नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) भारत में अत्यंत गरीबों की संख्या घटी है। वर्ष 2011 से 2019 के बीच अत्यंत गरीबों की संख्या में 12.3 प्रतिशत की कमी आई है और इस मामले में शहरी केंद्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है।
अर्थशास्त्री सुतीर्थ सिन्हा रॉय और रॉय वैन डेर वेइड द्वारा तैयार इस दस्तावेज में कहा गया है कि देश ने एक दशक से अधिक समय से गरीबी और असमानता का कोई आधिकारिक अनुमान जारी नहीं किया है। परिवारों के उपभोग पर आधारित सर्वे एनएसएस (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन) ने 2011 में जारी किया था।
इससे पहले, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के एक दस्तावेज में कहा गया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने महामारी से प्रभावित 2020 में अति गरीबी को 0.8 प्रतिशत के निचले स्तर पर बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस योजना के तहत गरीबों को राशन की दुकानों से मुफ्त अनाज दिया जा रहा है।
‘भारत में गरीबी पिछले दशक में कम हुई है लेकिन सोच के मुकाबले कम’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की दर में कमी शहरी केंद्रों के मुकाबले अधिक है।’’
लेखकों का कहना है कि नोटबंदी के दौरान शहरी गरीबी 2016 में दो प्रतिशत बढ़ी और उसके बाद उसमें तेजी से कमी आई। गांवों में गरीबी 2019 में 0.1 प्रतिशत बढ़ी जिसका कारण संभवत: आर्थिक वृद्धि में नरमी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘राष्ट्रीय लेखा खातों में खपत में वृद्धि और सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर गरीबी को लेकर हमारे अनुमान में पूर्व में जतायी गयी संभावनाओं के मुकाबले अधिक सतर्कता बरती गयी है।’’
इसमें कहा गया है कि 2015-2019 के दौरान गरीबी में कमी पूर्व के अनुमान से कम होने का अनुमान है जो निजी अंतिम खपत व्यय में वृद्धि पर आधारित है।
लेखकों ने यह भी कहा कि उनके विश्लेषण में खपत के मामले में असमानता बढ़ने का कोई सबूत नहीं पाया गया।
रिपोर्ट के अनुसार, छोटे जोत वाले किसानों की आय में वृद्धि अधिक हुई है। दो सर्वेक्षण दौर के बीच इन किसानों की वास्तविक आय सालाना आधार पर 10 प्रतिशत बढ़ी। वहीं बड़े जोत वाले किसानों की आय में इस दौरान दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इसमें कहा गया है कि गांवों में जिस परिवार के पास खेतों का आकार छोटा है, उनके अन्य के मुकाबले गरीब होने की आशंका अधिक है।
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रमण अजय
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