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Saturday, 21 December, 2024
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एडिटर्स गिल्ड ने पेगासस की फोन टैपिंग पर जताई हैरानी, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की जांच की मांग

गिल्ड ने कहा जो बात परेशान करने वाली है वह यह है कि बड़ी संख्या में पत्रकार और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं की निगरानी की गई. यह अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता पर एक खुल्लमखुल्ला और असंवैधानिक हमला है.

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नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके पत्रकारों और नेताओं की व्यापक निगरानी को लेकर मीडिया में आयी खबरों पर हैरानी जताते हुए बुधवार को कथित जासूसी की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में एक स्वतंत्र जांच की मांग की.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने ट्विटर पर साझा किए गए एक बयान में कहा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ​​पत्रकारों, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं, उद्योगपतियों और नेताओं की कथित तौर पर सरकारी एजेंसियों द्वारा व्यापक तौर पर निगरानी इजराइली कंपनी एनएसओ द्वारा बनाये और विकसित पेगासस नामक एक हैकिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करके किये जाने संबंधी मीडिया में आयी खबरों से हैरान है.’

गिल्ड ने कहा कि 17 प्रकाशनों के एक संघ द्वारा पिछले कुछ दिनों में दुनिया भर में प्रकाशित की गई खबरें दुनिया भर में कई सरकारों द्वारा निगरानी की ओर इशारा करती हैं.

ईजीआई ने बयान में कहा, ‘चूंकि एनएसओ का दावा है कि वह इस सॉफ्टवेयर केवल इजराइल सरकार द्वारा सत्यापित सरकारी ग्राहकों को बेचती है, इससे अपने ही नागरिकों पर जासूसी करने में भारत सरकार की एजेंसियों के शामिल होने का संदेह गहराता है.’

गौरतलब है कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ने खुलासा किया है कि इजराइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिये भारत के दो केंद्रीय मंत्रियों, 40 से अधिक पत्रकारों, विपक्ष के तीन नेताओं सहित बड़ी संख्या में कारोबारियों और अधिकार कार्यकर्ताओं के 300 से अधिक मोबाइल नंबर हो सकता है कि हैक किए गए हों.

ईजीआई ने पत्रकारों की निगरानी की निंदा करते हुए कहा कि यह प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है.

गिल्ड ने कहा, ‘हालांकि निगरानी के कुछ उदाहरणों को उन लोगों के खिलाफ लक्षित किया गया हो सकता है जिन्हें विश्वसनीय राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों के रूप में देखा जा सकता है, जो बात परेशान करने वाली है वह यह है कि बड़ी संख्या में ऐसे लक्ष्यों में पत्रकार और नागरिक समाज के कार्यकर्ता थे. यह अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता पर एक खुल्लमखुल्ला और असंवैधानिक हमला है.’

गिल्ड ने कहा कि जासूसी का यह कृत्य यह दिखाता है कि पत्रकारिता और राजनीतिक असंतोष को अब ‘आतंक’ के बराबर कर दिया गया है.

उसने कहा, ‘एक संवैधानिक लोकतंत्र कैसे जीवित रह सकता है यदि सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने का प्रयास नहीं करें और इस तरह की दण्डमुक्ति से निगरानी की अनुमति दें.’

मामले की एक स्वतंत्र जांच की मांग करते हुए, ईजीआई ने मांग की कि स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने के लिए जांच समिति में पत्रकारों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाना चाहिए.

बयान में कहा गया है, ‘यह एक ऐसा क्षण है जो गहन आत्मनिरीक्षण और जांच की मांग करता है कि हम किस तरह के समाज की ओर बढ़ रहे हैं और हम अपने संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों से कितनी दूर हो गए हैं.’

बयान में कहा गया है, ‘गिल्ड इन जासूसी आरोपों की भारत के उच्चतम न्यायालय की निगरानी में तत्काल और स्वतंत्र जांच की मांग करता है. हम यह भी मांग करते हैं कि इस जांच समिति में विभिन्न क्षेत्रों (पत्रकारों और नागरिक समाज सहित) से स्वच्छ छवि वाले लोगों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि यह पेगासस की सेवाओं का उपयोग करके जासूसी करने की सीमा और इरादे के आसपास के तथ्यों की स्वतंत्र रूप से जांच कर सके.’

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