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Saturday, 23 November, 2024
होमदेश‘फेसलेस हाइब्रिड आतंकवादी’—NIA ने बताया पाकिस्तानी समूह कैसे कश्मीर में पैदा कर रहे अशांति

‘फेसलेस हाइब्रिड आतंकवादी’—NIA ने बताया पाकिस्तानी समूह कैसे कश्मीर में पैदा कर रहे अशांति

NIA के मुताबिक, आतंकवादी गुटों में शामिल किए जा रहे नए कैडर का पुलिस या खुफिया एजेंसियों के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है और वे स्थानीय हैं. वे हमलों को अंजाम देते हैं और फिर आबादी के साथ घुलमिल जाते हैं.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तरफ से जारी एक चार्जशीट में कहा गया है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन ‘स्थानीय प्रतिरोधी समूहों’ के नाम पर ‘छद्म-आतंकवादी संगठन’ बनाकर कश्मीर में अशांति फैलाने की कोशिश में जुटे हैं. चार्जशीट में कहा गया है कि ये संगठन पहले इंटरनेट के जरिये स्थानीय लोगों को उकसाकर कट्टरपंथी बनाते हैं और फिर उन्हें गोली चलाने की ऑनलाइन ट्रेनिंग देकर ‘हाइब्रिड आतंकवादी’ के तौर पर संगठन में शामिल करते हैं.

एनआईए ने शुक्रवार को 25 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम), अल-बद्र और उनके सहयोगी गुटों जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के कैडर की तरफ से जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में फिजिकल के अलावा साइबर हमलों को अंजाम देने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है.

पिछले साल से घाटी में नागरिकों की हत्याओं की घटनाएं बढ़ गई है, जिसके लिए द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), पीपल अगेंस्ट फासिस्ट फोर्सेज (पीएएफएफ), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट जेएंडके (यूएलएफ), मुस्लिम जांबाज फोर्स (एमजेएफ), कश्मीर जांबाज फोर्स (केजेएफ), कश्मीर टाइगर्स, कश्मीर फाइट, मुजाहिदीन गजवत-उल-हिंद और कश्मीर गजनवी फोर्स जैसे संगठनों ने जिम्मेदारी ली है.

एनआईए सूत्रों के मुताबिक, अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने के बाद से इन समूहों को ‘पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों की तरफ से मदद दी गई है’ और इनका इस्तेमाल इस तरह से किया किया जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी गतिविधियों में शामिल होना नकारा जा सके.

सूत्रों ने कहा कि इसका एक कारण यह है कि पाकिस्तान मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने में नाकाम रहने और टेरर फाइनेंसिंग को लेकर 2018 से ही टेरर फाइनेंसिंग वॉचडॉग फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट में है.

एनआईए के एक अधिकारी ने कहा, ‘ये (नए) संगठन जम्मू-कश्मीर में अचानक से बढ़ गए हैं, और विभिन्न आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने का दावा कर रहे हैं. हमारी जांच में यह बात सामने आई है कि ये सभी छद्म संगठन वास्तव में पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के ऑफशूट/पुनर्गठित संस्करण हैं और जम्मू-कश्मीर में स्थानीय स्तर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इनकी मदद ली जा रही है.’

जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सूत्र ने बताया कि इसमें तमाम स्थानीय युवाओं को शामिल किया जा रहा है, प्रशिक्षित किया जा रहा है और फिर इनका इस्तेमाल नागरिकों की हत्याओं के लिए किया जा रहा है, क्योंकि उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, और उनके लिए छिपना आसान है.


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‘युवाओं को ऑनलाइन शामिल और प्रशिक्षित कर रहे’

एनआईए सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान में बैठे आतंकी हैंडलर एक ‘सुव्यवस्थित प्रोपेगैंडा’ चला रहे हैं, जो विभिन्न वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया हैंडल और एन्क्रिप्टेड संचार प्लेटफार्मों जैसे गोपनीय चैनलों के माध्यम से ‘साइबरस्पेस’ में काम कर रहे हैं.

सूत्रों ने कहा, इन प्लेटफार्म का इस्तेमाल कश्मीर में युवाओं को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य ‘उन्हें कट्टरपंथी बनाना और आतंकवादी रैंकों में शामिल होने या आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए ओवर-ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्ल्यू) के तौर पर काम करने के लिए प्रेरित करना’ है.

सूत्रों में से एक ने कहा, ‘एक बार कट्टरपंथी बनने के बाद नए कैडर को हथियारों, विस्फोटकों के साथ-साथ विभिन्न ऑनलाइन गतिविधियों जैसे वर्चुअल नंबर और वीपीएन और एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म पर गोपनीय ढंग से संचार आदि के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे कानून प्रवर्तन एजेंसियों की नजरों में आए बिना अपनी गतिविधियों को अंजाम दे सकें.’

सूत्र के मुताबिक, एनआईए की जांच से आतंकवादी संगठनों की रणनीति में ‘स्पष्ट बदलाव’ का भी पता चला है, जो अब अल्पसंख्यकों, नागरिकों, प्रवासियों, सरकारी अधिकारियों और बिना सुरक्षा वाले सुरक्षा कर्मियों को निशाना बना रहे हैं.


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‘कोई रिकॉर्ड नहीं’

सूत्रों ने कहा कि इस साजिश का एक प्रमुख पहलू ‘हाइब्रिड आतंकवादियों’ के तौर पर नए कैडर को शामिल करना है, जिनका पुलिस या खुफिया एजेंसियों के साथ कोई रिकॉर्ड नहीं है और वे स्थानीय नागरिक हैं.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्र ने कहा, ‘पुलिस या एजेंसियों के पास इन हाइब्रिड आतंकियों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है. वे छात्र या दुकानदार कोई भी हो सकते हैं. ये संगठन ऐसे लोगों को ऑनलाइन पिस्टल-ट्रेनिंग देते हैं और फिर उन्हें उनका कोई टारगेट बता देते हैं.’ सूत्र ने कहा, ‘हमले को अंजाम देने के बाद ऐसे कैडर आसानी से स्थानीय आबादी के साथ घुल-मिल जाते हैं या अपनी सामान्य दिनचर्या में शामिल हो जाते हैं.’

एनआईए के सूत्र ने कहा, ‘ये विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग हैं जो अपनी इस पहचान को समाज में अपनी जड़ें जमाए रखने के लिए कवर के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं और साथ ही अपने आतंकवादी आकाओं के निर्देशों का पालन कर सकते हैं.’

सूत्र ने कहा, ‘एक ओजीडब्ल्यू के तौर पर कार्य करते हुए, वे ग्रेनेड-लॉबिंग, छोटे-मोटे टारगेट पर लोन वुल्फ हमले और आगजनी जैसी आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल होते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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