शोपियां: कोविड-19 लॉकडाउन का कश्मीर में सेब उद्योग पर अप्रत्याशित प्रतिकूल असर पड़ा है. गुणवत्ता जांच में कमी, बाजार में नकली और घटिया कीटनाशकों की भरमार आदि ने इस वर्ष अधिकांश पैदावार पर, दागी होने की वजह से, गुणवत्ता के लिहाज से ‘बी कैटेगरी’ का ठप्पा लगवा दिया है.
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले में मुख्य फल मंडी के अध्यक्ष अशरफ वानी के अनुसार इस क्षेत्र में हर साल लगभग 3.5 लाख मीट्रिक टन फल, खासकर सेब का उत्पादन होता है. लगभग 80 प्रतिशत पैदावार आमतौर पर ‘ए कैटेगरी’ में दर्ज की जाती है.
वानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले साल 5 अगस्त (जब अनुच्छेद 370 हटा था) के बाद लॉकडाउन के कारण हमें बहुत नुकसान हुआ था. इस साल उम्मीद कर रहे थे कि हमारा कारोबार फिर सामान्य हो जाएगा लेकिन कोरोना लॉकडाउन के दौरान व्यापारियों ने बाजार को नकली कीटनाशक से भर दिया. नतीजा यह हुआ कि हमारी उपज खराब हो गई.’
उन्होंने आगे कहा, ‘उत्पादकों ने नकली कीटनाशकों का इस्तेमाल किया, जिसका नतीजा यह हुआ सेब दागी हो गए और यहां तक कि उनमें फंगस भी लग गई. यही कारण है कि हमारी पैदावार का 70-80 प्रतिशत हिस्सा इस बार बी कैटेगरी में आ गया है.’
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व्यापारियों ने ज्यादा लाभ के लिए नकली कीटनाशक बेचे
सरकार के मार्केटिंग इंस्पेक्टर रियाज अहमद ने माना कि बाजार में बहुत ज्यादा नकली कीटनाशक बेचे गए और यही गुणवत्ता में गिरावट का एक मूल कारण है.
अहमद ने बताया कि मंडी में सेब पहले 1,300-1,5000 रुपये प्रति 10 किलोग्राम के हिसाब से बिकता था, लेकिन इस बार कीमत घटकर महज 800 से 1,000 रुपये प्रति 10 किलो ही रह गई है.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन की वजह से गुणवत्ता जांच ठीक से नहीं हो पाई और इसी का फायदा उठाकर व्यापारियों ने तत्काल लाभ कमाने के लिए जमकर नकली कीटनाशक बेचा.
वानी ने कहा, ‘समस्या यह है कि नकली कीटनाशक का असर अभी कुछ समय बना रहेगा. इसका दुष्प्रचार फसलों के अगले चक्र पर भी पड़ेगा.
अहमद ने कहा कि समस्या सिर्फ दक्षिण कश्मीर तक ही सीमित नहीं है बल्कि उत्तरी कश्मीर को भी इसका सामना करना पड़ रहा है, जो इस क्षेत्र की तुलना में ज्यादा मात्रा में सेब का उत्पादन करता है.
वानी ने बताया कि कश्मीर में कीटनाशकों की गुणवत्ता की जांच के लिए केवल एक प्रयोगशाला है और किसान कम से कम दो और लैब, एक दक्षिण और एक उत्तरी कश्मीर के लिए, की मांग करते रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘जांच का नतीजा नमूना एकत्र करने के 6 महीने बाद आता है. इस देरी की वजह से गुणवत्ता जांच का कोई मतलब नहीं रह जाता है क्योंकि जब तक परिणाम आता है कीटनाशकों का इस्तेमाल हो चुका होता है.’
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