नई दिल्ली/चेन्नई/मुंबई: चेन्नई के इंजंबक्कम इलाके के एक कोने में बसा इंद्रा सुपर मार्केट अपने ग्राहकों को किराने का सामान, बर्तन और घरेलू उपकरण आदि बेचता है. लेकिन यह उस गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल का आधिकारिक पता भी है, जिसे ‘अनैथु मक्कल अरसियाल काची’ कहा जाता है; कम-से- कम कागज पर तो ऐसा ही मालूम पड़ता है.
भारत के निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया-ईसीआई) के पास दर्ज करवाए गए दस्तावेजों के अनुसार, यह दुकान ही इस राजनीतिक दल का पंजीकृत कार्यालय है.
दुकान में काम करने वाले एक सेल्समैन ने उसका नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘डेढ़ साल पहले तक यहां किसी पार्टी का ऑफिस हुआ करता था. मुझे पक्का पता नहीं है कि वे अब कहां से काम करते हैं.’
दक्षिण दिल्ली के संभ्रांत माने जाने वाले पंचशील पार्क इलाके में स्थित प्लॉट संख्या एस-41 पर बना एक चार मंजिला आवासीय बंगला ‘हिंद स्वराज्य गणतंत्र पार्टी’ का कार्यालय माना जाता है, जो एक अन्य गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी है. इस पार्टी के नाम का कोई भी बोर्ड या बैनर मकान के बाहर नहीं लगा था और बाहर खड़े निजी सुरक्षा कर्मियों (सिक्योरिटी गार्ड्स) का दावा था कि उन्होंने इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना है. इस मकान के मालिकों से मुलाक़ात के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था कि यह पूर्व अनुमति से ही हो पाता है.
मुंबई के पश्चिमी उपनगरों में, ऑटो-रिक्शा चालकों – जो पता बताने के मामले में आमतौर पर गूगल मैप्स से भी बेहतर साबित हो सकते हैं – ने भी संतोष नगर इलाके में ‘मिलन कमेटीसेवा संघ’ नाम की एक इमारत को ढूंढ निकालने की कवायद में अपने हाथ खड़े कर लिए. संभावित रूप से इस इमारत में एक और गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी – भारतीय आवाज पार्टी – का कार्यालय है. कोई स्थानीय व्यक्ति भी इस बात की पुष्टि नहीं कर सका कि उस इलाके में उस नाम की कोई इमारत मौजूद है भी यह नहीं.
ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनका दिप्रिंट को पिछले सप्ताह चेन्नई, दिल्ली और मुंबई में कुछ ‘रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों’ (आरयूपीपी) के आधिकारिक पते को ढूंढ निकालने की कोशिश में की गई व्यर्थ की भाग दौड़ के दौरान समाना करना पड़ा.
ऐसे कई संगठन (हालांकि जरूरी नहीं कि वही संगठन हों जिनका दिप्रिंट ने पता लगाने की कोशिश की थी) फिलहाल चुनाव आयोग की जांच के दायरे में हैं और उनमें से कई की कथित कर चोरी और संदिग्ध वित्तीय लेनदेन के लिए आयकर विभाग (आईटी डिपार्टमेंट) द्वारा भी छान-बीन की जा रही है.
एक गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी आमतौर से एक ऐसी पार्टी होती है जो ईसीआई के साथ पंजीकृत है और जिसने विभिन्न दस्तावेज भी जमा करा रखें हैं – जिनके बारे में अधिकारियों के अनुसार वे कर छूट के लाभ के काम आते हैं – मगर उन्होंने एक राज्य या राष्ट्रीय पार्टी के रूप में ‘मान्यता प्राप्त’ होने की शर्तों, जिसमें लड़े गए चुनावों में प्राप्त वोटों या जीती गई सीटों की एक निश्चित संख्या शामिल होती है – को पूरा नहीं किया है.
चुनाव आयोग के रिकॉर्ड बताते हैं कि वर्तमान में भारत में लगभग 2,796 गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां पंजीकृत हैं – 2019 में इनकी संख्या 2,301 और 2010 में केवल 1,112 थी.
इसकी तुलना में मान्यता प्राप्त दलों की सूची बहुत छोटी है – केवल 62. इनमें से 54 राज्य स्तरीय दल हैं, जिनमें आम आदमी पार्टी (आप), जनता दल-यूनाइटेड (जेडी-यू), समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, शिरोमणि अकाली दल, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके), और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) शामिल है. राष्ट्रीय दलों की संख्या सिर्फ आठ हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) शामिल हैं.
आइए पता करते हैं कि ऐसे कई गैर-मान्यता प्राप्त दल फिलहाल चुनाव आयोग और आईटी डिपार्टमेंट के निशाने पर क्यों हैं और कैसे उनमें से कई सारे केवल कागज पर ही मौजूद मालूम पड़ते हैं.
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गैर मान्यता प्राप्त दलों पर इतनी सख्ती क्यों?
कथित तौर पर कर चोरी और धन के संदिग्ध स्रोतों के लिए गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों के खिलाफ की जा रही जांच के तहत आईटी विभाग ने इस महीने कई राज्यों में छापे मारे हैं.
चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि भारत के इस मुख्य चुनाव नियामक ने आईटी विभाग को 2,174 ऐसी गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की एक सूची प्रदान की है, जिन्होंने पिछले तीन वर्षों में वार्षिक वित्तीय ऑडिट और अंशदान की रिपोर्ट जमा नहीं की है.
इस साल मई के बाद से, चुनाव आयोग ने कम-से-कम 284 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को कई वर्षों में चुनाव न लड़ने से लेकर वार्षिक अंशदान रिपोर्ट और ऑडिट रिपोर्ट दाखिल करने जैसे नियमों का पालन नहीं करने तक के कारणों की वजह से गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की सूची से हटा दिया है. ईसीआई अधिकारियों के अनुसार, बाद वाला कारण ‘अनुचित वित्तीय व्यवहार (फाइनेंसियल इम्प्रोप्रिएटी)‘ और ‘जानबूझकर कर चोरी’ जैसे मामलों के लिए एक शक की एक सुई जैसा होता है
चुनाव आयोग के अधिकारियों के अनुसार, राजनीतिक दलों को इसी तरह से सामूहिक रूप से सूची से हटाए जाने का काम (डीलिस्टिंग) आखिरी बार साल 2016 में किया गया था. इससे पहले, यह काम 2013, 2008 और 2000 में भी हुआ था.
इसके अलावा, 537 अन्य गैर-मान्यता प्राप्त दल ‘निष्क्रिय’ होने के लिए संदेह के घेरे में हैं और चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसे दलों की सूची बढ़ती ही जा रही है. ऐसी 537 पार्टियों में से 253 ने पिछले आठ सालों में कोई चुनाव नहीं लड़ा है.
तो, अगर कोई पार्टी अपना पंजीकरण करवाती है लेकिन फिर निष्क्रिय पड़ी रहती है, तो यह इतनी चिंता का कारण क्यों है?
हालांकि, भारत में चुनाव लड़ने के लिए किसी राजनीतिक दल का चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन ऐसा करने के कुछ फायदे हैं. इनमें से एक टैक्स छूट का हकदार होना है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 (जो ईसीआई के साथ राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्रावधान करता है), किसी राजनीतिक दल (मान्यता प्राप्त या गैर मान्यता प्राप्त) द्वारा प्राप्त सभी तरह के दान को कर से पूरी तरह से मुक्त करता हैं, लेकिन पार्टियों को हर साल अपनी अंशदान रिपोर्ट/ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग के पास जमा करवानी होती है.
इसके अलावा, आयकर अधिनियम के प्रावधानों के तहत, एक व्यक्ति किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को कोई भी राशि दान कर सकता है और दान की गई इस राशि पर 100 प्रतिशत कर छूट का लाभ उठा सकता है. हालांकि, ऐसे योगदान की मात्रा दाता की सकल वार्षिक आय के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है.
उदाहरण के लिए, सालाना 10 लाख रुपये की सकल वार्षिक आय वाला कोई भी व्यक्ति किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल – चाहे वह मान्यता प्राप्त हो या गैर-मान्यता प्राप्त – को योगदान के रूप में दान किए गए 1 लाख रुपये तक की किसी भी राशि पर पूर्ण कर छूट का लाभ उठा सकता है.
ईसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उनका नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘जब पंजीकृत राजनीतिक दल काफी लंबे अरसे तक कोई चुनाव नहीं लड़ते हैं, तो अक्सर यह संदेह होता है कि उनके द्वारा कर छूट के प्रावधानों का दुरुपयोग किया जा रहा है. यह संदेह तब और बढ़ जाता है जब ये दल वार्षिक अंशदान रिपोर्ट और वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने में विफल हो जाते हैं. इसके बाद राज्य चुनाव आयोगों की निरीक्षण टीमों को निरीक्षण अभियान चलाने के लिए निर्देशित किया जाता है.’
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‘हमारे लिए डरने की कोई बात नहीं‘
दिप्रिंट ने पिछले एक सप्ताह के दौरान दिल्ली, चेन्नई और मुंबई में 15 गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के आधिकारिक पते पर दौरा करने की कोशिश की.
उनमें से केवल दो ही के कार्यालय उन स्थानों पर पाए जा सके, जिन्हें उन्होंने अपने आधिकारिक पते के रूप में घोषित कर रखा था. संयोग से, ये दोनों हाल ही में ईसीआई द्वारा डीलिस्ट (सूची से हटाई गयीं) की गईं पार्टियों के कार्यालय निकले.
उनमें से एक आर्य सभा थी, जो आर्य समाज की राजनीतिक शाखा है और जिसकी स्थापना साल 1972 में स्वामी अग्निवेश ने की थी. इसका एक कार्यालय अभी भी दिल्ली के जंतर मंतर रोड में स्थित है.
आर्य समाज की विश्व परिषद के महासचिव विट्ठल राव आर्य ने कहा, ‘आर्य सभा ने साल 1972 में चुनाव लड़ा और फिर 1977 में इसका जनता पार्टी में विलय हो गया. तब से, आर्य सभा ने अपनी पार्टी के टिकट के साथ चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारे हैं, जहां तक डीलिस्ट किये जाने का सवाल है, तो इसमें हमारे लिए डरने की कोई बात नहीं है.‘
दूसरा कार्यालय नई दिल्ली के टॉल्स्टॉय मार्ग में ‘राष्ट्रीय देहात मोर्चा पार्टी’ का था.
आर.सी. जैन, जो इस पार्टी के महासचिव हुआ करते थे, ने बताया, ‘कई साल पहले जब हमने एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण करवाया था तभी से हमने कोई चुनाव नहीं लड़ा.’
उनके अनुसार, ईसीआई की वर्तमान में चल रही सख्त कार्रवाई ‘आश्चर्यजनक बात नहीं’ है.
उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक दलों को पंजीकृत करवाना मनी लॉन्ड्रिंग करने का एक तरीका हो सकता है. लेकिन हमें डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि हमें शायद ही कभी कोई योगदान मिलता है. हमारे रिकॉर्ड एकदम साफ हैं.’
गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए पंजीकृत तेरह अन्य पते या तो मौजूद ही नहीं थे या वहां कोई काम-काज नहीं हो रहा था.
‘ठिकाने का कोई अता-पता नहीं’
अग्रवाल चेम्बर्स दिल्ली के विकास मार्ग पर स्थित कई सारी मामूली दिखने वाली इमारतों में से एक है. इस वाणिज्यिक परिसर में कई चार्टर्ड एकाउंटेंटस के कार्यालय, कंप्यूटर हार्डवेयर की दुकानें, कानून फर्म, छोले-भटूरे बेचने वाली एक लोकप्रिय दुकान और विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक उद्यम स्थित हैं. माना जाता है कि इसी इमारत की दुकान संख्या 61 में किसी ‘हिंदुस्तानी गरीबवादी पार्टी’ का कार्यालय है, लेकिन उस नंबर की कोई दुकान यहां मौजूद नहीं है.
‘भारत महाशक्ति पार्टी’ का कार्यालय पूर्वी दिल्ली के प्रियदर्शिनी विहार में एक मध्यम आय वर्ग के आवासीय इलाके में स्थित दो कमरों का बंद पड़ा फ्लैट निकला.
‘भारतीय संघीय लोकतांत्रिक पार्टी’ का पंजीकृत कार्यालय संभावित रूप से नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग में बलवंत राय मेहता लेन के बंगला नंबर 1 में होना चाहिए. मगर, यहां एकमात्र समस्या यह है कि फिलहाल यह मकान तेलंगाना राष्ट्र समिति के लोकसभा सांसद नामा नागेश्वर राव का आवास है. इन सांसद के आवास पर तैनात कर्मचारियों का कहना है कि इस बंगले में कभी किसी राजनीतिक दल का कार्यालय नहीं था.
हालांकि, भारतीय आवाज पार्टी, हिंदुस्तानी गरीबवादी पार्टी, आर्य सभा, भारत महाशक्ति पार्टी, इंडियन फेडरल डेमोक्रेटिक पार्टी और राष्ट्रीय देहात मोर्चा पार्टी इस साल डीलिस्ट की गई गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की सूची में शामिल हैं; मगर अनैथु मक्कल अरसियाल काची, हिंद स्वराज्य गणतंत्र पार्टी और अखिल भारतीय समथुवा मक्कल काची के नाम अभी भी ईसीआई की पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की सूची में मौजूद है.
ईसीआई वेबसाइट पर अपलोड की गई सूचियों के अनुसार, जिन और कुछ राजनीतिक दलों के नाम हाल ही में इस सूची से हटा दिया गए हैं, उनमें दिल्ली में पंजीकृत भारत बचाओ पार्टी ऑफ इंडिया, हिंद रक्षा सेना और इंडियन सेक्युलर कांग्रेस; चंडीगढ़ की भारतीय आरक्षण विरोधी पार्टी; उत्तर प्रदेश में क्रांति दल, नेताजी सुभाष पार्टी और विधायक दल; और तमिलनाडु स्थित लेबर एंड जॉब सीकर्स पार्टी ऑफ इंडिया के नाम शामिल हैं.
इन्हीं नामों में कर्नाटक में भारतीय मतदाता कल्याण पार्टी; पश्चिम बंगाल में युवा ब्रिगेड और फॉरवर्ड ब्लॉक (समाजवादी); राजस्थान में क्रांति परिषद और लोक परिवहन; गुजरात में श्री भारत विकास पक्ष और सिंह जन सेवा पार्टी; मेघालय में ए-चिक नेशनल पार्टी; महाराष्ट्र में स्थित न्यूज़ कांग्रेस और वार वेटरन्स पार्टी, असम की हिंदुस्तान सुरक्षा पार्टी और यूनाइटेड माइनॉरिटीज फ्रंट; तथा बिहार की भारत मंगलम परिषद और गरीब विकास पार्टी; और अन्य के नाम भी शामिल हैं.
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कैसी पंजीकृत कराई जाती हैं पार्टियां?
किसी भी राजनीतिक दल को रजिस्टर्ड करवाने के लिए, आवेदक को एक निर्धारित प्रोफार्मा (प्रारूप) के माध्यम से चुनाव आयोग को एक अनुरोध भेजना होता है. इसे आवेदन में पार्टी के नियमों और विनियमों के मसौदे की एक मुद्रित प्रति शामिल होनी चाहिए, जिसमें यह बताया गया हो कि प्रस्तावित पार्टी कैसे कार्य करेगी. यह या तो एक ज्ञापन या पार्टी के संविधान के रूप में होना चाहिए.
आवेदकों को बैंक खाते के विवरण, स्थायी खाता संख्या (पैन) के विवरण और 10,000 रुपये का प्रसंस्करण शुल्क भी देना होता है. पार्टी के पास अपना एक पंजीकृत कार्यालय होना चाहिए और हलफनामे में इसके अपने पूरे पते और पदाधिकारियों के संपर्क विवरण का खुलासा होना चाहिए.
ये और अन्य आवश्यक दस्तावेज पार्टी के गठन के 30 दिनों के भीतर जमा करने होते हैं.
हालांकि, जैसा कि, दो अलग-अलग राज्यों में मुख्य चुनाव अधिकारियों के कार्यालयों के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया पंजीकरण के समय कोई भौतिक सत्यापन नहीं होता है.
इन सूत्रों में से एक ने कहा, ‘भौतिक सत्यापन का अभियान जिले के अधिकारियों द्वारा केवल कोई शिकायत प्राप्त होने या किसी विशिष्ट पार्टी के चुनाव आयोग की जांच के दायरे में आने के बाद ही चलाया जाता है.’
एक बार पंजीकृत होने के बाद, सभी राजनैतिक दल तब तक गैर-मान्यता प्राप्त ही रहते हैं जब तक कि वे उन राज्यों, जहां वे पंजीकृत हैं, के सांसदों या विधायकों की एक निश्चित संख्या जितवाने या नवीनतम लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कुल मतों से 6 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त काने में सफल नहीं हो जाते हैं. यदि वे इन शर्तों को पूरा कर लेते हैं, तो उन्हें राज्य स्तरीय दलों के रूप में मान्यता दी जाती है. चार या अधिक राज्यों में यह दर्जा पाने वाले संगठन राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं.
मौजूदा व्यवस्था में व्याप्त खामियां
ईसीआई के पास पंजीकृत होने के लिए ढेर सारे दस्तावेजों की आवश्यकता के बावजूद, गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों की संख्या में हो रहे बेतहाशा इजाफे से पता चलता है कि इस प्रणाली को और अधिक सख्त किये जाने की आवश्यकता है.
भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कई ऐसे कदमों पर प्रकाश डाला जो इस समस्या को कम करने में मदद कर सकते हैं.
इनमें से पहला यह सुनिश्चित करना है कि भौतिक सत्यापन पहले के चरण में हो.
जैदी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सबसे पहले, जब वे (राजनीतिक दल) अपना पंजीकरण करवाने आते हैं, तो उनकी स्वयं की घोषणाओं पर भरोसा करने के बजाय संबंधित जिला-स्तरीय चुनाव कार्यालयों द्वारा उनके पते का भौतिक सत्यापन किया जाना चाहिए. इससे जमीन पर नामौजूद रहने वाली पार्टियों की समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी.’
उन्होंने कहा, ‘दूसरा, राजनीतिक दलों के पंजीकृत होने के बाद उनके या तो चुनाव में भाग लेने या फिर डीलिस्ट किये जाने के जोखिम के लिए तैयार रहने हेतु किसी प्रकार की कानूनी आवश्यकता होनी चाहिए.’
जैदी, जिन्होंने साल 2016 में ईसीआई के इस तरह के अंतिम सामूहिक डीलिस्टिंग अभियान का नेतृत्व किया था, ने कहा, ‘तीसरे, भारत के चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव अधिकारियों (राज्यों में) द्वारा उनकी कड़ी निगरानी होनी चाहिए. चौथे, एक ऐसी आवश्यक शर्त होनी चाहिए जो यह सुनिश्चित करे कि वे चुनाव में भाग लेने पर ही कर छूट का लाभ उठा सकें. और पांचवें कदम के रूप में, सूची से बाहर किये जाने (डीलिस्टिंग) की इस कवायद को कुछ वर्षों में एक बार किये जाने के बजाय एक नियमित अभियान, अच्छा हो कि एक वार्षिक कार्य के रूप में, बनाया जाना चाहिए.’
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