(मनीष सैन और माणिक गुप्ता)
नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर (भाषा) सोशल मीडिया पर, दफ्तरों की बहसों में और ड्राइंग रूम की बातचीत में नफरत भरी बातें कही जा रही हैं। इस नफरत का निशाना अप्रत्याशित रूप से 10 साल का एक बच्चा है जिसे “कौन बनेगा करोड़पति” में आने के बाद “घमंडी”, “असभ्य” और “बद्तमीज” करार दिया गया और उसकी बदनामी उसकी उम्र के साथ कतई न्याय नहीं करती।
केबीसी की ‘हॉट सीट’ पर गुजरात के लड़के इशित भट्ट का आत्मविश्वास से भरपूर होना, मेजबान अमिताभ बच्चन से नियमों को न दोहराने के लिए कहना, पूरा प्रश्न सुनने से पहले ही उत्तर दे देना, तथा बीच वाक्य में ही टोक देना- ये सब तीखी चर्चा का विषय बन गया।
क्या यह खराब पालन-पोषण है? क्या यह एक होशियार लड़के की स्वाभाविक ढीठता है? क्या इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए, आखिरकार वह बच्चा ही तो है, या इस पर ध्यान देना चाहिए?
सवाल तेजी से और तीखे अंदाज में उठाए जा रहे हैं, जिससे पांचवीं कक्षा का यह छात्र एक ‘ट्रेंडिंग टॉपिक’ (चर्चा का विषय) बन गया है। भट्ट द्वारा कथित तौर पर लिखा गया एक माफीनामा, जिसे एक वीडियो के साथ उसके इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया गया था, खूब चर्चा में रहा। और फिर उसे यह संदेश देते हुए हटा दिया गया कि वह अकाउंट मौजूद ही नहीं है।
विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर लड़के की तस्वीर के साथ कई फर्जी अकाउंट भी बनाए गए थे।
सभी बातें एक परेशान करने वाली भीड़ की मानसिकता की ओर इशारा करती हैं, जिसमें यह चिंता व्यक्त की जाती है कि ट्रोलिंग और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करने की ऐसी घटनाओं का बच्चे पर प्रारंभिक अवस्था में ही दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, वास्तविकता जटिल है, जो बदलती पालन-पोषण शैली, स्कूल संस्कृति और बच्चों के आज के व्यवहार और अभिव्यक्ति के तरीके से प्रभावित होती है जिसमें
दो मिनट में ही यह फैसला हो जाता है कि वह असभ्य है।
पारिवारिक चिकित्सक मैत्री चंद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “लेकिन ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी”।
उन्होंने कहा कि लोग बच्चे के बात करने के तरीके, हाव-भाव और प्रतिक्रियाओं को “एकतरफा तरीके” से आंक रहे हैं।
उन्होंने कहा, “अशिष्टता और अहंकार का एक सांस्कृतिक आधार होता है – ये सांस्कृतिक रूप से मानदंड हैं। और मेरा मतलब सिर्फ देश-वार संस्कृति से नहीं है। यह पारिवारिक संस्कृति, सामुदायिक संस्कृति या यहां तक कि स्कूल की संस्कृति भी हो सकती है।”
छत्तीसगढ़ के आठ वर्षीय विराट अय्यर ने भी 2023 में इसी तरह से खेल खेला – बच्चन के प्रश्न पूरा करने से पहले ही उसने उत्तर दे दिया।
भट्ट के विपरीत, जो बिना कुछ जीते घर चले गए, अय्यर 1 करोड़ रुपये के अंतिम प्रश्न तक पहुंचे, लेकिन गलत उत्तर देने के बाद 3.20 लाख रुपये लेकर घर चले गए।
जैसा कि चंद का मानना है, इस पीढ़ी के बच्चे ऐसे माहौल में बड़े हो रहे हैं जो उन्हें मुखर होने और अपनी राय रखने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करता है।
चंद ने कहा, “स्कूल आलोचनात्मक सोच को पहले से ही सिखाते हैं, जो बहुत अच्छी बात है। हमारी पीढ़ी में हमने इसे मास्टर स्तर पर ही सीखा। इसलिए हो सकता है कि बच्चा बस तेजी से सोच रहा हो, चीजों का अंदाजा लगा रहा हो, तुरंत प्रतिक्रिया दे रहा हो, जरूरी नहीं कि वह अनादर की भावना से ऐसा कर रहा हो।”
चंद ने कहा कि जिसे कई वयस्क अहंकार समझते हैं, वह वास्तव में तीव्र संज्ञानात्मक लय से पैदा हुई अधीरता हो सकती है।
मानव संसाधन पेशेवर और मां अंकिता वर्मा मेहता का विचार थोड़ा अलग है। उनका मानना है कि बच्चे के व्यवहार को सही समय पर सुधारा जाना चाहिए था।
मेहता कहती हैं, “उसे लगता है कि इस तरह बात करना और इस तरह का अपमान करना ठीक है, क्योंकि उसके अतीत में इसे स्वीकार किया गया है। हो सकता है कि उसके आत्मविश्वास की तारीफ की गई हो जो अति आत्मविश्वास में बदल गया हो। इसे सुधारने की जरूरत है। मैं उसे एक अलग कमरे में ले जाकर समझाती कि यह व्यवहार गलत है।”
हालांकि, चंद का मानना है कि विनम्रता कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे ज्यादातर 10 साल के बच्चे समझ सकें।
उन्होंने कहा, “विनम्रता जीवन में बाद में आती है जब अनुभव हमें थोड़ा विनम्र बनाता है।”
उन्होंने कहा, “उसकी उम्र में, यदि आप इसे थोपने का प्रयास करते हैं, तो यह बच्चे को दबाने या उसे अपने विचार व्यक्त करने से हतोत्साहित करने जैसा हो सकता है।”
क्या यह खराब पालन-पोषण की वजह से है? इसका कोई निश्चित जवाब नहीं है।
चंद ने कहा, “यह सिर्फ पालन-पोषण से कहीं बड़ा है।”
उन्होंने कहा, “हम बच्चों की परवरिश अलग-अलग तरीकों से कर रहे हैं – प्रदर्शन करने के लिए, अभिव्यक्ति करने के लिए, आगे और केंद्र में रहने के लिए। और फिर जब वे ऐसा करते हैं, तो हम उन्हें बहुत ज्यादा करने के लिए फटकार लगाते हैं। यह एक विरोधाभास है।”
नैदानिक मनोवैज्ञानिक श्वेता शर्मा के लिए, यह आत्मविश्वास की बात नहीं थी। उन्होंने कहा कि अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज व्यक्ति के सामने राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रस्तुति देने के दबाव के कारण बच्चे का व्यवहार और अधिक खराब हो सकता था।
शर्मा ने कहा, “इसलिए आलोचना और ठप्पा लगाने के बजाय, इसे भावनात्मक विनियमन, सामाजिक मानदंडों के प्रति सम्मान और अनुकूलन संबंधी दृढ़ता सिखाने के अवसर के रूप में माना जाना चाहिए।”
शर्मा ने कहा, “इस तरह की आलोचना से उसके आत्मसम्मान और सामाजिक विश्वास पर असर पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप वह और भी ज़्यादा रक्षात्मक या असभ्य हो सकता है।”
भाषा प्रशांत नरेश
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