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Friday, 20 September, 2024
होमदेशबहुत हो गई हिंसा, अब शांति चाहिए: बस्तर के नक्सली हिंसा के पीड़ित

बहुत हो गई हिंसा, अब शांति चाहिए: बस्तर के नक्सली हिंसा के पीड़ित

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(ब्रजेन्द्र नाथ सिंह)

नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) ‘‘बहुत हो गई हिंसा, अब हमें शांति चाहिए… हमें हमारे पुराने दिन लौटा दीजिए जहां कोई हिंसा ना हो, कोई सड़कों को ना तोड़े और ना ही कोई स्कूल की इमारतों को ध्वस्त करे….ना ही कोई निर्दोषों पर गोलियां चलाए।’’ यह कहना था छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सल हिंसा के पीड़ित केदारनाथ कश्यप का।

कोंडागांव जिले के मरदापाल निवासी केदारनाथ कश्यप के सामने ही नक्सलियों ने उनके भाई को पुलिस का मुखबिर समझ गोलियों से भून डाला था। इस हमले में एक गोली उनकी जांघ के बीचों-बीच होकर निकल गई थी।

कश्यप छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सली हिंसा के उन पीड़ितों में शामिल थे, जो ‘बस्तर शांति समिति’ के बैनर तले कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी व्यथा सुनाने राजधानी दिल्ली आए हुए हैं।

दिल्ली पहुंचे उनकी तरह तकरीबन 50 ऐसे पीड़ित भी सभागार में मौजूद थे जिनमें से किसी ने नक्सली हिंसा में अपनी दोनों आंखें गंवा दी हैं तो किसी की एक आंख नहीं है। कुछ ऐसे भी मिले जिनकी दोनों आंखें हैं लेकिन रोशनी नाममात्र की।

इतना ही नहीं इन पीड़ितों में कुछ ऐसे भी मिले जिनकी एक टांग नहीं थी तो कोई जिंदगी भर के लिए अपाहिज बन चुका है। इनमें से किसी ने अपना बेटा खो दिया तो किसी ने अपना भाई। इनमें से अधिकांश की यह स्थिति आईआईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस)की चपेट में आने से हुई है।

इन पीड़ितों ने सरकार से गुहार लगाई है कि वह उन्हें उनका वह बस्तर लौटा दे जो कभी शांति, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता था।

दंतेवाड़ा के बुरकापाल के किसान 50 वर्षीय माड़वी नंदा कभी अपने परिवार का सहारा थे लेकिन अब उन्हें लगता है कि वह परिवार पर खुद एक बोझ बन गए हैं।

नंदा बताते हैं कि जब वह 39 वर्ष के थे तब वह नक्सलियों की ओर से बिछाई गई आईईडी विस्फोट की चपेट में आ गए थे और नक्सलियों ने उन्हें मृत मान लिया था। उन्होंने बताया कि उनकी जान तो बच गई लेकिन इस विस्फोट में उन्होंने अपनी दोनों आंखें गंवा दी।

अपनी आपबीती सुनाते-सुनाते भावुक होकर नंदा ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘इस जीवन से तो मौत ही भली थी। भगवान से यही कहूंगा कि ऐसा जीवन किसी को ना दे। हर एक काम के लिए दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। आंखें होती तो कम से कम कुछ तो करता।’’

बस्तर संभाग के अंतर्गत बस्तर, कोंडागांव, कांकेर, दंतेवाडा, सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर जिले आते हैं। इनमें दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर और कांकेर जिले नक्सली समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

कांकेर के कलारपुरा के दयालू राम उस घटना को याद कर रो पड़ते हैं जब 2018 की सुबह वर्दी और बंदूकधारी नक्सलियों ने उनके सामने उनके एक बेटे की गर्दन काट डाली थी।

इस हमले में खुद दयालू राम भी बुरी तरह चोटिल होकर बेसुध हो गए थे और उन्हें मरा हुआ समझकर नक्सली चले गए थे।

वह बताते हैं, ‘‘मैं इतना असहाय था कि अपने बेटे की अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो सका।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह किसी के साथ न हो। हम अपनी यही पीड़ा लेकर दिल्ली आए हैं। हमारी सहायता करें। हमारी आने वाली पीढ़ियों को यह न झेलना पड़े। नक्सलवाद जड़ से खत्म होना चाहिए और बस्तर पहले जैसा था, वैसा चाहिए।’’

बस्तर में नक्सली हिंसा के इन पीड़ितों ने शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की और उन्हें अपनी व्यथा से अवगत कराया।

मुलाकात के बाद शाह ने नक्सलियों से हिंसा छोड़ने और हथियार डालकर आत्मसमर्पण करने की अपील के साथ ही चेतावनी भी दी कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके खिलाफ व्यापक अभियान शुरू किया जाएगा।

पीड़ितों को अपने आवास पर संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि 31 मार्च 2026 तक माओवाद को समाप्त कर दिया जाएगा।

पीड़ितों ने दिल्ली आने से पहले मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से भी मुलाकात की थी और उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया था कि केंद्र के साथ मिलकर बस्तर को जल्द ही नक्सलमुक्त बना दिया जाएगा।

अधिकारियों के मुताबिक 2001 और 2024 के बीच बस्तर क्षेत्र में नक्सली हिंसा की घटनाओं में सुरक्षाकर्मियों की तुलना में नागरिक अधिक संख्या में मारे गए हैं। माओवादियों द्वारा मारे गए 1,851 लोगों में से 1,623 आम नागरिक थे।

बस्तर शांति समिति के समन्वयक मंगऊ राम ने ‘भाषा’ से कहा कि बीते चार दशकों से बस्तर माओवाद का दंश झेल रहा है लेकिन अब बहुत हो गया, निर्दोषों की हत्या बंद होनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘बस्तर में शांति की वापसी की आस लेकर हम दिल्ली आए हैं। अमित शाह जी ने आश्वासन दिया है कि वह हमें इससे निजात दिलाएंगे। अच्छा लगा। सकारात्मक समर्थन मिला।’’

यह पूछे जाने पर कि आप इस समस्या के लिए सरकारों को कितना दोषी मानते हैं, उन्होंने कहा, ‘‘सरकारों को क्या दोष दूं? वे प्रयास करती हैं। वह सड़क और पुलिया बनाती है तो नक्सली उन्हें ध्वस्त कर देते हैं। सरकार स्कूल बनवाती है तो नक्सली उनमें आग लगा देते हैं।’’

उन्होंने कहा कि नक्सली समस्या का जल्द से जल्द इलाज आवश्यक है और यह कैसे करना है इसके बारे में गंभीरता से सोचना होगा।

बस्तर संभाग घने जंगलों में लगभग 39,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके बड़े हिस्से में नक्सलियों का प्रभाव है। जानकारों के मुताबिक नक्सली इस इलाके को सुरक्षित पनाहगाह मानते हैं क्योंकि यह अन्य राज्यों से सटा हुआ है। नक्सली यहां वारदात को अंजाम देकर दूसरे राज्यों में भाग जाते हैं।

भाषा ब्रजेन्द्र

ब्रजेन्द्र नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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