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Saturday, 27 July, 2024
होमदेश'कैंप से बेदखल'- अपने सिर पर छत के लिए संघर्ष कर रहे हैं घाटी में वापस लाये गए 27 कश्मीरी पंडित परिवार

‘कैंप से बेदखल’- अपने सिर पर छत के लिए संघर्ष कर रहे हैं घाटी में वापस लाये गए 27 कश्मीरी पंडित परिवार

कश्मीरी पंडितों के लिए प्रधानमंत्री द्वारा प्रदत्त विशेष पैकेज का हिस्सा रहे ये 27 परिवार अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ कुलगाम शिविर स्थित सुरक्षित आवासों से बेदखल किये जाने के बाद से खुले में डेरा डाले हुए हैं.

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नई दिल्ली: जैसा कि कश्मीरी समुदाय के प्रतिनिधियों ने दिप्रिंट को बताया है, सत्ताईस कश्मीरी पंडित परिवार, जिन्हें इस महीने अदालत के एक आदेश द्वारा दक्षिणी कश्मीर के वेसु ट्रांजिट कैंप में नवनिर्मित सुरक्षित आवासों से बेदखल कर दिया गया था, अब तंबुओं में गुजर-बसर कर रहे हैं.

इन परिवारों, जिनमें 20 छोटे बच्चे और 12 बुजुर्ग शामिल हैं, का कहना है कि वे फ़िलहाल भारी बारिश के बावजूद कुदरत के रहमोकरम पर कुलगाम के ट्रांजिट कैंप के लॉन में डेरा डाले हुए हैं.

बताया जाता है कि इस समूह की सबसे छोटी सदस्यों में से एक और बेदखल किये गए कश्मीरी पंडितों में से एक की बेटी तीन वर्षीय नताशा को बारिश में भींग जाने के बाद 22 जुलाई से तेज बुखार आ रहा है.

अपना नाम न बताने की शर्त पर उसके पिता ने कहा, ‘हम पिछले एक हफ्ते से अपने सिर पर बिना किसी छत के रह रहे हैं, लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है.’

साल 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा चालू की गयी एक योजना के तहत सरकारी नौकरी दिए जाने के बाद साल 2010 में लगभग 5,000 कश्मीरी पंडित इस अशांत क्षेत्र में लौट आए थे, लेकिन अब तक उनमें से केवल पांचवें हिस्से को ही संरक्षित ट्रांजिट कैम्प्स में रहने के लिए आवास प्राप्त हुआ है.

पिछले साल से कश्मीरी पंडितों और अन्य नागरिकों को निशाना बना कर किये जा रहे आतंकवादी हमलों के बावजूद, इनमें से अधिकांश ने अपने कार्यस्थल के पास ही किराए के घरों में रहना जारी रखा हुआ है.

इन 27 परिवारों को वेसु ट्रांजिट कैंप में एक पूर्वनिर्मित आवास (प्री फेब्रिकेटेड एकोमोडेशन) में रखा गया था और इनमें से अधिकांश को रहने के लिए एक स्वतंत्र इकाई आवंटित की गई थी, इन कर्मचारियों का कहना है कि उनकी बेदखली की शुरुआत 2020-21 की कड़ाके की ठण्ड वाली सर्दियों के साथ हुई, जिसके कारण उनके पूर्वनिर्मित आवासों में कथित तौर पर दरारें पैदा हो गईं थी.

बाद में वे भाजपा के कुलगाम जिला अध्यक्ष आबिद हुसैन खान के कहने पर वापस लौट रहे पंडितों को आवास प्रदान करने के लिए ट्रांजिट कैंप के परिसर में बने एक स्थायी बहु-मंजिला इमारत में चले गए, लेकिन इसके बाद उन्होंने खुद को तत्कालीन प्रवासियों के लिए जम्मू और कश्मीर राहत और पुनर्वास आयुक्त, टी.के. भट्ट, के द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी का भुक्तभोगी बना पाया. भट्ट ने अपनी शिकायत में इन पंडितों पर सरकारी संपत्ति का ‘अतिक्रमण’ करने का आरोप लगाया था.

इसके उपरांत एक कानूनी लड़ाई शुरू हुई और जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख के उच्च न्यायालय ने इस महीने की शुरुआत में इन परिवारों को बेदखल करने का आदेश देते हुए कहा कि उन्होंने कश्मीरी पंडितों को दिए जाने वाले स्थायी अपार्टमेंट के आवंटन को नियंत्रित करने वाले नियमों का उल्लंघन किया है.

इस बीच, पहले से बनीं बनायीं वे झोपड़ियां (प्रीफेब हट्स) जिनमें पहले ये परिवार रह रहे थे, अब 40 अन्य परिवारों को आवंटित कर दी गयीं हैं. टिप्पणी के लिए संपर्क किये जाने पर वर्तमान जम्मू-कश्मीर राहत और पुनर्वास आयुक्त कुलदीप कृष्ण सिद्धा ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि वे कश्मीरी पंडित हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वे अवैध काम करने के लिए अपना भावनात्मक कार्ड खेल सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम देखेंगे कि हम उन्हें समायोजित करने के लिए अच्छे से अच्छा क्या कुछ कर सकते हैं.’


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परिवारों की कठिन परीक्षा

जनवरी 2021 में, दक्षिणी कश्मीर में एक काफी तेज बर्फ़ीला तूफ़ान आया था, जिससे कुछ घर भी गिर गए थे. इसे केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा प्राकृतिक आपदा घोषित किया गया था.

वेसु ट्रांजिट कैंप में रहने वाले कई परिवारों ने आरोप लगाया की खराब मौसम कि वजह से उनके प्रीफ़ैब एकोमोडेशन में दरारें आ गईं, और साथ ही छतों में भी रिसाव हो रहा था.

वेसु वेलफेयर कमिटी के अध्यक्ष और एक कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारी सनी रैना ने इस मामले के बारे में कुलगाम के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र भी लिखा तथा उनसे अपने आवासों की मरम्मत किये जाने या फिर इन परिवारों को परिसर में बन रहे नए स्थायी भवनों में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया, लेकिन कथित तौर पर उन्हें कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुआ.

उनके इस पत्र, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट को भी प्राप्त हुई है, में कहा गया है: ‘2010 में बनी ये प्रीफेब हट्स अपनी निर्धारित ज़िंदगी समाप्त कर चुकी हैं और कठोर मौसम में कभी भी गिर सकती हैं. ट्रांजिट आवासों में छोटे बच्चे, बूढ़ी महिलाएं और कई गर्भवती महिलाएं रहती हैं जिनके लिए इन आवासों में जीवित रहना मुश्किल हो गया है. हम आपसे अनुरोध करते हैं कि हमें नए भवनों में स्थानांतरित किया जाये.’

भाजपा के कुलगाम जिलाध्यक्ष आबिद हुसैन खान ने उनकी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने ही जनवरी 2021 में सुझाव दिया था कि ये परिवार अपने-अपने प्रीफ़ैब आवास से निकलकर वेसु परिसर में निर्माणाधीन बहु-मंजिला सुरक्षित क्वार्टर में चले जाएं.

वापस लौटने वाले कश्मीरी पंडितों को आवास प्रदान करने के लिए इन स्थायी ढांचों पर 2015 में काम शुरू हुआ था.

खान ने दावा किया कि उन्होंने कुलगाम के उपायुक्त को भी हालात से अवगत कराया था.

खान ने कहा, ‘वहां 7-8 फीट बर्फ पड़ी थी और उसके कारण प्रवेश द्वार बंद हो रखे थे. पानी छत के जरिये घरों में प्रवेश कर रहा था. छोटे बच्चे बुरी तरह भीग रहे थे. मैं उनकी हालत नहीं देख सका. इसलिए मैं इन परिवारों को बहुमंजिला इमारत में निर्माणाधीन इन घरों में ले गया और ताले खोलकर उन्हें वहीं ठहरा दिया. उस समय ये मकान खाली थे.’

प्रवासियों के लिए तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राहत और पुनर्वास आयुक्त, टीके भट्ट ने उनके इस कदम का जवाब एक प्राथमिकी दर्ज करवा कर दिया.

अदालत में जमा कराए गए दस्तावेजों के मुताबिक भट्ट ने संबंधित सरकारी विभागों से इन कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने को कहा था. कुछ कर्मचारी जो सुरक्षित बहुमंजिला घरों में शिफ्ट हो गए थे, उन्हें जनवरी महीने का वेतन भी नहीं दिया गया.

अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और विभागीय कार्रवाई के जवाब में, इन परिवारों ने अदालत का रुख किया, जिसने इन परिवारों को पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ अंतरिम सुरक्षा प्रदान की, और मामले की सुनवाई होने तक उन्हें उन्हीं अपार्टमेंटस में रहने की अनुमति भी दे दी. कोर्ट ने सरकार को उनके वेतन का भुगतान करने का भी आदेश दिया.

इसके तुरंत बाद, राहत और पुनर्वास आयुक्त ने उन 208 कर्मचारियों के नामों के साथ एक आवंटन सूची पेश की, जिन्हें इस बहुमंजिला इमारत में क्वार्टर दिए गए थे.

इस पर इन 27 परिवारों ने अदालत में दावा किया कि इस सूची में शामिल कई व्यक्ति उनके आने के बहुत बाद, साल 2018 में, घाटी में आए थे.

हालांकि, इस साल जुलाई में, अदालत ने जम्मू-कश्मीर सरकार को इन कश्मीरी पंडित परिवारों को बेदखल करने का आदेश दे दिया.

अपने आदेश में, उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने कहा कि ‘यह सच है कि याचिकाकर्ताओं को प्रदान किया गया आवास एक पूर्वनिर्मित संरचना (प्रीफेब स्ट्रक्चर) है. लेकिन फिर भी यदि याचिकाकर्ता उन्हें आवंटित आवास से असंतुष्ट थे या उन्हें लगता था कि उन्हें आवंटित आवास बुनियादी सुविधाओं से रहित थे, तो वे सरकारी आदेश को चुनौती दे सकते थे.‘

न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘लेकिन उन्होंने सोचा कि वे अपने आप में कानून हैं और प्रवासी होने के नाते उन्हें कानून का उल्लंघन करने और सरकारी संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति है.’ उन्होंने कथित तौर पर यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पहले आवंटित आवासों को अपने पास बरकरार रखते हुए सरकार द्वारा बनाए गए क्वार्टरों पर कब्जा कर लिया था.

उन्होंने कहा, ‘इस तरह की अराजकता को अगर अदालतों द्वारा अनुमति दी जाती है, तो समाज में अव्यवस्था छा जाएगी, जो आगे चलकर कानून के शासन को ही खतरे में डाल देगी. इसी वजह से राज्य की पुलिस शक्ति के लिए उन लोगों पर कठोर कार्रवाई करना आवश्यक है जिनके लिए कानून का उल्लंघन करना एक खिलौने से खेलने जैसा है.’

खान के अनुसार, 2018 से निर्माणाधीन कम से कम आठ अपार्टमेंटस पर भाजपा पार्षदों और एक सरपंच का कब्जा है. उन्होंने कहा, ‘वे 2018 से इन इमारतों में रह रहे हैं, जो पूरी तरह से अवैध है क्योंकि ये घर केवल पीएम के विशेष पैकेज वाले कर्मचारियों के लिए हैं.’

कुलगाम के भाजपा पार्षद सतीश जुत्शी ने कहा कि उनके सहित पार्टी के अन्य पार्षदों को सुरक्षा से जुड़े खतरों के कारण प्रशासन द्वारा साल 2018 में इस अपार्टमेंट में स्थानांतरित कर दिया गया था.

मार्च 2022 में, जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख के उच्च न्यायालय ने राहत और पुनर्वास आयुक्त को निर्देश दिया कि वे इन पार्षदों को इन फ्लैटों से तब तक न निकालें जब तक कि सुरक्षा इनपुट के आधार पर उनके खतरे की धारणा का ठीक से आकलन नहीं किया जाता है और उन्हें वैकल्पिक आवास प्रदान नहीं किया जाता है.

‘इन परिवारों को अब क्या करना चाहिए?’

कैंप के लॉन में डेरा डाले हुए ये 27 परिवार अपने प्री फेब्रिकेटेड एकोमोडेशन (पूर्वनिर्मित आवास) में भी वापस नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें अधिकारियों द्वारा मई 2021 में 40 अन्य पंडित परिवारों को आवंटित कर दिया गया था.

सनी रैना ने कहा, ‘सरकार ने हमसे वादा किया था कि अगर वह (घाटी में) हमारी संपत्ति वापस नहीं करवा सकती तो वह हमारे लिए नए घर बनाएगी. ये ट्रांजिट कैंप अस्थायी रूप से रहने के लिए थे. लेकिन अब वे ढहने के कगार पर हैं. मेरा एक छोटा बच्चा है, और बूढ़े माता-पिता हैं. हम नए घरों में शिफ्ट हो गए क्योंकि हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था. अगर घरों की छतें हम पर गिर जाती हैं तो हमारी मौत का जिम्मेदार कौन होगा?’

रैना ने कहा कि उन्हें ‘मझधार में छोड़ दिया गया है.

उनका कहना है, ‘हमारे पुराने आवास किसी और को दे दिए गए हैं और नए घरों पर ताला लगा दिया गया है. हम वापस जम्मू भी नहीं जा सकते क्योंकि सरकार ने हमें ट्रांजिट कैंपों के अंदर इस वजह से बंद कर दिया है क्योंकि वे हमें इसके बाहर आतंकवाद से सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकते हैं. अब हमें क्या करना चाहिए?’

इन परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील सालिह पीरजादा ने आरोप लगाया कि ‘सरकार सिर्फ अपनी छवि बचाने के लिए मेरे मुवक्किलों को वापस जम्मू भी नहीं जाने दे रही है,’

वे सवाल करते हैं, ‘अब ये लोग क्या करें? उग्रवाद की वजह से मर जाएं, छत गिरने से जान गंवा दें या फिर कठोर मौसम में जान दे दें?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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