नई दिल्ली: अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आक्रामक मौद्रिक नीति ने वर्ष 2022 में पूरे साल लगातार डॉलर को मजबूत किया जिससे भारतीय रुपये का भाव अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस साल 11 प्रतिशत से अधिक गिर गया.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 2021 के अंत में 74.29 के स्तर पर रहा था लेकिन वर्ष 2022 के अंत में यह 82.61 के भाव पर आ गया. समीक्षाधीन वर्ष में अमेरिकी मुद्रा 2015 के बाद से किसी साल के मुकाबले सबसे अधिक मजबूत हुई.
हालांकि, भारतीय मुद्रा ने तुर्की की लीरा और ब्रिटिश पाउंड जैसी कुछ अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में कहीं बेहतर प्रदर्शन किया.
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता, यूक्रेन पर रूस के हमले, वैश्विक तेल कीमतों में तेजी के कारण रिजर्व बैंक को रुपये की गिरावट थामने के लिए आगे आना पड़ा. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में तेज गिरावट के चलते आयातित मुद्रास्फीति नीति निर्माताओं के लिए एक चुनौती बन गई.
वर्ष के दौरान मुद्रा बाजार में अस्थिरता फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध के असर से शुरू हुई. इसने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया, जिससे दुनिया भर में मुद्रास्फीति बढ़ गई.
आक्रामक अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए दरों में वृद्धि शुरू कर दी. ऐसे में डॉलर एक सुरक्षित मुद्रा बन गई, जिससे दूसरे देशों से भारी मात्रा में निकासी हुई.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण भी रुपये पर दबाव रहा. वैश्विक स्तर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दर में आक्रामक वृद्धि करने से विदेशी निवेशकों ने 2022 में भारतीय इक्विटी बाजारों से 1.22 लाख करोड़ रुपये और ऋण बाजारों से 17,000 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध निकासी की.
हालांकि, आरबीआई ने गिरते रुपये को सहारा देने के लिए सौ अरब डॉलर से अधिक खर्च किए, लेकिन फिर भी यह डॉलर के मुकाबले 83 के मनोवैज्ञानिक स्तर के करीब चला गया.
नए साल में रुपये के अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व आने वाले वर्ष में दरों में बढ़ोतरी की तीव्रता को कम करेगा. इसके अलावा, वैश्विक निवेशकों का भारतीय बाजारों में भरोसा नहीं टूटा है और एफआईआई प्रवाह में सुधार शुरू हो गया है.
इसके अलावा वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कीमतों में गिरावट, भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद के चलते उम्मीद है कि रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कुछ मजबूती हासिल करेगा.
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