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Sunday, 28 April, 2024
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EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, पांच जजों की बेंच ने 3-2 से सुनाया फैसला

बेंच में चीफ जस्टिस जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पार्डीवाला शामिल थे.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सोमवार को आर्थिक आधार पर आरक्षण को सही ठहराया है. पांच जजों की बेंच में तीन जजों ने इस अधिनियम को बरकरार रखने की वकालत की जबकि दो जज इसके खिलाफ थे. इसमें से चीफ जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस रवींद्र भट इसके खिलाफ थे.

बेंच में चीफ जस्टिस जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे. सितंबर में इसी बेंच ने सभी पक्षों की दलील को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था.

फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस ईडब्ल्यूएस आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. ईडब्ल्यूएस आरक्षण सहीं नहीं है. जबकि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के समर्थन में जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि EWS कोटा सही है. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि ईडब्ल्यूएस कोटा को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए.

केंद्र सरकार ने क्या कहा

ईडब्ल्यूएस आरक्षण के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण किसी भी प्रकार से पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के हक के अधिकारों का हनन नहीं करता है. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को पहली बार आरक्षण मिला है जबकि पिछड़े समुदाय के लोगों को लंबे समय से आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है. यह भी तर्क दिया गया कि सरकार का कर्तव्य है कि वह आर्थिक रूप से गरीब लोगों के हितों का ध्यान रखें.

बता दें कि 2019 में 103 वें संविधान संशोधन के तहत सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों आदि में दाखिले के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया. इससे पहले सामान्य वर्ग को किसी भी प्रकार के आरक्षण का प्रावधान नहीं था. 103वें संविधान संशोधन में अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को जोड़ा गया जो किसी भी सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थान में दाखिले सामान्य वर्ग के कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत का आरक्षण देता है.

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यह संशोधन राज्य सरकारों को भी आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का अधिकार देता है. आर्थिक आधार पर आरक्षण सेवानिवृत मेजर जनरल एस आर सिन्हा के नेतृत्व वाली कमिटी के सिफारिशों के आधार पर दिया गया था. तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा 2006 में कमीशन फॉर इकोनॉमिकली बैकवर्ड क्लासेस का गठन किया था जिसमें तहत आर्थिक रूप से ऐसे कमजोर वर्ग के लोगों को चिह्नित किया जाना था, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं और उनके समस्त साधनों की आय आयकर सीमा से कम हो. केन्द्र सरकार का तर्क है कि उसने संविधान 103 वें संविधान संशोधन के तहत इन्हीं वर्गो के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है.

सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण उन लोगों को दिया जाता है जिनकी आय 8 लाख रुपये से कम है या फिर 5 एकड़ या उससे कम कृषि भूमि है. आर्थिक आधार पर आरक्षण केवल सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को ही मिल सकता है.

कौन कौन ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ

साल 2019 तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध किया था. साथ ही बिहार की पार्टी आरजेडी ने भी आर्थिक रूप से आरक्षण का संसद में विरोध किया था. इसके अलावा एनजीओ यूथ फॉर इक्विलिटी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. यूथ फॉर इक्विलिटी का तर्क था कि आर्थिक रूप से कमजोर आरक्षण का आधार नहीं हो सकता है. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह फैसला भारतीय संघ बनाम इंदिरा साहनी केस में का उल्लंघन करता है जिसमें कहा गया था कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर नहीं जा सकती.


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