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Sunday, 5 May, 2024
होमदेशदासमुंशी के बड़े प्रशंसक जिनके बुद्धदेव से भी थे अच्छे संबंध: ममता के दागी सहयोगी पार्थ चटर्जी की कहानी

दासमुंशी के बड़े प्रशंसक जिनके बुद्धदेव से भी थे अच्छे संबंध: ममता के दागी सहयोगी पार्थ चटर्जी की कहानी

ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी के बाद पश्चिम बंगाल कैबिनेट और टीएमसी में पार्टी के तमाम पदों से बर्खास्त हो चुके पार्थ चटर्जी को पहले टीएमसी में नंबर 3 क्रम का नेता माना जाता था. साल 1998 में जब ममता बनर्जी ने टीएमसी की स्थापना की थी तो वह उन के पहले सिपहसालारों में शामिल थे.

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कोलकाता: साल 2008 में, सिंगूर में टाटा समूह की प्रस्तावित नैनो कार परियोजना के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का आंदोलन अपने चरम पर था और टीएमसी के यहां किये गए कई प्रदर्शनों में से एक में यह मौका आया था, जब पुलिस नाकेबंदी के बाद दानकुनी राजमार्ग पर एक स्टूल पर बैठे पार्थ चटर्जी की एक तस्वीर ने लोगों का ध्यान इस ह्रष्ट-पुष्ट तृणमूल नेता की तरफ खींचा था.

जब टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कांग्रेस छोड़ जनवरी 1998 में अपनी पार्टी की स्थापना की थी तो उनसे थोड़े से बड़े 69 वर्षीय यह नेता उनके साथ शामिल होने वाले पहले कुछ सिपहसालारों (लेफ्टिनेंटों) में से एक थे. लेकिन चटर्जी को टीएमसी के रैंक में उपर बढ़ने के काफी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि वह अपने सहयोगियों मुकुल रॉय, सुब्रत मुखर्जी और मदन मित्रा के विपरीत एकदम से हिट नहीं हो गए थे.

साल 2017 में रॉय के टीएमसी से बाहर जाने के बाद उनका महत्त्व काफी बढ़ गया. उन्हें पार्टी की अनुशासन समिति का प्रमुख बनाया गया और महत्वपूर्ण घोषणाओं के लिए वे इसके प्रवक्ता हुआ करते थे.

चटर्जी ने राजनीति में अपनी पारी 1960 के दशक के अंत में शुरू की थी, जब वे अपने कॉलेज के दिनों में कांग्रेस से संबद्ध छात्र परिषद में शामिल हो गए थे. उस वक्त प्रियरंजन दासमुंशी और सुब्रत मुखर्जी जैसे तेजतर्रार कांग्रेसी नेता उनकी प्रेरणा हुआ करते थे.

दिवंगत नेता सुब्रत मुखर्जी की बहन तनिमा चटर्जी ने कहा कि एक छात्र नेता रहे पार्थ चटर्जी और वर्तमान मंत्री के उनके रूप के बीच बहुत बड़ा अंतर है.

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उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जहां तक मुझे याद है, वह ममता बनर्जी ही थीं जो पार्थ को मेरे भाई के पास ले आईं थी और उनका परिचय कराया था. उस समय पार्थ एक उग्र छात्र नेता और बहुत दृढ़ निश्चयी थे हुआ करते. लेकिन मंत्री बनने के बाद, वह सत्ता के साथ बढ़ते गए और सुब्रत को जानकारी में रखे बिना कार्यक्रमों का संचालन करते थे. यहां तक कि जब मैं उनसे उनकी सेहत के बारे पूछती तब भी वे कोई जवाब नहीं देते. मैंने उन्हें एक दिखावा करने वाला शख्स पाया, जो वह पहले नहीं थे.’

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि चटर्जी अपने कॉलेज के दिनों में छात्र परिषद में शामिल हुए थे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘पार्थ जब आशुतोष कॉलेज में पढ़ रहे थे, तब वह कांग्रेस छात्र परिषद का हिस्सा थे, लेकिन पार्टी के साथ उनका कभी कोई मजबूत नाता नहीं था. अपने करियर के शुरुआती दिनों में, वह अपने संगठन – एंड्रयू यूल – का प्रतिनिधित्व करने वाले के रूप में आधिकारिक काम के लिए मुझसे दो बार मिले थे.’

एक प्रशिक्षित मानव संसाधन पेशेवर कर्मी के रूप में चटर्जी एक स्थिर कॉर्पोरेट जीवन का विकल्प चुन सकते थे, लेकिन वे ममता के साथ हाथ मिलाने के लिए राजनीति की अशांत दुनिया में लौट आए.

चटर्जी ने पहली बार साल 2001 में बेहाला पश्चिम से विधायक चुने जाने के साथ पश्चिम बंगाल विधानसभा में प्रवेश किया और इसके बाद से उन्होंने लगातरा पांच बार इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. साल 2006 में उनके हिस्से एक बड़ा राजनीतिक दायित्व आया जब ममता ने उन्हें सदन में विपक्ष का नेता बना दिया.

ममता के प्रतिद्वंद्वियों के लिए उनके दूत की उनकी भूमिका ही उन्हें टीएमसी प्रमुख के करीब ले आई. चटर्जी के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ भी काफी अच्छे संबंध थे. मई 2011 में ममता के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले, चटर्जी ने व्यक्तिगत रूप से भट्टाचार्य से मुलाकात की थी और उन्हें शपथ समारोह में आमंत्रित किया. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दिग्गज राजभवन में आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल भी हुए थे.

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हाशिम अब्दुल हलीम के बेटे और माकपा नेता फुआद हलीम ने चटर्जी को एक दवा का डिब्बा उपहार में दिए जाने की घटना को याद किया. विपक्ष के नेता के रूप में, चटर्जी को अक्सर हलीम सीनियर के साथ समन्वय में काम करना पड़ता था.

फुआद हलीम ने कहा, ‘मेरे पिता भी पार्थ दा की ही तरह डायबिटिक थे. एक बार, उन्होंने देखा कि मेरे पिता के दवा के डिब्बे में एक सप्ताह के लिए उनकी सारी दवाइयां करीने से लगी थीं और फिर उन्होंने टिप्पणी की कि कैसे वह हमेशा अपनी दवा की खुराक लेना भूल जाते हैं. इसके बाद, मैंने पार्थ दा को 2019 में लंदन से लाकर एक वैसा ही दवा का डिब्बा उपहार में दिया था, जिसका वह अभी भी उपयोग करते हैं.‘

साल 2011 में, ममता ने चटर्जी को पहले वाणिज्य और उद्योग जैसे मंत्रालय आवंटित किया, मगर 2013 में उन्होंने चटर्जी से ये विभाग लेकर पूर्व वित्त मंत्री अमित मित्रा, जो फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के पूर्व महासचिव थे, को यह जिम्मेदारी सौंप दी. अगले साल ममता ने चटर्जी को शिक्षा मंत्रालय सौंप दिया, जिसे उन्होंने साल 2021 तक संभाला.

कथित स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) घोटाले के झटके पहली बार 2019 में तब महसूस किए गए थे, जब सरकारी स्कूलों में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों वाली नौकरियों में भर्ती के बदले पैसे लेने की बात सामने आयी थी.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इसी तथाकथित स्कूल नौकरी घोटाले की जांच के सिलसिले में चटर्जी और उनकी करीबी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी को पिछली 23 जुलाई को गिरफ्तार किया था. ममता और टीएमसी महासचिव अभिषेक बनर्जी दोनों ने अब चटर्जी को राज्य मंत्रिमंडल और पार्टी के सभी पदों से हटाते हुए उनसे दूरी बना ली है.

29 जुलाई को, चटर्जी – जो कभी ममता और अभिषेक के बाद टीएमसी में नंबर तीन क्रम के नेता माने जाते थे – ने दावा किया कि वह ‘एक साजिश का शिकार’ हुए हैं. टीएमसी अब तक एक सुरक्षित खेल रही है और अभिषेक ने कहा है कि ईडी की जांच समाप्त होने तक चटर्जी पार्टी से निलंबित रहेंगे.


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‘अच्छी जिंदगी के शौक़ीन’

चटर्जी के एक पूर्व सहयोगी ने पूर्व मंत्री के अच्छे खान-पान और आलीशान (लग्जरी) कारों के प्रति उनके लगाव के बारे में बताया.

उनके इस पूर्व सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं पार्थ दा के बारे में व्यक्तिगत रूप से जो जानता हूं, वह एक विरोधाभासी व्यक्ति थे. वह आपसे बात करते समय बहुत विनम्र रहते, और फिर आप दूसरों से सुनते कि उन्होंने पीठ पीछे आपकी बुराई की है. अगर आप कभी उनके साथ घर पर बैठते हैं, तो आप ममता के खिलाफ कड़वाहट के साथ ही बाहर आएंगे.’

पूर्व सहयोगी ने कहा, ‘वह खाने के बारे में बहुत सतर्क रहते थे. वह मिठाई के डब्बों की जांच करते थे, जो अच्छे खाने के पैकेट आते थे, उन्हें एक तरफ रख देते थे. मुझे याद है कि हर रविवार को विभिन्न कुलपति, और ऐसे ही पद के इच्छुक लोग, उनके लिए मटन और हिलसा मछली पकाकर उनके घर भेज देते थे. वह एक बच्चे की माफिक खाना पसंद करते थे.’

पूर्व सहयोगी ने आगे बताया, ‘पार्थ चटर्जी को लग्जरी कारों से प्यार था, मगर उन्हें केवल अपने आधिकारिक वाहन में यात्रा करते देखा जाता था. लेकिन मुझे पता है कि वह निजी यात्राओं के दौरान बीच रास्ते में ही कारों को बदल देते थे.’

ईडी अब चार लग्जरी कारों- ऑडी ए4, होंडा सिटी, होंडा सीआरवी और मर्सिडीज बेंज – की तलाश कर रही है, जो डायमंड सिटी कॉम्प्लेक्स स्थित अर्पिता के कोलकाता वाले आवास से गायब हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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