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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमत‘स्वर्ग के शिल्पियों’को ‘आर्यावर्त’ से धक्के देकर निकालने के मायने क्या हैं?

‘स्वर्ग के शिल्पियों’को ‘आर्यावर्त’ से धक्के देकर निकालने के मायने क्या हैं?

कश्मीरी हस्तशिल्प उत्पादों ने अपने आकर्षक डिजाइन, उपयोगिता और उच्च गुणवत्ता वाले शिल्प कौशल के लिए दुनियाभर में नाम कमाया है.

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ये बात अब पुरानी हो गई- गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त, हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं)

राकेश कुमार डोगरा की ‘खर-पतवार’ ब्लॉग में लिखी ये पंक्तियां ज्यादा सही हैं –

जन्नत का रास्ता खुदा ने, जिंदा की पहुंच से बाहर बना रक्खा है
इस बात को समझाने की खातिर भारत में एक कश्मीर बना रक्खा है

सोचिए! अगर कश्मीर से सेब, मेवा, कालीन, कुदरती नज़ारे खत्म कर दिए जाएं, डल झील के आसपास सिर्फ गिद्ध मंडराएं, हाउस बोट भयावह सन्नाटे और अंधेरा पसारे रहें तो क्या इसे धरती का स्वर्ग कहा जा सकता है? ऐसा कश्मीर तो सिर्फ जहन्नुम ही कहलाएगा. कश्मीरियत और कश्मीरियों के बगैर ये जन्नत कैसी जन्नत होगी!

पुलवामा आतंकी हमले के बाद हुआ क्या? कश्मीर के बुरे हालातों में मेहनत से गुजर-बसर करने को चंद दिनों को आए ‘स्वर्ग के शिल्पियों’ को धक्के देकर ‘आर्यावर्त’ से निकाल दिया गया. कई जगह संविधान और कानून का पालन कराने के जिम्मेदार प्रशासन और पुलिस के अफसर इस काम में बाकायदा शरीक होते पाए गए. शायद उनको ये अहसास ही नहीं कि हिंदुस्तान की तहजीब और तरक्की में उनका कितना योगदान है. ये महज एक घटना नहीं, हस्तशिल्प और हुनर की बेइज्जती के साथ ये देश की तरक्की में योगदान दे रहे कारोबार पर ताला मारने की हरकत रही.

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सुकून की बात है कि तमाम घटनाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरियों की हिफाजत के दिशानिर्देश जारी किए हैं और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साफ कह दिया कि कश्मीरी बच्चों की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है, लड़ाई कश्मीर या कश्मीरियों के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं है. हालांकि सबने देखा कि इस बीच हुआ क्या? किसने किया? किसकी शह पर हुआ? किस मंसूबे से हुआ?

मुश्किलों में घिरे कश्मीरी हस्तशिल्पी

जिन कश्मीरी हस्तशिल्पियों को जहां-तहां से भगा दिया गया, वे पहले ही बहुत मुश्किलों से घिरे हुए हैं. हकीकत तो ये है कि कारोबारी जिल्लत, सियासी हालात और वैश्विक मंदी की मार से हुनरमंदों की नई पीढ़ी शिल्प से पीछा छुड़ाना चाह रही है. सितंबर 2014 में आई विनाशकारी बाढ़ और उसके बाद लगातार अशांति ने उनका जीना दुश्वार कर दिया है. इस बीच जीएसटी ने कोढ़ में खाज का काम कर दिया. कारीगरी के दम पर परिवार का भरण-पोषण की कठिनाइयां दिनोंदिन बढ़ रही हैं. कई कारीगरों ने ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपइया’ होने की वजह से हुनर को अलविदा भी कर दिया और देश के दूसरे कोनों में मौजूद कारखानों में खटने को मजबूर हैं.

इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी हुनर पहुंचने का सिलसिला टूट रहा है. इस शिल्प से जुड़े उद्यमी इसको बखूबी बयां करते हैं. कश्मीर के उद्योगपति सैयद शकील का कहना है कि हस्तशिल्प क्षेत्र कठिन दौर से गुजर रहे हैं. कारीगर व्यापार को बदल रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र ने अपनी स्थिरता खो दी है.

ट्रेड यूनियन नेता शेख शशिक का कहना है कि राजनौतिक अस्थिरता के चलते इंटरनेट का अक्सर बंद हो जाना कारोबार को पीछे धकेल देता हैं. कठिन और अनुचित जीएसटी भी बिना इंटरनेट के कैसे फाइल की जाए, जबकि पिछड़े इलाकों में तो ये भी नहीं है.


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कश्मीर बॉक्स’ स्टार्टअप के संस्थापक मुहित मेहराज बताते हैं कि कश्मीर में मुख्यालय है, लेकिन लगातार इंटरनेट बंद होने से सब ठप सा हो जाता है. पिछले साल 19 बार कश्मीर बंद का आयोजन हुआ, जिससे बड़ा कारोबारी नुकसान हुआ. मेहराज का कहना है कि कश्मीरी कारीगरों की आय 1980 के दशक से नहीं बढ़ी है.

वे प्रतिदिन सौ-डेढ़ सौ रुपये की कमाई करते हैं. अनुसंधान में पाया गया है कि कश्मीरी हथकरघा और हस्तशिल्प डिजाइन पिछले 30-40 वर्षों में नहीं बदला है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात 2015-17 के बीच 37 प्रतिशत घट गया. बदहाली के चलते कारीगर पूरी तरह से पेशा छोड़ने के लिए कहते हैं.

कश्मीर की खुशबू और रूह है उसका हस्तशिल्प

जम्मू और कश्मीर राज्य की वित्तीय संरचना में हस्तशिल्प बारीकी से पिरोया हुआ सा महसूस होती हैं. बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के अवसरों की गुंजाइश भी इसमें है. कश्मीरी हस्तशिल्प उत्पादों ने अपने आकर्षक डिजाइन, उपयोगिता और उच्च गुणवत्ता वाले शिल्प कौशल के लिए दुनियाभर में नाम कमाया है. इससे सांस्कृतिक विरासत तो सहेजी ही जाती है, साथ ही देश के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा हासिल होती है.

कश्मीर राज्य में हस्तशिल्प निर्माण के पांच लाख से ज्यादा कारखाने या अड्डे हैं, जिनमें घर और बाहर दोनों के शामिल कहे जा सकते हैं. श्रीनगर इनमें टॉप पर है, जहां 70 हजार से ज्यादा प्रतिष्ठान हैं. राज्य में हस्तशिल्पी श्रमिकों की कुल संख्या लगभग 11 लाख है, जिनमें पुरुष श्रमिक 81 प्रतिशत और महिला श्रमिक 19 प्रतिशत हैं. ये सभी स्थायी रोजगार से तो जुड़े नहीं है, हालात के हिसाब से कारोबार होने पर ही काम मिल पाता है सबको.

जरूरी उपकरण खराब हालत में होना और कुशल श्रमिकों की कमी भी बड़ी समस्या है. हालांकि भारत सरकार कई योजनाओं से उनको मदद देने का भी काम करती है. पुलवामा हमले के बाद खराब सियासी हालात में भी केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्री स्मृति ईरानी ने एक विशेष प्रशिक्षण केंद्र और कार्यालय का लोकार्पण किया.

जन्नत के कारीगरों का हुनर और हाल

शोध प्रकाशित करने वाली वेबसाइट ‘ओमिक्स इंटरनेशनल’ पर मौजूद इंदौर के स्कूल ऑफ कॉमर्स के रिसर्च स्कॉलर मुहम्मद रफीक शाह का शोध ‘एन असेसमेंट ऑफ हैंडीक्राफ्ट सेक्टर ऑफ जम्मू एंड कश्मीर विद रिफरेंस टू सेंट्रल कश्मीर’ बारीकी से पड़ताल करता है. शोध कहता है कि कश्मीर का पारंपरिक हस्तशिल्प सौंदर्य, गरिमा, रूप और शैली में बेजोड़ है. कश्मीरी कला और शिल्प की कशिश लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है. साथ ही यह वहां की कामगार आबादी की आमदनी का बेहद अहम जरिया है.

शोध के मुताबिक, 31 मार्च 2014 को 15084 की सदस्यता के साथ 3005 हस्तशिल्प सोसाइटी पंजीकृत थीं. कश्मीर के हस्तशिल्प उद्योग के सबसे महत्वपूर्ण शिल्प कढ़ाई, शॉल, कर्मी, नमदा, चेन स्टिच, पैपीयर माची, पोशाक हैं. आभूषण, कनिष्क और कालीन इस राज्य के कुल उत्पादन और निर्यात में बड़ी हिस्सेदारी रखते हैं. हस्तशिल्प विभाग राज्य के भीतर और बाहर प्रदर्शनी या शिल्प बाजारों का आयोजन करके हस्तशिल्प वस्तुओं की बिक्री को बढ़ावा देता है. हालांकि बिचौलियों की वजह से यहां के कारीगरों को उतना लाभ नहीं मिल पाता, जो उन्हें मिलना चाहिए.

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2003-2004 से 2007-2008 तक हस्तशिल्प वस्तुओं के उत्पादन में लगतार बढ़ोत्तरी हुई. वर्ष 2003-04 में उत्पादन 821.53 करोड़ रुपये, 2004-05 में 887 करोड़ रुपये, 2005-06 में 900 करोड़ रुपये और 2006-07 में 950 करोड़ रुपये का उत्पादन हुआ. इसके बाद 2007-2008 में उत्पादन में चौंकाने वाला उत्पादन हुआ 1614.59 करोड़ रुपये का. उसके बाद दो वर्ष गिरावट दर्ज हुई. उत्पादन गिरकर 1000 करोड़ का रह गया.

वजह? क्योंकि इन दो वर्षों में कश्मीर में उथल-पुथल, राजनीतिक अस्थिरता के साथ हस्तशिल्प को कम प्रोत्साहन मिला. बाजार में भारी मांग और हुनर के कद्रदानों ने हस्तशिल्प को फिर मौका दिया खड़े होने का. वर्ष 2013-2014 का उत्पादन 2017.82 करोड़ रहा.

संकट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा असर

हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात का भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पर आम और कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर खास और सीधा असर पड़ता है. इसका कारण ये है कि देश के हैंडीक्राफ्ट सेक्टर का देश की विदेशी मुद्रा अर्जन में बड़ा योगदान है. वर्ष 2003-2004 में निर्यात 595 करोड़ के रूप में दर्ज किया गया और 2006-2007 तक हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात में निरंतर वृद्धि हो रही है.

उसके बाद 2007-08 में हस्तशिल्प क्षेत्र बुरी तरह पिटा और निर्यात नकारात्मक आंकड़ों में धंस गया. इसका कारण? इसके बाद फिर संकट शुरू हो गया क्योंकि कश्मीर में अशांति का माहौल होने लगा. पर्यटकों का आना भी ठहर सा गया. सबसे अधिक निर्यात वर्ष 2011-12 में दर्ज किया गया, वर्ष 2013-14 में हस्तशिल्प वस्तुओं का निर्यात 1695.65 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिसने अर्थव्यवस्था की विदेशी मुद्रा आय को बढ़ाया.

कश्मीरी कारीगर के जीने की जरूरत और बाकी की हसरत

इंडस्ट्री एंड कॉमर्स की बैठक में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बताया गया कि एसआईसीओपी, जो राज्य में 52 औद्योगिक एस्टेटों का प्रबंधन करती है, ने वित्तीय वर्ष 2017-2018 के दौरान 779.21 करोड़ रुपये का कारोबार हासिल किया. लगभग 8000 कारीगरों को सालाना हस्तशिल्प विभाग द्वारा विभिन्न शिल्प में प्रशिक्षित किया जाता है, जिसमें आज तक 36,531 सदस्यताओं के साथ 36231 समितियां हैं. इसके अलावा, 45,492 कारीगरों को उनके आर्थिक सशक्तिकरण के लिए 400 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा दी गई. विभाग ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 115.12 करोड़ रुपये के हस्तशिल्प का निर्यात किया.

जम्मू-कश्मीर सीमेंट्स की उपलब्धि ये रही कि 2017-18 में निगमों ने 850 मीट्रिक टन सीमेंट उत्पादन के साथ 114.01 करोड़ रुपये का टर्नओवर रहा, सीमेंट का औसत उत्पादन 800 मीट्रिक टन था. हैंडलूम विभाग की ओर से बताया गया कि केंद्र सरकार के मदद से 12 क्लस्टर राज्य में चल रहे हैं. इतना ही नहीं, लगभग 200 पंजीकृत बुनकरों के साथ प्रत्येक क्लस्टर को विभिन्न प्रकार के कपड़ों के बुनाई, डाइंग और डिजाइन करने का प्रशिक्षण दिया जाता है.

गैर कश्मीरियों को समझना चाहिए कि इस कारोबार और उसके लाभ का हकदार कौन बना? क्या पाकिस्तान? या भारत! इतना सब होने के बाद कश्मीरी देशभर में गर्म कपड़े-शॉल-कंबल लेकर आपके घर की चौखट पर पहुंचते हैं. खुद के जीने का सामान जुटाने और आपकी हसरतों को भी पूरा करने के लिए.

(आशीष सक्सेना स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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