scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमदेशअर्थजगतयूनिकॉर्न की चमक फीकी, Startup सेक्टर की फंडिंग में विंटर चिल दौर के बीच ध्यान आकृष्ट कर रहे कॉकरोच

यूनिकॉर्न की चमक फीकी, Startup सेक्टर की फंडिंग में विंटर चिल दौर के बीच ध्यान आकृष्ट कर रहे कॉकरोच

रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक मंदी की आशंका, और कुछ भारतीय कंपनियों के आईपीओ के निराशाजनक प्रदर्शन सहित कई कारणों से फंडिंग विंटर का दौर और ज्यादा लंबा खिंचता जा रहा है.

Text Size:

नई दिल्ली: भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में छाई सुस्ती के बीच वेंचर कैपिटल के लिहाज से सारा ध्यान यूनिकॉर्न से हटकर कुछ बेहतर प्रदर्शन कर रहे ‘कॉकरोच’ पर केंद्रित होता नजर आ रहा है.

स्टार्टअप शब्दावली में यूनिकॉर्न का मतलब उन कंपनियों से होता है जिनका कारोबार 1 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया हो. वहीं, कॉकरोच वो कंपनियां हैं जो निवेशकों के मुताबिक कठिन कारोबारी माहौल में भी वृद्धि के प्रति ‘स्थिर दृष्टिकोण’ के साथ मजबूती से बाजार में टिकी रहने में सक्षम होती है.

पिछले कुछ महीनों में ‘फंडिंग विंटर’ के दौर के बीच ऐसी कंपनियों ने विशेष रूप से निवेशकों का ध्यान खींचा है.

‘फंडिंग विंटर’ उस स्थिति को कहते हैं जब बाजार अपने नकदी प्रवाह को सुधार रहा होता है, और कंपनियों के लिए धन जुटाना और मूल्यांकन के लिहाज से उच्च स्थान हासिल करना काफी मुश्किल होता है.

यह स्थिति रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक मंदी की आशंका और कुछ भारतीय कंपनियों के आईपीओ (इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग) के निराशाजनक प्रदर्शन सहित कई कारणों से उभरी है.

पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में भारतीय स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग लगभग 24 बिलियन डॉलर रही, जो 2021 की तुलना में 33 प्रतिशत कम थी, जब 37.2 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया था.

विशेषज्ञों का मानना है कि स्टार्टअप्स को अभी कम से कम एक और साल फंडिंग विंटर का सामना करना पड़ सकता है और ऐसे में उन्हें निवेश की कमी के लिए खुद को तैयार करना होगा. और अब तक के सबसे बड़े संकट के दौर के बीच कॉकरोच पर दांव लगाना सुरक्षित हो सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि 2021 जहां यूनिकॉर्न का वर्ष था, वहीं 2023 कॉकरोच कंपनियों के लिए अच्छा साल साबित हो सकता है.

आखिरकार, इस जीव को पृथ्वी पर किसी भी हालात में खुद को जीवित रखने में सक्षम माना जाता है.

हर हालात में स्थिर रहने वाले ही टिकते हैं

डेट फंड कंपनी ब्लैकसॉइल के सह-संस्थापक और निदेशक अंकुर बंसल ने कॉकरोच के बारे में कहा कि ये ‘वो स्टार्टअप हैं जो अधिक नपे-तुले ढंग से आगे बढ़ रहे हैं और लाभ कमाने की स्थिति के करीब हैं.’

उन्होंने कहा कि हालांकि यह शब्द तो नया नहीं है, लेकिन फंडिंग विंटर के लंबे दौर के बीच अब इसका इस्तेमाल स्टार्टअप्स के संदर्भ में अधिक किया जा रहा है, क्योंकि ये कंपनियां प्रतिकूल हालात में भी टिकी हुई हैं.

उन्होंने कहा कि 2023 कॉकरोच का वर्ष है क्योंकि 2021 में कई स्टार्टअप में जरूरत से ज्यादा निवेश हुआ था और ‘बहुत सारी नकदी बर्बाद होने से अब उनकी परेशानी बढ़ गई है.’ उन्होंने आगे कहा कि जो लोग अपनी व्यावसायिक योजनाओं को लेकर ज्यादा सजग थे, वहीं फंडिंग विंटर में खुद को बचा पाएंगे.

ये ऐसे स्टार्टअप हैं जो अपनी ग्रोथ को लेकर सजग हैं और जानते हैं कि अपना पैसा कहां और कैसे खर्च करना है. बंसल ने कहा, ‘वे जानते हैं कि उन्हें नए प्रयोगों और नए दफ्तरों पर पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है.’

बंसल ने कहा कि उनकी टीम अब ऐसे स्टार्टअप्स को फंडिंग पर ध्यान केंद्रित कर रही है जो मौजूदा हालात में भी टिके रह सकते हैं.

ओरियोस वेंचर पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर अनूप जैन ने कहा, ‘शुरुआती चरण के निवेश ऊपर की ओर हैं, भारतीय स्टार्टअप्स में समग्र फंडिंग में 2021 की तुलना में मंदी देखी गई है जो एक असामान्य वर्ष था.’

उन्होंने कहा, ‘इसका नतीजा पूंजी-प्रवाह घटने के तौर पर सामने आया और ऐसे में विस्तार के लिए लंबे समय तक पूंजी बचाए रखने पर ध्यान दिया गया. यह वृद्धि को ताक पर रखकर किया गया और इसीलिए यह कॉकरोच की श्रेणी में आता है.’

उन्होंने कहा कि अपने खर्चे घटाने के क्रम में स्टार्टअप्स के लिए ‘उपभोक्ताओं का दायरा तेजी से बढ़ाने के लिए कोई खर्च करने के बजाये अपने मौजूदा ग्राहकों के बीच पीएमएफ (उत्पाद बाजार में फिट, या ग्राहक को संतुष्ट करने में सक्षम उत्पाद) पर ध्यान देना ज्यादा समझदारी भरा कदम होगा. और फिर धीरे-धीरे अपने उपभोक्ताओं का दायरा बढ़ाएं.’

उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर मार्केटिंग और हायरिंग सबसे बड़ी लागत होती है और यहीं पर स्टार्टअप्स को सबसे ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है.’


यह भी पढ़ें: भारत का दोस्त कौन, दुश्मन कौन? मोदी सरकार अपनी बनाई अमेरिका-चीन-रूस-पाकिस्तान की जलेबी में उलझी


यूनिकॉर्न बनाम कॉकरोच

2021 में 44 नए स्टार्टअप यूनिकॉर्न की श्रेणी में पहुंच गए थे और भारत में पहली बार यूनिकॉर्न की संख्या 100 के पार पहुंची थी.

हालांकि, तबसे इसका ग्राफ लगातार गिर ही रहा है और 2022 में केवल 20 नए यूनिकॉर्न इस सूची में जुड़े. भारत में सक्रिय यूनिकॉर्न की संख्या पिछले साल सितंबर में 105 से घटकर 84 पर तक पहुंच गई. जहां इनमें से कुछ का मूल्यांकन घट गया, वहीं कुछ अन्य ने आईपीओ के कारण अपनी यूनिकॉर्न की स्थिति गंवा दी.

विशेषज्ञों का कहना है कि अभी कम से कम अगले एक वर्ष तक फंडिंग विंटर की स्थिति बनी रह सकती है और ऐसे में निवेशकों का पूरा ध्यान कॉकरोच पर टिका है.

एक निजी निवेशक सुषमा दुआ ने कहा, ‘कॉकरोच के खुद को हर परिस्थिति के अनुकूल ढालने और कठिन से कठिन स्थिति में भी जीवित बचने की प्रवृत्ति की तरह ही ये स्टार्टअप अपने मजबूत उत्पादों और व्यवसाय के प्रति अपने स्थिर दृष्टिकोण के साथ सबसे कठिन हालात में भी टिके रह सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यूनिकॉर्न अक्सर विफल हो जाते हैं क्योंकि वे पौराणिक जीव की तरह होते हैं, लेकिन कॉकरोच यानी तिलचट्टे एक वास्तविक जीव होते हैं.’

इस पर बात करते हुए कि किन सेक्टर में इस तरह के अधिक स्टार्टअप दिखेंगे, जैन ने कहा कि सभी क्षेत्रों में यही दृष्टिकोण अपनाया जाएगा कि उपभोक्ताओं की रुचि के लिहाज से कौन मजबूत स्थिति में है, उदाहरण के तौर पर—क्लाइमेट और अपस्किलिंग एडटेक सेक्टर.

जैन की बात से सहमति जताते हुए बंसल ने भी कहा कि हर व्यवसाय जिसमें तकनीक शामिल है, उसमें ही कॉकरोच नजर आएंगे. उन्होंने कहा, ‘हर व्यवसाय जिसमें तकनीक शामिल है, प्रभावित होगा, लेकिन जब आप इस पर बात करते हैं तो एसएएएस (एक सेवा के तौर पर सॉफ्टवेयर) उद्योग सबसे पहले दिमाग में आता है.’

‘निवेश संकट का दौर हमेशा नहीं रहेगा’

रेजरपे पर एक ब्लॉग के मुताबिक, ‘फंडिंग विंटर यानी निवेश घटने का दौर बाजार में पूंजी प्रवाह में सुधार की अवधि को संदर्भित करता है, जो स्टार्टअप्स के लिए लघु से मध्यम अवधि में उच्च मूल्यांकन हासिल करने की संभावना को घटाता है. सीधे शब्दों में कहें, तो संस्थापकों के लिए धन जुटाना और अत्यधिक उच्च मूल्यांकन हासिल करना कठिन हो जाता है.

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उभरे भू-राजनीतिक तनाव, रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों, वैश्विक मुद्रास्फीति और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में ऐतिहासिक गिरावट आदि भारत में फंडिंग विंटर के प्रमुख कारण हैं.

यही नहीं कुछ घरेलू स्थितियां भी फंडिंग विंटर की बड़ी वजह बनी हैं, जिनमें हाल में लॉन्च कुछ आईपीओ—ई-कॉमर्स फर्म नायका, और फिनटेक कंपनी पेटीएम—का निराशाजनक प्रदर्शन शामिल है. दुआ ने कहा, ‘निवेशक किसी भी कंपनी में निवेश से पहले शेयर बाजार के प्रदर्शन पर काफी गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि इन सभी कारणों से स्टार्टअप्स को लंबे समय तक फंडिंग विंटर का सामना करना पड़ सकता है.

बंसल ने कहा कि फंडिंग विंटर का दौर अभी कुछ समय तक चलता रहेगा. उन्होंने कहा, ‘यह स्थिति हमेशा तो नहीं रहेगी लेकिन अभी कुछ और समय तक ऐसा चलेगा. स्थितियों में सुधार कब होगा इस पर ठोस तरीके से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते.’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: हिंडेनबर्ग के बाद इक्विटी ने ली कर्ज की जगह, मोदी की मेगा परियोजनाओं पर लगा सवालिया निशान


share & View comments