: पंजाब को एक ‘ब्रेन गेन’ मिलेगा यानी सफल प्रवासी सदस्यों का यहां लौटना शुरू होगा.

हालांकि, जब दिप्रिंट ने छात्रों से पूछा कि क्या बाहर जाने के बाद वे कभी वापस लौटना चाहेंगे तो कुछ ने कहा कि वे सफल होने के बाद पंजाब में निवेश करना चाहेंगे, लेकिन अधिकांश ने चुप्पी साध ली.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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