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Saturday, 23 November, 2024
होमदेशरेप के मामलों में फॉस्ट-ट्रैक अदालतें कारगर नहीं क्योंकि राज्य सरकारें पैसे की तंगी का हवाला देती हैं

रेप के मामलों में फॉस्ट-ट्रैक अदालतें कारगर नहीं क्योंकि राज्य सरकारें पैसे की तंगी का हवाला देती हैं

हैदराबाद और उन्नाव में हाल में हुए रेप और मर्डर केस के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट स्थापित करने के लिए राज्य सरकार को तेज़ी लाने को कहा है.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार देशभर में फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट बनाने की योजना बना रही है. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हो रहे यौन अपराध से निपटने के लिए ऐसा किया जा रहा है. इस तरह के मामले में कोई कमी न आने पर लोग सड़क पर उतरने शुरू हो गए हैं.

ऐसा इसलिए है क्योंकि कई राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार को अदालतों की स्थापना के लिए अपने हिस्से की धनराशि लगाने में असमर्थता जताई है. केंद्र सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया.

हैदराबाद और उन्नाव में हाल में हुए रेप और मर्डर केस के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट स्थापित करने के लिए राज्य सरकार को कहा है.

मोदी सरकार ने पिछले साल घोषित योजना के अनुसार, महिलाओं के बलात्कार के मामलों और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत पंजीकृत उन लोगों से निपटने के लिए देश भर में 1,023 फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट की स्थापना में तेजी लाने का फैसला किया था.

1023 फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट में से 389 ही पोक्सो के मामलों पर संज्ञान लेती है.

सरकार के अनुमान के अनुसार प्रत्येक कोर्ट को सालाना 75 लाख रुपए की जरूरत है जिसमें से 60 प्रतिशत केंद्र प्रशासन और 40 प्रतिशत राज्य को वहन करना है.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र सरकार ने 346 फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट को अपने हिस्से का फंड भेज दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस साल जुलाई में फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट को स्थापित करने का आदेश दिया था. जो बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध से निपट सके.

प्रत्येक तिमाही में न्यायालयों को 41 मामलों को निपटाने की उम्मीद

केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार प्रत्येक तिमाही में फॉस्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट 41-42 मामलों का निपटारा कर सकते हैं वहीं सालाना आंकड़ा लगभग 165 का है.


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ये अदालतें उन जिलों में स्थापित की जानी थीं जहां पोक्सो अधिनियम के तहत लंबित मामलों की संख्या 100 से अधिक है.

दिप्रिंट द्वारा एक्सेस केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में 389 जिले हैं जहां पोक्सो अधिनियम के तहत लंबित मामलों की संख्या 100 से अधिक है.

इस साल जून के अंत में अंतिम रूप दिए गए आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश देश में पोक्सो अधिनियम और महिलाओं के बलात्कार के सबसे अधिक 42,379 मामलों के साथ देश में सबसे आगे है, इसके बाद महाराष्ट्र (19,968), पश्चिम बंगाल (12,748), मध्य प्रदेश ( 10,141), बिहार (8,169) और केरल (6,649) है.

आंकड़ों के अनुसार 1.60 करोड़ रेप केस के मामले पोक्सो कानून के अंतर्गत लंबित हैं.

राज्यों ने खराब वित्तीय स्वास्थ्य का हवाला दिया

सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकारों ने अपनी वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए केंद्र सरकार को कहा कि वो ही फॉस्ट ट्रैक कोर्ट के लिए 767 करोड़ रुपए की पूरी राशि मुहैया कराए.

वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि बहुत सारे राज्यों ने कहा है कि ऐसे कोर्ट को बनाने के लिए उनके पास पैसा नहीं है. बातचीत अभी जारी है.

राज्यों ने इस तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया कि केंद्र सरकार दिल्ली में एक महिला की दिसंबर 2012 की गैंगरेप-हत्या के बाद स्थापित किए गए बड़े पैमाने पर अप्रयुक्त ‘निर्भया फंड’ से अदालतों को स्थापित करने के लिए अपने धन का इस्तेमाल करें.

सूत्रों ने बताया कि केंद्र सरकार पूरे खर्च को वहन नहीं करना चाहती है और चाहती है कि राज्यों कुल लागत का 40 प्रतिशत लगाए.


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जिन राज्यों ने अपना हिस्सा देने पर सहमति जताई है, उनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडिशा, केरल और कर्नाटक शामिल हैं.

एक और, संभवतः अधिक महत्वपूर्ण, एफसीटीएस स्थापित करने में विफलता के पीछे कारक देश भर में अधीनस्थ न्यायपालिका में बड़ी संख्या में रिक्तियां हैं.

2014 में अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्त पदों की संख्या लगभग 4,400 थी. जून 2018 में यह आंकड़ा 5,133 था और नवंबर 2019 के अंत तक 6,200 से अधिक था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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