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Saturday, 20 April, 2024
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उबलता पंजाब: खुशहाली से बदहाली की ओर कैसे गई इस राज्य की अर्थव्यवस्था

पंजाब में किसान से लेकर सरकारी कर्मचारी तक सभी सड़कों पर उतरकर विरोध जता रहे हैं. और अगर अर्थव्यवस्था से जुड़े डेटा संकेतकों को देखें तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस नाराजगी की वजह क्या है.

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चंडीगढ़/पटियाला/लुधियाना/अमृतसर: जहां तक नज़र जाती है सरसों के खेत लहलहाते दिखते हैं— यह वो छवि है जो आज से करीब तीन दशक पहले ‘पंजाब’ का पर्याय बन गई थी, इसका श्रेय काफी हद तक बॉलीवुड को भी जाता है. आतंकवाद के काले साये से बाहर आकर पंजाब ने एक समृद्ध, कर्मठ और खुशहाल राज्य की पहचान कायम कर ली थी.

अगर 2022 की बात करें तो पंजाब में लगभग हर व्यक्ति अर्थव्यवस्था की स्थिति से नाराज है. पिछले कुछ सालों में पंजाब की आर्थिक स्थिति लगातार चौपट होने को लेकर बढ़ती नाराजगी को दर्शाने के लिए किसानों से लेकर सरकारी कर्मचारियों तक सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं.

यह समझना मुश्किल नहीं है कि इस सबकी जड़ में क्या है.

1993 में एक पंजाबी की औसत आय अन्य राज्यों (दिल्ली को छोड़कर अन्य केंद्रशासित प्रदेश गणना में शामिल नहीं थे) की तुलना में तीसरे शीर्ष स्थान पर होती थी. केवल छोटे राज्यों गोवा और दिल्ली ने बेहतर प्रदर्शन किया था. पंजाब ने 2000-2001 तक यह स्थिति बरकरार रखी. लेकिन इसके बाद इसमें काफी गिरावट देखने को मिली.

2010-11 तक पंजाब की प्रति व्यक्ति आय नौ अन्य राज्यों की तुलना में कम थी. वहीं लगभग एक दशक बाद 2020-21 में ऐसे राज्यों की संख्या 15 हो गई है जहां प्रति व्यक्ति आय पंजाब के लोगों से ज्यादा है.

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बेस प्राइस में बदलावों (वृद्धि की गणना के लिए इस्तेमाल होने वाला डिनॉमिनेटर) के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की सटीक गणना तो मुमकिन नहीं है. लेकिन राज्य की रैंकिंग इसकी एक झलक जरूर दिखाती है कि विकास के पैमाने पर पंजाब की तुलना में अन्य राज्यों ने कैसे बेहतर प्रदर्शन किया है.

Infographic: Manisha Yadav | ThePrint
इन्फोग्रॉफिक : मनीषा यादव/दिप्रिंट

सिर्फ प्रति व्यक्ति आय ही नहीं, बल्कि कृषि, औद्योगिक और सेवा क्षेत्र से जुड़े तमाम अहम आंकड़े भी हतोत्साहित करने वाले हैं.

कोई यह सोच सकता है कि एक हाई इनकम बेस से राज्य के तेजी से विकास में मदद मिलने की संभावना है. लेकिन फिर पंजाब उस तरह आगे क्यों नहीं बढ़ पाया जो वह कर सकता था?

पंजाब में इस रविवार होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले दिप्रिंट ने राजधानी और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ के साथ-साथ पटियाला, लुधियाना, जालंधर और अमृतसर जैसे राज्य के कुछ सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों का दौरा किया. और हर जगह एक ही जैसी निराशाजनक तस्वीर सामने आई— उपेक्षा, अक्षमता और राजनीतिक सुस्ती.

दिप्रिंट ने पंजाब में प्लानिंग और रोजगार सृजन से जुड़े विभागों का दौरा किया और इस पर प्रतिक्रिया जाननी चाही कि राज्य की अर्थव्यवस्था उम्मीदों के अनुरूप क्यों नहीं है. लेकिन, दोनों ही विभागों ने 10 मार्च को चुनाव नतीजे आने के बाद आदर्श आचार संहिता हटने तक कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


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कृषि क्षेत्र में स्थिर विकास

पंजाब की आर्थिक समृद्धि में कृषि क्षेत्र में लगातार विकास का एक बड़ा योगदान रहा है. राज्य की पांच नदियों, जिनके कारण ही इस राज्य का नाम पंजाब पड़ा, ने भूमि को उपजाऊ बनाया है. आजादी के बाद बनी नहरों ने खेती को और अधिक आसान बना दिया है.

1960 के दशक के मध्य में ‘हरित क्रांति’ के दौरान पंजाब कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण अपनाने वाले पहले राज्यों में से एक था. हालांकि, इसका सकारात्मक प्रभाव कुछ ही समय के लिए रहा.

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के एक अध्ययन के मुताबिक, 1971 से 1986 के बीच पंजाब के कृषि क्षेत्र में औसतन 5.07 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि देशभर में कृषि क्षेत्र में औसत वृद्धि 2.31 प्रतिशत रही, जो इसकी तुलना में आधे से भी कम थी.

अगले दो दशकों (1986-2005) में पंजाब में खेतीबाड़ी में वृद्धि महज 3 प्रतिशत रही, जो राष्ट्रीय औसत 2.94 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा थी.

लेकिन 2006 से 2014-15 के बीच पंजाब में खेती की हालत चरमरा गई. इन वर्षों में इसका उत्पादन केवल 1.6 प्रतिशत बढ़ा जबकि भारत में औसतन वृद्धि 3.5 प्रतिशत थी.

भूमि की कमी इसे विकास का एक स्थायी स्रोत बनाने में आड़े आने लगी. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में शुद्ध बुवाई क्षेत्र और सिंचित क्षेत्र आज भी लगभग वही है जो 2004-05 में था— यानी लगभग 4.1 मिलियन हेक्टेयर.

बहरहाल, राज्य अभी भी कृषि पर निर्भर है, जो इसके 5.2 लाख करोड़ रुपये के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग एक चौथाई योगदान देती है. देशव्यापी स्तर पर, भारत के सकल घरेलू उत्पाद (2018-19) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17.6 प्रतिशत है.

कोई राज्य अधिक खेत तो विकसित नहीं कर सकता. लेकिन यह उद्योगों की स्थापना के जरिये इस क्षेत्र के बाहर अधिक उत्पादन और रोजगार उत्पन्न कर सकता है. क्या पंजाब में यह कारगर रहा है?


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उद्योगों की अनदेखी की गई

पंजाब के गौरवशाली अतीत में उसके उद्योगों, खासकर कपड़ा क्षेत्र, साइकिल निर्माण और चमड़े के उत्पादों आदि का गौरवशाली स्थान रहा है.

लुधियाना स्थित गिल चौक के पास एक लॉन और एक सभागार वाली अपनी बहुमंजिला इमारत को दिखाते हुए यूनाइटेड साइकिल पार्ट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (यूसीपीएमए) के अध्यक्ष डी.एस. चावला ने बताया, ‘यह सब एक छोटे से कमरे से शुरू हुआ था.’

चावला बताते हैं कि कैसे छोटे पैमाने के उद्योगों ने पंजाब के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाई.

वे बताते हैं, ‘जब उन्होंने स्मॉल-स्केल इंडस्ट्रीज को छूट दी तो लोगों ने जहां भी संभव था, कारखाने खोल दिए. उसी छोटी-सी औद्योगिक इकाई में वे दिनभर काम करते और फिर वहीं सो जाते, यही वजह है कि आपको औद्योगिक क्षेत्रों में कई आवासीय भवन मिलते हैं.’

1947 में विभाजन के कारण मिले घावों के बावजूद पंजाब काफी तेजी से अस्थिरता से उबरा.

इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के एक आर्काइव पीस के मुताबिक, राज्य में फैक्ट्रियों की संख्या 1955 में बढ़कर 54,250 हो गई, जो 1947 में 2,311 थी और बहुआयामी रूप से आगे बढ़ रही थीं. राज्य होजरी, साइकिल और उनके पुर्जे, हैंडलूम, खेल के सामान और धातु उद्योगों के लिए उपजाऊ भूमि बन गया.

पूर्ववर्ती योजना आयोग की साल 2000 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 1980 के दशक में पंजाब का उद्योग 1980-85 तक औसतन 21.75 प्रतिशत की दर से बढ़ा. वर्षों आतंकवाद झेलने के बावजूद अगले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में 10.75 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.

हालांकि, 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद (1992-97 में) उद्योग की वृद्धि दर केवल 1.87 प्रतिशत पर टिकी रही. आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बाद (1998-2000) यह और धीमी होकर 0.98 प्रतिशत रह गई.

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के मुताबिक, 2015-16 और 2020-21 के बीच उद्योगों में केवल 6.78 प्रतिशत वार्षिक औसत वृद्धि नजर आई.

पटियाला स्थित पंजाबी यूनिवर्सिटी के खालसा कॉलेज में प्रोफेसर रहे लखविंदर सिंह गिल कहते हैं, ‘पंजाब को सबसे पहले तो मुक्त बाजारों और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना चाहिए था, जिससे निजी क्षेत्र का विकास होता और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियां बढ़तीं. लेकिन राजनेता खुद ही उद्योगपति बन गए और राज्य में प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया. इसकी वजह से निवेशक भी पंजाब में पैसे लगाने से डरने लगे.’

पंजाब में उद्योगों पर राजनेताओं के काबिज होने के प्रमाण साफ तौर पर सामने हैं.

इसी का नतीजा है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस मामले में पंजाब निचला स्थान रखने वाले 10 राज्यों में ही जगह बना पाया है.

Infographic: Manisha Yadav | ThePrint
इन्फोग्रॉफिक : मनीषा यादव/दिप्रिंट

डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग के मुताबिक, 2015 में पंजाब की रैंकिंग 16 थी जो 2017 में गिरकर 20 हो गई. ताजा रैंकिंग (2019) में 19वें स्थान के साथ इसमें मामूली सुधार हुआ, लेकिन यह बॉटम 10 में ही रहा.

उद्योगपतियों ने दिप्रिंट को बताया कि एक तरफ जहां अन्य राज्यों में उद्योगों को बेहतर प्रोत्साहन और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं पंजाब में पहले से ही मौजूद कंपनियां बाहर निकलने की तैयारियों में जुटी हैं.

2000 के दशक की शुरुआत में पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश ने जब पंजाब की सीमा से लगे अपने शहर बद्दी में उद्योगों को प्रोत्साहन के लिए टैक्स छूट की पेशकश की, तो फार्मा उद्योग ने इस राज्य की ओर रुख कर लिया.

सस्ती भूमि उपलब्ध होने और अन्य प्रोत्साहनों के कारण आने वाले दशक में कपड़ा उद्योग भी यहां से पलायन कर गया. और अब यहां भारत का 90 प्रतिशत साइकिल उत्पादन करने वाला साइकिल उद्योग भी राज्य से बाहर निकलने पर विचार कर रहा है.

उद्योगों के कारण होने वाले धुएं और सड़कों के किनारे उड़ती धूल की वजह से जिस तरह लुधियाना में आसमान साफ नहीं दिखाई देता, उसी तरह राज्य में कई उद्योगों का भविष्य भी धुंधला नजर आता है.

हालांकि, कोविड की वजह से बढ़ती मांग के कारण राज्य में साइकिल उद्योग की स्थिति में एक बार फिर सुधार दिखाई दे रहा है, लेकिन फिर भी उद्योगपतियों का कहना है कि पंजाब सरकार की उपेक्षा उन्हें राज्य से बाहर जाने पर सोचने को मजबूर कर रही है.

चावला कहते हैं कि उद्योगपतियों के पंजाब छोड़ने की एक बड़ी वजह अन्य राज्यों की तरफ से मिलने वाले आकर्षक विकल्प हैं. उन्होंने कहा, ‘सभी राजनेता वादे करते हैं, हमारे पैसे लेते हैं और हमारे बारे में भूल जाते हैं. कच्चे माल की मूल्य निर्धारण प्रक्रिया प्रतिस्पर्धी बनाने और ‘इंस्पेक्टर राज’ में कमी की हमारी मांग अभी भी वही है जो 20 साल पहले थी.’

उन्होंने आगाह करते हुए कहा, ‘आज, पंजाब में कोई उद्योग चलाना फायदे का सौदा नहीं है क्योंकि यह उपभोग करने वाला राज्य नहीं है. अन्य राज्य सरकारें 50 प्रतिशत खरीद जैसे आकर्षक प्रोत्साहन की पेशकश कर रही हैं, बशर्ते हम वहां अपनी फैक्ट्रियां स्थापित करें. अगर पंजाब में हमारी उपेक्षा जारी रही, तो हमें यहां से बाहर निकलना पड़ सकता है.’

श्रम की स्थिति भी यहां कोई बहुत अलग नहीं दिखती है.

अपने-अपने कारखानों में कर्मचारियों के बारे में पूछे जाने पर मजदूरों का कहना है कि 90 प्रतिशत श्रमिक उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी हैं.

पंजाब में 20 से अधिक सालों से कार्यरत एक कारखाने के कर्मचारी शंकर इस राज्य को अपना घर नहीं मानते. वह काफी भावुक होकर कहते हैं, ‘मैं तो उत्तर प्रदेश का एक मतदाता हूं. जिस दिन मेरा राज्य मुझे मेरे कौशल के हिसाब से नौकरी देना शुरू कर देगा, तो यहां होने वाली कमाई की तुलना में 2,000 रुपये कम भी मिलने पर मैं यहां से चला जाऊंगा.’

शंकर और उसके दोस्त काला धुआं उगलते टॉवरों के बगल में रहते हैं. महीने में महज 10,000 रुपये कमाने वाले शंकर कहते हैं, ‘यह अब भी वैसा ही है जैसा दो दशक पहले था, सिवाये इसके कि महंगाई अब मामूली कमाई को और ज्यादा प्रभावित करती है.’

चावला मानते हैं कि पंजाब के लोग कम वेतन वाली औद्योगिक नौकरियों में कोई दिलचस्पी नहीं रखते, यही वजह है कि उद्योग प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर है लेकिन पंजाब में उन्हें सबसे अच्छा वेतन मिलने का आकर्षण अब खत्म हो गया है.


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सेवा क्षेत्र का कोई अस्तित्व नहीं

पिछले 10-15 सालों में भारत ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन पंजाब काफी हद तक इससे अछूता ही रहा है.

यदि सेवा क्षेत्र में कम से कम एक लाख करोड़ रुपये (2019-20 में सकल मूल्य वर्धित) क्षमता वाले राज्यों की स्थिति पर नजर डालें तो पंजाब ने 2004-05 और 2019-20 के बीच औसतन 7 प्रतिशत की वार्षिक दर से वृद्धि की है. दिप्रिंट के एक विश्लेषण के मुताबिक, यह कम है और 16 राज्यों में पंजाब का स्थान 12वां है.

Infographic: Manisha Yadav | ThePrint
इन्फोग्रॉफिक : मनीषा यादव/दिप्रिंट

इसके पड़ोसी राज्य हरियाणा ने इस मामले में 9.4 प्रतिशत प्रति वर्ष की औसत वृद्धि दर के साथ बेहतर प्रदर्शन किया है, जो कर्नाटक के बाद दूसरे स्थान पर है, जहां वृद्धि दर 9.6 प्रतिशत रही है.

यह पंजाब में साफ दिखाई भी देता है क्योंकि बेंगलुरू, गुरुग्राम और हैदराबाद की तरह यहां कांच की दीवारों वाली ऊंची-ऊंची इमारतें नदारत हैं.

हालांकि, यह राज्य की राजधानी चंडीगढ़ की सीमा से लगे मोहाली में एक आईटी पार्क बनाने में कामयाब रहा है और अमृतसर को आईटी सिटी बनाने का काम भी लगभग पूरा हो चुका है लेकिन कम वेतन युवाओं को लुभाने में नाकाम साबित हो रहा है.

2018 में इंजीनियरों को कम वेतन की पेशकश को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में राज्य के वित्त मंत्री ने कथित तौर पर कहा था, ‘हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की तुलना में कम भुगतान करना बेहतर है.’

सेवा क्षेत्र का एक अन्य विकल्प पाकिस्तान के साथ अंतर्देशीय व्यापार था, जो हजारों लोगों को रोजगार देता था. लेकिन 2019 के पुलवामा हमले के बाद वह मौका भी छिन गया है.

उसके बाद से भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापार पर आयात शुल्क 200 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है और तबसे पीछे मुड़कर नहीं देखा है. थिंक-टैंक ब्यूरो ऑफ रिसर्च ऑन इंडस्ट्री एंड इकोनॉमिक फंडामेंटल्स के आंकड़ों के मुताबिक, व्यापार प्रतिबंध ने पंजाब में कम से कम 9,000 परिवारों या 50,000 लोगों को प्रभावित किया, इसमें फिलहाल किसी सुधार की कोई उम्मीद भी नहीं है.

हालांकि, लखविंदर सिंह गिल का मानना है कि अर्थव्यवस्था की कोई परवाह न करते हुए राज्य ने न केवल लोकलुभावनी नीति अपनाते हुए कई मुफ्त योजनाओं का वादा किया बल्कि अपने आर्थिक विकास की मौजूदा संरचना में कोई बड़ा बदलाव भी नहीं किया.

गिल कहते हैं, ‘पंजाब की अर्थव्यवस्था तब तक पटरी पर नहीं आएगी जब तक राज्य सरकार निजी क्षेत्र को स्वतंत्र रूप से विकसित नहीं होने देती. सरकार को उद्योगपतियों का डर दूर करना होगा और अधिक नौकरियां बढ़ाने के मौके तलाशने होंगे. और मेहनती लोगों को पंजाब में ही टिकाए रखने के लिए राज्य को अपनी पारिश्रमिक नीतियों पर फिर से विचार करने की जरूरत है.’

पंजाब सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि जमीन की उच्च कीमतों ने उद्योगपतियों को राज्य से दूर कर रखा है, क्योंकि उन्हें मध्य प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में सस्ते व्यावहारिक विकल्प मिलते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की खराब वित्तीय स्थिति पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जाता है, इसलिए उच्च वेतन वाली सरकारी नौकरी उपलब्ध कराने के विकल्प की अनदेखी की जाती है.

एक सूत्र ने कहा, ‘वे राजस्व नहीं बढ़ा रहे लेकिन मुफ्त में हजारों करोड़ की पेशकश करते रहे हैं. युवा कुशल श्रमिकों को अच्छा वेतन मुहैया कराने के लिए पैसा कहां से आएगा? इन लोगों की उम्मीदें तो कनाडा की जैसी होती हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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