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Tuesday, 21 May, 2024
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रूस-यूक्रेन युद्ध, पहले के ऑर्डर्स, नए आयातक- क्यों बैन के बावजूद ‘दोगुना’ हुआ भारत का गेहूं निर्यात

मोदी सरकार ने मई महीने में ही गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. हालांकि, यह पाबंदी 13 मई से पहले पंजीकृत खेपों और खाद्य सुरक्षा मांगों को पूरा करने वाले अनुरोधों पर लागू नहीं हुए थे.

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नई दिल्ली: वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पहले से मौजूदा ऑर्डर्स, रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव, और उन देशों से आ रही मांग जो पहले भारत से गेहूं नहीं खरीदते थे – ये ऐसे कुछ कारण हैं जिनकी वजह से गेहूं के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद इसके निर्यात में काफी वृद्धि हुई है

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अप्रैल और अगस्त के बीच भारत का गेहूं निर्यात पिछले साल की समान अवधि की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है. बता दें कि इस अनाज की बढ़ती घरेलू कीमतों को काबू में लाने लिए केंद्र सरकार ने मई 2020 में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था.

वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘ऊपर से देखने पर यह विरोधाभासी लगता है, लेकिन पिछले साल की तुलना में गेहूं के निर्यात में आई इस बढ़ोतरी के दो प्रमुख कारण हैं. सबसे पहला कारण तो मई में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने से पहले से मौजूद अनुबंध थे. दूसरा यह कि ये अनुबंध एक अलग तरीके के हैं.’

गेहूं निर्यात पर रोक लगाने का कदम अप्रैल में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति के 8 साल के अपने उच्चतम स्तर – 7.79 प्रतिशत – पर पहुंचने के बाद उठाया गया था. अप्रैल-मई में पड़ी भीषण गर्मी की लहर ने भी देश की गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाया, जिससे पैदावार कम हो गई थी.

हालांकि, गेहूं के निर्यात पर लगी यह पाबंदी 13 मई से पहले पंजीकृत खेपों और अन्य देशों द्वारा भारत सरकार से उनकी खाद्य सुरक्षा मांगों को पूरा करने के लिए किए गए अनुरोधों पर लागू नहीं हुआ था.

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वाणिज्य मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अप्रैल-अगस्त की अवधि के दौरान भारतीय गेहूं का निर्यात 43.5 लाख मीट्रिक टन (एमटी) रहा. यह पिछले साल की इसी अवधि में निर्यात किए गए 20.07 लाख मीट्रिक टन गेंहू का दोगुना था.

जून और अगस्त – निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के तुरंत बाद की अवधि – के बीच भी गेहूं के निर्यात के आंकड़े 2021 की तुलना में अधिक थे – 2021 में किये गए 13.54 लाख मीट्रिक टन निर्यात की तुलना में इस वर्ष 17.98 लाख मीट्रिक टन का निर्यात.

यह बढ़ोत्तरी अपने आप में काफी अधिकहै क्योंकि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, भारत ने प्रतिबंध के बाद के महीनों में केवल कुछ ही देशों को इस अनाज का निर्यात किया है – जून में 11 देशों, जुलाई में पांच और अगस्त में आठ देशों को गेंहू का निर्यात किया गया है. इसके तुलना में, भारत ने 2021 के जून में 33, जुलाई में 34 और अगस्त में 33 देशों को गेहूं का निर्यात किया था.

पहले उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘पिछले साल तक भारत गेहूं के वैश्विक बाजार में एक मामूली खिलाड़ी था, लेकिन इस साल यह एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने ‘वैश्विक आपूर्ति में कमी’ पैदा कर दी है, जिससे उन देशों की तरफ से आने वाली मांग भी बढ़ गई है, जिन्होंने पहले कभी भारतीय गेहूं नहीं खरीदा था.’

इस साल फरवरी में युद्ध शुरू होने के बाद से गेहूं के शीर्ष वैश्विक उत्पादकों में शामिल यूक्रेन और रूस ने इस अनाज के निर्यात में तेज गिरावट देखी है.

वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘तो अब आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर हमने प्रतिबंध नहीं लगाए होते, तो हमारे निर्यात में कई गुना तेजी से वृद्धि हुई होती.’

विशेष रूप से पूर्वी एशियाई देशों से आने वाली मांग काफी बढ़ी है.

उदाहरण के लिए, वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण कोरिया – जिसने पिछले छह वर्षों से भारतीय गेहूं का आयात नहीं किया था – इस साल के अब तक के शीर्ष खरीदारों में से एक रहा है और सिर्फ अप्रैल और अगस्त के बीच इसने 5.04 लाख मीट्रिक टन भारतीय गेहूं का आयात किया है.

हालांकि, भारत खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं का सामना कर रहे अपने अधिकांश पड़ोसियों को गेंहू का निर्यात करना जारी रखे हुए है, नेपाल को जाने वाली खेप में पिछले साल की तुलना में गिरावट आई है.


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बढ़ती मांग, खासकर पूर्वी एशिया से

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कोविड महामारी से पहले, भारत ने 2019-2020 वित्तीय वर्ष में सिर्फ 2 लाख मीट्रिक टन से कुछ ही अधिक गेहूं का निर्यात किया था. यह चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में निर्यात किए गए गेहूं का करीबन पांच फीसदी बनता है.

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फ़ूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी-एपीडा) – जो वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक व्यापार को बढ़ावा देने वाली संस्था है – के निदेशक तरुण बजाज ने कहा, ‘महामारी के दौरान भारतीय गेहूं की मांग तब बढ़ी जब खाद्य सुरक्षा पहली बार दुनिया भर के देशों के लिए प्राथमिकता के रूप में उभरी, और यूक्रेन संघर्ष शुरू होने के बाद यह फिर से बढ़ी.‘

उन्होंने कहा, ‘इस साल गेहूं और चावल सबसे अधिक मांग की जाने वाली वस्तुएं बन गईं हैं.’

बजाज के अनुसार, गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट्स (दो सरकारों के बीच होने वाले अनुबंधों), जो मई में प्रतिबंध लागू होने से पहले जारी किए गए ऋण पत्रों (लेटर ऑफ़ क्रेडिट्स) के साथ पहले से ही किये गए थे, के कारण गेहूं का निर्यात दोगुना हो गया है.

एपीडा के निदेशक ने कहा, ‘प्रतिबंधों से पहले हमें मिस्र जैसे देशों के बाजार में भी पहुंच मिली थी. लेकिन ज्यादातर मामलों में जिन अनुबंधों का पालन किया गया है, वे उन देशों के साथ हैं, जिन्होंने वर्षों से नियमित रूप से भारतीय गेहूं का आयात किया है, जैसे कि बांग्लादेश.’

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के कारण पिछले एक साल में, वियतनाम, फिलीपींस, थाईलैंड, और जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, दक्षिण कोरिया, जैसे पूर्वी एशियाई देशों में भारतीय गेहूं के निर्यात में काफी तेजी से वृद्धि हुई है.

उदाहरण के तौर पर, वियतनाम ने अप्रैल-अगस्त की अवधि 2021 में सिर्फ 4,500 मीट्रिक टन गेहूं का आयात किया, जबकि इस वर्ष इसी अवधि के लिए इसमें लगभग 73,000 मीट्रिक टन गेहूं का आयात किया था. पिछली बार वियतनाम ने भारत से इतनी ही मात्रा में गेहूं का आयात साल 2013 में (62,000 मीट्रिक टन) किया था.

इसी तरह, फिलीपींस ने अप्रैल-अगस्त 2021 में सिर्फ 21 मीट्रिक टन गेंहू आयात किया था, जो इस वर्ष इसी अवधि के दौरान बढ़कर 1.74 लाख मीट्रिक टन हो गया. थाईलैंड को अप्रैल-अगस्त 2021 में 1,300 मीट्रिक टन से अधिक भारतीय गेहूं प्राप्त हुआ था जो अब इस वर्ष की इसी अवधि के लिए बढ़कर 2.12 लाख मीट्रिक टन हो गया है.

नेपाल का अजीबो-गरीब मामला

हालांकि, भारत ने खाद्य सुरक्षा चिंताओं का सामना कर रहे अपने अधिकांश पड़ोसी देशों के लिए गेहूं निर्यात प्रतिबंधों में ढील दी हुई है, मगर नेपाल उनमें से एक नहीं है.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-अगस्त 2021 की अवधि में नेपाल को किये गए 1.64 लाख मीट्रिक टन भारतीय गेहूं का निर्यात इस वर्ष गिरकर इसी अवधि के दौरान केवल 15,000 मीट्रिक टन रह गया है.

मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस बारे में समस्या यह हो सकती है कि प्रतिबंध से लगाए जाने पहले नेपाली निर्यात को लेटर ऑफ़ क्रेडिट द्वारा समर्थन नहीं मिल पाया हो. या यह भी हो सकता है कि नेपाल ने प्रतिबंध के बाद भारत द्वारा प्रदान किए गए उस ‘विशेष समय काल’ का उपयोग न किया हो जो भारत सरकार ने गेंहू के आयत का अनुरोध करने के लिए गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट करारों पर हस्ताक्षर हेतु मुहैया कराया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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