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Monday, 4 November, 2024
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‘इतिहास मिटाया जा रहा है’- नए जिले बनाने की ममता की योजना का बंगाल में विरोध क्यों

टीएमसी सरकार ने ‘बेहतर शासन’ के लिए राज्य में सात नए जिले बनाने का फैसला किया है. लेकिन इस प्रस्ताव ने खासतौर पर नादिया और मुर्शिदाबाद में कई लोगों को नाराज कर दिया है.

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कोलकाता: नाम में क्या रखा है! गुलाब को आप किसी नाम भी नाम से पुकारे उसकी गंध तो भीनी ही रहेगी. फिलहाल ये जुमला पश्चिम बंगाल के एक विभाजित जिले के लिए सटीक नहीं बैठता. ममता बनर्जी की राज्य में सात नए जिले बनाने की योजना लोगों की नाराजगी का कारण बन रही है खासकर नदिया और मुर्शिदाबाद में. उनके मुताबिक, जिले का नया नाम उनकी पहचान के लिए संकट पैदा कर सकता है.

इस सोमवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ने घोषणा की कि छह महीने के भीतर राज्य सरकार प्रशासन के कामकाज को बेहतर बनाने के लिए सात नए जिले बनाएगी. इसके बाद जिलों की कुल संख्या 23 से बढ़कर 30 हो जाएगी.

योजना यह है कि नदिया से राणाघाट, मुर्शिदाबाद जिले से बहरामपुर और जंगीपुर, बंकुरा से बिष्णुपुर और इच्छामती, साउथ 24 परगना से सुंदरबन जिले बनाए जाएंगे. इसके अलावा नोर्थ 24 परगना में बशीरघाट डिविजन से एक और जिला बनाया जाएगा, जिसका नाम अभी दिया जाना बाकी है.

मुर्शिदाबाद और नादिया जिलों के कई निवासी राज्य सरकार के इस प्रस्ताव से खुश नहीं है. उनका तर्क है कि यह कदम इन इलाकों के ऐतिहासिक महत्व को कम कर देगा, जिसमें पश्चिम बंगाल के ‘लंदन’ और ‘ऑक्सफोर्ड’ के तौर पर जुड़ी प्रसिद्धि भी शामिल है.

मुर्शिदाबाद बंगाल की पूर्व-औपनिवेशिक राजधानी थी और 18 वीं शताब्दी की प्लासी की लड़ाई का स्थल था. यह भारत के उपनिवेशीकरण में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. नादिया को 15 वीं शताब्दी के ऋषि चैतन्य महाप्रभु के जन्मस्थान और शिक्षा के केंद्र के रूप में जाना जाता है.

प्रदर्शनकारी इस सप्ताह नादिया के कुछ हिस्सों में सड़कों पर उतर आए और मांग की कि इस फैसले को वापस लिया जाए क्योंकि इससे उनकी विरासत को खतरा है.

इन जिलों में राजनीतिक तबके से जुड़े लोग भी नाखुश हैं. तृणमूल के मुखपत्र जागो बांग्ला की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुर्शिदाबाद से पार्टी के सांसद अबू ताहिर खान ने गुरुवार को दिल्ली में एक पार्टी की बैठक में ममता से कहा कि जिले के लोग विभाजन करके बनाए जा रहे नए जिलों और उनके नाम के खिलाफ हैं. ममता ने कथित तौर पर उन्हें बीच में रोक दिया और कहा कि अभी तक इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है.

हालांकि जो ममता के इस फैसले के खिलाफ हैं वो विरासत और इतिहास को लेकर इसका विरोध कर रहे हैं जबकि कुछ विपक्षी नेताओं ने कहा कि इन जिलों के लिए धन कहां से आएगा. अन्य लोगों का तर्क है कि विभाजन से बंगाल में बेहतर शासन लाने में मदद मिलेगी. क्योंकि यह भारत का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है. जहां प्रत्येक जिले में औसतन लगभग 40 लाख लोग रहते हैं (2011 की जनगणना के अनुसार).

संदर्भ के लिए, सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों – उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में क्रमशः 75, 38 और 36 जिले हैं. यहां तक कि कम आबादी वाले बंगाल के कुछ पड़ोसी राज्यों में भी ज्यादा जिले हैं, जिनमें असम में 35 और ओडिशा में 30 हैं.

रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और बंगाल के पूर्व गृह सचिव बासुदेव बनर्जी ने कहा, ‘आदर्श रूप से एक जिले की आबादी लगभग 20 लाख होनी चाहिए. लेकिन बंगाल बिहार के बाद दूसरा सबसे घनी आबादी वाला राज्य है. 10 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले बंगाल में कम से कम 50 जिले होने चाहिए थे. लेकिन 30 भी वाजिब है.’

राज्य सरकार के पास केंद्र सरकार की सहमति के बिना जिले बनाने की शक्ति है. राज्य या तो विधानसभा में एक कानून पारित कर सकता है या एक आदेश जारी कर इसे राजपत्र में अधिसूचित कर सकता है. अधिकारियों के मुताबिक, हालांकि सरकार को कलकत्ता उच्च न्यायालय से स्वीकृति की जरूरत होगी क्योंकि नए जिलों को अपनी अदालतें और न्यायिक तंत्र स्थापित करना होगा.


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‘इतिहास और विरासत’ के लिए एक कथित खतरा

मुर्शिदाबाद की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण उसका 1757 की प्लासी की लड़ाई का स्थल होना है. यहां मेजर-जनरल रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब सिराजुद्दौला को हराया और भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक को फैलाने के लिए मंच तैयार किया था.

आज भी मुर्शिदाबाद में प्रमुख आकर्षण नवाब युग के अवशेष हैं, जिनमें मस्जिद, महल, उद्यान और मकबरे शामिल हैं. साथ ही अंग्रेजों से मिले महत्व पर भी गर्व की भावना है.

दिप्रिंट से बात करते हुए मुर्शिदाबाद के बेरहामपुर निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि वह नए जिले बनाने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन नाम बदलने का विरोध कर रहे हैं.

चौधरी ने कहा, ‘लॉर्ड क्लाइव ने मुर्शिदाबाद की तुलना लंदन से की थी. यह एक ऐतिहासिक स्थान है और कभी संयुक्त बंगाल, बिहार और ओडिशा की राजधानी थी. ममता अपनी मर्जी से नाम नहीं मिटा सकतीं हैं. मैं उन्हें नाम बदलने नहीं दूंगा’

मुर्शिदाबाद से भाजपा विधायक गौरी शंकर घोष ने भी ट्वीट कर प्रधानमंत्री से मांग की कि जिले को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील किया जाए ताकि इसकी ‘अखंडता’ और ‘महिमा’ बनी रहे.

उधर नदिया में भी सीएम की घोषणा के बाद शांतिपुर और कृष्णानगर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां पकड़े हुए नारे लगाए और सड़कों को जाम कर दिया. उनके मुताबिक नादिया से राणाघाट को अलग करने का फैसला उन्हें जिले से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत से वंचित कर देगा.

‘बंगाल के ऑक्सफोर्ड’ के रूप में जाने जाना वाला नादिया जिला, 15 वीं शताब्दी के वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु का जन्मस्थान है. उन्हें राधा-कृष्ण का संयुक्त अवतार माना जाता है. 1859 का किसान विद्रोह जिसे नील विद्रोह के नाम से जाना जाता है, की शुरुआत भी नादिया से हुई थी. विभाजन के समय में नादिया का बड़ा हिस्सा तत्कालीन पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में चला गया.

नाटककार कौशिक चट्टोपाध्याय ने शांतिपुर में एक नुक्कड़ प्रदर्शन को संबोधित करते हुए पूछा, ‘हमारी जड़ें नादिया से जुड़ी हैं, हमारी भावनाएं नादिया से जुड़ी हैं. रातों रात सरकार ने नादिया को बांटने का फैसला किया और अब हम अपने प्यारे जिले के निवासी नहीं रहेंगे. हमारी पहचान छीनी जा रही है. अचानक यह फैसला क्यों?’

कुछ लोगों ने यह भी तर्क दिया है कि नए जिले के लिए राणाघाट नाम ठीक नहीं है क्योंकि कुछ लोग इसे 1800 के दशक के एक डकैत के नाम से जोड़ कर देखते हैं.

बांकुरा के निवासियों ने भी राज्य सरकार के फैसले पर नाखुशी जाहिर की.

बांकुरा के रहने वाले सोमनाथ प्रमाणिक ने कहा, ‘विष्णुपुर बांकुरा का हिस्सा है. अब तक दोनों को एक जिले के रूप में शासित किया जा रहा था. बांकुरा और विष्णुपुर को अलग करने की क्या जरूरत है?’

मिली-जुली प्रतिक्रिया

ममता बनर्जी ने कहा है कि, बंगाल के आकार और जनसंख्या को देखते हुए, प्रशासनिक कामकाज को आसान बनाने के लिए जिलों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है.

पूर्व गृह सचिव बनर्जी ने बताया, ‘छोटे जिले हमेशा जिला मुख्यालय तक पहुंचने के मामले में भी बेहतर शासन में मदद करते हैं.’

बनर्जी ने कहा कि राज्य सरकारों को एक कार्यकारी आदेश जारी करके या विधान सभा में कानून पारित करके जिलों को बनाने, बदलने या हटाने का अधिकार है. हालांकि केंद्र सरकार की मंजूरी की जरूरत नहीं होती है लेकिन उन्हें इसके लिए उच्च न्यायालय से स्वीकृति लेनी होगी.

उन्होंने बताया, ‘नए जिले बनाने के फैसले के लिए प्रोटोकॉल के अनुसार उच्च न्यायालय से मंजूरी की जरूरत होगी. इसके बाद हाईकोर्ट जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है. यह मामलों को तेजी से निपटाने में मदद करता है, हम न्यायालय पर मामलों के पड़ने वाले बोझ को जानते हैं. एक नए जिले के साथ, एक नया पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया जाएगा और एक जिला मजिस्ट्रेट भी होगा, जो बेहतर सुशासन बनाए रखने में मदद करेगा.’

हालांकि विपक्ष पश्चिम बंगाल सरकार से सहमत नहीं है.

मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए भाजपा प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा, ‘इस तरह के फैसले करने के लिए उचित योजना की जरूरत होती है. लेकिन जिस तरह से अचानक घोषणा की गई है, उसे देखते हुए तो ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है. बंगाल पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ है और अब सात नए जिलों से राज्य का वित्तीय बोझ और बढ़ जाएगा.’

माकपा नेता डॉ सुजान चक्रवर्ती ने यह भी दावा किया कि यह बिना किसी परामर्श के एक ‘तर्कहीन कदम’ है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘यह एक सनकी नजरिया है. इस पर न तो विधानसभा में चर्चा हुई, न ही घोषणा से पहले एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई और न ही मुख्यमंत्री ने इसे तय करने के लिए एक समिति बनाई. हम और जिलों के गठन के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस प्रक्रिया ने लोगों में साफ तौर से गुस्सा पैदा कर दिया है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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