scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होमदेश'संघर्ष मुझे रोक नहीं सकता'- कश्मीरी इन्फ्लुएंसर्स के सामने इन दिनों क्या है चुनौती

‘संघर्ष मुझे रोक नहीं सकता’- कश्मीरी इन्फ्लुएंसर्स के सामने इन दिनों क्या है चुनौती

जब कश्मीर में यू-ट्यूब स्टार और टीवी अभिनेत्री अमरीना भट की हत्या हुई, तो इस घटना ने सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को सकते में डाल दिया. लेकिन संघर्ष और खराब इंटरनेट भी उन्हें आगे बढ़ने से रोक नहीं पाएगा.

Text Size:

‘मैं जैसी हूं, वैसी ही स्वीकारना इतना मुश्किल क्यों है’
मैं आपकी उम्मीदों से इतना थक गई हूं कि अब इसकी परवाह भी नहीं करती
मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं अपनी पसंद खुद तय कर रही हूं
मुझे इतने लंबे समय तक दबाया गया कि अपनी चुप्पी ही अखरने लगी है’

कश्मीरी रैपर महक ने इस साल मई में टीवी अभिनेत्री और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर अमरीना भट की आतंकवादियों द्वारा नृशंस हत्या की शाम को लिखा था. लेकिन महक के लिए यह सिर्फ एक और रैप नहीं था. यह उनकी सबसे बड़ी लड़ाई थी.

पूरे भारत के अन्य सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर की ही तरह महक का जीवन भी वैसा ही है. सिवाय इसके कि वह लगातार डर के साये में जीती हैं.

21 साल की महक कश्मीर घाटी की पहली महिला रैपर हैं. इंस्टाग्राम पर इनके 2,400 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और वह एक कश्मीरी कॉलेज से आर्ट में ग्रेजुएशन कर रही है. तेज धूप में जब वह श्रीनगर के लाल चौक की गलियों में दिप्रिंट से मिलने पहुंची, तो वह भीड़ से अलग दिख रही थीं. उनके बाल चमकीले हरे, बैंगनी और लाल रंग के थे. उन्होंने अपनी बेल-बॉटम जींस को एक ओवरसाइज़्ड टी-शर्ट और बहुत सारी अनोखी एक्सेसरीज के साथ पेयर किया हुआ था.

महक के इस लुक की एक खास वजह थी. वह एक पारंपरिक रैपर के रूप में देखी और पहचानी जाना चाहती हैं, भले ही वह उनके जीवन के लिए खतरा क्यों न हो. महक कहती हैं, ‘यहां के लोग कहते हैं कि मैं जैसे कपड़े पहनती हूं, इस्लाम में यह गलत है. इनकी वजह से मुझे मारा जा सकता है. मुझे नहीं लगता कि यह गलत है इसलिए मैं ध्यान नहीं देती.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

लेकिन बडगाम में अमरीना भट की हत्या ने कश्मीर के युवा इनफ्लुएंसर्स और मशहूर हस्तियों को डर के साये में ला खड़ा किया है. उनके सामने कई सवाल हैं– क्या उन्हें गुमनामी में चले जाना चाहिए या फिर मैदान छोड़कर भाग जाना चाहिए या फिर ऑनलाइन बने रहना है?

जब महक ने शुरुआत की, तब उन्हें कश्मीर में सोशल मीडिया के प्रभाव और उसकी चुनौतियों के बारे में बहुत कम जानकारी थी. घाटी में सक्रिय आतंकी समूहों की तो बात ही छोड़ दीजिए, उन्हें तो ये तक नहीं पता था कि वह अपने रैप से दूसरों को परेशान या नाराज भी कर सकती हैं.

महक कहती हैं, ‘कश्मीर में सोशल मीडिया स्टार एक मुश्किल दोराहे के बीच फंस गए हैं. उनकी सुरक्षा के लिए कोई ‘फॉर्मूला’ नहीं है. वे बस इतना कर सकते हैं कि किसी के मारे जाने के बाद सोशल मीडिया पर कुछ समय के लिए चुप्पी साध लें, जो कई लोगों ने अमरीना की हत्या के बाद करना शुरू कर दिया. और जो पोस्ट करना जारी रखते हैं, उनके लिए यह प्रक्रिया स्लो इंटरनेट की वजह से अधिक समय लेने वाली हो गई है. ये बातें उन्हें कश्मीर के बाहर के इनफ्लुएंसर्स से अलग करती हैं. क्या चलन में है, इसके बारे में सोचने के बजाय उन्हें इस बात का ध्यान रखना होता है कि चरमपंथियों को क्या पसंद नहीं आएगा.

कश्मीर में सुरक्षा दलों का कहना है कि अमरीना की हत्या के बाद से कश्मीर में आतंकियों को एक नया टार्गेट ग्रुप मिल गया है- वो सोशल मीडिया स्टार जो कश्मीर को सामान्य होते दिखाना चाहते हैं. उनके अनुसार, उग्रवादियों का मानना है कि सिनेमा से लेकर सोशल मीडिया तक मनोरंजन उद्योग एक पाप है और अल्लाह की अवज्ञा है और इससे जुड़ी महिलाओं को दंडित किए जाने की जरूरत है.

Illustration by Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: ‘काचा बदाम’ से लेकर ‘श्रीयोगी गुंडो की गाड़ी टपकी’ योगी के बुलडोजर पर आ गया है कवियों का दिल


इनफ्लुएंसर्स जो सेल्फ-सेंसर मोड में चले गए

कश्मीरी सोशल मीडिया स्टार्स को अब एक पल के नोटिस पर स्क्रिप्ट और लोकेशन बदलनी पड़ जाती है और हाल ही में हुई हत्याओं ने उनके डर को और बढ़ा दिया है.

महक कहती हैं, ‘मैं यहां आम नागरिकों की होने वाली हत्याओं के बारे में लिखना चाहती थी लेकिन इतनी असुरक्षा और डर है कि आखिरकार मैं ये नहीं कर सकी. एक कलाकार के लिए खुद को व्यक्त न कर पाना काफी निराशाजनक है’.

भट की हत्या के बाद उनके रैप भी बदल गए हैं. कश्मीर में हिंसा के बारे में रैप से लेकर ‘किस माई डिसरेस्पेक्टफुल एस’ शीर्षक वाली सेल्फी तक, महक जानती है कि उन्हें क्या करना है और वह कौन है. लेकिन अब उन्हें अपने कंटेंट पर डबल टेक करना होगा. हार्ड-हिटिंग कमेंट्री से लेकर उनके पोस्ट रैपिंग में उनके सफर और रैप के दौरान उनकी भावनाओं के बारे में हैं.

महक कहती हैं कि वह महिला सशक्तिकरण पर लिख रही हैं लेकिन वह उन रैप को रिलीज़ करने से पहले स्थिति के शांत होने का इंतजार करेंगी.

कश्मीर में बहुत से अन्य इन्फ्लुएंसर्स भी उनकी इस बात से सहमत हैं. पहलगाम के 27 साल के अभिनेता राहिल खान कहते हैं, ‘पहले मैं अपनी स्क्रिप्ट पर दो दिन बिताता था, अब एक ही स्क्रिप्ट में कम से कम 4-5 दिन लगते हैं. अगर मैं कश्मीर में किसी मुद्दे पर टिप्पणी कर रहा हूं, तो मुझे अपने शब्दों के चयन के बारे में बहुत सावधान रहना होगा. वीडियो को शूट करने और रिलीज करने से पहले हर शब्द को कम से कम 3-4 लोगों द्वारा सावधानीपूर्वक चुना और जांचा जाता है’.

राहिल फिल्म के दृश्यों की रील अपलोड करते हैं, गाने लिप-सिंक करते हैं और उनके पास डांस के कई वीडियो हैं.

और सिर्फ स्क्रिप्ट ही नहीं, लोकेशन चुनना भी एक टास्क बन गया है. कोई भी क्षेत्र अब सुरक्षित नहीं है. जहां सैलानियों की भीड़ हो, वही जगहें अब ज्यादा सुरक्षित हैं और इनफ्लुएंसर के लिए पसंदीदा जगह भी बन गए हैं.

अपने उंगलियों की अंगुठियों को ठीक करते हुए महक बैचेनी से कहती है, ‘अमरीना के मारे जाने के बाद, पड़ोसी और रिश्तेदार मेरे माता-पिता से कहते रहे कि अगला निशाना मैं ही बनूंगी. मैं केवल इतना चाहती हूं कि रैप के जरिए अपनी कहानी बता सकूं और लाखों अन्य लोगों की तरह वह कर सकूं जो मुझे पसंद है. मुझे सामान्य जीवन जीने का अधिकार है, संघर्ष मुझे रोक नहीं सकता.’

वह अपने आपको एमिनेम की सबसे बड़ी प्रशंसक कहती हैं- यहां तक कि उनके इंस्टाग्राम हैंडल को ‘मेनिम’ के नाम से जाना जाता है- उनके संगीत ने महक को पहली बार रैप करने के लिए प्रेरित किया था. उस समय उसकी उम्र 12 साल की थी. उन्हें 2017 की झुलसती गर्मी से भरा दिन याद है जब वह ‘लूज़ योरसेल्फ’ सुन रही थी. उन्होंने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया और कश्मीर के सोनोवार इलाके में अपने चचेरे भाई के घर की ओर भागी. अपने कजिन से कहा, ‘मेरे लिए एक यू-ट्यूब प्रोफाइल बनाएं, मैं रैप करना चाहती हूं’. महक पूरी रात सो नहीं पाई क्योंकि वह फेसबुक, इंस्टाग्राम और यू-ट्यूब पर आने को लेकर बहुत उत्साहित थी. महक को पता था कि उसे अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए ऑनलाइन आने की जरूरत है.

लेकिन सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को खासकर महिलाओं में अब डर की भावना साफ नजर आ रही है. ज्यादातर इन्फ्लुएंसर्स अपनी पोस्ट को यथासंभव ‘गैर-विवादास्पद’ रखते हैं. शांत पहाड़ों से लेकर चिनार के पेड़ों तक, उनके इस तरह के कंटेंट को पर्यटक देखना भी चाहते हैं.


यह भी पढ़ें: PM मोदी ने BJP कार्यकर्ताओं से कहा – विपक्ष से सबक लें, नड्डा ने साधा तेलंगाना सरकार पर निशाना


गोलियों से बहस नहीं कर सकते

अमरीना भट ने 2012 में श्रीनगर में दूरदर्शन केंद्र के बनाए गए गीतों और नाटक व धारावाहिकों में एक्टिंग की है. वह अपने पांच सदस्यों वाले परिवार में अकेली कमाने वाली थी. जब काम मिलना कम हुआ तो अमरीना ने सोशल मीडिया की तरफ रुख कर लिया. वह इंस्टाग्राम पर 25,000 फॉलोअर्स और यू-ट्यूब पर 19,000 सब्सक्राइबर्स के साथ सनसनी बन गई. उसके लिप-सिंकिंग वीडियो तुरंत हिट हुए. लेकिन कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने उनकी सामग्री के लिए उनकी कड़ी आलोचना की और उनके खिलाफ नफरत जताई. उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल पर हजारों बिना नाम वाले कमेंट्स में उनके डांस, एक्टिंग और गीतों को लेकर ‘इस्लाम का अपमान’ करने के लिए अमरीना पर हमला किया गया. उन्होंने उसे एक ‘बेशर्म महिला’ कहा जो अपना चेहरा नहीं ढकती. कुछ ने तो उनकी मौत का जश्न भी मनाया. इनमें से ज्यादातर कमेंट्स को तब से हटा दिया गया.

मुशर्रफ अल्ताफ वानी नाम के एक इंस्टाग्राम यूजर ने अमरीना के हत्यारों की सराहना करते हुए कहा, ‘यह सुनकर खुशी हुई कि अज्ञात बंदूकधारियों ने टिकटॉक गर्ल को मार डाला.’

उसकी बहन रजिया, जो अमरीना को गोली लगने के समय गायों का दूध निकाल रही थी, ने दिप्रिंट को बताया कि जिन लोगों ने उसकी बहन की हत्या की, वह ‘उससे एक शादी में परफॉर्म कराना चाहते थे.’

वह सवाल करती है, ‘यह कैसी आज़ादी है? वह इस्लाम को मानने वाली मुस्लिम महिला थी. वह तो बस अपने परिवार को पालना चाहती थी और खुश रहना चाहती थी, क्या यह बहुत ज्यादा है.?’

इस साल कश्मीर में 17 आम नागरिकों की हत्या की गई. लेकिन इन हत्याओं के विपरीत, किसी भी आतंकी संगठन ने अमरीना की मौत की जिम्मेदारी नहीं ली. हालांकि, घाटी के लोग मानते हैं कि उसे उसके सोशल मीडिया वीडियो के लिए मारा गया था. शीर्ष सुरक्षा अधिकारी भी इसकी पुष्टि करते हैं.

आईजीपी कश्मीर, विजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारी समझ में अमरीना को इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि सोशल मीडिया पर उसके वीडियो कला और सोशल मीडिया को ‘हराम’ (पाप) के रूप में देखने वाले चरमपंथियों के लिए चिड़चिड़ेपन का कारण बन गए थे. हमारे पास जानकारी है कि उसकी हत्या अन्य सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर खासकर महिलाओं को यह संदेश देने के लिए की गई थी कि ऐसी चीजों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’

महक इसे समझती हैं. वह कहती हैं, ‘वही लोग जो मुझे ‘इस्लामिक आचरण’ पर व्याख्यान देते हैं, वही मुझे डायरेक्ट मैसेज करने के लिए मेरा नंबर मांगते हैं. पुरुष पुरुष ही होते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस धर्म का पालन कर रहे हैं.’

घाटी में सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर का कहना है कि उनके पास गोलियों से तर्क करने की ताकत नहीं है.

एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि व्लॉगर की हत्या से कुछ दिन पहले, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 15 अत्याधुनिक यूएस-मेड पिस्टल की एक खेप जब्त की थी. ये दोनों मैगजीन से 30 राउंड फायरिंग करने की क्षमता रखते हैं. ये उसी तरह की पिस्तौल हैं जिसे अमरीना को गोली मारने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

रैप पर काम करती हुईं महक | विशेष प्रबंध

यह भी पढ़ें: ममता, द्रौपदी मुर्मू की वकालत क्यों कर रही हैं? बंगाल CM का कहना है राष्ट्रपति चुनाव में उनकी ‘संभावना अधिक’


क्या हम कश्मीर के बारे में बात नहीं कर सकते?

कश्मीर में एक सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर की रचनात्मकता का भी दम घुटता है. यहां के इन्फ्लुएंसर्स से उम्मीद की जाती है कि वे जिस तरह की जिंदगी जी रहे हैं, हमेशा उन्हीं संघर्षों की बात करें.

50,000 फॉलोअर्स के साथ इंस्टाग्राम पर कराल कूर नाम से जानी जाने वाली साइमा शफी का कहना है कि कश्मीर में और भी बहुत सी सामाजिक समस्याएं हैं जिन्हें वह उजागर करना चाहती हैं. उनका हैंडल कश्मीरी मिट्टी के बर्तनों पर अपनी पोस्ट के लिए लोकप्रिय है, एक कला जिसे वह सहेजना चाहती हैं. इसके साथ-साथ वह जम्मू-कश्मीर सरकार के पीडब्ल्यूडी विभाग में सिविल इंजीनियर के रूप में भी काम कर रही हैं.

साइमा कहती हैं, ‘संघर्ष रचनात्मकता को जन्म देती है. लेकिन कश्मीर में सब कुछ संघर्ष के बारे में हो जाता है. वह पितृसत्ता और रोजमर्रा के लिंगवाद के बारे में बात करना चाहती है- कुछ ऐसा जिससे महिलाएं हर दिन लड़ती हैं. साइमा घरेलू हिंसा और तीन तलाक की शिकार हैं.’

Saima Shafi, also known as 'Kral Koor' | Sajid Ali/ThePrint
साइमा शैफी | साजिद अली | दिप्रिंट

साइमा कहती हैं, ‘मुस्लिम महिला होने का मतलब यह नहीं है कि हमें सिर्फ हुक्म दिया जा सकता है. किसी भी विषय को चुनने से पहले हमें सौ बार सोचना पड़ता है. फिर शूट करने के लिए एक सुरक्षित जगह का चुनना और फिर हफ्तों तक चुपचाप बैठे रहना. हम वास्तव में क्या चाहते हैं, लोगों को अपनी और खींचना या फिर लोगों के बीच अपनी जगह बनाना, दरअसल हम डरते हैं. मुझे तब भी डर लगता है जब कोई मुझे भीड़-भाड़ वाली जगह पर पहचान लेता है.’

जब दिप्रिंट पहली बार श्रीनगर की एक संकरी गली में उनसे मिला, तो वह हंस पड़ी: ‘मुझे अच्छा लगेगा अगर आप मुझे मेरे असली नाम की बजाए ‘कराल कूर’ कहेंगे.’

साइमा हमें पास के एक कैफे में ले गई. जैसे ही वह कार से बाहर आईं, उन्होंने अपना हिजाब ठीक किया और कहा, ‘स्वतंत्र रहना जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है’ मानो वह हमें यह बताना चाहती थी कि सिर ढकने से वह कम उदार नहीं हो जाती.

कश्मीरी में ‘कराल कूर’ का अर्थ है ‘कुम्हार लड़की’. यह एक ऐसा पेशा है जिसे कमतर माना जाता है. लेकिन उनके लिए सोशल मीडिया से जुड़ने की वजह अपना टैलेंट दुनिया के सामने लाना नहीं था.

वह कहती हैं, ‘मिट्टी के बर्तन मुझे सोशल मीडिया पर ले गए और कश्मीर में नागरिक मुद्दों के बारे में बात करके मैं आगे बढ़ती रही.’

साइमा के हजारों फॉलोअर्स हैं और वह जानती है कि वह निश्चित रूप से आतंकवादियों के रडार पर हैं. वह कहती हैं कि देश के किसी भी हिस्से की तुलना में कश्मीर में जीवन अधिक अनिश्चित है. अगर कल उसकी मौत लिखी है तो वही सही. कम से कम जो वह करना चाहती है उसे न करने का पछतावा तो नहीं होगा.

महक और साइमा की तरह, सोशल मीडिया पर अपना नाम बनाने की कोशिश कर रहे सैकड़ों युवा कश्मीरी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनके बारे में उनके समकालीनों को सोचने की भी जरूरत नहीं है.

उदाहरण के लिए कश्मीर पर समय-समय पर इंटरनेट पर लगने वाली रोक को ही ले लें. लेकिन कुछ इन्फ्लुएंसर्स ऐसे भी हैं जो इसे धमकी नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि अमरीना की हत्या उसके काम के खिलाफ आतंकी कार्रवाई नहीं थी.

कश्मीर की 32 साल की एक आरजे ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, ‘कश्मीर को समझना मुश्किल है. यहां जो कुछ भी होता है, चाहे वह हत्याएं हीं क्यों न हों, उसे काला या सफेद करके नहीं देखा जा सकता. इसमें राजनीति, सुरक्षा, सामाजिक दबाव, भेदभाव आदि की कई परतें दबी होती हैं.’

इंस्टाग्राम पर उनके लगभग 50,000 फॉलोअर्स हैं, जहां वह नियमित रूप से अपने RJing सेशन, अपनी तस्वीरें और अपने जीवन की खबरें पोस्ट करती हैं. हालांकि, वह कहती हैं कि वह इसे कम महत्वपूर्ण और कम ‘विवादास्पद’ रखना पसंद करती हैं. इसलिए उनका हैंडल श्रीनगर के पिस्सू बाजारों और पर्यटन स्थलों के बारे में पोस्ट से भरा हुआ है.

खतरा हो या न हो, कश्मीर में सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को अब चरमपंथियों से बचने और लाइक पाने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे. जिस कैफे में दिप्रिंट सायमा से मिला, वहां कई लोगों ने उन्हें पहचान लिया था. लेकिन लोगों ने न तो उनसे मुलाकात की और न ही सेल्फी की जिद की. वहीं बाहर नूपुर शर्मा की पैगंबर पर विवादास्पद टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ईश-निंदा के विरोध में भारत में पहला कत्ल करने वाले को पाकिस्तान में कैसे शहीद बना दिया गया


 

share & View comments