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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशबिहार के चौसा पावर प्लांट पर 86 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन पुलिस की छापेमारी के बाद कैसे भड़का

बिहार के चौसा पावर प्लांट पर 86 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन पुलिस की छापेमारी के बाद कैसे भड़का

किसानों ने पुलिस पर प्रदर्शनकारियों के घरों पर धावा बोलने, 'महिलाओं को पीटने' का आरोप लगाया. प्रदर्शनकारी किसान चौसा पावर प्लांट के लिए अधिग्रहित भूमि के उचित मुआवजे की मांग कर रहे हैं.

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पटना: बिहार के बक्सर में निर्माणाधीन चौसा बिजली संयंत्र के स्थल पर 86 दिनों तक चले विरोध प्रदर्शन बुधवार की रात को हिंसक हो गया जिसमें अब तक कम से कम नौ पुलिसकर्मी घायल हो गए, जबकि दो पुलिस वाहन जल गए और सात अन्य क्षतिग्रस्त हो गए.

गुरुवार सुबह तक चौसा में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई थी, जिद पर अड़े किसान पीछे हटने से इनकार कर रहे थे. उनकी मांग है कि उन्हें – 11,000 करोड़ रुपये की परियोजना के लिए राज्य द्वारा अधिग्रहित भूमि के लिए बेहतर मुआवजा मिले.

हालांकि, बक्सर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) मनीष कुमार ने गुरुवार को दिप्रिंट को बताया, “स्थल पर और अधिक बल तैनात किए गए हैं और स्थिति नियंत्रण में है.”

हिंसा की शुरुआत मंगलवार की रात एक किसान के घर पर पुलिस की छापेमारी से हुई, जो आसपास के 26 गांवों के किसानों के साथ निर्माणाधीन बिजली संयंत्र के गेटों पर अक्टूबर से विरोध कर रहा था, जिसके कारण उसे बंद करना पड़ा था.

प्रदर्शनकारी किसानों में से एक नरेंद्र तिवारी ने दिप्रिंट को बताया, “मंगलवार के विरोध के बाद, हमने बिजली संयंत्र के गेट बंद कर दिए और घर लौट आए. आधी रात के करीब पुलिस बल मेरे गांव बनारपुर आया और जबरन मेरे घर में घुस गया. मैं भागने में सफल रहा लेकिन पुलिस ने महिलाओं और बच्चों सहित मेरे परिवार के सदस्यों के साथ हाथा पाई की.”

पुलिस का दावा है कि वे सरकारी काम में बाधा डालने के लिए मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के सर्कल अधिकारी (सीओ) द्वारा दायर प्राथमिकी के अनुरूप सर्च वारंट के तहत काम कर रहे थे.

छापे से नाराज किसानों के समूह निर्माणाधीन बिजली संयंत्र के स्थल पर तैनात पुलिस से भिड़ गए. खबरों के मुताबिक, पथराव में नौ पुलिसकर्मियों के घायल होने के बाद पुलिस को हवाई फायर का सहारा लेना पड़ा.

एसपी कुमार ने कहा कि हिंसा के सिलसिले में तीन को गिरफ्तार किया गया है.


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किसान क्यों कर रहे हैं विरोध

बक्सर में 1,320 मेगावाट के कोयला आधारित बिजली संयंत्र की परिकल्पना 2011 में की गई थी. एक बार काम पूरा हो जाने के बाद, यह सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन) द्वारा संचालित किया जाएगा – हिमाचल प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार का एक संयुक्त उद्यम है.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2019 में परियोजना की आधारशिला रखी. जिला प्रशासन ने परियोजना के लिए स्थानीय किसानों से 1,000 एकड़ से अधिक भूमि का अधिग्रहण किया है, और रेल गलियारे और पानी की पाइपलाइन के लिए 250 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करने का प्रयास किया जा रहा है.

किसानों का दावा है कि 2014 से 2016 के बीच उन्हें दी गई जमीन का मुआवजा 2011 से सर्किल रेट पर तय किया गया था. बक्सर जिला प्रशासन के साथ कई दौर की बातचीत के बाद ही किसानों ने शांतिपूर्ण आंदोलन का रास्ता अपनाया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

बक्सर स्थित आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने किसानों की मंजूरी के बिना 250 एकड़ जमीन का अधिग्रहण शुरू कर दिया.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “इसके अलावा, कुछ अधिग्रहण अत्यावश्यकता खंड के साथ किए गए थे जिसके अनुसार भूस्वामियों को सामान्य मुआवजे से 75 प्रतिशत अधिक भुगतान किया जाता है. किसानों को 26-28 लाख रुपये प्रति एकड़ मिले जबकि उन्हें 36-53 लाख रुपये प्रति एकड़ के बीच प्राप्त होना चाहिए था.”

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद सुशील कुमार मोदी ने बिहार पुलिस द्वारा विरोध प्रदर्शन और उसके बाद की गयी हिंसा से निपटने के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि “लाठी चार्ज (पुलिस द्वारा) किया जाना जरूरी नहीं था”.

‘किसान की मांग जायज है. नीतीश सरकार अब लट्ठमार (लाठी चलाने वाली) सरकार बन गई है, छात्रों, शिक्षकों और किसानों पर लाठीचार्ज कर रही है.”

इस बीच, भागलपुर में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के लिए भूमि अधिग्रहण के बिहार सरकार के प्रयासों के बारे में सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसकी घोषणा तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने 2015-2016 के बजट भाषण में की थी. पूर्णिया में एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण के प्रयास भी कम पड़ गए हैं, दरभंगा में बिहार के दूसरे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के लिए राज्य सरकार अब भी जमीन अधिग्रहण कर रही है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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