नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) ब्रिटेन की लंबी नियामक अनुमोदन प्रक्रियाएं उसके बाजार में भारत के चिकित्सकीय उपकरणों के निर्यात को प्रभावित करती हैं। शोध संस्थान जीटीआरआई ने बुधवार को यह बात कही।
जीटीआरई के अनुसार, इन उपकरणों के निर्यात को बढ़ावा देने के वास्ते भारत को ब्रिटेन के बाजार में इन उपकरणों के प्रवेश में तेजी लाने के लिए एक पारस्परिक मान्यता समझौते (एमआरए) पर बातचीत करनी चाहिए। खासकर सीडीएससीओ (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) लाइसेंस या क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया का इंडियन सर्टिफिकेशन ऑफ मेडिकल डिवाइसेज (आईसीएमईडी) प्रमाणन पर।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ एमआरए विनियामक अनुपालन और लेखापरीक्षा आवश्यकताओं को कम करेगा संभावित रूप से भारत के निर्यात को बढ़ाएगा। ’’
यह सुझाव महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं और यह क्षेत्र उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शोध संस्थान के अनुसार, ब्रिटेन में चिकित्सकीय उपकरणों पर मौजूदा शून्य आयात शुल्क का एफटीए के तहत भारत के लिए कोई प्रत्यक्ष शुल्क-संबंधी लाभ नहीं है। इसका मतलब है भारत के चिकित्सकीय उपकरण उद्योग को शुल्क रियायतें नहीं मिलती हैं, जबकि ऐसे व्यापार समझौतों में यह एक विशिष्ट लाभ होता है।
जीटीआरआई ने कहा, ‘‘ ब्रिटेन में शून्य शुल्क के बावजूद वहां भारत का चिकित्सकीय उपकरण निर्यात देश की लंबी नियामक अनुमोदन प्रक्रियाओं के कारण सीमित है।’’
उसने कहा कि ब्रिटिश नियम उत्पादों को ‘मेड इन ब्रिटेन’ (ब्रिटेन निर्मित) के रूप में ‘लेबल’ करने की अनुमति देते हैं, भले ही वे वहां केवल विपणन किए गए हों, निर्मित नहीं।
शोध संस्थान ने कहा, ‘‘ एफटीए के बाद शुल्क में कटौती तथा उत्पाद-विशिष्ट नियमों में ढील से आयात में वृद्धि का जोखिम उत्पन्न हो सकता है, जो संभावित रूप से भारत के बढ़ते चिकित्सकीय उपकरण क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है।’’
उसने कहा कि भारत प्रस्तावित व्यापार समझौते में केवल उन उत्पादों पर शुल्क कटौती पर विचार कर सकता है जहां भारत का निर्यात अधिक है।
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