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Wednesday, 8 May, 2024
होमदेश'हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे,' जोशीमठ के उजाड़े जाने पर विस्थापितों ने की 'मुआवजे' की मांग

‘हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे,’ जोशीमठ के उजाड़े जाने पर विस्थापितों ने की ‘मुआवजे’ की मांग

सरकार 1.5 लाख रुपये देने की बात कही है, जबकि वहां के लोग कम से कम 5 लाख रुपये की मुआवजे मांग कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी तब तक डिमोलिशन रोकना चाहते हैं जब तक विस्थापन और मुआवजे पर कोई समझौता नहीं हो जाता.

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जोशीमठ: जोशीमठ शहर के बेबस निवासी बुधवार को लगातार दूसरे दिन जर्जर हो चुके ‘मलारी इन’ होटल के सामने जमा हो गए. वे अपने घरों और शायद शहर से भी बाहर निकाले जाने के लिए ‘उचित मुआवजे’ की मांग कर रहे थे.

एक तरफ विस्थापित लोग और दूसरी तरफ राज्य और जिला प्रशासन, उनके बीच तनाव चरम पर था. दोनों ही तरफ से एक उपयुक्त मुआवजे के पैकेज दिए जाने की बात की जा रही थी. बुधवार की सुबह एक बैठक के दौरान निराश हो चुके लोगों के बीच अपनी आवाज सुनाने के लिए हुई धक्का-मुक्की में उनकी हताशा साफ झलक रही थी.

बैठक के दौरान एक निवासी ने कहा, ‘हम ऐसा एकमुश्त भुगतान चाहते हैं जो हमारी सभी जरूरतों को पूरा कर सके. इसका मतलब अंतरिम राहत में कम से कम 5 लाख रुपये देना है.’ एक अन्य ने कहा, ‘कई परिवार अपने पैतृक गांवों से आकर जोशीमठ में बस गए थे. लेकिन हममें से कुछ लोगों के लिए जोशीमठ हमारा मूल स्थान है और एकमात्र ऐसी जगह जिसे हम जानते हैं. बाकी लोग अपने गांवों में जाकर फिर से बस सकते हैं, लेकिन हमारा क्या?’

आने वाले समय में हर महीने 4,000 रुपये दिए जाने के पिछले प्रस्ताव के खिलाफ निवासियों के गुस्से को देखते हुए सरकार ने अंतरिम राहत के रूप में प्रत्येक परिवार को 1.5 लाख रुपये देने की घोषणा की है.

Meeting held between Joshimath residents and the state and district administration Wednesday | The Print | Shyam Nadan Upadhyay
बुधवार को जोशीमठ के निवासियों और राज्य व जिला प्रशासन के बीच बैठक हुई | श्याम नादान उपाध्याय | दिप्रिंट

मलारी इन होटल के मालिक ठाकुर सिंह राणा ने कहा कि वह बद्रीनाथ मंदिर के सौंदर्यीकरण से विस्थापित हुए लोगों के बराबर मुआवजा चाहते हैं, जो कथित तौर पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत भूमि की सर्किल दर से दोगुना था.

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मुख्यमंत्री की सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत बाजार दर के अनुसार भुगतान करने का प्रस्ताव दे रहे हैं. हम जोशीमठ के भीतर या बाहर परिवारों को स्थानांतरित करने के लिए भी तैयार हैं.’

उन्होंने कहा, ‘बद्रीनाथ के बराबर उन्हें मुआवजा नहीं दिया जा सकता है. सरकार उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहती है. लेकिन यह आपदा का मुआवजा है. अगर समान मुआवजे की बात ही करनी है तो वरुणावत लैंडस्लाइड को नजर में रखना चाहिए.’

2003 में फ्रंटलाइन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, वरुणावत भूस्खलन के कारण विस्थापित हुए लोगों को 1,000 रुपये मुआवजा दिया गया था.

राणा का होटल उन संरचनाओं में से एक है जिन्हें सुरक्षित तरीके से गिराने के लिए चिह्नित किया गया है, ताकि इसके खुद-ब-खुद गिरने से इसके ठीक पीछे खड़े दर्जनों घरों को खतरा न हो. लेकिन लगता है कि जब तक यहां रहने वाले लोग किसी एक समझौते पर नहीं पहुंच जाते, तब तक इमारतों को गिराने की अनुमति मिलना मुश्किल है.


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नुकसान का आकलन

जोशीमठ में जमीन के धंसने से 20 हजार से ज्यादा लोगों के घरों को नुकसान पहुंचा है. यह एक ऐसी घटना है जिसके बारे में विशेषज्ञों ने लंबे समय पहले से चेतावनी दे रखी थी. विशेषज्ञों ने कहा था कि शहर भूस्खलन के मलबे पर खड़ा है, उचित जल निकासी और सीवरेज सिस्टम का अभाव है. और यहां जिस तेजी से बड़ी विकास परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, वो इस शहर को नुकसान पहुंचा सकती है.

28 दिसंबर और 3 जनवरी के बीच जब जमीन तेजी से धंसने लगी तो घरों और सड़कों में दरार पड़ गई और रातों-रात सैकड़ों लोग बेघर हो गए. आधिकारिक अनुमानों की मानें तो कम से कम 723 घरों में दरारें पाई गईं हैं.

गढ़वाल हिमालय में समुद्र तल से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस शहर को हुए नुकसान की मात्रा का अभी भी पता लगाया जा रहा है. 7 जनवरी को दरारों में से एक में पानी का निकलना शुरू हुआ तो तब से वह बहना बंद नहीं हुआ है. पानी ने विष्णुप्रयाग हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट की दीवारों के जरिए अपना रास्ता बना लिया, जिससे यह क्षतिग्रस्त हो गया.

उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (यूएसएसी) के निदेशक और प्रोफेसर एम.पी.एस. बिष्ट ने कहा, ‘ऐसा लगता है जैसे वॉटर टेबल का कुछ हिस्सा फट गया है. लेकिन हम सिर्फ निश्चित रूप से इतना कह सकते हैं कि पानी कितनी देर तक बहता रहेगा और क्या इसे कम किया जा सकता है. हमने पानी का स्रोत खोजने और कोशिश करने के लिए पानी का एक नमूना लिया है.’

नाम न छापने की शर्त पर एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि यूएसएसी शायद यह अनुमान लगाने के आस-पास है कि शहर में अभी कितनी जमीन और धंस सकती है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून ने एक सैटेलाइट इमेज सर्वे किया और पाया कि 2020 और 2022 के बीच क्षेत्र में धंसने की दर में काफी तेजी आई है. उनके मुताबिक, यह क्षेत्र हर साल 6.5 सेमी की गति से धंस रहा है.

‘आखिरी स्टेज पर पहुंच चुका एक कैंसर’

कार्यकर्ता अतुल सती के अनुसार, अक्टूबर 2021 की शुरुआत में घरों में दरारें दिखाई देने लगीं थीं. उन्होंने जिला प्रशासन को इलाके में जमीन धंसने के बारे में पहले ही चेतावनी दे दी थी.

उन्होंने बताया कि इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण चार धाम सड़क का चौड़ीकरण और तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत संयंत्र के लिए चल रहा काम है. जलविद्युत संयंत्र नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) की एक परियोजना है, जो दशकों से विवादों में घिरी हुई है. 2021 की चमोली आपदा में इसके कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचने की वजह से 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी.

पर्यावरणविदों ने पहले ही पर्याप्त अध्ययन किए बिना क्षेत्र में चलाई जा रही इन बड़ी विकासात्मक परियोजनाओं के खिलाफ अपनी चिंता जाहिर कर दी थी.

चार धाम परियोजना के लिए सुप्रीम कोर्ट की हाई-पावर्ड कमेटी के एक पर्यावरणविद् हेमंत ध्यानी ने कहा ‘क्षेत्र की वहन क्षमता कितनी है, इस लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया. यहां तक कि 2021 की आपदा के बाद भी, जब पहाड़ की तलहटी टूट गई थी, तो क्षेत्र की उचित बहाली के लिए कोई स्टडी नहीं की गई’. वह आगे बताते हैं, ‘हमने एक समिति के रूप में एक प्रोटोकॉल निर्धारित किया था, जिसे लागू किया जाना चाहिए. लेकिन अब यह एक ऐसे कैंसर की तरह है जो अपनी आखिरी स्टेज में पहुंच चुका है.’

सचिव सुंदरम ने कहा कि जल शक्ति और पर्यावरण मंत्रालयों की टीम इस बात का अध्ययन करने में लगी हैं कि एनटीपीसी परियोजना का जोशीमठ में भूमि धंसने में किस हद तक योगदान है.

70 के दशक से चेतावनी

1976 में केंद्र सरकार की तरफ से नियुक्त पैनल की एक रिपोर्ट ने पाया था कि जोशीमठ ‘रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है. यह मुख्य चट्टान नहीं है इसलिए यह एक बस्ती बसने के लिए उपयुक्त नहीं थी’. इन पैनल की बागडोर सिविल सेवक एम.सी. मिश्रा के हाथों में थी.

रिपोर्ट में पहाड़ी के साथ बोल्डर को हटाने और ब्लास्ट करने के खिलाफ चेतावनी दी थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रमुख निर्माण गतिविधियों को रोका जाना चाहिए और भूस्खलन से बचने के लिए जल निकासी चैनलों के जरिए मिट्टी से पानी के रिसाव को ठीक से हटाया जाना चाहिए.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी ने कहा कि हो सकता है कि एनटीपीसी सुरंग पर निर्माण कार्य ने ‘ट्रिगर’ की तरह काम किया हो. लेकिन इसका बड़ा कारण उचित जल निकासी और सीवरेज सिस्टम के बिना बड़े पैमाने पर शहरीकरण है.

अधिकारी ने बताया, ‘अपशिष्ट जल बिना किसी चैनल के जमीन में रिस रहा है, जिससे कमजोर नींव कमजोर हो रही है. उचित सीवरेज और जल निकासी व्यवस्था के साथ भवनों के निर्माण के लिए सख्त उप-कानून होने चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


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