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Wednesday, 1 May, 2024
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कोरोनावायरस के उत्पात के दौर में चीन को क्यों याद आ रहे हैं भारत के डॉक्टर कोटनिस

आज जब भारत में कोरोनावायरस से दो मौतों हुईं हैं और दुनियाभर में यह वायरस फैल रहा है ऐसे में डॉक्टर कोटनिस ने आज से लगभग आठ दशक पहले चीन में पीड़ित सैनिकों की सेवा करते हुए जिस तरह अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, उसके लिए चीन आज भी उनका एहसान मानता है.

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नई दिल्ली: चीन में कोरोनावायरस फैलने के बाद 9 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को एक पत्र लिखकर इस बीमारी से लड़ने के लिए चीन को हरसंभव मदद देने की बात कही. बाद में चीनी विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि हम भारत के इस प्रस्ताव से अभिभूत हैं एवं धन्यवाद प्रेषित करते हैं. कुछ चीनियों ने यह भी कहा कि भारत के इस प्रस्ताव ने डॉक्टर कोटनिस की याद दिला दी.

कौन थे डॉक्टर कोटनिस और इस मौके पर उन्हें क्यों याद किया गया, यही बताना इस लेख का मकसद है. भारत से चीन की लगभग चार हज़ार किलोमीटर की सीमा लगती है. ऐसे बहुत कम मौके आये जब भारतीय और चीनी जनता के बीच सीधा संवाद या संपर्क हुआ हो. प्राचीन काल में बौद्ध मत के प्रचार हेतु चीन जाने वाले प्रचारकों और भारत आकर धर्म ज्ञान लेने वाले कुछ चीनी बौद्ध भिक्षुओं के आख्यान ही दोनों देशों के बीच मैत्री के कुछ स्रोत हैं. इसके अलावा पर्वतीय राज्यों के कुछ भारतीय व्यापारी चीन के साथ सामान की खरीद बिक्री भी करते थे.


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पिछली शताब्दी में एक ऐसा भारतीय हुआ, जिसने इस हज़ारों साल पुराने चीन-भारत सम्बन्धों में नई जान फूंक दी. वे थे महाराष्ट्र के शोलापुर में पैदा हुए डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस. डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस ने मेडिकल की शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय से ली. 1938 में चीन पर जापानी हमला हुआ तो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जवाहरलाल नेहरू से निवेदन किया कि कुछ डॉक्टर चीन भेजिए. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने एक प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिये भारतीय जनता से चीन की सहायता करने की अपील की.

सुभाष चंद्र बोस ने स्वयंसेवक डॉक्टरों की एक टीम तैयार की और 22 हज़ार रुपये की राशि चीन भिजवाई. यह एक परतंत्र राष्ट्र की ओर से परतंत्रता से बचने की कोशिश कर रहे दूसरे राष्ट्र को की गई सहायता थी. डॉक्टरों की उस टीम में इलाहाबाद के डॉक्टर एम. अटल, नागपुर के एम. चोलकर, शोलापुर से डॉक्टर कोटनिस, और बी. के. बासु एवं देबेश मुखर्जी कोलकाता से थे. इस टीम के सभी डॉक्टर चीन में सेवा करने के बाद भारत वापस आये, सिवाय डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस के.

1939 में यह टीम युन्नान पहुंची, जो उस समय क्रांतिकारियों का आधार शिविर था. वहां उस मेडिकल टीम का स्वागत माओ त्से तुंग ने किया. यह किसी एशियाई देश से चीन पहुंचने वाली पहली मेडिकल टीम थी. डॉक्टर कोटनिस कुल 5 साल चीन में रहे. उन्होंने युद्ध के मोर्चे पर घायल चीनी सैनिकों की सेवा की. 1940 में डॉक्टर कोटनिस की मुलाक़ात क्वो छींगलान नामक एक चीनी नर्स से हुई. तब तक डॉक्टर कोटनिस चीनी भाषा सीख चुके थे. दिसम्बर 1941 में डॉक्टर कोटनिस ने क्वो छींगलान से विवाह कर लिया. विवाह के एक साल बाद एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम उन्होंने इनहुआ रखा, इस चीनी नाम का अर्थ था भारत एवं चीन.

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डॉक्टर कोटनिस दिन-रात युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों की सेवा-सुश्रुषा करते रहे. इतनी मेहनत करने के कारण उनकी सेहत भी बिगड़ने लगी. उन्हें मिर्गी हो गयी और एक दिन मिर्गी के दौरे से ही उनकी मृत्यु हो गयी. 9 दिसम्बर 1942 को वे अपनी पत्नी और पुत्र को हमेशा के लिए छोड़ गए. डॉक्टर कोटनिस को ननकुआन गांव में नायको के कब्रिस्तान में दफनाया गया. उनकी मृत्यु पर माओ त्से तुंग ने कहा कि ‘हमारी सेना ने एक मददगार खो दिया, चीन ने एक दोस्त को खो दिया. उनकी अंतर्राष्ट्रीय भावना हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी.’

चीन में हेपेयी राज्य में शहीद स्मृति स्थल में एक स्थान डॉक्टर कोटनिस को समर्पित किया गया है जहां उनके द्वारा प्रयोग किये गए मेडिकल उपकरण एवं उनके चीन के नेताओं के साथ फोटो प्रदर्शित हैं. एक फोटो में वे माओ त्से तुंग के साथ नज़र आते हैं.

1 जनवरी 2012 को डॉक्टर कोटनिस की स्मृति में उनके गृह नगर शोलापुर में एक स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन कैबिनेट मंत्री भारत सरकार, सुशील कुमार शिंदे ने किया. डॉक्टर कोटनिस की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी क्वो ने एक चीनी पुरुष के साथ विवाह कर लिया. अनेक मौकों पर उन्हें चीन सरकार द्वारा बुलाया जाता रहा. उनकी पत्नी क्वो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से 2003 में उनकी चीन यात्रा के दौरान मिली थीं. चीन के राष्ट्रपति हु जिन्ताओ की 2006 में भारत यात्रा के दौरान भी वे उनके साथ आईं. 2012 में 96 वर्ष की अवस्था में उनका चीन में देहांत हो गया.


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महान फिल्मकार वी शांताराम ने 1946 में उनके जीवन पर फिल्म बनाई, जिसका नाम है डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी. इस फिल्म की पटकथा ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी एवं डॉक्टर कोटनिस का रोल वी शांताराम ने खुद किया. 1982 में चीन में भी उनके ऊपर एक फीचर फिल्म बनाई गयी. जब-जब चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भारत आये, उनके द्वारा डॉक्टर कोटनिस के परिवारजनों का सम्मान किया जाता रहा. बहुत से चीनी राष्ट्राध्यक्ष डॉक्टर कोटनिस की बहन से मिले.

2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी उनकी बहन से भारत यात्रा के दौरान मुलाकात की. 2017 में चीन सरकार ने मुंबई विश्वविद्यालय को, जहां से डॉक्टर कोटनिस ने मेडिकल की पढ़ाई की, माओ द्वारा लिखा गया डॉक्टर कोटनिस के बारे में हस्तलिखित संदेश प्रदान किया. कुछ साल पहले चीन सरकार की चीन के सर्वोत्तम 7 विदेशी दोस्तों की सूची में डॉक्टर कोटनिस का नाम भी रखा था.

यही वजह है कि आज जब चीन में स्वास्थ्य संकट है, तब डॉक्टर कोटनिस फिर याद किए जा रहे हैं.

(लेखक समाज और कला विषयों के जानकार हैं)  

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