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मंगलवार, 10 जून, 2025
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उत्तर प्रदेश सरकार ‘कालानमक’ चावल के लिए शोध केंद्र स्थापित करेगी

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नयी दिल्ली, 10 जून (भाषा) उत्तर प्रदेश सरकार मशहूर ‘कालानमक’ चावल के लिए अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के साथ साझेदारी में एक शोध केंद्र स्थापित करने की योजना बना रही है।

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी ने मंगलवार को यहां पीटीआई-भाषा के साथ बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इसके पीछे मकसद इस सुगंधित चावल के उत्पादन और निर्यात को प्रोत्साहन देना है।

नंदी ने कहा कि सिद्धार्थनगर जिले में स्थापित होने वाला यह शोध केंद्र कालानमक चावल की कीट प्रतिरोधी किस्मों को विकसित करने और विशेष चावल के लिए बीज की गुणवत्ता में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

अपने खास स्वाद के लिए मशहूर चावल की इस किस्म की खेती 600 ईसा पूर्व से की जाती रही है और इसे प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग भी मिला हुआ है।

घरेलू बाजारों में यह चावल 250-300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है, जो चावल की आम किस्मों की तुलना में काफी अधिक है।

नंदी ने कहा, ‘हम यह केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं। इसका उद्देश्य कालानमक चावल की खेती का रकबा बढ़ाना और उसके निर्यात को प्रोत्साहन देना है।’

राज्य सरकार ने अगले महीने से शुरू होने वाले 2025-26 खरीफ सत्र में खेती के क्षेत्र को 82,000 हेक्टेयर से बढ़ाकर 1,00,000 हेक्टेयर करने का लक्ष्य रखा है, क्योंकि काले छिलके वाले इस अनाज की मांग बढ़ रही है। कालानमक में नियमित चावल की किस्मों की तुलना में उच्च एंटीऑक्सीडेंट सामग्री होती है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2024-25 फसल सत्र के दौरान इसका उत्पादन 32.8 लाख टन तक पहुंच गया, जिसमें औसत उपज चार टन प्रति हेक्टेयर थी।

उत्तर प्रदेश ने पिछले साल सिंगापुर और नेपाल को लगभग 500 टन कालानमक चावल का निर्यात किया था। इस चावल को लेकर थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका और जापान की दिलचस्पी भी बढ़ रही है, जहां अनाज का बुद्ध से ऐतिहासिक संबंध इसके सांस्कृतिक आकर्षण को बढ़ाता है।

लोक मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने इस चावल को कपिलवस्तु में लोगों को आशीर्वाद के रूप में उपहार में दिया था। इसी वजह से इसे ‘बुद्ध चावल’ के नाम से भी जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘एक जिला एक उत्पाद’ (ओडीओपी) पहल के तहत कालानमक चावल को एक प्रमुख उत्पाद के रूप में पेश किया है। इसे निर्यात के लिए तैयार करने के इरादे से 80 प्रतिशत सरकारी वित्तपोषण के साथ एक प्रसंस्करण सुविधा भी स्थापित की गई है।

गैर-बासमती किस्म के इस चावल की खेती विशेष रूप से मानसून के समय अनाज की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए की जाती है।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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