नयी दिल्ली, 14 मई (भाषा) किसान संगठन भारत कृषक समाज (बीकेएस) ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी को लेकर शनिवार को नाखुशी जताते हुए कहा कि कृषि उत्पादों के निर्यात पर पाबंदी लगाना किसानों के लिए एक ‘अप्रत्यक्ष’ कर की तरह है।
बीकेएस ने कहा कि सरकार के इस कदम की वजह से किसान ऊंची वैश्विक कीमतों का लाभ नहीं उठा सकेंगे और भारत भी भरोसेमंद कारोबारी साझेदार के तौर पर अपनी विश्वसनीयता खो देगा।
बीकेएस के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह दुख की बात है कि भारत ने गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी। कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाना किसानों के लिए एक अप्रत्यक्ष कर है।’’
उन्होंने कहा कि पाबंदी लगाने के कारण कृषि उत्पादों की मूल कीमत कम हो जाती है और किसानों को ऊंची लागत अदा करने पर भी जिंसों के बढ़ते दामों का लाभ नहीं मिल पाता।
जाखड़ ने कहा, ‘‘आज न केवल व्यापारी बल्कि किसान भी गेहूं का भंडार खो देंगे। निर्यात पर इस तरह की रोक के कारण ही किसान बाजार सुधारों पर भरोसा नहीं करते। इससे भरोसा और टूटता है।’’
उन्होंने कहा दुनियाभर में खाद्य वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने भी देशों से अपील की है कि वे अचानक ऐसी घोषणाएं न करें। इस कदम के कारण भारत व्यापारिक साझेदार के रूप में भरोसा भी खो देगा।
भारत ने घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। आधिकारिक अधिसूचना से यह जानकारी मिली है।
हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने 13 मई को जारी इस अधिसूचना में कहा, ‘‘इस अधिसूचना की तारीख या उससे पहले जिस खेप के लिए अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (एलओसी) जारी किए गए हैं, उसके निर्यात की अनुमति होगी।’’
सरकार ने अनुमान लगाया है कि गेहूं उत्पादन 2021-22 में 5.7 फीसदी घटकर 10.5 करोड़ टन रह गया, पहले का अनुमान 11.132 करोड़ टन रह गया। 2020-21 में भारत का गेहूं उत्पादन 10.959 करोड़ टन रहा है।
पिछले वित्त वर्ष में देश ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था और इस वर्ष एक करोड़ टन निर्यात करने की योजना थी।
भाषा मानसी प्रेम
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