कोलकाता: पूर्वोत्तर के स्कॉटलैंड के नाम से मशहूर खूबसूरत पर्वतीय राज्य मेघालय में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के मुद्दे पर स्थानीय खासी समुदाय और गैर-आदिवासियों के बीच हुई हिंसक झड़पों ने एक बार फिर दशकों पुराने स्थानीय बनाम बाहरी विवाद को सतह पर ला दिया है. ताजा हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा कई जगह तोड़-फोड़ और आगजनी की खबरें भी मिली हैं.
हालात बेकाबू होते देख कर सरकार को राजधानी शिलांग समेत राज्य के छह जिलों में कर्फ्यू लागू करना पड़ा. इसके अलावा इंटरनेट मोबाइल सेवाओं पर भी पाबंदी लागू कर दी गई. अब पहली निगाह में भले हालात सामान्य नज़र आ रहे हों, भीतर ही भीतर चिंगारी सुलग रही है.
इस बीच, एक प्रतिबंधित संगठन हेनीट्रेप नेशनल लिबरेशन कौंसिल (एचएनएलसी) ने ईस्ट खासी हिल्स जिले के सेला में इचामती व माजाई इलाके में रहने वाले तमाम हिंदू-बंगालियों को एक महीने के भीतर इलाका छोड़ कर जाने का अल्टीमेटम दिया है. संगठन सचिव सैनकूपर नांग्ट्रा के हस्ताक्षर से रविवार को जारी बयान में कहा गया है कि अगर एक महीने में ऐसे लोगों ने इलाका खाली नहीं किया तो उनको गंभीर नतीजा भुगतना होगा. बयान में बड़े पैमाने पर खून-खराबे की भी धमकी दी गई है. इससे इलाके के लोगों में आतंक फैल गया है.
ताजा हिंसा की शुरुआत शुक्रवार को शिलांग से लगभग 90 किमी दूर इचामती में आयोजित एक रैली के बाद ही हुई थी. उस दिन सीएए के खिलाफ और आईएलपी के समर्थन में आयोजित एक रैली के बाद खासी छात्र संघ (केएसयू) के सदस्य घर लौट रहे थे. आरोप है कि उसी समय इलाके के गैर-आदिवासियों ने उन पर हमला किया. उसमें एक खासी व्यक्ति की मौत हो गई. इसके बाद शिलांग समेत दूसरी जगहों पर भी हिंसा शुरू हो गई. शुक्रवार से रविवार तक पूरे तीन दिनों तक हिंसा और आगजनी का दौर जारी रही. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सका.
केएसयू का दावा है कि सीएए का विरोध करने और राज्य में आईएलपी लागू करने की मांग की वजह से उनकी रैली के बाद सुनियोजित हमले किए गए. संघ के सहायक महासचिव रेजीन नोंग्रम बताते हैं, ‘हमलावर डंडे, चाकू और दूसरे धारदार हथियारों से लैस थे. राज्य में रहने वाले बाहरी लोगों का एक ताकवर तबका सीएए का समर्थन कर रहा है और आईएलपी का विरोध. हमले की प्रमुख वजह यही थी.’
मेघालय के विभिन्न संगठन बहुत पहले से स्थानीय लोगों के हितों का मुद्दा उठाते रहे हैं. लेकिन बीते साल असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) की सूची से 19 लाख लोगों के बाहर रहने के बाद राज्य सरकार और स्थानीय लोगों में घुसपैठ का अंदेशा तेज होने लगा. इसी वजह से बीते दिसंबर में सरकार ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर आईएलपी लागू करने की मांग उठाई. इसके अलावा सरकार ने मेघालय रेजिडेंट्स सेफ्टी एंड सिक्योरिटी ऐक्ट, 2016 में बदलाव को हरी झंडी दिखा दी.
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इसके मुताबिक अब बाहर से इस राज्य में आने वाले लोगों को 24 घंटे से ज्यादा ठहरने के लिए सीमा पर बनी चौकी पर अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है. सरकारी कर्मचारियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. वर्ष 2016 में मेघालय में किराए पर रहने वाले लोगों के पंजीकरण के लिए उक्त अधिनियम बनाया गया था.
पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों के मुकाबले मेघालय को शांतिप्रिय माना जाता रहै. यहां उग्रवाद की घटनाएं भी बाकी राज्यों की तरह नहीं होतीं. लेकिन स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा बीते चार दशकों से रह-रह कर उभरता रहा है. जून, 2018 में स्थानीय लोगों और लगभग 160 साल से शिलांग में रहने वाले दलित पंजाबी परिवारों के बीच भारी हिंसा हुई थी. स्थानीय कानूनों के मुताबिक बाहरी लोग मेघालय में जमीन नहीं खरीद सकते. लेकिन बरसों से रहने वाले लोगों ने इसका भी तरीका निकाल लिया है. अमूमन लोग स्थानीय निवासी से शादी कर लेते हैं. अपनी खासियतों और विविधताओं की वजह से यह राज्य बाहरी लोगों को लगातार लुभाता रहा है. राजधानी शिलागं में अब भी हजारों की तादाद में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्होंने सरकारी नौकरी के दौरान ज्यादातर समय यहां गुजारा था. बाद में रिटायर होकर वह लोग यहीं बस गए हैं.
स्थानीय लोगों को डर है कि सीएए लागू होने के बाद बाहर से आने वाले तमाम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. ऐसे में स्थानीय लोगों का वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा. सीएए से बचाव का एक ही तरीका है और वह है इनर लाइन परमिट यानी आईएलपी.
इलाके के जिन राज्यों में आईएलपी लागू है वहां सीएए लागू नहीं होगा. इसी वजह से मोघालय की कोनराड संगमा सरकार ने बीते दिसंबर में आईएलपी के समर्थन में विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेज दिया. लेकिन वह प्रस्ताव फिलहाल केंद्र के पास लंबित है. इससे स्थानीय लोगों और संगठनों में नाराजगी बढ़ रही है. 15 संगठनों को मिला कर गठित कनफेडरेशन आफ मेघालया सोशल आर्गानाइजेशन ने तो इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी दी है.
मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने आईएलपी के मुद्दे पर बीते महीने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. तब शाह ने उनको कहा था कि सरकार मेघालय विधानसभा में पारित प्रस्ताव का अध्ययन कर रही है. लेकिन स्थानीय संगठनों का सवाल है कि इलाके के मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और अब मणिपुर की तर्ज पर मेघालय में भी लंबे अरसे से आईएलपी लागू करने की मांग उठती रही है. बावजूद इसके केंद्र ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है.
दूसरी ओर, आईएलपी लागू होने की स्थिति में राज्य के पर्यटन उद्योग पर खतरे का अंदेशा जताया जा रहा है. पर्यटन उद्योग मेघालय की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. इसके अलावा स्थानीय गैर-आदिवासियों को अंदेशा है कि आईएलपी लागू होने पर उनके हितों की अनदेखी की जाएगी. लेकिन आईएलपी का समर्थन करने वाले संगठनों की दलील है कि इस कानून का जाति, धर्म या किसी संप्रदाय विशेष से कोई लेना-देना नहीं है. इसका मकसद राज्य के मूल निवासियों के हितों की रक्षा करना है. कनफेडरेशन ऑफ मेघालया सोशल आर्गानाइजेशन के अध्यक्ष आर. खारजाहरिन कहते हैं, ‘यह कोई जातिवादी आंदोलन नहीं है. आईएलपी की मांग करने का मतलब यह नहीं है कि हम बाहरी लोगों से नफरत करते हैं. इसका मकसद खुद की रक्षा करना है.’ वह कहते हैं कि गैर-आदिवासियों को गलतफहमी है कि आईएलपी लागू होते ही उनको राज्य से खदेड़ दिया जाएगा. लेकिन यह निराधार है.
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मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा को उम्मीद है कि इस मामले में तकनीक से काफी सहायता मिलेगी. आईएलपी लागू होने के बाद सरकार पर्यटकों के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रणाली शुरू करेगी ताकि उसको कोई दिक्कत नहीं हो.
सीएए और आईएलपी के मुद्दे पर दावे और जवाबी दावों के बीच मेघालय में स्थानीय बनाम बाहरी विवाद के रह-रह कर सिर उठाने का अंदेशा फिलहाल जस का तस है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)