रोम: उच्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि के बावजूद, मध्य प्रदेश कई मापदंडों पर छत्तीसगढ़ से आगे निकल गया है, जो साल 2000 में ही एक अलग राज्य बना था.
दिप्रिंट ने एक विश्लेषण में पाया है कि नीति आयोग के मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक से लेकर अपराध दर तक, छत्तीसगढ़ अपने मूल राज्य (मध्य प्रदेश) की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कामकाज में एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि राष्ट्रीय प्रवृत्ति के विपरीत, मूल राज्य कृषि पर अधिक निर्भर हो गया है.
आर्थिक गतिविधियों द्वारा छत्तीसगढ़ के कुल ग्रोस वैल्यू एडेड (GVA) में कृषि का योगदान औसतन 30 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश का 43 प्रतिशत है.
जबकि सेवाओं का योगदान लगभग समान है — छत्तीसगढ़ के लिए 35.5 प्रतिशत और मध्य प्रदेश के लिए 35.6 प्रतिशत — यह औद्योगिक क्षेत्र है, जहां छत्तीसगढ़ खड़ा है.
छत्तीसगढ़ में 2011-12 और 2022-23 के बीच, कुल आर्थिक गतिविधियों में उद्योग का योगदान GVA का लगभग 34.4 प्रतिशत था, जबकि मध्य प्रदेश में यह 20 प्रतिशत था.
दोनों राज्यों में इस महीने चुनाव होने हैं, छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान मंगलवार को हुआ है.
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धीमा और स्थिर — लेकिन छत्तीसगढ़ बढ़ रहा है
2011-12 और 2022-23 के बीच मध्य प्रदेश की GSDP या राज्य GDP औसतन 6.7 प्रतिशत प्रति वर्ष (कम्पाउंड वार्षिक वृद्धि दर या CAGR) बढ़ी. इसी अवधि में छत्तीसगढ़ की वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत रही.
बीच के वर्षों में रुझान बदलता रहा, छत्तीसगढ़ ने वित्तीय वर्ष 2014, 2019, 2021 और 2023 में अधिक विकास दर दर्ज की.
हालांकि, CAGR ऐसे अंतरों में बैलेंस करता है और लंबे समय की तस्वीर के लिए एक विश्वसनीय मूल्यांकन देता है.
गरीबी की तुलना
कम GSDP विकास दर के बावजूद छत्तीसगढ़ विकास के मामले में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है जो कमी को दिखाता है.
नीति आयोग मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के 2023 के एडिशन के अनुसार, जो आय मानदंड से परे 11 मापदंडों पर अभाव का आकलन करना चाहता है, छत्तीसगढ़ की 16.37 प्रतिशत आबादी वंचित पाई गई, जबकि मध्य प्रदेश में यह 20.63 प्रतिशत थी.
इसका मतलब यह है कि प्रत्येक राज्य में प्रत्येक 100 लोगों पर मध्य प्रदेश की तुलना में छत्तीसगढ़ में पांच “वंचित” लोग कम मिलेंगे.
यह रिपोर्ट राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS) के आंकड़ों पर आधारित है, जो 2019 से 2021 तक की अवधि को कवर करता है.
फेडरल थिंकटैंक की रिपोर्ट के जिलेवार आंकड़ों से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ के 27 जिलों में से 33 प्रतिशत ने एमपीआई पर राष्ट्रीय औसत — 14.96 प्रतिशत से बेहतर प्रदर्शन किया है. मध्य प्रदेश के लिए यह आंकड़ा 51 जिलों का 27 प्रतिशत था (इसमें निवाड़ी और टीकमगढ़ को लिया गया था, जहां से इसे एक जिले के रूप में अलग किया गया था और मध्य प्रदेश में कुल 52 जिले हैं).
जिन 11 संकेतकों के माध्यम से एमपीआई की गणना की जाती है, उनमें से सात पर छत्तीसगढ़ ने कम गरीबी दर्ज की है. जिन चार संकेतकों में मध्य प्रदेश का प्रदर्शन बेहतर पाया गया, उनमें से तीन – पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर और आवास में अंतर एक प्रतिशत अंक से भी कम था.
हालांकि, खाना पकाने के ईंधन की कमी पर यह आंकड़ा मध्य प्रदेश के लिए 60.88 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ के लिए 66.85 प्रतिशत था – जिसका अर्थ है कि प्रत्येक राज्य में प्रत्येक 100 लोगों के लिए मध्य प्रदेश में 6 कम लोग थे जो खाना पकाने की गैस तक पहुंच से वंचित थे.
इस बीच, जिन मापदंडों में छत्तीसगढ़ आगे था, उनमें बिजली को छोड़कर बाकी सभी में एक फीसदी से ज्यादा का अंतर था. सबसे बड़ा अंतर स्वच्छता और पेयजल श्रेणी में था.
छत्तीसगढ़ में पीने के पानी के पैरामीटर पर दस में से एक से भी कम परिवार (8.37 प्रतिशत) वंचित पाए गए — जिसमें घर पर या 30 मिनट की पैदल दूरी के भीतर सुरक्षित पेयजल तक पहुंच का आकलन किया गया — जबकि मध्य प्रदेश में पांच में से एक (21.73 प्रतिशत) से अधिक परिवार वंचित पाए गए.
स्वच्छता अभाव में — घर में शौचालय नहीं होने वाले या अन्य परिवारों के साथ शौचालय साझा करने वाले परिवारों के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है — छत्तीसगढ़ का स्कोर 23.15 प्रतिशत था, जबकि मध्य प्रदेश का स्कोर 35 प्रतिशत था. स्वच्छता अभाव का राष्ट्रीय औसत 30.13 प्रतिशत मापा गया.
अपराध
दिप्रिंट द्वारा मूल्यांकन किए गए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2017 और 2021 (पांच वर्ष) के बीच मध्य प्रदेश में प्रत्येक एक लाख लोगों पर 505 अपराध (आईपीसी और विशेष स्थानीय कानून दोनों) दर्ज किए गए, जबकि छत्तीसगढ़ में 350 अपराध दर्ज किए गए.
हालांकि, यह ध्यान देने की ज़रूरत है कि बेहतर पुलिसिंग और रिपोर्टिंग बुनियादी ढांचा एनसीआरबी संख्याओं को प्रभावित कर सकता है, लेकिन कम रिपोर्टिंग – जिसे मापा नहीं जा सकता – दोनों राज्यों में एक संभावना है.
प्रवृत्ति को समझना
दिप्रिंट से बात करते हुए दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि छत्तीसगढ़ का डेवलपमेंट जश्न मनाने का विषय है.
उन्होंने कहा, “इस बात को ध्यान में रखते हुए कि छत्तीसगढ़ नक्सली आंदोलन से बुरी तरह प्रभावित रहा है और यहां आदिवासी आबादी की बड़ी हिस्सेदारी है, राज्य का आर्थिक विकास जश्न मनाने लायक है, भले ही यह धीमी गति से हो.”
उन्होंने कहा, “हालांकि, मल्टीडाइमेंशनल गरीबी के आंकड़ों की सत्यता संदिग्ध है, लेकिन इसकी अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना – जो कि कृषि से ऊपर जा रही है – के कारण छत्तीसगढ़ के अधिक विकसित होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.”
मेहरोत्रा ने कहा कि कृषि में “अल्पावधि में गरीबी कम करने की बड़ी शक्ति है”.
उन्होंने कहा, “लेकिन लंबे समय में निरंतर विकास के लिए मजदूरों को खेतों से कारखानों की ओर खींचना पड़ता है – यह मध्य प्रदेश में स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है, जहां राष्ट्रीय प्रवृत्ति के विपरीत, कृषि विकास को गति दे रही है.”
उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ खनन के मामले में सबसे आगे था, अब यह अधिक बिजली पैदा कर रहा है और अधिक औद्योगिक विकास को बढ़ावा दे रहा है.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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