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Sunday, 22 December, 2024
होमदेशपूर्व-IPS संजीव भट्ट की 20 साल की जेल की सज़ा उम्रकैद के बाद शुरू होगी, जानिए कैसे लागू होंगी सज़ाएं

पूर्व-IPS संजीव भट्ट की 20 साल की जेल की सज़ा उम्रकैद के बाद शुरू होगी, जानिए कैसे लागू होंगी सज़ाएं

पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1996 के ड्रग प्लांटिंग मामले में गुरुवार को 20 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई, जबकि 2019 में हिरासत में मौत के मामले में उन्हें उम्रकैद की सज़ा मिली थी.

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नई दिल्ली: गुजरात के बनासकांठा जिले की एक अदालत ने गुरुवार को 1996 के ड्रग प्लांटिंग मामले में पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी संजीव भट्ट को 20 साल जेल की सज़ा सुनाई.

मूल रूप से गुजराती में दिए गए फैसले के अनुसार, इस मामले में आरोप उस समय के हैं जब भट्ट बनासकांठा का पुलिस अधीक्षक था.

अब उसे होटल के कमरे में व्यावसायिक मात्रा में अफीम रखकर राजस्थान के एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को झूठा फंसाने का दोषी ठहराया गया है. राजपुरोहित को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उनका आरोप है कि इस मामले में उनके फंसने के दबाव में उनके कब्जे वाली एक संपत्ति खाली कर दी गई.

अदालत ने अब भट्ट को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया है.

जनवरी में, गुजरात हाई कोर्ट ने 1990 के कथित हिरासत में यातना और मौत के मामले में भट्ट की उम्रकैद और हत्या की सज़ा को बरकरार रखा था. इस मामले में जामनगर सत्र अदालत ने जून 2019 में उन्हें दोषी ठहराया और उम्रकैद की सज़ा सुनाई.

कैसे चलेंगी दोनों सजाएं? अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जे.एन. ठक्कर ने गुरुवार के फैसले में इस सवाल का जवाब दिया.

अदालत ने कहा, “वर्तमान में आरोपी संजीव भट्ट भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत अपराध के लिए सज़ा काट रहा है. उस अपराध के लिए सज़ा और वर्तमान फैसले में दी गई सज़ा को आरोपी द्वारा लगातार काटे जाने का आदेश दिया गया है. यानी एक अपराध के लिए सज़ा पूरी होने के बाद, दूसरे अपराध के लिए सज़ा काटनी होगी.”

उम्रकैद का क्या मतलब है और इसके बाद 20 साल की सज़ा कैसे चलेगी? दिप्रिंट आपको यहां समझा रहा है.


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उम्रकैद क्या है?

एक गलत धारणा है कि उम्रकैद की सज़ा काट रहे कैदी को 14 साल या 20 साल की सज़ा पूरी करने के बाद रिहा होने का अपरिहार्य अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में पारित एक ऐतिहासिक फैसले में इस गलत धारणा पर ध्यान दिया.

इसके बाद समझाया गया: “उचित सरकार द्वारा दी गई किसी भी छूट के अधीन, उम्रकैद की सज़ा काट रहे एक दोषी को उसकी ज़िंदगी की आखिरी सांस तक हिरासत में रहने की उम्मीद की जाती है.”

अदालत ने स्पष्ट किया कि कैदी के पास 14 साल या 20 साल की सज़ा पूरी होने पर रिहाई का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है.

दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 उपयुक्त सरकार को, जो कि संघ और राज्य हो सकती है, किसी व्यक्ति की सज़ा “माफ” करने की अनुमति देती है. माफी का अर्थ है सज़ा की प्रकृति को बदले बिना उसकी मात्रा को कम करना, जैसे दो साल के कठोर कारावास से एक वर्ष के कठोर कारावास तक.

सीआरपीसी की धारा 433ए छूट की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है. इसमें कहा गया है, जहां किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए उम्रकैद की सज़ा दी गई है जिसमें सज़ा के रूप में मृत्युदंड भी शामिल है, तो ऐसे व्यक्ति को तब तक रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसने कम से कम 14 साल जेल में नहीं काटे हों.

राज्य सरकारें सज़ा माफी की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए एक सज़ा समीक्षा बोर्ड की स्थापना करती हैं.

कैसे चलेंगी सज़ाएं?

अब, भट्ट के खिलाफ एनडीपीएस मामले में ट्रायल कोर्ट के जज ने आदेश दिया है कि हिरासत में मौत के मामले में पिछली सज़ा के बाद 20 साल की सज़ा लगातार चलेगी.

दिल्ली स्थित आपराधिक वकील सरीम नावेद ने बताया: “अभी, वे (भट्ट) यह सज़ा नहीं काट रहा है, वे अपनी उम्रकैद की सज़ा काट रहा है. वे यह सज़ा तब काटना शुरू करेगा जब यह मान लिया जाएगा कि दूसरी सज़ा पूरी हो गई है.”

उन्होंने कहा, यह पूर्णता छूट, या माफी से आ सकती है, या अगर उसकी उम्रकैद की सज़ा को उच्च न्यायालयों द्वारा कम कर दिया जाता है या पलट दिया जाता है.

छूट देने की यह शक्ति राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्राप्त संवैधानिक शक्तियों से भिन्न है. संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 राष्ट्रपति और राज्यपालों को कुछ मामलों में क्षमादान देने या सज़ा निलंबित करने, कम करने का अधिकार देते हैं.

नावेद ने कहा, “अगर वे असल में मरने तक जेल में रहता है, तो दूसरी सज़ा लागू नहीं होगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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